समस्त विश्व में *विशेष भगवत्कृपा* हमारे देश भारत पर हुई है क्योंकि भारतवर्ष में समय समय पर अवतार लेकर भगवान ने मानवमात्र को सदमार्ग पर चलना सिखाया है ! भारतवर्ष पर भी यह *विशेष भगवत्कृपा* इसलिए हुई क्योंकि :---
*तत्रापि भारतमेव वर्षं कर्मक्षेत्रमन्या*
(श्रीमद्भा०)
*अर्थात्:-* सम्पूर्ण सृष्टि में भारतवर्ष ही कर्मभूमि है ! भारत में भी यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो *भगवत्कृपा का पात्र बनी अयोध्या नगरी* जहां पर साक्षात् नारायण ने अवतार लिया ! अयोध्या की महिमा का बखान लेखनी की सीमा से परे है ! अयोध्या नाम में ही त्रिदेवों का वर्णन है :---
*अकारो ब्रह्म च प्रोक्तं मकारो विष्णुरुच्यते !*
*धकारो रुद्ररूपश्च अयोध्या नाम राजते !!*
(स्कन्दपुराण)
यह विशेष *भगवत्कृपा* भारत देश विशेषकर अयोध्या जी में हुई तो भक्तजन झूम उठे ! अयोध्या एवं श्रीराम की महिमा का बखान करते हुए किसी ने बहुत सुंदर लिखा है :---
*अवध मग कंकर पै कोटि रन्त वारि डारौं ,*
*तीरथहूँ वारि डारौं सरजू की धार पै !*
*धवल धाम देखत ही अमरावति वारि डारौं ,*
*वारौं ध्रुव धाम एक भूप के दुआर पै !!*
*रची शची सशीच अवधवासिन पै वारि डारौं ,*
*वारौं वैकुण्ठ औध सौध के विहार पै !*
*मंगलहूँ मुदित वारौं पर्व सर्वरीश वारौं ,*
*कोटि काम वारौं अवधेश के कुमार पै !!*
(संकलित)
वैसे तो नारायण के अनेकों अवतार का वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है परंतु *अयोध्या पर विशेष भगवत्कृपा* इसलिए कहीं जा रही है क्योंकि यहां पर मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अवतार धारण किया ! जीवन को कैसे जीना चाहिए , एक पुत्र का पिता के प्रति , भाई का भाई के प्रति , पति का पत्नी के प्रति एवं एक राजा का प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य होता है क्या मर्यादायें होती हैं यह भगवान श्रीराम ने करके दिखाया है ! पर पग पग पर उन्होंने मर्यादा स्थापित की इसीलिए उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया ! अयोध्या नगरी की चर्चा की जाय और सरयू मैया का नाम ना आये तो यह चर्चा अधूरी ही होगी ! भगवान के नेत्रों से निकली हुई सरयू मैया को नेत्रजा भी कहा जाता है सरयू मैया पर भी *विशेष भगवत्कृपा* है ! भगवान ने स्वयं घोषणा की है :--
*अवधपुरी मम पुरी सुहावनि !*
*उत्तर दिसि बह सरजू पावनि !!*
*जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा !*
*मम समीप नर पावहिं बासा !!*
(मानस)
शुद्ध मन से यदि सरयू मैया में स्नान कर लिया जाय तो बिना कोई प्रयास किए ही भगवान के धाम को प्राप्त किया जा सकता है ! यह घोषणा स्वयं भगवान कर रहे हैं ! *यह विशेष भगवत कृपा ही है !* अयोध्या पर *विशेष भगवत्कृपा* इसलिए कहीं गई है क्योंकि अयोध्या का वर्णन वेदों से लेकर पुराणों तक प्राप्त होता है ! अथर्ववेद मैं देखने को मिलता है :---
*अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरोध्यया !*
*तस्यां हिरण्यमयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः !!*
(अथर्ववेद)
अर्थात : ‘अयोध्या’ देवताओं की नगरी है ,जो अष्टचक्रो और नौ द्वारो से घिरी है ! इसके मध्य में सोने का खजाना है और यह अपने प्रकाश से स्वर्ग के समान दिखती है ! *वाल्मीकि जी* अपनी रामायण के ‘बालकांड’ में अयोध्या का वर्णन करते हुए कहते हैं –
*कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् !*
*निविष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान !!*
*अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता !*
*मनुना मानवेंद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयंम् !!*
*आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी !*
*श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा !!*
(वाल्मीकि रामायण)
अर्थात : “सरयू नदी के तट पर एक खुशहाल कोशल राज्य था ! वह राज्य धन और धान्य से भरा पूरा था ! *वहां जगत प्रसिद्ध अयोध्या नगरी है ! जिसका निर्माण स्वयं मानवों में इंद्र मनु ने किया था !* वह नगरी बारह योजनों में फैली हुई थी ! *भगवान वेदव्यास जी* महाभारत में अयोध्या का वर्णन करते हुए कहते हैं:--
*गोप्रतारं ततो गच्छेत सरव्यास्तीर्थमुत्तमम् !*
*यत्र रामो गतः स्वर्गं सभृत्यबलवाहन !!*
*स च वीरो महाराज तस्य तीर्थस्य तेजसा !*
*रामस्य च प्रसादेन व्वसायाच्च भारत !!*
(महाभारत)
अर्थात : “वहां से सरयू तीर्थ ग्रोप्रतार (गुप्तार घाट) जाए ! वहां अपने सैनिकों, सेवकों और वाहनों के साथ गोते लगाकर उस तीर्थ के प्रभाव से वे वीर श्री राम चंद्र जी अपने नित्य धाम को पधारे थे ! उस सरयू को गोप्रतार तीर्थ में स्नान करके मनुष्य श्रीराम की कृपा से सब पापों से शुद्ध होकर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है ! इस प्रकार साक्षात नारायण की नगरी अयोध्या पर *विशेष भागवत्कृपा* है और यह सप्त पुरियों में सर्वश्रेष्ठ एवं प्रथम स्थान पर है ! क्योंकि:--
*सबसे बड़ी अयोध्या नगरी जहां राम लीन्ह अवतार !*
अयोध्या की महिमा का वर्णन कर पाना संभव नहीं है लिखने तो अनेकों महापुरुषों ने अयोध्या के विषय में लिखने का प्रयास किया परंतु सब कुछ लिख देने के बाद भी ऐसा लगा कि कुछ कम ही रह गया ! ऐसा इसलिए क्योंकि इस नगरी पर *विशेष भगवत्कृपा है !*