मेरी याद दिल से भुलाओगे कैसे,गिराकर नज़र से उठाओगे कैसे|सुलगने ना दो ज़िन्दगी को ज्यादा,चिरागों से घर को बचाओगे कैसे
मिलावटी खाद्यान्न खाते-खाते इन्सान भी दिन-प्रतिदिन मिलावटी होते जा रहे हैं। यह पढ़-सुनकर तो एकबार हम सबको शाक लगना स्वाभाविक है। यदि इस विषय पर गहराई से मनन किया जाए तो हम हैरान रह जाएँगे कि धरातलीय वास्तविकता यही है। हम मिलावटी हो रहे हैं यह कहने के पीछे तात्पर्य है कि हम सभी मुखौटानुमा जिन
किसान चिंतित हैसुशील शर्माकिसान चिंतित है फसल की प्यास से ।किसान चिंतित है टूटते दरकते विश्वास से।किसान चिंतित है पसीने से तर बतर शरीरों से।किसान चिंतित है जहर बुझी तकरीरों से।किसान चिंतित है खाट पर कराहती माँ की खांसी से ।किसान चिंतित है पेड़ पर लटकती अपनी फांसी से।किसान चिंतित है मंडी में लूटते लुट
रोटी की सही कीमत जानता है ,भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से प
किसान अपने खेत की तैयारी के बाद बीज के लिए सरकारी बीज गोदाम की ओर दो लाभ प्राप्त करने की उम्मीद से जाता है।एक सरकारी अनुदान और फाउंडेशन सीड में कम बीमारी का दावा।मगर वास्तव में उसे दोनों में छलाबा ही मिलता हैन तो कोई अनुदान की गारंटी है और न ही उच्च गुणवत्ता के बीज की।खरीफ में धान के बीज की पौध डाली
एक गांव में एक किसान अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। किसान गरीब था, नौकरी नहीं थी, कुछ जमीन थी, जिसमें अनाज उगाकर अपना गुजारा करता था। इस बार भी किसान और उसकी पत्नी ने पूरी महेनत और लगन से अपने खेतों में काम किया, और उसमें अनाज उगाया। फसल काफी अच्छी हुई, किसान अपनी फसल को देखकर काफी खुश था,
भूख प्यास मजबूरी का आलम देखा,जब से होश संभाला केवल ग़म देखा। नहीं मिला ठहराव भटकते क़दमों को,जिसके भी मन में झाँका बेदम देखा। वादों और विवादों की तक़रीर सुनी,जख्मीं होंठों पर सूखा मरहम देखा। बिना किये बरसात बदरिया चली गई, कई मर्तबा ऐसा भी मौसम देखा। सर पे छप्पर नहीं मह्ज नीला अम्बर था,उन आंखों में स्वा
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सूखे की मार और खराब आर्थिक स्थिति ने किसानों को नए-नए जुगाड़ करना सिखादिया है। खेत जुताई के लिए हल नहीं था तो बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा के एक किसानने साइकिल को ही हल बना लिया और जुताई शुरू कर दी। किसान का कहना है कि बिना लागतके यह उसके लिए काफी किफायती साबित हो रहा है। बुंदेलखंड में किसानों की जि
अफ्रीका के दयार नोवा नगर में जगत प्रसिद्ध हकीम लुकमान का जन्म हुआ था। हब्शी परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें गुलामों की तरह जीवन बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मिश्र देश के एक अमीर ने तीस रुपयों में अपनी गुलामी करने के लिए लुकमान को खरीद लिया ओर उनसे खेती बाड़ी का काम लेने लगा।यह अमीर बड़ा क्रूर
लोकसभा में आज पंजाब से लोकसभा में चुनकर आए सांसद भगवंत मान ने सत्ताधारी बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जिस सरकार ने डिजिटल इंडिया के नाम पर जनता से वोट मांगे, आज हमारे खाने-पीने, पढने-लिखने और पहननेओढने जैसे मुद्दों पर रोक लगा रही है।नई दिल्ली: लोकसभा में आज पंजाब से आप सांसद भगवंत मान न
भारत के राजस्थान राज्य के किसान श्री गुरमेल सिंह धोंसी ने कृषि क्षेत्र मेंअपने अभिनव विचारों से खेती में सहायक मशीनों को बनाने में महारथ हासिल कर ली है |उल्लेखनीय है कि छोटे से गांव से जुड़े धोंसी ने अब तक 24 ऐसे कृषि-उपकरण बनादिए हैं, जो किसानों के रोजमर्रा के खेतिहर कामों में बड़े पैमाने पर प्रयुक्त
बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैगर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैसर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैमौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का हैकोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का हैकिसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का हैव्यस्त सब सियासी खेल
गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क
अभी अन्नदाता का दर्द कम नही हुआ था कि आज फिर से आसमान मेँ बादलों ने डेरा जमा लिया है अन्नदाता का कलेजा फिर से तेज धङकने लगा है क्योंकि उसकी साल भर की कमाई खेतों मे पङी है लेकिन यही बादल कुछ लोगों को सुहाना लग रहा होगा सरकार किसानो को मुवावजे के नाम पर धोका दे रही है
सिर को पकडे हुये अपनी बर्बाद फसल को कातर निगाहों से देखते हुये मैंने एक किसान से कहा कि चल उठ मन की बात ही सुन ले सुकून मिलेगा। वह उठा और अपने मन की जो सुनायी वह बयान करता हूँ---- बोला " कहाँ जाऊँ मैं अपनी यह बर्बाद फसल लेकर; सोचता हूँ मर जाऊँ इसी आम के पेड़ पर लटक कर; घर जाऊँ कैसे? मेरी बूढी माँ
हरित क्रांति---------------खाद्यान्न उत्पादनश्वेत क्रांति---------------दुग्ध उत्पादननीली क्रांति---------------मत्स्य उत्पादनभूरी क्रांति---------------उर्वरक उत्पादनरजत क्रांति---------------अंडा उत्पादनपीली क्रांति---------------तिलहन उत्पादनकृष्ण क्रांति---------------बायोडीजल उत्पादनलाल क्रांति