कूड़ा भोज.
भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोकर रखने के लिए तरह-तरह के संकल्प ले रहे थे। ऐसे ही एक स्वतः स्फुर्त छः गाँधीवादी युवकों की टोली समलापुर गाँव में सक्रिय थी।
रामधन- “यह आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिली है यह आजादी हमें गाँधी जी के तप और साहस के बल पर मिली है।”
करमचंद- “हाँ सही कहते हो, गाँधीजी न होते तो आज हम आजाद मुल्क में खड़े नहीं होते।”
गुरूवचन- “इस आजादी की रक्षा हम गाँधीजी के सिद्धांतों पर चलकर ही कर सकते हैं।”
रौनकलाल- “गाँधी जी ने हमारी स्वाधीनता के लिए अपनी आहुति दी है, क्यों न हम सब मिलकर प्रण लें कि हम सब गाँधीजी के सिद्धांतों पर चलकर उनके सपनों का देश बनाएंगे और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।”
धर्मवीर- “स्वाधीनता की पहली वर्षगांठ पर हम ऐसा कुछ करें कि समाज से भेदभाव और कलंक का नाश हो। मेरे मन में एक विचार आया है और मैं समझता हूँ कि इस विचार से हम गाँधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि भी दे पाएंगे और समाज से रूढ़िवादिता का नाश होगा।”
श्रवणकुमार- “ऐसे पावन मौके पर जरूर पवित्र विचार आया होगा देर न करो; कह डालो।”
धर्मवीर- “समाज में जातियों से बड़ी भेद पड़ती है, क्यों न हम जातियों का त्याग करें और समाज में समरसता लाए।”
रौनकलाल- “क्या ही पवित्र विचार है। आज से हमारी कोई जाति नहीं हम सब अब केवल मानव जाति। क्यों साथियों।”
करमचंद- “हाँ, हाँ हम अपने नाम के आगे कूड़ा लगा लेंगे पर जाति नहीं लगाएंगे।”
रामधन- “फिर कूड़े में क्या खराबी है आज से हमारे लिए जाति कूड़ा, हमारी जाति कूड़ा।”
रामधन ने हाथ आगे किया उसपर एक के बाद बारह हाथ इकट्ठा हो गए। फिर सभी ने सम्मिलित स्वर में कहा- “आज से हमारी जाति कूड़ा।”
सभी छः एकजुट हुए और समाज सेवा में स्वयं को झोंक दिया। मुहल्ले की गलियों-सड़कों की सफाई, कुँओं की सफाई, वृक्षारोपण, जरूरतमंद को सहायता सहित दर्जनों काम कर डाले। गाँव-शहर सब जगह इसकी चर्चा होने लगी। जिसे मालूम चलता दांतों तले उँगली दबा लेते, कहते क्या सत्याग्रही हैं, गाँधी जी ने अपने दूत भेजे हैं।
सत्याग्रहियों के लगाए वृक्षों में से सौ ने जड़ें पकड़ लीं और पत्ते हरे दिखने लगे। ऐसे में सत्याग्रहियों की एक शाम मेंः
रौनकलाल- “हमारे परिश्रम की बदौलत हमने वृक्षारोपण में विशिष्ट उपलब्धि अर्जित की है और हमारे लगाए सौ वृक्ष जमीन पकड़ हरियाली दिखा रहे हैं।”
गुरूवचन- “तभी तो कूड़ाओं के कार्यों की चर्चा गली-गली हो रही है, लोग सराहना करते नहीं थकते हैं।”
करमचंद- “हमने यही नहीं रुकना है, इस मुहिम में और लोगों को लाना है, इसे सफल बनाना है।”
धर्मवीर- “हमारी एक योजना है क्यों न हम हमारे सौ वृक्षों के जमने के उपलक्ष्य में वन भोज आयोजित करें और अपने लोगों को आमंत्रित कर भोजन के लिए आग्रह करें और अपने गाँधीवादी परिवार में जोड़ें।“
श्रवणकुमार- “उचित प्रतीत होता है पर वन भोज के लिए पैसे कहाँ से जुटाएंगे, नगरवासियों की तादाद के हिसाब से हमसे प्रबंध होने से रहा।”
रामधन- “पैसे आप जुटेंगे। हम क्यों माने बैठे हैं कि नगरवासी इतने तंगदिल हैं।”
रौनकलाल- “तो फिर यह तय हुआ कि अगले इतवार को नगरवासियों के लिए वन भोज आयोजित रहेगी।”
जनता को जब इस पुनीत आयोजन के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे हाथों-हाथ लिया। एक-से-बढ़कर-एक दानवीर सामने आने लगे। कूड़ा सौ वृक्षों के लगने के उपलक्ष्य में जिसे नेवता देते वही झोलियां भरे देते थे। आयोजन के प्राक्कलन से कहीं ज्यादा धनराशि इकट्ठी हो रही थी। तो कूड़ाओं का उत्साह भी चरम पर पहुँच रहा था।
गुरूवचन- “मैं न कहता था कि लोगों में हमसे अलग उत्साह है, बड़ी आशाएं हैं।”
धर्मवीर- “व्यापारी धन कमाते हैं, हमने लोगों का भरोसा कमाया है।”
रामधन- “भरोसा होना बड़ी बात है और हम इसे जाया जाने नहीं दे सकते हैं।”
करमचंद- “हम लोग ऐसा वन भोज करें कि लोग भुलाते नहीं भूल पाए।”
श्रवणकुमार- “मैंने सुना है इलाके के नामचीन सेठ जमुना दास भोज में आने की इच्छा जताई है।”
रौनकलाल- “सही सुना है, उन्होंने न सिर्फ निमंत्रण स्वीकार किया बल्कि स्वेच्छा से पूरे यज्ञ का भरो भार की जिम्मेदारी ली है।”
बरगद और पीपल के जोड़े वृक्षों के नीचे का जगह पानी मुचक कर साफ किया गया है, गोबर लीपे हुए जगह पर वन भोज का भोजन तैयार किया जा रहा है, कारिंदों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। पकते भोजन की खुशबू से हवा महक उठी है। धीरे-धीरे बेला हो चली है और लोगों का आना आरंभ होता है। लोगों की कतारों में नगरवासी के साथ-साथ बड़ी संख्या में भूखे-तंगहाल और कंगलों की भी तादाद है। इनके लिए स्वच्छता के किसी आयोजन से बढ़कर पेट की क्षुधा मिटाना ज्यादा बड़ा ध्येय जान पड़ता है। भीड़ में से थोड़ी कोलाहल होती है, लोगों की निगाहें उधर उठ जाती है। नगर सेठ जमुना दास की बग्घी भोज स्थल पर प्रवेश कर रही है। सत्याग्रही आवभगत के लिए उद्विग्न हो उठे हैं। धर्मवीर लौटा में पानी लेकर नगर सेठ की ओर बढ़ते हैं। रौनकलाल अतिथि को शाल ओढ़ाकर आदर करते हैं। गुरूवचन अतिथि के आगे-आगे चलकर उन्हें अपनी ड्योढ़ी पर रखी कुर्सी पर आगे कर बैठने का आग्रह करते हैं। भोजन तैयार होने को है पर नगर सेठ के सम्मान में कोई कमी न हो इसलिए सभी सत्याग्रही अलग जाकर मंत्रणा कर रहे हैं:
धर्मवीर- “भोजन तैयार होने को है, आगंतुकों के साथ सेठ श्री को आदर के साथ बैठाने की बारी है। हमारी तैयारी पूरी है??”
रौनकलाल- “वैसे तो तैयारी पूरी हो चली है लेकिन........।” संकोच वश अपनी बात पूरी नहीं कर पाते हैं।
गुरूवचन- “लेकिन क्या रौनकलाल..........?? अपनी बात पूरी कहिए।”
करमचंद- “हमें क्या सभी नेवतियों के साथ ही सेठ जमुना दास को भी बैठा देना चाहिए??”
रौनकलाल- “सभी नेवतिये ही कहाँ हैं जी, नगर भर के फटेहाल, कंगले टूटे पड़े हैं, मुफ्त का मिलना चाहिए कि बस, चार-चार कोस पैदल चल देंगे पर जतन नहीं करेंगे।”
श्रवणकुमार- “हम इन कंगलों के साथ नगर सेठ को बिठाकर उनका अपमान ही करेंगे। ध्यान रहे अकेले सेठ जी ने इस यज्ञ का बीड़ा उठाया है।”
रामधन- “इन कंगलों से इस महती अभियान में सहयोग मिलना तो दूर की कौड़ी है ही; ये कुछ सुधर जाएं हमारी बला से तो सौ यज्ञ के भागी हों। भला पेट के आगे इसे कुछ सुझे तब ना।”
मंत्रणाओं के फौरन बाद कूड़ाओं के तरफ से जरूरी मुनादी करवा दी गई।
“कूड़ांओं के वन भोज में सभी का स्वागत है। कूड़ाओं ने 100 पेड़ लगाकर निश्चय ही हमें रास्ता दिखाया है और समाज का कल्याण किया है। यह वन भोज कूड़ाओं के द्वारा सौ पेड़ के योगदान के उपलक्ष्य में आयोजित है इसलिए कूड़ा और कूड़ा भोज में सहयोग करनेवाले ही वनभोज के प्रथम अधिकारी हैं। अतः सभी गणमान्य से अनुरोध है कि सर्वप्रथम कूड़ाओं को भोजन प्राप्त कराकर उनका सम्मान करेंगे और जिन्होंने दशांश देकर कूड़ाओं को उनके आयोजन में सहयोग दिया है वे सब भी कूड़ाओं के साथ प्रथम पंगत में बैठ सकेंगे, बाकी जनें बाद में बैठेंगे।”
ओसारे पर कूड़ाओं के साथ सेठ जमुना दास वन भोज के प्रथम अधिकारी के रूप में भोजन ग्रहण करने बैठे। गाँधी वादी विचारधारा धरी रह गई। कालांतर में यह वन भोज कूड़ाभोज के नाम से प्रचलित हो गया।
-पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)
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