मैंने देखा है.
अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए
ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए
कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए
दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए
भीषण प्रतिज्ञाओं को व्यतीत होते हुए
दूरियों को गंतव्य से पहले शून्य होते हुए
प्रतिशोध में अपना अहम तलाशते हुए
अतिरंजना को कवलित होते हुए
गर्व को नकारा सिद्ध होते हुए
प्रतिभाओं को अपना क्षय करते हुए
जिद को जाया जाते हुए
समृद्धि को इतिहास बनते हुए
योजनाओं को यथार्थ से अछूता रहते हुए
समय को हाथ से निकलते हुए
कल्पनाओं को माटी होते हुए
चमक को अपनी आभा खोते हुए
अब पछताए क्या अर्थ है
समय बीता तब सुध है
हम है तुम है दोनों हैं
पर यह संयोग अभी घड़ी है
संवाद से समाधान होते हुए
शंकाओं को निर्मूल सिद्ध होते हुए
तिमिर को रौशन होते हुए
वसुंधरा का भाग जगते हुए
जीत के जश्न को जंग खाते हुए
हार से निकलकर बाहर आते हुए
दुश्मनी को दीमक लगते हुए
मैत्री का दौर चलते हुए
लगन से रश्मिरथी लाते हुए
मेहनत का डंका बजते हुए
सफलता का स्वाद चखते हुए
संघर्ष को गाथा बनते हुए
ऊर्जा की साँझ ढलते हुए लेकिन
नई पौध की फसल लहलहाते हुए
शैशवों का स्वागत होते हुए
विरासत को आगे ले जाते हुए।
--पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)