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प्रेम

15 सितम्बर 2023

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प्रेम.

ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा कद, शांत और सौम्य चेहरा सलीकेदार परिधान में फूलों की तरह खिल जाती थी वह।

कई दफा वह नोटिस करती थी कैंपस के युवक को। वह शांत-सा था। पहनावा साधारण। उसे वहां पढ़ाई के अलावा किसी और चीज से मतलब हो कम-से-कम से देखकर तो ऐसा नहीं लगता। जब भी दिखता तो लड़कियों की तरह किताबें कोहनी और छाती के बीच दबाए नजरें जमीन पर कैंपस में आते या बाहर जाते ऐसे ही बस।

ईबराह अपने क्लासेज करने के बाद बी ब्लॉक से हॉस्टल के लिए निकल रही थी। तभी उसने उस लंबे-गोरे नौजवान को अपने नजदीक आते देखा, वह परेशान दिख रहा था। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थी। कुछ कदम साथ चलता रहा। 

ईबराह से नहीं रहा गया तो पूछ बैठी-“बताएं, कोई परेशानी है आपको?”

नवयुवक- “म...म...मैम.........मैं बी-ब्लॉक फर्स्ट ईयर से हूँ।” लड़खड़ाहट जा नहीं रही थी।

ईबराह- “जनाब इंडिया से हैं।“

नवयुवक- “जी...।”       “मैम पी जी वालों ने मेरी किताबें और हॉस्टल की चाभी रख ली है।”

ईबराह – “तो जनाब।”

नवयुवक – “मैम सॉरी बट उन्होंने कहा है कि मैं आपका दुपट्टा खिंचूँ....तो मेरी चाभी और किताबें देंगे।” उसने झिझकते हुए ही कहा था।

ईबराह– “अच्छा तो पी जी वाले यहाँ भी इंडिया-पाकिस्तान करवाना चाहते हैं।....................लेकिन कोई नहीं जी, आप खिच लो लेकिन यह दुपट्टा नहीं स्कार्फ है।” ईबराह मुस्कुरा रही थी...वह समझ गई कि पी जी वालों ने नए बकरे को कुरबानी के लिए भेजा है।

नवयुवक ने झिझक से नजरें नीची कर ली। उसने पिछे मुड़कर देखा तो पी जी वाले वहाँ से नदारद थे।

“जनाब जब तक आप यहाँ दुबककर रहेंगे यूँ ही कुरबानी होगी आपकी। मुझे तो बरतन तक धोने को कहा था मैंने तो कह दिया नहीं-जी-नहीं करेंगे।”  कुछ रुककर “इंडिया में कहाँ से हैं जी और नाम तो बताएँ आपका।”

“जी हरमन। मैं पंजाब से हूँ।”  

“पंजाबी तो बड़े दमखम वाले होते हैं और एक आप निकले फन्ने खाँ।” ईबराह हँसते हुए हॉस्टल के लिए बढ़ गई।

उनकी यह छोटी सी मुलाकात शायद ही जिंदगी के नक्शे पर आती अगर रूस ने युक्रेन पर एकतरफा हमला न कर दिया होता। 24 फरवरी 2022 का दिन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन  के आदेश पर रूसी सैनिकों ने दक्षिण के अपने पड़ोसी देश युक्रेन पर बड़े स्तर पर हमला करना शुरू कर दिया। पहले दिन रूस ने युक्रेन पर जमकर गोलीबारी की। कीव में लाखों लोगों ने विस्फोटों और गोलियों की आवाज सुनीं। चारों तरफ अफरातफरी मच गई। लोग अपने घरों को छोड़कर भागने लगे।  नेशनल यूनिवर्सिटी का वह कैंपस जो शिक्षणार्थियों के शोर-शराबे से गुलजार रहता था, वहाँ अब वहाँ सन्नाटा पसरा था। देश-दुनिया के हजारों छात्र जो अपना भविष्य बनाने सैकड़ों-हजारों किलोमीटर चलकर यहाँ आए थे, मानो अंधेरे कुएँ में पहुँचा दिए गए थे। दुनिया भर की सरकारों को इस अप्रत्याशित मानव निर्मित विपदा ने दवाब में ला दिया। रोज कैंपस में हजारों की तादाद में छात्र जमा होते और अपने-अपने एम्बसी की एडवाईजरी को डिसकस करते। धीरे-धीरे कर सभी देशों ने अपने नागरिकों और छात्रों को वॉरजोन से निकालना आरंभ कर दिया। हालांकि युक्रेन की सरकार ने यूनिवर्सिटी संचालन बंद करने को कोई आदेश जारी नहीं किया था न ही यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से शिक्षणार्थीयों को  कॉलेज छोड़ने और घर लौट जाने को कहा जा रहा था। लेकिन वहाँ बने रहना अस्तित्व का संकट था। धीरे-धीरे कॉलेज विदेशी छात्रों से सूना होना शुरू कर दिया। 

ईबराह कॉलेज की लाइब्रेरी से निकल रही थी और मुख्य दरवाजे पर टंगे पर्दे पार करते ही एक आदमी से उसकी टक्कर हो गई और किताबें उसकी हाथों से बिखर गई। वह हरमन था।

“सॉरी, आपको कहीं चोट तो नहीं आई।” किताबें उठाते हुए हरमन ने कहा।

“नहीं तो पर जनाब आप....आप वॉरजोन में क्या कर रहे हैं। आपके पीएम तो डेसिंग हैं सारे हिन्दुस्तानियों को तो उन्होंने कबका एअरलिफ्ट करा लिया, फिर आप?” 

“नहीं गया।”

“वॉर जोन में डरावने सपने नहीं आते हैं जनाब को?”

“मैम...आप भी तो नहीं गई हैं।”

“क्या मैम लगा रखी है। मुहतरमा को ईबराह कहते हैं और मेहरबानी होगी आप हमें ईबराह कहें”

“आप रोज लाइब्रेरी आती हैं कब आती हैं”

“जब तक क्लासेज सस्पैंड हैं तब तक तो रोज हूँ । सुबह आती हूँ, खाली रहती है। आप भी आते हो, रोज?”

“मैंने नून शिफ्ट लिया है। लेकिन मेरे लिए भी मॉर्निंग शिफ्ट सही रहेगा। आप हॉस्टल निकल रही हैं, चलिए आपको छोड़ देता हूँ।”

“शुक्रिया, पर मैं चली जाऊँगी....इंशाअल्लाह मुझे कुछ नहीं होने वाला। तो कल जनाब से मार्निंग शिफ्ट में भेंट होती है....मैं भी अकेले बोर हो जाती हूँ।”

अगली रोज वहाँ एक खुशनुमा सुबह थी। भला कुदरत को इंसानों के फितूर से क्या लेना। हरमन मार्निंग शिफ्ट के लिए लाइब्रेरी में था लेकिन उसका दिल पढ़ने में नहीं था। उसने किताब खोली पर मन दरवाजे की ओर। वह लाईब्रेरी के बाहर लॉबी में रेलिंग थामकर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में ईबराह कैंपस के गेट से अंदर आ रही थी। ईबराह लाल रंग की गाऊन पर सफेद स्कार्फ डाले हुई थी बिलकुल अधखिले गुलाब जैसी लग रही थी, आज उसके कदमों में अलग उत्साह था। हरमन की तरुणाई को भी विश्राम मिल गया।

आते ही हरमन ने पूछ लिया- “देर हुई आपको।”

ईबराह- “नहीं वैसी भी कुछ नहीं, इतने बजे ही तो आती हूँ। आपने हथेली पर क्या बांध रखा है क्या ये इबादत के धागे हैं?”

“नहीं पूजा के तो नहीं हैं लेकिन पूजा के जैसे ही हैं। ये मेरे बहन की राखी है जो उसने इस रक्षा बंधन पर बांधी थी।”

“रक्षा बंधन तो कई महीने पहले बीत गया”

“हाँ, पर मैंने दी की राखी संभाल कर रखी है। जब उसे मिस करता हूँ तो पहन लेता हूँ।”

“माशाअल्लाह अच्छी बॉन्डिंग है भाई-बहन के बीच।”

“मेरी माँ नहीं है। दीदी ससुराल में है और उसे मेरी बहुत चिंता रहती है। दीदी नहीं चाहती है कि मुझे माँ की कमी महसूस हो, हर वक्त मेरा हाल लेती है।”

“और कौन-कौन हैं आपके घर में।”

“मेरे पिताजी हैं। वह हाईस्कूल में क्लर्क थे। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता, वह दीदी के पास रहते हैं।”

“दीदी के पास ...??”

“मेरे पिताजी रिटायर करने के बाद अपने सारे पैसे मुझे यहाँ भेजने के लिए लगा दिए। माँ की बीमारी में हमारा घर पहले ही बिक चुका था। दीदी उनको अपने पास ले गई है।”

“ओह!”

“ आपने पूछा था न कि मैं इंडिया वापस क्यों नहीं जाना चाहता। हम सब जानते हैं कि युक्रेन से  मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ने का क्या मतलब है। कॉलेज छोड़ने से आगे की राह बहुत कठिन होनेवाली है। हमें अब कहीं और  एडमिशन भी नहीं मिलने वाला.... और मिल भी जाए तो मेरी फैमिली उसे अफोर्ड नहीं कर सकती। मैंने दीदी को कह दिया है यहाँ यूनिवर्सिटी में कोई दिक्कत नहीं है। हमला स्कुल-कॉलेजों, रिहायशी जगहों  और पब्लिक प्लेस पर नहीं होने वाला है।”   हरमन का गला रूँध गया।

ईबराह ने हरमन के बाकी बचे गुबार को निकालते हुए कहा-  “और जाएं भी तो कहाँ, दीदी तो पहले से पिताजी को रखे हुए हैं। खुद्दार भाई बहन पर और बोझ कैसे बन सकता है।”

हरमन कुछ देर तक नहीं बोला। फिर ईबरार की ओर देखते हुए पूछा – “आपके पिताजी क्या करते हैं पाकिस्तान में। आप तो अच्छे घराने से लगती हैं।”

“मेरे अब्बु....मेरे अब्बु अमनपसंद और जिंदादिल इंसान थे। शायद इसलिए अल्लाह ने उन्हें अपने पास बुला लिया। हमारा मेडिकल इक्विपमेंट का खानदानी बिजनेस है।  बिजनेस मेरी  वालदाइन चलाती है अब।”

“आप तो अच्छे फैमिली से हैं तो यहाँ खतरों के बीच रुकना क्यों चाहती हैं।”

“पाकिस्तान एक अमनपसंद मुल्क है इसलिए।” कहकर खामोश हो जाती है। कुछ रुककर फिर “चलें किताबें बेचारी परेशान हो रही हैं कहीं हमारा सेमेस्टर न खराब हो जाए।”

पूरे यूनिवर्सिटी में खामोशी सी रहती....लेकिन यह जोड़ा रोज लाइब्रेरी की मॉर्निंग शिफ्ट में होता और इसी से वहाँ की फिजां रौशन हो जाती। मुश्किल समय ने दोनों को हमदर्द बना दिया था। दोनों को एक-दूसरे का इंतजार रहता।

हरमन को अभी लाइब्रेरी से लौटे कुछ ही देर हुआ था कि कान के पर्दे हिला देने वाली बहुत तेज आवाज से सहम गया। आस-पास कहीं विस्फोट हुआ था। वह फौरन बाहर निकला और लोगों को गर्ल्स हॉस्टल की ओर भागते देखा। गर्ल्स हॉस्टल के बीचोबीच मिसाइल गिरी थी। वह भी जी-जान से गर्ल्स हॉस्टल की और भागा। दमकल की गाड़ियों के सायरन की आवाजें भी उस ओर जा रही थी। मिसाइल से गर्ल्स हॉस्टल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। वहाँ से धुल और धुएँ का गुबार अब भी उठ रहा था। ईबराह का कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था। दमकल कर्मियों के आवाज देने पर भी हरमन नहीं रुका और ईबराह के कमरे के पास ही जाकर रुका। उसने देखा कि ईबराह के कमरे के पीछे दीवार थी ही नहीं।

“ईबराह....ईबराह.....“

ईबराह आधे बचे कमरे के फर्श पर औंधे पड़ी हुई थी। उसका शरीर धुल से लथ-पथ था। कंक्रीट का एक छर्रा उसके माथे पर भी लगा था, उस जगह उसके बाल जले पड़े थे। हरमन ने उसको सीधा किया और फिर आवाज दी- “ईबराह...ईबराह.....”

उसने दो पल के लिए आँखे खोली और इतना ही कह सकी- “हरमन....तुम!!” इसके बाद वह बेहोश हो गई। ईबराह अगले तीन दिनों तक कोमा में रही। जब उसे होश आया तो वह हॉस्पिटल के बेड पर थी और उसके माथे पर पट्टी बंधी थी। सामने हरमन बैठा था। वह उसके होश में आने की आशा में था।

“मैं कितने दिनों से होश में नहीं थी।”

“आज तीसरा दिन है।”

“और आप तीन दिनों से मेरे पास थे।”

“आपकी अम्मी का फोन आया था। मैंने कह दिया थोड़ी तबीयत नासाज थी इसलिए हॉस्पिटल में है।”

“मेरी प्यारी अम्मी। खुदा का शुक्र है आपने उसे ज्यादा नहीं कहा।”

“मैंने आपको कहा था न लौट जाने को, अभी आपकी अम्मी आपको हमेशा के लिए खो दे सकती थी।”

“पता है आप जब मेरे पास आए तब मुझे होश था, फिर आपने मुझे अपने गोद में लिया..... यहाँ आने के बाद ऐसा पहली बार था जब मुझे मेरी परवाह नहीं करनी पड़ रही थी।”

“आपको पता है आपकी जान जा सकती थी, आप वादा कीजिए अब आप अपने देश लौट जाएंगी। जान सलामत रही तो फिर कर लीजिएगा MBBS।” 

“जान कि किसे पड़ी है पर जान के लिए हम लौट के उन कठमुल्लों के बीच नहीं जाएंगे। पता है आपने मुझसे कहा कि मैं क्यों नहीं अपने मुल्क लौट जाती। मेरे अब्बु निहायत शरीफ और नेकदिल इंसान थे, उनकी जान पाकिस्तानी रेंजर्स के हाथों सिर्फ इसलिए चली गई कि उन्होंने एक बलोच के लिए हमदर्दी दिखाई थी उसकी जान बचाने की कोशिश की थी। मेरे आँखों के सामने उनका इंतकाल हो गया। और कठमुल्लों ने क्या-क्या नहीं कहा अम्मी को कि तुम्हारी बेटी का हलाला करवाएंगे। मेरी माँ एक मजबूत औरत है वह कुछ भी स्वीकार करेंगी पर उनकी बेटी को जिल्लत का सामना करना पड़े यह किसी कीमत पर उन्हें कबूल नहीं होगा।”

“लेकिन, यहाँ हर घड़ी खतरा.......”

ईबराह ने उसे बीच में ही रोक दिया – “आप मुझे महफूज देखना चाहते हैं तो मुझे अपने आगोश में रहने दें उसी दिन की तरह। मेरे जिंदगी में सबसे अच्छा दिन था वह।”

“आप क्या कह रही हैं।”

“सही कह रही हुँ आप दिल से कहें  कि आप नहीं चाहते मुझे, मुझे आपकी आँखों में रोज दिखता है..... या आप किसी और के साथ हैं लिव-इन में तो नहीं ?”

“नहीं मैं भला....आपको ऐसा लगता है....मेरी दीदी मेरी सबसे बड़ी दोस्त भी है वह हमेशा कहती है कि अपने जीवनसाथी को देने के लिए सबसे बड़ा तोहफा है कौमार्य।”

”सही कहा दीदी ने....उन्हें इल्म होगा इस गुनाह का, जिसके गर्त में हमारी जेनेरेशन जा रही है। पर मैं वादा कर सकती हूँ कि मेरे आपके करीब रहने से आपके करियर या कहीं और कोई दिक्कत नहीं होगी।”

“लेकिन आपका मुल्क....आपकी अम्मी उन्हें फिर से परेशानी उठानी होगी।”

“मेरा मुल्क मेरा मुल्क है और उसके लिए मेरा बेपनाह प्यार है और रही बात कठमुल्लों कि  तो मैंने आपको कहा न कि मेरी अम्मी दुनिया की सबसे बहादुर अम्मी है।  और मैं ये बातें जज्बात में बिलकुल नहीं कह रही। वह हमेशा मुझसे कहती हैं कि जीवन में जो कोई तुम्हारे पिता की तरह मिल जाए उसमें मेरी रजामंदी जानो। बस वह बायोलॉजिकली करेक्ट हो।” दोनों हँस पड़ते हैं इसपर।

“और जो मैंने बीच रास्ते आपको छोड़ दिया तो।”

“जो बंदा अपनी किताबों को भी अपने सीने से लगाकर रखता हो और अपने बहन की राखी महीनों अपनी कलाई से छूटने नहीं देता, वह मुझे छोड़ देगा ये मैं नहीं मानती।”

  युक्रेन की युद्धरत भूमि पर भी प्रेम की कोपलें फुट रही थी।

-पुरूषोत्तम

(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बेहतरीन 👌👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏

3 दिसम्बर 2023

पुरुषोत्तम दास

पुरुषोत्तम दास

3 दिसम्बर 2023

Thank you. Even after releasing so many of my compositions it is still one of the best.

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने 👍🙏

24 अक्टूबर 2023

पुरुषोत्तम दास

पुरुषोत्तम दास

25 अक्टूबर 2023

Thank you.

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

15 सितम्बर 2023
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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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विजय

15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर

19 मार्च 2024
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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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"नेहा"

26 मई 2024
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा

26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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