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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023

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इंडियन या वेस्टर्न.


 


 नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं है। दरअसल यह कहानी है टाॅयलेट शीट की, इस कहानी को पूरा करें और देखें कि आगे आपका ऊँट किस करवट बैठता है। 


 


 ठाकुर दीनानाथ सिंह देवता आदमी थे अभी हाल में ही सरपंच से निवृत्त हुए थे। कहने को तो सरपंच थे पर तहसील में उनका कद विधायक जी से भी ऊपर आंका जाता था। दो लोगों में आपस में कभी अन-बन हो जाए तो क्या मजाल कि कोई सीधे कचहरी-थाने चले जाए, वे पहले ठाकुर साहब के सामने फरियाद करते और उनके प्रभाव का जादू था कि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाता था। वह जैसे-को-तैसा कहने में कभी पीछे नहीं हुए यही कारण था कि लोग आँखें मूंदकर उनके निर्णय को स्वीकार करते थे। 


 


 ठाकुर साहब की दो संतानें थीं हीरामन और हरिलाल। दोनों संतान एक से बढ़कर एक। हीरामन गाँव के स्कूल में शिक्षक थे और हरिलाल कानपुर में रेलवे गार्ड। दोनों संतानों में अनबन तो रहती थी लेकिन पितृ भक्ति के सामने दब जाती थी। पिता आजीवन खपड़ैल की झोपड़ी में रहकर सरपंची की तो दोनों पुत्रों ने अब जाकर पिता के सम्मान में एक पक्का घर बनाकर देने का प्रस्ताव किया। जब छत ढलाई हो गई तो धर्मपरायण पिता ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए तीर्थ के लिए निकल गए। हरिलाल अपने पिता को विदाई देने के लिए विशेष रूप से छुट्टी लेकर गांव आया था। जब पिता तीर्थ पर निकल गए तो हरिलाल ने निर्माणाधीन घर का मुआयना किया। 


 


 हरिलाल- “भैया ईश्वर की कृपा से घर तो बनकर तैयार हो चला है लेकिन मैंने देखा कि बाथरूम के लिए आप इंडियन पैन मंगवा रखे हो। खैर अभी देर नहीं हुई इसको हटाकर वेस्टर्न कमोड मंगा लो।”  


  


 हीरामन- “तुम क्या कह रहे हो हरि, हमलोग के यहाँ तो यही चलता है। तुम भूल रहे हो कि हमलोग सालों से यही इस्तेमाल कर रहे हैं।” 


 


 हरिलाल- “भैया भूल मैं नहीं तुम रहे हो सालों पहले हमलोग नदी या पोखर पर जाते थे, वो भी खुल्ले में, वो तो अभी मोदीजी ने इसको जनता तक पहुंचाया।” 


 


 हीरामन- “वो तब की बात थी अब हम वहाँ से आगे निकल गए हैं।” 


 


 हरिलाल- “वही तो मैं कह रहा हूँ अब आप भी पैन से आगे निकल कर कमोड ले आओ।” 


 


 हीरामन- “बच्चा समझते हो तुम मुझको, वहां कानपुर में चलाना कमोड के चोंचले। हमारे यहाँ तो बस देशी पैन लगेगा।” हीरामन ने तेवर सख्त करने में देरी नहीं की। 


 


 हरिलाल- “अच्छा तो ये बात है तो फिर मैं देखता हूँ कैसे नहीं लगता है कमोड? घर में पैसे मेरे भी लगे हैं।” 


 


 हीरामन- “तो बात पैसों तक पहुँच गई। मैं भी तुम्हारी नियत खूब समझता हूँ, तुम समझते हो कि तेरे सो काॅल्ड मार्डन फैशन के लिए घर खराब कर दें, ये नहीं होगा।” 


 


हरिलाल सीधा माँ के पास गया। और भाई के झगड़े की बात कही। रात में खाने पर माँ ने बड़े से पूछ लियाः  


 


 “अरे हीरा, क्यों उखड़ गया हरि पर। करने दे जो उसे करना है दो-चार दिन के लिए तो आता है वह।” 


 


 “माँ तुम भी उसके बातों में आ गई। तुमको तो पता है न उसे बाबूजी का दिया नाम भी ऊट-पटांग लगता है, सबको कहता चलता है कि उसको हैरी बुलाये हरिलाल नहीं। लेकिन मेरे सामने उसकी एक न चलेगी। वह तो पैसों पर उतर आया आज।” 


 


 “तो तुम्हारी चलेगी। अरे माँ इसको तो तुम्हारे घुटने की चिन्ता भी नहीं है, जो बुढ़ापे में घीस ही जाती है।” 


 


 “माँ ये कुछ जनता भी है, ये सबको कब्ज करवा देगा कब्ज।” हीरामन चिल्लाया। 


 


 हरिलाल समझ गया कि भाई का मानना मुश्किल है उसने रात में फोन करके पास के शहर से अपने ससुराल वाले को बुला लिया। जब ये बात गांववालों को पता चली तो वे लोग हीरामन के पक्ष में उठ खड़े हुए। इस तरह गांव-घर दो खेमों में बंट गया और एक भी समूह पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था। 


 


 मामला कानों-कान विधायक जी तक जा पहुंचा। विधायक जी को जब मालूम हुआ कि ठाकुर साहब नहीं है और उनके दोनों बेटों में रार हुई पड़ी है तो उन्हें राजनीति चमकाने का अवसर मालूम हुआ। राजनीतिक खिलाड़ियों को तो ऐसे मौके की तलाश रहती ही है। सबेरे दल-बल सहित स्काॅर्पियो में सवार होकर विधायक जी ठाकुर साहब के दरवाजे पहुँच डंट गए। 


 


 “क्या हीरामन, कुछ सुनने को आ रहा है क्या मामला हो गया है दोनों भाइयों के बीच।” 


 


 “मामला कुछ नहीं है नेता जी, बाबूजी के लिए जो घर बन रहा है, हरिलाल कहता है कि उनके बाथरूम में कमोड लगेगा, आप ही बताइए बाबूजी के लिए वेस्टर्न सिस्टम सही रहेगा।” 


 


 “बात तो सही कह रहे हो हीरामन, लेकिन तुम लोग यह ठाकुर साहब से ही क्यों नहीं पूछ लेते हो। उनको जो पसंद हो लगवाए, खामख्वाह उलझने से क्या फायदा।” 


 


 नहीं, विधायक जी आप बताइए, आप राजधानी जाते हैं तो बड़े-बड़े होटलों और अपार्टमेंटों में क्या लगा होता है कमोड न। आखिर सुविधाजनक है तो ही न, इतनी सी बात भैया को समझ में नहीं आती है।” हरिलाल ने अपनी बात कही। 


 


 हीरामन- “होटल की बात छोड़िए नेताजी इसको ये बताइये कि आपके-और हमारे घरों में क्या लगा है। बच्चा कभी कमोड में सही से बैठ पाएगा। हरिलाल केवल शहर की जिंदगी और अपना सुविधा देखता है।“ 


 


हरिलाल- ”भगवान न करे माँ-बाबूजी किसी को आर्थराइटिस हो जाए या घर में किसी का पैर ही टूट जाए तो उसकी दिनचर्या कैसे चलेगी। कपड़े-लत्ते पहने लोग इंडियन में बैठ सकते हैं भला? और तुमने ये कैसे कह दिया कि मैं केवल अपनी सुविधा देखता हूँ? या कि तुम अपनी मनमानी चाहते हो, कल हो के कह ना दो कि यहाँ सब केवल तुम्हारा है।“ 


 


हिरामन- ”पैर टूटेगा तुम्हारा, माँ-बाबूजी स्वस्थ हैं बिलकुल उसके लिए तुमको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। इसको तो जरा भी घिन्न नहीं आता है कि कमोड की शीट से शरीर सटता है तो कितना भद्दा लगता है। रिसर्च से भी पता चलता है कि कितना-सारा खतरनाक बैक्ट्रिया कमोड के टाॅयलेट शीट पर पाया जाता है लेकिन ये कैसे जानेगा पढ़ेगा, तब न जानेगा। इसके रेल में ही लोग किसमें जाना पसंद करते हैं इंडियन में कि वेस्टर्न में।” 


 


विधायक जी ने देखा कि उसके सामने भी दोनों भाई कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ रहे हैं तो उन्होंने राजनीति किनारे की ओर वहाँ से निकलना ही ठीक समझा। वैसे भी विधायक जी की गाड़ी देखकर पूरा गाँव इकट्ठा होकर दो समूह में बंट चुका था। किसी एक तरफ फैसला आने से उधर का वोट बैंक खिसकने का डर था।  


 


नेताजी को शौच पर धर्मसंकट में पड़ता देख जनता अलग चुटकी ले रही थी। विधायक जी ने कहाः ”देखिए ये एक परिवार का जातीय मामला है और ठाकुर साहब के घर का है जिन्होंने हमेशा समाज के हक में और सही फैसला सुनाया है। मुझे पूरा विश्वास है कि ठाकुर साहब इसका भी निराकरण ढूंढ लेंगे। आपलोग उनके लौटने तक सब्र रखिए। या नहीं तो फिर कोई ऐसा आदमी चुनिए जिसका निर्णय दोनों पक्षों को मंजूर हो और हाँ चुनाव नजदीक है आपलोग मेरा ख्याल करिएगा। मेरी जब भी जरूरत पड़ती है मैं आपलोगों के बीच रहता हूँ।” इसके बाद विधायक जी की स्काॅर्पियो धुल उड़ाते हुए वापस हो गई। 


 


विधायक जी के जाने के बाद दोनों भाईयों ने मिलकर किसी डाॅक्टर से इस बारे में बात करना उचित समझा और सदर अस्पताल पहुँचकर एक डाॅक्टर से पूछा तो डाॅक्टर ने बेमन से कहाः- ”कोई-सा भी लगाओ सब ठीक है।” हरिलाल ने उचककर पूछ ही लिया- ”डाॅक्टर साहब, कमोड? ”हाँ, कमोड ठीक है मैं भी कमोड यूज करता हूँ।” अब तो हरिलाल मारे खुशी के चहक उठा- ”देखा मैं न कहता था, डाॅक्टर साहब भी कमोड यूज करते हैं।“  


 


अभी वे लोग डाॅक्टर के पास से निकल ही रहे थे कि सामने गाँव का कम्पाउंडर नजर आ गया और बोला- “तुम लोग जिस किसी काम से आए हो इस डाॅक्टर की सलाह पर मत रहना। किसी बड़े डाॅक्टर के पास चले जाओ। यह डाॅक्टर अभी-अभी तबादला होकर आया है। शहर के अस्पताल में इसके इलाज से एक मरीज की जान जाते-जाते बची और बहुत हो-हंगामा हुआ और इसको यहाँ गाँव के अस्पताल में तबादला कर दिया गया।” उसकी बात सुन हरिलाल आगे कुछ न बोला, चुपचाप भाई के साथ अस्पताल से बाहर निकल गया। 


 


हफ्ते दिन बाद ठाकुर साहब घर आए तो देखा कि घर का काम रुका हुआ है और दोनों भाइयों का मुंह उतरा हुआ है। ठकुराइन ने सारी बात बताई तो माजरा समझ में आया। पर क्या करे, किसी एक को ठेस पहुँचाना सही नहीं जान पड़ा। बहुत सोच-विचार कर उन्होंने एक तरकीब निकाली मामले पर सुसंगत निर्णय के लिए जिलाधिकारी को पत्र लिख दिया। आखिर जनता का स्वास्थ्य भी तो सरकार की जिम्मेदारी है। जब जिलाधिकारी को यह पता लगा कि विधायक जी को भी ठाकुर साहब के यहां से बैरंग लौटना पड़ा है तो उन्होंने भी पत्र को सिविल सर्जन को अग्रसारीत कर मामले से पल्ला झाड़ लिया। 


 


 तारीख दी गई और दोनों मुद्दई तय तारीख पर सिविल सर्जन के यहाँ पेश हुए। यह अपने तरह का पहला मामला था जहाँ सिविल सर्जन इजलास में जज की कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने निर्णय के रूप में एक भावुक भाषण दियाः 


 


         “यह कोई अनूठी बात नहीं है विवेकशील आदमी को अकसर चुनाव के दौर से गुजरना पड़ता है, चाहे वह फास्ट फूड/जंक फूड हो या घर का संतुलित भोजन, आटा चिकना हो या मोटा (फाइबर युक्त), मोटा चावल हो या पाॅलीश्ड चावल, सिलबट्टा हो या मिक्सर-ग्राइंडर। टाॅयलेट का वेस्टर्न सिस्टम फास्ट लाइफ का पर्याय हो सकता है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इंडियन सिस्टम स्वस्थ जीवन का पर्याय है। इसका कारण है कि प्राकृतिक रूप से हमारी शौच की जो मुद्रा होती है, इंडियन सिस्टम उसके अनुकूल है। हम सदियों से इसी तरह बैठते आए हैं और इससे शौच के लिए जरूरी प्रेशर बनता है जो वेस्टर्न सिस्टम में नहीं बन पाता। उदर रोगों जैसे कब्ज, गैस से बचने के लिए भी हमें मलासन(योगपद्धति) में बैठने की सलाह दी जाती है, इससे आंतों की कसरत हो जाती है। स्त्रियों को गर्भावस्था में स्कवैटिंग के लिए भी इंडियन सिस्टम उपयुक्त है। इसके विपरीत वेस्टर्न सिस्टम का लगातार उपयोग काॅन्स्टीपेशन और कैंसर जैसी गंभीर बिमारी तक कर सकता है और इसके शीट की सतह से शरीर का सीधा सम्पर्क होने से संक्रमण का जोखिम तो रहता ही है।“
 


 


”एक और जो महत्वपूर्ण बात है कि मानव मल कई सारे गंभीर बिमारियों का संकेत भी देता है जैसे कि रंग, रक्त के निशान और चिकनाहट आदि। इसलिए बल्क को फ्लश करने से पहले एक बार गौर से देखना जरूरी है और यह आपकी जान बचा सकता है। वेस्टर्न कमोड की तुलना में इंडियन कमोड में बल्क का निरीक्षण कहीं सहज है। इसलिए जबतक बाध्यकारी न हो टाॅयलेट उपयोग के लिए इंडियन सिस्टम बेहतर विकल्प है।“ 


 


--पुरुषोत्तम 


(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।) 


  

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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