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भूत

17 अक्टूबर 2023

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भूत.


 


हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहता था अमूमन उसमें भूत रहता ही था वो भी मनुष्य का। धीरे-धीरे समय बीता और मोबाइल युग आया कई जीव-जंतु विलुप्त हुए, और इसमें भूत भी शामिल हो गया। गांव या कस्बे से लगे जिस पेड़ पर कभी भूत हुआ करते थे अब उसके आस-पास गुमटी या रेहड़ी या दुकानें  लग गई हैं या कुछ नहीं भी लगी हो तो उस जगह इन्हीं गांव या कस्बे के लफंगे बैठ कर रात में बोतलें खोलते हैं। भूत बेचारों को मोबाइल के रेडिएशन से उतना खतरा न रहा होगा जितना की इन लफंगों की बोतलों से होता होगा। पीते अलग हैं और बोतल अलग चूर देते हैं अब विलुप्त न हो जाए तो कहाँ जाए। दिखना तो दूर की बात अब तो भूत सुनाई भी नहीं पड़ते।  


 


 नोनीहारा गाँव में शकलदीप और रामभरोसे दो भाई चैन से जिंदगी गुजार रहे थे। बीते कुछ सालों में शकलदीप का धान का बिजनस खूब चला था और अच्छी बचत हुई थी। जब पैसे हुए तो गाँव की टांड़ पर सस्ता पाकर 10 डिसमिल का एक प्लाॅट ले लिया। लोगों ने बहुत कहा कि प्लाॅट पर भूत का साया है और इसलिए जमीन मालिक कबसे इसे बेचने की ताक में रहा है। जो सुन ले कि प्लाॅट पर भूत का साया है वह जमीन क्यों लेने लगा भला। लेकिन शकलदीप की मति मारी गई थी। टांड़ पर इकलौता प्लाॅट तिस पर बना-बनाया घर भी। शकलदीप इस लालच से पार न पा सका। प्लाॅट मैन रोड के किनारे था सो दिन में लोगों की आवाजाही रहती। लेकिन रात में सिर्फ सियार की हूआं-हूआं ही सुनाई पड़ती थी। शकलदीप न सिर्फ प्लाॅट लिया बल्कि लगे हाथ उसमें रहने भी लगा, पत्नी-बच्चों सहित। उसके धंधे के लिए सही जगह था, फांका जगह पर माल के लिए बड़ी गाड़ी आराम से लग रहा था।  


 


धंधे का समय चल रहा था, शकलदीप का घर धान से पटा पड़ा था और उसे जरा भी फुरसत नहीं था। इसी अगहन में शकलदीप के ससुराल में चचेरी साली की शादी थी। इकलौते दामाद को ससुराल जाना हर हाल में जरूरी था। वह निकलने के पहले अपने भाई को एक रात के लिए घर देखने के लिए कहकर, परिवार को ले ससुराल चला गया। 


 


रामभरोसे मतवाला आदमी था। वह रात में दस बजे गाँव से एकाध किलोमीटर दूर भाई के घर में सोने के लिए निकल गया। कुरता-पायजामा पहने, गले में गमछा लिए और हाथ में नोकिया 1100। अंधरिया रात में नोकिया 1100 की टार्च लाईट में जब वह आम के बगीचे को पार कर रहा था तो दूर नदी की तरफ आग की लपटें उठ रही थी और लपटों की रौशनी में चिता को घेरे हुए लोगों का समूह दिख पड़ता था। पास के गांव से औरतों के रोने की आवाजें अभी तक आ रही थी। 


 


घर आया, बाहर के दरवाजे की कुंडी बंद की और अंदर बरामदे में पड़ी खटिया पर लेट गया। लेकिन औरतों की रोने की आवाज उसके जेहन से जा नहीं रही थी, उसका जी उचट गया। वह मोबाइल निकाला और स्नैक जैंजीया खेलने लगा। बहुत देर खेलते रहने के बाद भी जब उसे नींद महसूस नहीं हो रही थी तो वह पास के कमरे के अंदर चला गया और पलंग पर लेटकर वापस गेम खेलने लगा। एक तेज आवाज आई और लाइट चली गई। जरूर ट्रांसफार्रमर के पास तार लड़ा होगा लेकिन इतनी रात को गांव-देहात में कौन फेज बनाता है, मिस्त्री सवेरे से पहले आने से रहा। गेम खेलते-खेलते कब उसकी आँख लगी पता ही नहीं चला। पूरे घर में घुप्प अंधेरा। 


 


छन्न..... छन्न.....झन्न........... लगातार घुंघरू की आवाज से वह नींद से अकचका कर जागा। एक पल के लिए लगा उसके कान बज रहे हैं। फिर वह ध्यान लगाया............नहीं कान नहीं बज रहे हैं असली घुंघरू की आवाज है। इतनी बियाबान में दोपहर रात को कौन होगा, जरूर कोई राहगीर होगा। कहीं किसी को पानी वगैरह की जरूरत तो नहीं। उसने आवाज दी- “कौन है.......... कौन है........... आवाज दे, क्या चाहिए।” भला कोई रहे तब न आवाज दे। लेकिन घुंघरू की आवाज अब बंद हो गई। वह उठा और मोबाइल का टार्च जलाया, नोकिया 1100। कमरे से निकलकर बरामदे से होता हुआ मैन गेट तक गया। कोई नहीं। उसने टार्च की रोशनी छप्पर की ओर की। छत से कोई भागा......... छन्.....छन्..... छून..........छून..........। उसने छाती पर हाथ रखा और लार गटकी। अब यह पक्का हो गया कि कोई है। ओह लाइट को भी अभी ही जानी थी, उसने गलती कर दी है। उसे तीन सेल वाला टार्च लेकर आना था। पर क्या करे, अब कुछ हो नहीं सकता।  


 


वह वापस बरामदे पर आया तो उसकी नजर टेबुल पर रखे लालटेन पर पड़ी लेकिन माचिस कहाँ है। वह फ्लैश की मद्धिम रोशनी में इधर-उधर देखा, उसे कहीं माचिस नहीं दिखाई दिया। सोचा कि शकला को फोन करके पूछे लेकिन शादी के घर में माचिस के लिए क्या ही फोन करे। शकला को भी अकल नहीं है खाली लालटेन रख दिया, माचिस रखा ही नहीं। वह कमरे के अंदर आया और इस बार कमरे का दरवाजा अंदर से बंद करके चद्दर तान लिया। लेकिन उसकी नींद गायब थी उसके ध्यान में अब भी घुंघरू की आवाज थी। 


 


पंद्रह-बीस मिनट बीते होंगे, छन्न.......छन्नन.............छन्न............छन्नन। इस बार उसकी सांस उखड़ने लग पड़ी थी और दिल तेजी से धड़क रहा था। उसने तय किया कि वह हिम्मत नहीं हारेगा। पर पहले लालटेन जला लूँ, क्या पता भ्रम ही हो। आखिरकार उसने माचिस के लिए छोटे भाई को फोन लगाया। फूल रिंग, नहीं उठाया। उसने फिर रिंग की, फिर नहीं उठा। वाह रे तेज आदमी, मुझे यहाँ फंसा दिया और फोन नहीं उठाता है। वह बाहर निकला और उसके नोकिया मोबाइल की फ्लैश सामने की जिस चीज पर पड़ी उसे देखकर उसका कलेजा मुंह को आए गया, वह लाल चुनरी ओढ़े एक काली बिल्ली थी। बिल्ली भी भला चुनरी ओढ़ती है। उसे देखकर बिल्ली भागी और उसके साथ ही घुंघरू की आवाज और तेज हो गई। बिल्ली और घुंघरू की आवाज आँगन में खड़े शीशम के पेड़ पर गायब हो गई और एक महिला में परिवर्तित हो गई, जिसके बाल पेड़ से शुरू होकर जमीन को छू रहे थे। तुरंत बाद टार्च अपने-आप बुझ गए। काटो तो खून नहीं उसका रोम-रोम सिहर उठा। वह बेतहाशा भागा। अब तो जान गई। रूम को अंदर से बंद किया। ताला लाॅक कर दिया। पर घुंघरू की आवाज कुछ देर बाद फिर वापस हो गई। इस बार कमरे की ठीक बाहर, छन्न.......छन्नन............. छून..........छून..........। 


 


बाहर से आती घुंघरुओं की आवाज के साथ उसकी धड़कन भी कदम ताल कर रही थी। वह डर से थर-थर कांप रहा था। डर में ही वह घर की चाभी बिछौने के नीचे रखने की लिए हाथ बढ़ाया, ये क्या उसका हाथ अंदर जा ही नहीं रहा। उसने दांत भिंचते हुए जोर से हाथ भीतर धकेला, चरर्र की आवाज के साथ वह चाभी बिछौने के नीचे रखने में कामयाब हो गया। लेकिन कमरे के बाहर का क्या  करे। जरूर यह तो ब्रह्म पिशाच होगा कहीं वही तो नहीं जिसका अभी-अभी अंतिम संस्कार किया जा रहा था। हाँ सही तो कोई अकालमृत्यु का पिशाच है, पूरी तैयारी के साथ आया है पास में जो मिले उसका सीधा खात्मा। नहीं तो इतनी सारी बातें एक साथ कैसे हो रही थी। स्त्रियों के रोने की आवाजें, ट्रांसफार्रमर का आवाज के साथ जल जाना, माचिस का नहीं मिलना, छोटे भाई का फोन नहीं उठाना, घुंघरू की आवाज, चुनर ओढ़े काली बिल्ली, फिर पेड़ के पास जाकर लम्बे बालों वाली स्त्री में तबदील हो जाना, और अब मोबाइल। अरे हाँ मोबाइल को अचानक से क्या हो गया। अभी तक तो ठीक काम कर रहा था। उसकी घिग्घी बँध गई। वह आवाज भी निकालना चाहा पर आवाज निकली नहीं। 


 


वह भाई को लाख समझाते रह गया पर भला शकला माने तब ना। कारोबारी आदमी को खाली सस्ता मिलना चाहिए बस। वह कभी अकेला मिला ही नहीं, अकेला मिला हूँ तो मैं आज। आज पिशाच अपनी ख्वाहिश पूरी करके ही दम लेगा। रूहानी ताकत से रार ठीक नहीं। मिले शकला का बच्चा फिर बताता हूँ उसको। वो तो मिल जाएगा मैं ही आगे उससे मिल पाऊंगा?? वह जोर से चीखा, आवाज आधी निकली और नेपथ्य में गुम हो गई। कोई सुननेवाला नहीं। किसी तरह पौ फटे। सुनते हैं कि पौ फटते ही रूहानी ताकत विदा ले लेती है।  


 


खौफ के साये में उसने इसी तरह आधे-पौन घंटे बिताए। एक-एक मिनट पहाड़-सा मालूम होता था। बीच-बीच में ज़ालिम घुंघरुओं की आवाज उसको मरी हुई नानी याद दिला देती थी। उसी खौफ में उसे लगा जैसे कोई दरवाजा पीट रहा है; क्या भूतों ने मिलकर एकसाथ हमला बोल दिया। अब तो मृत्यु से साक्षात्कार हो रहा था, वह गला फाड़-फाड़कर रोने लगा। 


 


“पप्पा दरवाजा खोलो न।” 


 


“काकाजी दरवाजा खोलिए।” 


 


“सोहना के पापा हैं जी, क्या हुआ? कुछ बोलते क्यों नहीं?? कबसे दरवाजा पीट रही हूँ। रो क्यों रहे हैं?” 


 


 अरे ये तो जूही की आवाज है और बच्चों की भी। वह चेता। उसने बिछावन के नीचे हाथ डाली, चाभी नहीं मिली, यहीं तो रखी थी, आखिर कहाँ गई। दरवाजा तो उसने ही बंद किया था अब क्या करे। गुस्से में उसने तकिया दरवाजे की तरफ जोर से दे मारा। तकिया दरवाजे से टकराते ही उससे चाभी निकल गिरी। वह चाभी पर झपटा, तेजी से कमरे का दरवाजा खोला और दौड़ते हुए जाकर बाहर का मैन गेट भी खोला। सामने उसकी पत्नी जूही और बच्चे थे। 


 


 “देवर जी फोन किये थे। उसने बताया कि आपने उसको फोन किया था। उस समय बारात दरवाजे पर लग रही थी और उसे रिंग सुनाई नहीं दिया। बाद में उसने कई बार आपको फोन किया तो आपका फोन ऑफ आ रहा था और मुझसे आकर देखने को कहा कि देखिए तो सब ठीक है न, भैया को किसी चीज की जरूरत तो नहीं। माचिस वहीं टेबुल के ड्राअर में रखी थी पर वह बताना भूल गया। लेकिन आप इतना घबराए हुए क्यों हैं? क्या हुआ कोई आया था क्या?” 


 


 “प्रेत...................... घर में प्रेत है। मैं मरते-मरते बचा हूँ। देखो इस आंगन के शीशम के पेड़ से उलटा लटक रही थी वो, और उसके बाल लहरा रहे थे।” रामभरोसे ने अपनी पत्नी से कहा। 


 


 सोहन ने तीन सेल वाले टार्च की रोशनी पेड़ पर डाली। उसके मोटे डाल पर सन का बंडल फैलाकर सुखाने के लिए दिया हुआ था। 


 


 “पापा ये तो सन है। छोटका चाचा को रस्सी की जरूरत थी, उन्होंने सुखाने के लिए सन पेड़ पर डाल रखे थे।” 


 


 “अरे नहीं, घुंघरू की आवाज भी आ रही थी और एक काली बिल्ली लाल चूनर ओढ़कर मुझे मारने के लिए पूरे घर में ढूंढ रही थी।” 


 


 “हे भगवान हो, वह तो आपकी भतीजी मीठी की बिल्ली है। बच्चों ने मिलकर गुड़ियल की चुनरी उसके गले में बांध दिए थे और चुनरी में ही घुंघरू बंधी थी।” जूही ने कहा। 


 


--पुरुषोत्तम 


(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।) 


  

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

कहानी अच्छी लिखी है आपने सर 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें और मुझे अपने लाइब्रेरी में जोड़ें,🙏🙏

9 नवम्बर 2023

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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा

26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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