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वामिस

7 अक्टूबर 2023

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वामिस.

बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विसंगतियां जगजाहिर थी। या तो महालेखाकार को गुणवत्ता पूर्ण लेखा नहीं मिलता था या इतनी देर से प्राप्त होता था कि महालेखाकार कार्यालय(एजी) के मासिक प्रतिवेदन में शामिल नहीं हो पाता था। और इससे मुख्यालय (सीएजी) में मासिक लेखा संकलन को लेकर राज्य की किरकिरी होती थी और राज्य स्तर पर उनके अधीनस्थ महालेखाकार कार्यालय को डीओ लैटर प्राप्त होना आम बात होती थी। नियंत्री पदाधिकारियों की तरफ से हर जोर आजमाईमाश की जाती ताकि लेखा सही-सही और समय पर प्राप्त हो लेकिन इसका खास असर हुआ नहीं जान पड़ता था।

 आला अधिकारियों की क्लास लगती और वे इसे अपने नीचे तक पहुंचा देते पर नतीजा वही रहता था ढाक के तीन पात। लेखा के एक ही फार्मेट को कार्य प्रमण्डलों द्वारा अलग-अलग तरीके से भरा जाता था, जो महालेखाकार कार्यालय के लिए अलग गले की हड्डी बनता था। लेखे में एकरूपता वाली बात नहीं होती थी।

बहुत सोच-विचार के बाद सरकार ने अपने लोक निर्माण विभागों की लेखा प्रणाली को ऑनलाइन करने का निर्णय लिया। अलबत्ता सरकार पहले बिलिंग व्यवस्था को ऑनलाइन करने को लेकर प्रयासरत थी लेकिन जब महालेखाकार से विमर्श किया गया तो यह बात छन कर सामने आने लगी कि बिलिंग से पहले अकाउंट्स को ऑनलाइन करने की आवश्यकता है। फिर क्या था सरकार की तरफ से सूचना प्रौद्योगिकी एवं ई-गर्वनेंस विभाग ने सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए सी-डैक से करार किया और कुछ समय बाद वामिस को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ चुनिंदा कार्य प्रमण्डलों में लागू कर दिया गया। वामिस सी-डैक द्वारा तैयार किया गया झारखण्ड सरकार का अकाउंट्स मॉडल है। प्रायोगिक तौर पर सफल रहने के बाद राज्यस्तर पर इसे लागू करने के लिए ट्रेनिंग की अधिसूचना निकाल दी गई।

ट्रेनिंग बैच वाइज दी जाती थी। कैशियर, लेखा पदाधिकारी और कार्यपालक अभियंता को साथ में ट्रेनिंग के लिए बुलाया जा रहा था। यह भी निर्देश था कि ट्रेनी अपने साथ लैपटॉप साथ लेकर आए। लैपटॉप कितनों के पास होती थी, जो थोड़े लाए भी थे उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान इसे खोलना भी न चाहा। ट्रेनिंग का पहले ही रोज से बुरा हाल था जितनी लोग उतनी बातें बनाते। ट्रेनिंग बचकाना सा लगता तो यह भी कहा जाता कि बाहरी नवसिखीए राज्य के अनुभवी पदाधिकारियों को ट्रेनिंग देंगे। कहना न होगा स्टेट के ट्रेनियों ने पहले ही ट्रेनिंग सेशन में कह दिया कि यह कभी लागू नहीं होगा। कौन करेगा, मामूली कुबेर तो ऑपरेट होता नहीं है बार-बार फंस जाता है। लागू हो भी जाए तो राज्य में इसके मुताबिक इनर्फास्ट्रक्चर कहाँ? ऑफिस के पास ढंग का कम्प्यूटर तक नहीं। कितने स्टाफ ऐसे थे जिन्हें कम्प्यूटर की सामान्य जानकारी भी नहीं थी, बकौल उनके उन्हें कम्प्यूटर का ‘सी‘ भी नहीं पता था। नेट की स्थिति का अलग रोना था। फिर लौट के बुद्धू घर को आए वाली बात न हो जाए।

चुनौतियां कई थी पर ट्रेनर कहीं गंभीर थे, सरकार के लिए भले बाहरी और नए हों पर इरादों में परिपक्व और मजबूत थे। परिणाम हुआ कि कुछ ने ही सही पर ट्रेनिंग को गंभीरता से लेना शुरू किया। जो कुछ ट्रेनीज अपने साथ लैपटॉप वगैरह लेकर आए थे उन्होंने वहीं वामिस के प्रोटोटाइप आईडीज पर अभ्यास शुरू किया। ट्रेनर शांति से उनका डाउट्स क्लियर कर उन्हें आगे बढ़ाते। आगे टेलीफोनिक और मेल के जरिये सहायता प्रदान देने के लिए वामिस हेल्पडेस्क का गठन कर दिया गया जिसमें सी-डैक के दोनों ट्रैनर्स श्री महावीर तिर्की और श्री सुशांत नायक थे।

पहले-पहल वामिस पर अकाउंट्स की तैयारी को लेकर एजी ऑफिस बहुत लिबरल रहा जिसके पाले पड़ जाए, वह ऑनलाईन अकाउंट्स तैयार करे जिसको दिक्कत आती हो तो पुराने पैटर्न पर ही सही। उदारवाद महान चीज होती है, कोई चीज जबरदस्ती किसी पर थोप दी जाए तो सामनेवाला अकड़ जा सकता है लेकिन अगर उदारतापूर्वक आग्रह किया जाए तो वह सही रास्ता चुन लेता है।

पहले महीने कुछ तीन सौ कार्य प्रमण्डलों में से आठ-दस से ऑनलाइन अकाउंट्स प्राप्त हुआए आंशिक सफलता हाथ लगी और मशीनरी उत्साहित हुई। एजी ऑफिस ने लेखा पदाधिकारीयों को फिर ताकिद किया परिणाम रहा कि दूसरे महीने भी अपेक्षित सुधार हुआ। अब एजी ऑफिस के स्ट्रिक्ट होने की बारी थी। माह दिसम्बर 2016 से अकाउंट्स का ऑनलाईन सबमिशन मैंडेटरी कर दिया गया। एकबार मैंडेटरी होने की बारी थी पूरा-का-पूरा महकमा हलकान हो उठा। लोग इससे पूछते, उसको बुलाते किसी तरह किनारा लगे। वामिस हेल्पडेस्क को हर दूसरे-तीसरे मीनट पर कॉल आना शुरू हुआ। लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और एक-एक को सहायता करते जाते।

झारखण्ड एक बड़ा राज्य था और इतने बड़े राज्य में सारे कार्य विभागों की ऑनलाईन समस्याओं को मॉनिटर कर पाना कतई आसान काम नहीं था। ऐसे में हेल्पिंग हैंड बनकर आगे आए डीए कैडर के 2009 बैच के अधिकारी परमानंद जी। परमानंद जी सीआईएसएफ से आए थे, शांत रहकर अपना काम करते जाने वाले आदमी थे। उनके पास थी, माइक्रोमैक्स की टैबलेट इग्नाईट और उन्होंने उसी टैबलेट पर जम कर वामिस का अभ्यास किया था, इतना की टैब का कीपैड तक घीस गए। जो लोग वामिस में फंस रहे थे उनके लिए परमानंद जी ने हेल्पलाइन का काम करना शुरू किया। और आगे-पीछे ही सही झारखण्ड राज्य के कार्य प्रमण्डलों का मासिक लेखा वामिस के माध्यम से पहली बार ऑनलाईन हो रहा था।

इस तरह जब अकाउंट्स का ऑनलाईन एक्सेपटैंस-रिजेक्शन शुरू हुआ तो फिर से बात उठी ऑनलाईन बिलिंग की। तत्कालीन मुख्य सचिव महोदया ने विभागों की संयुक्त समीक्षा बैठक बुलाई। यह उन्हीं की ऊर्जा और कौशल के बदौलत था, झारखण्ड में ऑनलाईन अकाउंटिंग सिस्टम वामिस का आगाज हो पाया था।

 जैसा कि आम तौर पर होता आया था, ऑनलाईन बिलिंग पर विभागों की ओर से टाल-मटौल होने लगा। कहा जाता कि कार्यालयों के पास अपना खुद का कम्प्यूटर नहीं है, दूर-दराज क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधा नहीं रहती है। वर्षों पुराने डेटा को यकायक ऑनलाइन करना दुरूह बताया जा रहा था। पर इन सब से बढ़कर यह अपुष्ट बात थी कि अभियंत्रण सम्वर्ग को बिल डेटा सरेआम हासिल होने देना नागवार लगा था।

कम्प्यूटर नहीं है कि बात उठने पर मुख्य सचिव ने तत्काल इसे कार्यालयों को उपलब्ध कराने का आदेश दे दिया। अंततः कम्प्यूटर तो नहीं पर टेबलेट वितरण पर मुहर लगी और राज्य में टेबलेट वितरण की तारीख को ही वामिस की ऑनलाइन बिलिंग शुरूआत करने की लांचिंग डेट रखने की घोषणा कर दी गई। माननीय मुख्यमंत्री के द्वारा टेबलेट वितरण के साथ ही राज्य में ऑनलाईन बिलिंग की भी औपचारिक शुरूआत हो गई। यह तय कर लिया गया कि लांचिंग डेट के बाद से कोई बिल ऑफलाइन नहीं लिया जाय।

वामिस हेल्पडेस्क की अग्नि परीक्षा तो अब होनी थी। ऑनलाईन बिलिंग के लिए एस्टीमेट की सॉफ्ट कॉपी (बीओक्यू टेमप्लेट्स) को अपलोड करना खासा जटिल था। और अपलोड होने के बाद इसे कई आई डी से गुजरना पड़ता था। ऐसे में एक वृहत पीडब्ल्यूडी में पदस्थापित लेखा पदाधिकारी संजय सर ने परमानंद जी से बात की।

संजय सर- ‘‘परमानंद जी, क्या किया जाए, हमारे यहाँ तो किसी को बिल ऑनलाईन करने नहीं आता है। पुराने पैटर्न पर बिल पास हो सकता है अभी।‘‘

परमानंद जी-‘‘नहीं सर, बिल का रेफेरेंस नंबर दीजिएगा तभी कंट्रोल नंबर जेनेरेट होगा और भुगतान होगा। आपको क्या दिक्कत हो रहा है सर कहिये हम कोशिश करते हैं।‘‘

संजय सर- ‘‘आप बता दीजिएगा।‘‘

परमानंद जी- ‘‘हाँ क्यों नहीं।‘‘

तो इस प्रकार संजय सर को परमानंद जी के सौजन्य से यह पता चला की बिल ऑनलाइन कैसे हो। फिर धीरे-धीरे यह सबको पता चला कि परमानंद जी को पता है बिल कैसे ऑनलाइन किया जाए। फिर क्या था, परमानंद जी का हेल्पलाइन एक बार फिर खुला था। जो जहाँ फंस-जा रहा था तुरंत परमानंद जी को फोन लगाया जाता। परमानंद जी भी पूरे धीरज से सबको मदद करते जाते। परमानंद जी के साथ एक बात थी कि बिना लाग-डाट के सबको मदद किये जाते थे वह न अधीर होते थे, न खिजते थे।

तो इस प्रकार तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी झारखण्ड में भी अकाउंट्स और बिल के ऑनलाइन युग की शुरूआत हुई। सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं हुआ बल्कि इसमें एकरूपता भी आई। यह वामिस की ही देन कही जा सकती है कि बड़ी संख्या में सरकारी कर्मियों में कम्प्यूटर के प्रति जागरूकता पैदा हुई। इक्का-दुक्का मामले को छोड़ दिया जाये तो वामिस लागु होने के बाद लगभग नब्बे-पंचानबे फिसद लेखे महालेखाकार को समय पर प्राप्त होने लगे हैं। राज्य के फाईनेंस एंड एप्रोप्रीएशन एकाउंट्स के लिए एजी को डेटा अब बास्केट के जरीये फिंगर टीप पर प्राप्त होना संभव हो गया है, जिसके लिए पहले बहुत उबाऊ मैनुअल इंट्री का सहारा लेना पड़ता था।

राज्य में वामिस की सफलता को देखते हुए पड़ोसी राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश ने भी इस माड्युल को अपनाने की इच्छा जाहिर की है। वामिस में अब भी कुछ कमियां है जैसे यदा-कदा इसका सर्वर स्लो पड़ जाता है, इलेक्ट्रॉनिक मेजरमेंट की शुरूआत होनी बाकि है लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में यह दूर की जाती रहेगी।

वामिस टीम के अधिकारी आज भी इस डिजिटल अकाउंट्स और बिलिंग लागू हो पाने के पीछे महालेखाकार कार्यालय के अधिकारियों श्री बीसी बेहेरा सर, श्री भास्कर मजूमदार सर, श्री अविनाश सर और श्री आशुतोष सर सहित तमाम सद् प्रयासों का आभार मानती है लेकिन यह भुलाया नहीं जा सकता कि इस मुहिम के शुरूआत उनकी समर्पित और दक्ष टीम के द्वारा हुई और इसके लिए उन्होंने पेशे वर रुख अपनाया और आगे चलकर परमानंद जी जैसों ने इसे लागू करवाने की दिशा में ईमानदार प्रयास किया।

--पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)

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रचनाएँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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विजय

15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

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तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

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एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

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हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

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भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

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गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

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इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

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"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

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मर्माहत

16 सितम्बर 2023
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मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

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16 सितम्बर 2023
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मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

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16 सितम्बर 2023
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अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

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27 सितम्बर 2023
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कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

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अहम

27 सितम्बर 2023
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अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

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वामिस

7 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

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भूत

17 अक्टूबर 2023
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भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

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मेला

3 नवम्बर 2023
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मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

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अमीना

8 नवम्बर 2023
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अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

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बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
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बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

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ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
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ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

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भोला

17 दिसम्बर 2023
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

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जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
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बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

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ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर

19 मार्च 2024
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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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26 मई 2024
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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