वामिस.
बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विसंगतियां जगजाहिर थी। या तो महालेखाकार को गुणवत्ता पूर्ण लेखा नहीं मिलता था या इतनी देर से प्राप्त होता था कि महालेखाकार कार्यालय(एजी) के मासिक प्रतिवेदन में शामिल नहीं हो पाता था। और इससे मुख्यालय (सीएजी) में मासिक लेखा संकलन को लेकर राज्य की किरकिरी होती थी और राज्य स्तर पर उनके अधीनस्थ महालेखाकार कार्यालय को डीओ लैटर प्राप्त होना आम बात होती थी। नियंत्री पदाधिकारियों की तरफ से हर जोर आजमाईमाश की जाती ताकि लेखा सही-सही और समय पर प्राप्त हो लेकिन इसका खास असर हुआ नहीं जान पड़ता था।
आला अधिकारियों की क्लास लगती और वे इसे अपने नीचे तक पहुंचा देते पर नतीजा वही रहता था ढाक के तीन पात। लेखा के एक ही फार्मेट को कार्य प्रमण्डलों द्वारा अलग-अलग तरीके से भरा जाता था, जो महालेखाकार कार्यालय के लिए अलग गले की हड्डी बनता था। लेखे में एकरूपता वाली बात नहीं होती थी।
बहुत सोच-विचार के बाद सरकार ने अपने लोक निर्माण विभागों की लेखा प्रणाली को ऑनलाइन करने का निर्णय लिया। अलबत्ता सरकार पहले बिलिंग व्यवस्था को ऑनलाइन करने को लेकर प्रयासरत थी लेकिन जब महालेखाकार से विमर्श किया गया तो यह बात छन कर सामने आने लगी कि बिलिंग से पहले अकाउंट्स को ऑनलाइन करने की आवश्यकता है। फिर क्या था सरकार की तरफ से सूचना प्रौद्योगिकी एवं ई-गर्वनेंस विभाग ने सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए सी-डैक से करार किया और कुछ समय बाद वामिस को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ चुनिंदा कार्य प्रमण्डलों में लागू कर दिया गया। वामिस सी-डैक द्वारा तैयार किया गया झारखण्ड सरकार का अकाउंट्स मॉडल है। प्रायोगिक तौर पर सफल रहने के बाद राज्यस्तर पर इसे लागू करने के लिए ट्रेनिंग की अधिसूचना निकाल दी गई।
ट्रेनिंग बैच वाइज दी जाती थी। कैशियर, लेखा पदाधिकारी और कार्यपालक अभियंता को साथ में ट्रेनिंग के लिए बुलाया जा रहा था। यह भी निर्देश था कि ट्रेनी अपने साथ लैपटॉप साथ लेकर आए। लैपटॉप कितनों के पास होती थी, जो थोड़े लाए भी थे उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान इसे खोलना भी न चाहा। ट्रेनिंग का पहले ही रोज से बुरा हाल था जितनी लोग उतनी बातें बनाते। ट्रेनिंग बचकाना सा लगता तो यह भी कहा जाता कि बाहरी नवसिखीए राज्य के अनुभवी पदाधिकारियों को ट्रेनिंग देंगे। कहना न होगा स्टेट के ट्रेनियों ने पहले ही ट्रेनिंग सेशन में कह दिया कि यह कभी लागू नहीं होगा। कौन करेगा, मामूली कुबेर तो ऑपरेट होता नहीं है बार-बार फंस जाता है। लागू हो भी जाए तो राज्य में इसके मुताबिक इनर्फास्ट्रक्चर कहाँ? ऑफिस के पास ढंग का कम्प्यूटर तक नहीं। कितने स्टाफ ऐसे थे जिन्हें कम्प्यूटर की सामान्य जानकारी भी नहीं थी, बकौल उनके उन्हें कम्प्यूटर का ‘सी‘ भी नहीं पता था। नेट की स्थिति का अलग रोना था। फिर लौट के बुद्धू घर को आए वाली बात न हो जाए।
चुनौतियां कई थी पर ट्रेनर कहीं गंभीर थे, सरकार के लिए भले बाहरी और नए हों पर इरादों में परिपक्व और मजबूत थे। परिणाम हुआ कि कुछ ने ही सही पर ट्रेनिंग को गंभीरता से लेना शुरू किया। जो कुछ ट्रेनीज अपने साथ लैपटॉप वगैरह लेकर आए थे उन्होंने वहीं वामिस के प्रोटोटाइप आईडीज पर अभ्यास शुरू किया। ट्रेनर शांति से उनका डाउट्स क्लियर कर उन्हें आगे बढ़ाते। आगे टेलीफोनिक और मेल के जरिये सहायता प्रदान देने के लिए वामिस हेल्पडेस्क का गठन कर दिया गया जिसमें सी-डैक के दोनों ट्रैनर्स श्री महावीर तिर्की और श्री सुशांत नायक थे।
पहले-पहल वामिस पर अकाउंट्स की तैयारी को लेकर एजी ऑफिस बहुत लिबरल रहा जिसके पाले पड़ जाए, वह ऑनलाईन अकाउंट्स तैयार करे जिसको दिक्कत आती हो तो पुराने पैटर्न पर ही सही। उदारवाद महान चीज होती है, कोई चीज जबरदस्ती किसी पर थोप दी जाए तो सामनेवाला अकड़ जा सकता है लेकिन अगर उदारतापूर्वक आग्रह किया जाए तो वह सही रास्ता चुन लेता है।
पहले महीने कुछ तीन सौ कार्य प्रमण्डलों में से आठ-दस से ऑनलाइन अकाउंट्स प्राप्त हुआए आंशिक सफलता हाथ लगी और मशीनरी उत्साहित हुई। एजी ऑफिस ने लेखा पदाधिकारीयों को फिर ताकिद किया परिणाम रहा कि दूसरे महीने भी अपेक्षित सुधार हुआ। अब एजी ऑफिस के स्ट्रिक्ट होने की बारी थी। माह दिसम्बर 2016 से अकाउंट्स का ऑनलाईन सबमिशन मैंडेटरी कर दिया गया। एकबार मैंडेटरी होने की बारी थी पूरा-का-पूरा महकमा हलकान हो उठा। लोग इससे पूछते, उसको बुलाते किसी तरह किनारा लगे। वामिस हेल्पडेस्क को हर दूसरे-तीसरे मीनट पर कॉल आना शुरू हुआ। लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और एक-एक को सहायता करते जाते।
झारखण्ड एक बड़ा राज्य था और इतने बड़े राज्य में सारे कार्य विभागों की ऑनलाईन समस्याओं को मॉनिटर कर पाना कतई आसान काम नहीं था। ऐसे में हेल्पिंग हैंड बनकर आगे आए डीए कैडर के 2009 बैच के अधिकारी परमानंद जी। परमानंद जी सीआईएसएफ से आए थे, शांत रहकर अपना काम करते जाने वाले आदमी थे। उनके पास थी, माइक्रोमैक्स की टैबलेट इग्नाईट और उन्होंने उसी टैबलेट पर जम कर वामिस का अभ्यास किया था, इतना की टैब का कीपैड तक घीस गए। जो लोग वामिस में फंस रहे थे उनके लिए परमानंद जी ने हेल्पलाइन का काम करना शुरू किया। और आगे-पीछे ही सही झारखण्ड राज्य के कार्य प्रमण्डलों का मासिक लेखा वामिस के माध्यम से पहली बार ऑनलाईन हो रहा था।
इस तरह जब अकाउंट्स का ऑनलाईन एक्सेपटैंस-रिजेक्शन शुरू हुआ तो फिर से बात उठी ऑनलाईन बिलिंग की। तत्कालीन मुख्य सचिव महोदया ने विभागों की संयुक्त समीक्षा बैठक बुलाई। यह उन्हीं की ऊर्जा और कौशल के बदौलत था, झारखण्ड में ऑनलाईन अकाउंटिंग सिस्टम वामिस का आगाज हो पाया था।
जैसा कि आम तौर पर होता आया था, ऑनलाईन बिलिंग पर विभागों की ओर से टाल-मटौल होने लगा। कहा जाता कि कार्यालयों के पास अपना खुद का कम्प्यूटर नहीं है, दूर-दराज क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधा नहीं रहती है। वर्षों पुराने डेटा को यकायक ऑनलाइन करना दुरूह बताया जा रहा था। पर इन सब से बढ़कर यह अपुष्ट बात थी कि अभियंत्रण सम्वर्ग को बिल डेटा सरेआम हासिल होने देना नागवार लगा था।
कम्प्यूटर नहीं है कि बात उठने पर मुख्य सचिव ने तत्काल इसे कार्यालयों को उपलब्ध कराने का आदेश दे दिया। अंततः कम्प्यूटर तो नहीं पर टेबलेट वितरण पर मुहर लगी और राज्य में टेबलेट वितरण की तारीख को ही वामिस की ऑनलाइन बिलिंग शुरूआत करने की लांचिंग डेट रखने की घोषणा कर दी गई। माननीय मुख्यमंत्री के द्वारा टेबलेट वितरण के साथ ही राज्य में ऑनलाईन बिलिंग की भी औपचारिक शुरूआत हो गई। यह तय कर लिया गया कि लांचिंग डेट के बाद से कोई बिल ऑफलाइन नहीं लिया जाय।
वामिस हेल्पडेस्क की अग्नि परीक्षा तो अब होनी थी। ऑनलाईन बिलिंग के लिए एस्टीमेट की सॉफ्ट कॉपी (बीओक्यू टेमप्लेट्स) को अपलोड करना खासा जटिल था। और अपलोड होने के बाद इसे कई आई डी से गुजरना पड़ता था। ऐसे में एक वृहत पीडब्ल्यूडी में पदस्थापित लेखा पदाधिकारी संजय सर ने परमानंद जी से बात की।
संजय सर- ‘‘परमानंद जी, क्या किया जाए, हमारे यहाँ तो किसी को बिल ऑनलाईन करने नहीं आता है। पुराने पैटर्न पर बिल पास हो सकता है अभी।‘‘
परमानंद जी-‘‘नहीं सर, बिल का रेफेरेंस नंबर दीजिएगा तभी कंट्रोल नंबर जेनेरेट होगा और भुगतान होगा। आपको क्या दिक्कत हो रहा है सर कहिये हम कोशिश करते हैं।‘‘
संजय सर- ‘‘आप बता दीजिएगा।‘‘
परमानंद जी- ‘‘हाँ क्यों नहीं।‘‘
तो इस प्रकार संजय सर को परमानंद जी के सौजन्य से यह पता चला की बिल ऑनलाइन कैसे हो। फिर धीरे-धीरे यह सबको पता चला कि परमानंद जी को पता है बिल कैसे ऑनलाइन किया जाए। फिर क्या था, परमानंद जी का हेल्पलाइन एक बार फिर खुला था। जो जहाँ फंस-जा रहा था तुरंत परमानंद जी को फोन लगाया जाता। परमानंद जी भी पूरे धीरज से सबको मदद करते जाते। परमानंद जी के साथ एक बात थी कि बिना लाग-डाट के सबको मदद किये जाते थे वह न अधीर होते थे, न खिजते थे।
तो इस प्रकार तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी झारखण्ड में भी अकाउंट्स और बिल के ऑनलाइन युग की शुरूआत हुई। सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं हुआ बल्कि इसमें एकरूपता भी आई। यह वामिस की ही देन कही जा सकती है कि बड़ी संख्या में सरकारी कर्मियों में कम्प्यूटर के प्रति जागरूकता पैदा हुई। इक्का-दुक्का मामले को छोड़ दिया जाये तो वामिस लागु होने के बाद लगभग नब्बे-पंचानबे फिसद लेखे महालेखाकार को समय पर प्राप्त होने लगे हैं। राज्य के फाईनेंस एंड एप्रोप्रीएशन एकाउंट्स के लिए एजी को डेटा अब बास्केट के जरीये फिंगर टीप पर प्राप्त होना संभव हो गया है, जिसके लिए पहले बहुत उबाऊ मैनुअल इंट्री का सहारा लेना पड़ता था।
राज्य में वामिस की सफलता को देखते हुए पड़ोसी राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश ने भी इस माड्युल को अपनाने की इच्छा जाहिर की है। वामिस में अब भी कुछ कमियां है जैसे यदा-कदा इसका सर्वर स्लो पड़ जाता है, इलेक्ट्रॉनिक मेजरमेंट की शुरूआत होनी बाकि है लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में यह दूर की जाती रहेगी।
वामिस टीम के अधिकारी आज भी इस डिजिटल अकाउंट्स और बिलिंग लागू हो पाने के पीछे महालेखाकार कार्यालय के अधिकारियों श्री बीसी बेहेरा सर, श्री भास्कर मजूमदार सर, श्री अविनाश सर और श्री आशुतोष सर सहित तमाम सद् प्रयासों का आभार मानती है लेकिन यह भुलाया नहीं जा सकता कि इस मुहिम के शुरूआत उनकी समर्पित और दक्ष टीम के द्वारा हुई और इसके लिए उन्होंने पेशे वर रुख अपनाया और आगे चलकर परमानंद जी जैसों ने इसे लागू करवाने की दिशा में ईमानदार प्रयास किया।
--पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)