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"नेहा"

26 मई 2024

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”नेहा“ 


अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने के; अपनी कमजोर और नन्ही ही सही, पंखों के सहारे। इसी बस्ती में गरीब परिवार में जोड़ी भर आँखों में ऐसे ही हजारों सपनों ने जन्म लिया था। नाम था ‘नेहा’। नेहा पाँच भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थी पर जिम्मेदारी उठाने में अव्वल। घर के सारे काम देखती ही, माँ का भी हाथ बंटाती और अपनी पढ़ाई भी पूरी करती जाती। उसकी लगन ने मैट्रीक परीक्षा में उसे प्रथम स्थान दिला दिया था। सफलता ने उसके सपनों में हौसले भर दिये थे। उसने तय किया कि पढ़ाई के साथ कुछ और भी सोचा जाये। उसके नजर में पड़ी एएनएम की ट्रेनिंग। सोचा तो यही था कि इसके जरिये नए रास्ते मिलेंगे और परिवार की मदद भी हो पाएगी। उसने अपने कस्बे में रहकर ही एएनएम की ट्रेनिंग का निश्चय लिया। अपने कस्बे से बारह किलोमीटर दूरी तय करके ट्रेनिंग करना लड़कियों के लिए आसान नहीं था, तिस पर घर का काम और छोटे-भाई बहनों की देखभाल भी। लेकिन उसके सपनों के आगे ये सब असहज नहीं था। 

लेकिन जैसा कि विकासशील देश के गाँवों में होता है कि लड़की के पंद्रह-सोलह पार करते ही उसके घरवालों को चिंता सताने लगती है कि कोई अच्छा लड़का मिल जाये और उसकी लड़की का निबाह हो जाये। फिर एक नहीं चार-चार लड़कियों का बोझ भी तो अभिभावकों की रात की नींद उड़ाता ही था।  

लड़के वालों ने लड़की में लगनशीलता देखी और एक बार में ही रिश्ता पक्का कर लिया लेकिन साथ ही पढ़ाई या शादी दोनों में से किसी एक को चुनने की शर्त भी रख दी गई। लड़की शादी करके नए घर में आ गई। अच्छा पहलू ये था कि नेहा का होनेवाला पति भी उसके एएनएम ट्रेनिंग स्कूल के शहर में ही कहीं सेल्स का काम करता था। धीरे-धीरे उसने अपने सास-ससुर को मनाने में सफलता पा ली कि पति-पत्नी दोनों शहर में रहेंगे तो पति की देखभाल भी हो जाएगी और रोज-रोज आने-जाने का झंझट भी नहीं रहेगा। और इस तरह बचा हुआ समय एएनएम में दे पाएगी और आगे घर का सहारा भी हो जाएगा। सास-ससुर को यह विचार पसंद आया। और इस तरह लगनशील सपनों को आगे के रास्ते में रोशनी की किरण दिख पड़ी।  

लगनशीलता ने ज्यादा इंतजार नहीं कराया नेहा ने न सिर्फ एएनएम की ट्रेनिंग सफलता पूर्वक पूरी की बल्कि वहीं पास के गिरगिटीया अस्पताल में उसे नर्स की नौकरी भी मिल गई। बहु की इस सफलता पर ससुराल वालों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मायकेवाले भी फूले नहीं समा रहे थे। 

सभी कुछ अच्छा ही चल रहा था पर ससुराल में घर वाले दंपति को बच्चे की खुशी देने को कहने लगे थे। शादी हो गई, लड़की की पढ़ाई हो गई, नौकरी लग गई; बस अब जल्दी गोद भर जाये। घर के बड़ों के मन में होता ही है कि वे जितनी जल्दी हो सके अपने पोते-पोतियों, नाते-नातियों को देख ले और तभी तो दुनिया खुशहाल लगती है।  

नेहा जिस अस्पताल में नर्स का काम करती थी, जल्द ही अपनी मेहनत और लगन से वहाँ के मैनेजमेंट, डॉक्टर और साथी स्टॉफ का दिल जीत लिया। पेशेंट के परिवार वाले भी उसकी तिमारदारी से बहुत प्रसन्न रहते और दुआएँ देते। लेकिन इधर कुछ दिनों से खुद नेहा को पेट में लगातार अजीब किस्म का दर्द हो रहा था। जब उससे ये दर्द सहा नहीं जाने लगा तो उसने ये बात अपने पति को बताई। घरवालों ने बहु के दर्द को शुभ-संकेत ही समझा और उसे चेक कराने की सलाह दी।  परन्तु जब वह अपने पति के साथ अपने ही अस्पताल में खुद का चेक-अप करायी तो बात कुछ और निकली। नेहा के पेट में ये दर्द अपेंडिक्स की वजह से हो रहा था। घर वालों की ही सलाह पर नेहा ने अपेंडिक्स का ऑपरेशन अपने ही अस्पताल में करा लिया और यह ऑपरेशन सफल रहा था। परीजनों ने ऑपरेशन की सफलता के लिए मैनेजमेंट और डॉक्टर की भूरी-भूरी प्रशंसा की, जैसा कि सीधे-साधे लोग अकसर करते हैं। 

ऑपरेशन के छः महीने बीत रहे थे और घर में संतान को लेकर वधु से अपेक्षा पहले की तरह हो चली। अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुए कुछ ही दिन बीता था कि एक बार फिर नेहा के पेट में दर्द रहने लगा था और इसबार ये दर्द पहले से कहीं ज्यादा तीव्र था। जब जांच हुई तो रिपोर्ट देखकर डॉक्टरों ने नेहा को बताया कि उसके गॉल ब्लाडर में सिस्ट डेवलप हो गया है जिसे कोलोडिकल सिस्ट कहते हैं। डॉक्टरों का ये भी कहना था कि सिस्ट को जबतक रिमूव नहीं किया जाता है तबतक दर्द बना रहेगा और यह सिस्ट सिर्फ ओपेन सर्जरी के द्वारा ही निकालना संभव है, लेप्रोस्कॉपिक से नहीं। गिरगिटीया के डॉक्टरों ने घरवालों को कहा कि इस बारे में कहीं भी और सलाह चाहे तो ले सकते हैं। कम अनुभवी घरवालों ने अपने समझ का इस्तेमाल करके इधर-उधर से जानकारी जुटायी तो दूसरे जगहों के डॉक्टरों ने भी वही बात दोहरायी  कि कोलोडिकल सिस्ट के केस में ओपेन सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है। जिसके लिए उन संस्थानों ने फीस की एक मोटी रकम बतायी और इतनी बड़ी रकम सुन घरवाले पशोपेश में पड़ जाते थे। 

नेहा जब अस्पताल में ड्युटि कर ही रही थी तो सहायक के रूप में डॉक्टर से रोज मुलाकात होती। डॉक्टर ने उससे कहा कि तुम ये ऑपरेशन करालो नहीं तो आगे चलकर कैंसर का खतरा है। डॉक्टर की बात पर नेहा भीतर तक डर गई और घर में बिना ज्यादा चर्चा के अपने ही अस्पताल से ओपेन सर्जरी कराने का मन बना लिया। और यही उसकी बदकिस्मती साबित हुई। 

नेहा ने ही अपने घरवालों को कहा कि जब उसका ओपेन सर्जरी ही होना है तब दूसरे जगहों से अच्छा यह अपना अस्पताल है। डॉक्टर साहब कितने भले हैं, उन्होंने कहा है कि वो यह ऑपरेशन कर लेंगे, कोई दिक्कत नहीं आएगी। फिर वह तो उस हॉस्पिटल का अपना स्टॉफ है, डॉक्टर या मैनेजमेंट उसके साथ कोई गलत नहीं करेंगे। नेहा को उस वक्त कहाँ पता था कि जो बात वह अपनी सर्जरी के लिए कह रही है कल होकर उसपर आफत की तरह टूटनेवाली है। 

उस वक्त तक भली-चंगी नेहा अपने भविष्य के सुनहले सपने लिए अपने ही हॉस्पिटल में भर्ती हो गई। दो घंटे का ऑपरेशन जब पांच-पांच घंटे तक चलता रहा तो घरवालों की चिंता बढ़ाने लगी। छः घंटे बीत जाने के बाद डॉक्टर पसीने से लथ-पथ, बिलकुल परेशान हालत में ऑपरेशन थियेटर से निकला और  उसके निकलते ही घरवालों ने घेर लिया और जानना चाहा कि सब ठीक तो है न। डॉक्टर ने टॉवल से अपना पसीना पोछते हुए कहा कि ‘वैसे तो सब ठीक है लेकिन पेशेंट को थोड़ा ब्लीडिंग हो गया है पर स्थिति नियंत्रण में है।’ घरवालों को उस घड़ी डॉक्टर के मुंह से नेहा के लिए ‘पेशेंट’ सुनना थोड़ा अजीब लगा था लेकिन उन्होंने डॉक्टर की बातों पर विश्वास किया। कमजोर लोग सुनने के अलावा कर भी क्या सकते थे। 

डॉक्टर ने उस दिन के सारे ऑपरेशन रद्द कर दिये। और रात को मैनेजमेंट से बात किया। उनकी बातों से लग रहा था कि वे अपने पर आनेवाले किसी संकट से निपटने के लिए, किसी मासूम को संकट में डालने का विकल्प चुन लिया गया हो। ऑपरेशन के बाद नेहा की हालत दिन-प्रतिदिन नाजुक होती जा रही थी। अपने जिगर के टुकड़े को खतरे से बाहर देखने को परिवार वाले व्याकुल हो चले थे। लेकिन उन्हें हर दिन वही रटा-रटाया शब्द सुना दिया जाता था ‘पेशेंट को ऑपरेशन सेट होने में कुछ और वक्त लगेगा। हमलोग स्तिथि पर नजर रखे हुए हैं। कोई बात होगी तो बता दिया जाएगा।’   गार्जियन पूछते भी कि दो-पाँच लाख खर्च करके क्या पेशेंट में सुधार हो सकता है, हमलोग घर-बार बेचकर जुगाड़ कर लेंगे। लेकिन जवाब वही था- ‘अभी वैसी जरूरत नहीं है, स्थिति मेरे कंट्रोल में है।’ 

लेकिन न तो कोई बात कभी बतायी जाती और न नेहा की हालत में सुधार हो रहा था। पंद्रह दिनों तक नेहा अपने ही हॉस्पिटल के आईसीयू में तबतक रही जब तक कि उसका ब्लीडिंग लगातार होते रहना बंद नहीं होने लगा। परिजनों ने भागकर डॉक्टर से संपर्क किया तो डॉक्टर ने कहा कि ‘पेशेंट का जीन अलग तरह का है जो ऑपरेशन को सेट नहीं होने दे रहा है। किसी-किसी-में ऐसा होता है। पेशेंट क्रीटिकल है और ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते हैं।’ 

माता-पिता, पति किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, सभी आवाक और सुन्न पड़ गये थे। लेकिन एक मामा जो पढ़े-लिखे थे वह बिफर पड़े- ‘क्या मतलब कुछ नहीं कर सकते? कुछ नहीं कर सकते फिर आपने इतने दिनों तक इसे क्यों रखे रहा। आपने पहले कहा क्यों नहीं? अब हम बच्ची को कहाँ लेकर जाएं और इतने पैसे हमें कौन देगा?’ 

‘पैसों का इंतजाम बॉस कर देंगे। आप फिलहाल इसको लेकर बाहर चल जाइये।’ अब बाहर लेकर जाने और कुछ होने का मतलब था कि बला टली। 

‘कहाँ चले जाए?’ 

‘कलकत्ता चले जाईये।’ 

जिस हॉस्पिटल में पेशेंट एम्बुलेंस में आते और नेहा की तिमारदारी से स्वस्थ होकर लौटते, उसी हॉस्पिटल से नेहा नाजुक होकर एम्बुलेंस से निकली थी। जैसे-तैसे कलकत्ता पहुंचकर एक बड़े अस्पताल में गये तो प्राथमिक जांच के बाद डॉक्टरों ने बहुत देर के बाद लाया कहकर तुरंत ऑपरेशन के लिए पाँच लाख जमा करने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि इससे पेशेंट की जान बच जाएगी इसकी गारंटी नहीं दे सकते। वे केवल अपने तरफ से प्रयास भर कर सकते हैं। जानकर परीजनों के पैरों तले से जैसे जमीन ही निकल गई। लेकिन उन्होंने सबसे पहले अपने पिछले हॉस्पिटल से बात की जिन्होंने पैसों का इंतजाम होने का आश्वासन दिया था।  पिछले हॉस्पिटल के बॉस ने दो टूक कह दिया कि कलकत्ता में का मतलब बड़ा निजी अस्पताल के बारे में उसने तो नहीं कहा था। वहाँ सरकारी अस्पताल में ले जाना चाहिए था। 

पहले ही से टूट चुके परिजन फौरन कलकत्ता सदर के सरकारी अस्पताल में ले गये। लेकिन तबतक नेहा अपने सपनों सहित इस दुनिया से दूर जा चुकी थी। पेशेंट के सारे रिपोर्टस  और पेपर की जाँच के बाद डॉक्टरों की टीम सन्न रह गयी। उन्होंने बताया कि ऐसा कैसे? जिस डॉक्टर ने यह ऑपरेशन किया है उसे इस तरह का ऑपरेशन करने की न तो डिग्री थी और न ही कोई अनुभव था। उसकी ओटी शीट देखकर ही पता चलता है कि इस ऑपरेशन के दौरान उसे असिस्ट करने के लिए सिर्फ एक एनस्थिसीया एक्सपर्ट और एक कंपाउंडर ही था। इस टीम के सहारे यह ऑपरेशन अंजाम दिया ही नहीं जा सकता था।’ आगे डॉक्टर ने बताया कि ‘उस डॉक्टर को यह पता तक नहीं था कि कोलोडिकल सिस्ट के नीचे आर्टरीज भी गुजरती है जो उसने सर्जरी के दौरान काट तो दी लेकिन उसे जोड़ नहीं पाया, जिससे पेशेंट की ब्लीडिंग होती रही। सबसे बड़ी बात कि अगर उससे यह गलती हो गई थी तो न तो उसने और न ही मैनेजमेंट ने तत्काल कोई कदम उठाया। अगर कदम उठाया होता तो पेशेंट की जान बच सकती थी। और मुझे तो शक है कि उसने ऐसा सिर्फ इसलिए किया कि  पेशेंट के कोलैप्स होने तक उसकी गलती पर पर्दा डला रह जाय। मैं डॉक्टरी के नोबल प्रोफेशन को बदनाम नहीं करना चाहता लेकिन यह कड़वा सच है। और जिसे उजागर नहीं करने का मतलब है कि इंसानियत के साथ खिलवाड़ होते रहने देना।’ 

इस तरह किसी मासूम के आँखों के सपने उसके किसी अपने की लापरवाही के भेंट चढ़ गए। 

--पुरुषोत्तम 
(एक घटना पर आधारित मेरी यह स्वरचित और मौलिक रचना है।)
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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

15 सितम्बर 2023
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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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विजय

15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
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समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

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अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

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तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

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15 सितम्बर 2023
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एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

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हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

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भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

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गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

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रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

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इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

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"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

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मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

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मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

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16 सितम्बर 2023
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27 सितम्बर 2023
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कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

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27 सितम्बर 2023
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अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

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वामिस

7 अक्टूबर 2023
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वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

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भूत

17 अक्टूबर 2023
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भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

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मेला

3 नवम्बर 2023
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मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

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अमीना

8 नवम्बर 2023
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अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

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बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
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बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

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ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
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ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

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भोला

17 दिसम्बर 2023
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

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जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
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बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

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ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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