shabd-logo

मेला

3 नवम्बर 2023

5 बार देखा गया 5


मेला. 


 


इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बाद गांव में इकट्ठा हो रहे थे। वरना क्या मजाल कि साल भर में किसी और अवसर पर इतने लोग मिल जाएं।  


 


विजयादशमी के मेले में अरसे बाद सभी मित्रों के मिलने में गजब की गर्मजोशी थी। आपस में गले मिलकर पीठ थपथपाते, पुरानी यादें ताजा की जाती और बीच-बीच में कहकहे लग पड़ते। एक-एक कर सब की बात होती रही और जीवन को किसने कितना पीछे छोड़ा इसपर माहौल यदा-कदा गंभीर भी हो जाता। लेकिन केवल चर्चाओं से कसर कैसे पूरी होती, इतने दिनों के मिले हैं, महफिल भी तो जमनी चाहिए। दो काले कुत्ते(ब्लैक डॉग) का क्वार्ट्स इंतजाम हुआ। शुरू में तो क्वार्ट्स की एक ही बोतल सेक्रेटरी के द्वारा प्रस्ताव किया गया लेकिन प्रोफेसर कैसे पीछे रहता, उसने कहा कि नरक में भी ठेला-ठेली और दूसरे का भी इंतजाम कर दिया। खैर शराब-ओ-कबाब के साथ टोली नदी की कछार ओर निकल गई। महफिल जमी और और शराब का दौर चला। शराब-नोशी के शबाब पर पहुँचते ही फिजा हिन्दी से अंग्रेजी होते देर न लगी। जिन्हें अंग्रेजी ज्ञान न था काले कुत्ते ने मानो उसके लिए रेपीडैक्स इंग्‍लिश स्पीकिंग कोर्स का काम किया, टूटी-फूटी ही सही अंग्रेजी से वे भी बात-व्यवहार कर उठे। "इडियट मेरे पैग में थोड़ा-सा, लिटिल मोर वॉटर ऐड करो।”  


 


कुल जमा दर्जन भर में दो शाकाहारी भी थे तो उन्होंने चखने पर कांसनट्रेट किया। लेकिन मजा तो तब आया जब लॉयर(शायर नहीं) दोस्त ने रह-रहकर शुद्ध हिंदी में कविता पाठ करना प्रारंभ किया और बाकी ने वाह-वा के नारे लगाने शुरू किया। पुराने दोस्त पर पुरानी शराब और भी उम्दा हुई जाती थी। और यहाँ समय की किसे परवाह थी मानो वर्षों से बंधी गाय को रस्सी तोड़कर भाग निकलने का मौका हाथ लग गया हो फिर तो पूरा मैदान छाने बिना कैसे मान लिया जाए।  


 


दोपहर दो से रात बारह बजने को है और शराब भूख जगाना चाहती है। ऐसे में दोस्तनवाजी में डूबे शराबजादों की बानगी देखिए : 


 


डॉक्टर- “यार बहुत हो गया अब घर चला जाए। भूख भी लग रही है।” 


 


प्रोफेसर- “कौन-सा घर? ग्यारह बजे के बाद मेरे घर के दरवाजे अगली सुबह तक के लिए बंद हो जाते हैं।” 


 


ऑडिटर- “मेरे लिए बंद तो नहीं होते लेकिन एक बेड सोफे के पास ही जमीन पर लगा दी जाती है। यार कैसे जी रहा हूँ क्या बताऊँ। कड़ा शासन है।” 


 


कवि- “मेरी माँ ही दरवाजा खोलेगी, मैं उससे नजरें नहीं मिला पाऊँगा।” 


 


सेक्रेटरी- “वाह रे आदमी, अभी तक कविता पढ़ रहा था इसके कविता पाठ के कारण हम सब फंसे हैं।” 


 


रेलवे गार्ड- “क्यों उसको कोस रहे हो, जब वीर-रस पर ताली ठोक रहे थे उस समय सोचना चाहिए था न! मैं न कहता हूँ, यहीं कुछ मंगा लिया जाए।” 


 


मुखिया- “उतरी नहीं क्या अभी तक, हम लोग गाँव में हैं, कोई शहर का छोर नहीं कि बगल में लाइन होटल लगी हो। इतनी रात को सन्नाटे के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।” 


 


बैंकर- “मेरी मिसेस को पता तो चले तो कच्चा चबा जाएगी। बोलेगी ही कि अकेले मार लिया है मेरे लिए भी लेके आओ। इतनी रात को कहाँ से लाऊंगा।” 


 


मुखिया- “नहीं ला पाओगे तो बीच नदी में सो जाओ।” सामूहिक ठहाका पड़ता है। 


 


कस्टम ऑफिसर अलग बौखला पड़ गया- “अबे मुझको मरवा दिया तुम सब। पिछली बार पकड़ा गया था तो वह बच्चों के सर पर हाथ रखकर कसम खिलाने पर तुली थी। इस बार पता नहीं क्या हो, मैं तो घर ही नहीं जाऊँगा, यहीं पड़ा रहूँगा।” 


 


रेलवे गार्ड- “पॉजीटीव सोचो पॉजीटीव, मैडम अगर अपने सर पर हाथ रखवा ले तो तेरी लॉटरी लग जाने वाली है।” 


 


हंसी और तालियों के बीच कस्टम ऑफिसर इतना ही कह पाया- “अबे कमीनों।” 


 


ऑडिटर- “तुम सब मुखिया को कुछ क्यों नहीं कहते हो, यही इंतजाम है इसका, उसको इसी दिन के लिए मुखिया बनाया था हमने।” 


 


मुखिया- “जमानत जब्त करवाएगा क्या मेरा? संस्कारी गांव है अपना, एक भी वोट नहीं मिलेगा। और तुम क्या कलकत्ता में वोट दिया था मुझको?” 


 


भूख तो सभी को सामने से ललकार रही थी लेकिन कोई भी अपनी राज-पत्नी को इतनी रात गए कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। कहे तो किस मूँह से यहाँ तो जो हालत थी कि खुद में जूतम-पजार होने का भय था। जब तक सुरा का असर था तो बात भी बादशाहे-आजम की होती रही, असर उतरते ही कायदे की बात समझ आते देर नहीं लगी। लिहाजा कोई भी अतिरिक्त जोखिम लेने से कतरा रहा था। सब मन-ही-मन कयास लगाना जारी रखे हुए थे, कोई हो पराक्रमी जो सामने आए। खुद की हिम्मत जवाब दे तो सामने वाले का भी हाथ-पैर फुला जाता है। 


 


लेकिन डॉक्टर शबाब पर था। वह आगे बढ़कर मौके पर चौका लगा, महफिल लूटने को बेताब हो उठा- “अरे क्या यार इतने भी बुरे दिन आ गए तुम लोगों के, हटो तुम लोगों से नहीं होगा। देखो मैं कैसे चुटकी में सब चकाचक करता हूँ, किसी काम के नहीं हो तुम सब।” 


 


इतना कहकर डॉक्टर ने अपनी फैशन डिजाइनर पत्नी को फोन लगा तो दिया, लेकिन सतर्क। सब को ओठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा भी किया- 


 


“हैलो बेबो सो गई क्या।“ 


 


“तुम्हारे फोन से पहले सो ही तो रही थी, पार्टी खत्म हो गई? नीचे हो क्या?” 


 


“आया तो नहीं हूँ, पर ये बताओ कुछ है खाने को।” 


 


“और ये क्या बात हुई घर है तो खाने का रहेगा ही न? और पार्टी फास्टिंग वाली थी क्या? ” 


 


डॉक्टर ने एक हाथ की दो उँगलियों से विक्टरी साइन बनाते हुए कहा- “नहीं, नहीं वो ये मैं कह रहा था, मेरे साथ कुछ दोस्त भी है और मैंने उनको पार्टी के लिए घर पर................” 


 


डॉक्टर की मिसेस को उसका नब्ज टटोलने में जरा भी देर नहीं लगा कि माजरा क्या है, उसने बीच में ही रोकते हुए कहा- “सुनो ऐसा करो तुम लोग बाहर ही कुछ खाते आओ और ये भी कोई वक्त है? कभी तो समझ आएगा तुमको कि यहाँ कितना काम रहता होगा। मैं सो रही हूँ, अब डिस्टर्ब नहीं करना।”  


 


डॉक्टर मोबाइल का वॉल्युम कम करता रह गया लेकिन फोन की बात सबने तरीके से सुनी। और डॉक्टर का चेहरा झटके में पीला पड़ गया। कहना न होगा इससे बाकीयों की भी संभावित रिस्क एप्पीटाइट को गहरा धक्का लगा। अपराध बोध में सभी ने नजरें तो नीचे कर लीं, पर कहा किसी ने कुछ भी नहीं। डॉक्टर को किस तरह सांत्वना दे सब यह सोच ही रहे थे कि अचानक उसका फोन फिर से बज उठा।  


 


“घर में माँ के रहते हुए भी तुम लोग क्या सोच रहे हो, चले आओ सब-के-सब। देर नहीं लगेगा, मैं झटपट कुछ बना देती हूँ।” माँ का फोन था। 


 


थके हारे मित्रों की टोली जब घर पहुँची तो माँ ने ही दरवाजा खोला और कहा- “तुम सब हाथ-मुंह धो कर फ्रेश हो जाओ, सब्जी बन पड़ी है, गरमागरम पूरी निकालती हूँ फिर सब कोई बैठ जाना।” 


 


सभी फ्रेश हुए और डॉक्टर अपने दोस्तों को हालिया बैंकाक टूर का फोटो दिखाने में मशगूल रहा। उधर माँ सब्जी उतारकर खीर चला रही थी, अगले पल आटा गुथती फिर सलाद काटती। उसकी फुर्ती देखते ही बनती थी, इतनी चपलता तो माँ में ही हो सकती है। पूरियाँ तलते हुए माँ ने सब को आवाज दिया- “सब आ जाओ, खाना तैयार है।” 


 


इधर सब हाथ धोकर बैठते, उधर एक-एक की थाली लगती जाती। गरमागरम पूरी, सलाद, खीर और सब्जी। दिन भर के भूखे के लिए यह माता रानी का महा प्रसाद था। और माँ थी कि थकने या उबने का नाम नहीं ले रही थी, थाली खाली होने को भी नहीं पाती और गरम पूरी परोस दी जाती, फिर सब्जी और जिसे चाहिए खीर भी। जाने क्यों सबको नव रात्रि की दुर्गा का बरबस ध्यान हो उठा। अष्ट भुजाओं वाली माता, अपने पुत्रों के प्रति वात्सल्य से भरी हुई, हर परिस्थिति में शरण देने के लिए तत्पर और कोई संकट भांपते ही सर्वस्व न्योछावर कर देने ने के लिए तैयार। 


 


“मेरी आँख लग ही रही थी कि बहु को तुमसे बात करते सुनी। सारा दिन करते-करते वो बहुत थक गई थी। फिर अभी पूजा है तो तुम सब आए हो इसलिए थोड़ा-बहुत कर-धर ली, नहीं तो तुम सबसे से कब भेंट होती है।” माँ खाना परोसते हुए सफाई भी दे रही थी। 


 


-- पुरुषोत्तम 


(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।) 



 


  

40
रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
5.0
मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
1

प्रेम

15 सितम्बर 2023
4
2
4

प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

2

विजय

15 सितम्बर 2023
2
1
1

"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

3

समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
1
1
2

समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

4

अरवी के पत्ते

15 सितम्बर 2023
0
0
0

अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

5

तरगें

15 सितम्बर 2023
0
0
0

तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

6

एसएससी

15 सितम्बर 2023
1
1
2

एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

7

हम कब जागेंगे

15 सितम्बर 2023
1
1
1

हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

8

भिखारी

15 सितम्बर 2023
0
0
0

भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

9

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण)

15 सितम्बर 2023
0
0
0

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

10

रिक्तताएं

15 सितम्बर 2023
1
1
1

रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

11

इनिंग्स

15 सितम्बर 2023
0
0
0

इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

12

अभिमान

15 सितम्बर 2023
0
0
0

"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

13

मर्माहत

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

14

मैंने देखा है...

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

15

अव्यक्त

16 सितम्बर 2023
0
0
0

अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

16

कूड़ा भोज

27 सितम्बर 2023
0
0
0

कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

17

अहम

27 सितम्बर 2023
0
0
0

अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

18

वामिस

7 अक्टूबर 2023
0
0
0

वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

19

इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

20

भूत

17 अक्टूबर 2023
1
0
1

भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

21

मेला

3 नवम्बर 2023
1
0
0

मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

22

अमीना

8 नवम्बर 2023
1
0
1

अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

23

बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
0
0
0

बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

24

ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
1
1
1

ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

25

भोला

17 दिसम्बर 2023
0
0
0

भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

26

सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
1
1
2

सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

27

जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
0
0
0

जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

28

बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
0
0
0

बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

29

ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
0
0
0

ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

30

शक की सुई

8 फरवरी 2024
0
0
0

शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

31

प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
0
0
0

प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

32

प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
1
1
1

प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

33

मोटर

19 मार्च 2024
1
1
1

मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

34

राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
1
0
0

श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

35

प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
1
1
1

प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

36

पहली ड्यूटी

5 मई 2024
0
0
0

*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

37

"नेहा"

26 मई 2024
0
0
0

”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

38

गंगा

26 जुलाई 2024
0
0
0

गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

39

पेड़

18 अगस्त 2024
0
0
0

पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

40

एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
0
0
0

एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

---

किताब पढ़िए