shabd-logo

बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023

4 बार देखा गया 4

बड़का-छोटका.

बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा बुना हुआ था। सोशल मीडिया नहीं होने से लोग स्टेट्स और पोस्ट लगाकर समाज में अपना परचम लहराने की नहीं सोचते थे। हाट, चौपाल, पान की गुमटी, नाई का दुकान शेखी बघारने का मंच प्रदान करती थी। और एक चीज थी जिससे लोग खुद को तीस-मार-खाँ साबित करने की जुगत भिड़ाते थे और वह थी बार्जी या बाजी। आपने भी सुना होगा फलां ने सौ रसगुल्ले खाने की बार्जी लगाई, ढीमके ने एक ही सांस में एक जग पानी पीने की शर्त जीती, अमुक ने उफनती नदी को पार कर सबको दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया, वगैरह-वगैरह। एक बार ऐसे ही एक रंगरूट ने गुड़ की पूरी चक्की जो आठ-दस किलो से कम की न होती थी, खा जाने का दावा कर दिया और उसको गुड़ खाता देखने लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। भला कोई आठ-दस किलो गुड़ खा सकता है, रंगरूट हार गया और उसकी हो-हो हो गई।

नेमान (नवान्न) का दिन था। आपको जानकारी रहे कि उत्तर-पूर्वी भारत में यह त्यौहार अगहन (नवंबर) में नए फसलों के आगमन के उपलक्ष में मनाया जाता हैं। धान की नई फसल से तैयार चूड़ा और दही, साथ में गुड़, मूली और भिगोया हुआ घंघरी नेमान में भगवान को चढ़ाने और प्रसाद के रूप में खाने का रिवाज है।

मेरे घर थोड़ी दूर आगे बड़का-छोटका दो जुड़वां भाई रहते थे। दोनों एक जैसे, देखने में कुछ खास अंतर नहीं। आस-पास के लोग तो पहचान जाते थे पर जो लोग अभी देखे तो गफलत में पड़ जाए कि किसे देखा, किससे बात किया।

बड़का-छोटका बैलगाड़ी सजाता था, नेमान का दिन दोनों की छुट्टी का दिन था। बैल को चारा-पानी दे, चौपाल पर खूंटकर बड़का की पत्नी खलिहान लिपने चली गई। पर खेत के लिए निकलने से पहले घर के मरद-मुनीस को तरकारी भात रांधकर खिला गई थी। छोटका तरकारी-भात धंसोड़कर अंदर में खटिया पार दिया और कंबल ओढ़कर सो गया। बड़का धोती-गंजी में, गले में गमछा लपेटे अपनी झोपड़ी के आगे हथेलियों पर तमाखू रगड़ रहा था। नेमान के दिन दही नहीं मिलने से उसके मुख पर मलिनता का भाव था। इतने में साइकिल पर रस्सी के सिक्के के सहारे टंगी दही की दो कोहिया (हांड़ी) लिए एक दही वाला उधर से गुजरता दिखा।

“दही दस टका सेर, टटका दही आविये।”

बड़का- “बड़ी बेरा हो।”

दहीवाला- “हाँ भयवा, बेरा तो हो गया लेकिन क्या करेंगे हमलोग ठहरे चासी आदमी, चास और जाल-माल में बेरा हो जाता है। गाय गेंठा तोड़कर भाग गई थी।”

बड़का- “डेंगाता होगा गाय-गौरू को और खाने न देता होगा तब न, तनी देखो तो हमर बरद सानी खाकर इत्मीनान से पागुर कर रहा है। दिनभर कहीं हिलेगा नहीं।”

इस बतकही और अकारण मिले ज्ञान पर दही वाला तिलमिला कर रह गया। यह बाहर था इसलिए वह गुस्से का जब्त करना उचित समझा। वरना उसका गांव रहता तो इस आदमी का नतीजा पूरा कर देता।

दहीवाला- “दही लेना हो तो लो भाई नहीं तो चलते हैं दूसरा दरवाजा देखेंगे।”

बड़का- “लेना क्यों नहीं है, कैसे सेर दिया?”

दहीवाला- “जबहि से तो बोले जा रहे हैं दस रुपया सेर। बोलो एक सेर नाप दें कि कितना लोगे।”

बड़का- “एक सेर में हमलोग का क्या होगा?“

दहीवाला- “एक सेर ले लो, दू सेर ले लो या कोहिया ले लो। भाव वही लगेगा। बाकी असली भैंस के दही है भैया छाली सहित। सेर भर से ऊपर पचा नहीं पाओगे।” इस बार दही वाले ने टिटकारी भरी।

बड़का- “कौन दुनिया में रहता है जी, लगता है आदमी से भेंट नहीं है तुमको, अकेल्ला दून्नो कोहिया खा जाएंगे और डकार भी नहीं मारेंगे।”

दहीवाला यादव जी था, इस बात पर जब्त न कर सका और आपे से बाहर हो उठा। उसने अपना एक हाथ साइकिल की हैंडल से हटाकर हाथ हवा में लहराते हुए कहा- “तुम अगर दोनों कोहिया दही खा जाओ तो मेरी हार और तुमसे एक फूटी कोड़ी नहीं लेंगे।” जब यह बात हो रही थी उसी समय दहीवाला का गाँव का बगल गीर जाता दिखा। वह भी दहीयार था और अपना दही बेचकर वापस लौट रहा था। उसने ये बात आते हुए बगल गीर को देखकर हुंकार भरकर कहा। मौके पर बगल गीर को पा उसकी हिम्मत दूनी हो उठी।

बड़का- “जो पलट गया तब?”

दही वाला- “पलट कैसे जाएंगे?” फिर बगल गीर को दिखाते हुए कहा, “ये मेरा बगल गीर है लाखन, ये साखी रहेगा। और भैया तुम जो नहीं खा पाओ तो क्या हारोगे जो बोलो।”

“मोल का दूना देंगे।” दही के लोभी बड़का ने निराकरण कहा हालांकि हार जाने पर देने के लिए उसके पास एक धेला भी नहीं था। बड़का की पत्नी खेत जाते वक्त संदूक में ताला लगाते हुए गई थी, कोई भरोसा नहीं परव देखकर आदमी गाढ़ी कमाई जुए-दारू में ही लुटा दे।

“सुरेख, तो फिर उतारो दही, जवान को दू हांड़ी दही का मजा दे ही दो।" और बड़का की ओर देखकर "और एक चीज, पहले दही चख लो, टटका दही है तसदीक कर लो फिर न कहना दही खट्टा है, खा नहीं पाएंगे।” बगल गीर लाखन ने दही वाले सुरेश की पीठ ठोककर विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

“नहीं कहेंगे।” बड़का ने आत्मविश्वास से जवाब दिया।

मौके पर दही दोनों पड़ोसियों द्वारा नजाकत से उतारी गई। इधर बड़का ने गर्दन पर से गमछा उतारा और वहीं देहरी पर बिछा दिया। दही सामने आते ही बड़का दही पर टूट पड़ा जैसे दही पर किसी जनम की बैर हुई पड़ी हो। उधर दोनों पड़ोसी खुसूर-फुसूर कर रहे थे। एक कह रहा था कि इसने पहले दही देखा है की नहीं, दूसरा कहता खाने भी दो कितना खाएगा आदमी ही तो है, दोनों हांड़ियों में दस-बारह सेर तो होगा-ही-होगा। एक हांड़ी दही देखते-देखते स्वाहा हो गई। फिर दूसरी उसकी आगे कर दी गई, उसपर बड़का फिर शुरू हुआ लेकिन इस बार खाने की गति घटकर आधी हो गई। मन तो पहले ही भर गया था अब शरीर भी जवाब दे रहा था। शरीर कितना खाता, खा तो शर्त रहा था। धीरे-धीरे उसका हाथ भी उठना बंद हो गया।

सुरेश - “रुकते क्यों हो खाकर खतम करो।” सुरेश चौकस था।

लाखन- “रुकने का मान नहीं है बंधु रुककर तो कोई भी खा लेगा।”

बड़का- “नहीं रुकेंगे काहे, ऊ लगातार खाते-खाते मुंह मरा गया है।”

सुरेश - “मुंह मरा गया है? तो हार मान लो। बहुत खाया अब कितना खाओगे। मैं तो पहले कहता था तुम मानने को तैयार नहीं थे।” इतना कहने के साथ उसकी भौहें चमक उठी। जीत सामने पाकर सुरेश ने आगे बढ़कर पड़ोसी का हाथ पकड़ लिया।

बड़का- “मुंह मराने के बाद भी पांच सेर दही खाता हूँ, घड़ी भर रुको अभी भंसा से नमक-मिर्च लेकर आता हूँ। फिर चट समझो।”

इधर बड़का घर के अंदर गया उधर दोनों पड़ोसियों की हंसी टपक पड़ी। बड़का रसोईघर से नमक-मिर्च तो लिया लेकिन उसके कदम बाहर जाने को उठ नहीं रहे थे, जैसे पैरों में वजन पड़ी हो। हार पचाने की ताकत अच्छे-अच्छों में नहीं होती है। पेट में दही के पहाड़ से बेदम बड़का की निगाह सो रहे छोटका पर पड़ी।

वह सो रहे छोटका को हिलाते हुए कहा- “छोटो दही खाओगे।”

पहले तो लगा बड़ा भाई कोई काम के लिए उसे जगा रहा है। वह अन्यमनस्क पड़ा रहा। लेकिन बड़का के मुंह से निकल रही दही की सोंधी महक के आगे उसकी निंद की चित हो गई।

“लो नमक-मिर्च और जाओ बाहर, वहीं दही यार की साइकिल लगी है। ये लो गमछा बाहर में इसी पर बैठकर दही खा लेना, केवल कुछ बोलना नहीं।”

छोटका बाहर निकल कर बचा दही मिनटों में सुड़क गया और दही यारों ने अपना सिर पीट लिया।

--पुरुषोत्तम

(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)

0

36
रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
5.0
मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
1

प्रेम

15 सितम्बर 2023
4
2
4

प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

2

विजय

15 सितम्बर 2023
1
0
0

"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

3

समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
0
0
0

समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

4

अरवी के पत्ते

15 सितम्बर 2023
0
0
0

अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

5

तरगें

15 सितम्बर 2023
0
0
0

तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

6

एसएससी

15 सितम्बर 2023
1
1
2

एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

7

हम कब जागेंगे

15 सितम्बर 2023
1
1
1

हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

8

भिखारी

15 सितम्बर 2023
0
0
0

भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

9

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण)

15 सितम्बर 2023
0
0
0

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

10

रिक्तताएं

15 सितम्बर 2023
1
1
1

रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

11

इनिंग्स

15 सितम्बर 2023
0
0
0

इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

12

अभिमान

15 सितम्बर 2023
0
0
0

"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

13

मर्माहत

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

14

मैंने देखा है...

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

15

अव्यक्त

16 सितम्बर 2023
0
0
0

अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

16

कूड़ा भोज

27 सितम्बर 2023
0
0
0

कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

17

अहम

27 सितम्बर 2023
0
0
0

अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

18

वामिस

7 अक्टूबर 2023
0
0
0

वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

19

इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

20

भूत

17 अक्टूबर 2023
1
0
1

भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

21

मेला

3 नवम्बर 2023
1
0
0

मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

22

अमीना

8 नवम्बर 2023
1
0
1

अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

23

बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
0
0
0

बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

24

ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
1
1
1

ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

25

भोला

17 दिसम्बर 2023
0
0
0

भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

26

सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
1
1
2

सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

27

जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
0
0
0

जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

28

बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
0
0
0

बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

29

ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
0
0
0

ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

30

शक की सुई

8 फरवरी 2024
0
0
0

शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

31

प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
0
0
0

प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

32

प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
1
1
1

प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

33

मोटर

19 मार्च 2024
1
1
1

मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

34

राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
1
0
0

राग ठेकेदारी. चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से कोई भी काम का टेंडर निकला

35

प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
1
1
1

प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

36

पहली ड्यूटी

5 मई 2024
0
0
0

*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए