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ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023

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ट्रीट का बदला.

कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आपस में मैत्री रंजिश पाल रखी हो। विक्रम ज़ब तक गुड्डू को हरा न ले उसको चैन नहीं, गुड्डू ज़ब तक विक्रम को चित न कर दे तबतक उसको शकुन नहीं। ये दोस्त भी हुए थे तो दुश्मनी निभाने के लिए। विक्रम थानेदार का बेटा था तो गुड्डू के दादा सरपंच थे। इनकी उठापठक मोहल्ले में जगजाहिर थी।

उस समय गांव-घर रंगबिरंगे खेलों से आबाद रहा करता था। कुछ खेलों के नाम मैं गिन लूं तो राज कबड्डी या बुढ़िया कबड्डी, गोफाल, गोबर लस-लस, कित-कित, गुल्ली-डंडा, दोल पत्ता, ट्रीट और भी कई। तो आज बात ट्रीट की।

ट्रीट हम लोग गरमी के दिनों में अकसर रात में खेलते थे, कारण कि यह खेल अंधेरे के मुफीद था। इसमें चोर को छिपने वाली पार्टी के सभी लोगों को ढूँढ़ना पड़ता था। उस दिन स्कूल के पास चोर पार्टी खड़ी रही और छिपने वाली पार्टी पीछे देखती हुई उससे दूर जाने लगी और 100 मीटर आगे बढ़कर छोटी मस्जिद के कौने से ट्रीट चिल्लाई और रफूचक्कर हो गई। चोर पार्टी का विक्रम चौकस और तेज तर्रार था, ट्रीट कान में पड़ते ही उसने चौकड़ी भरी और क्षण भर में ही चोर पार्टी की जगह पहुँच गया। वह इतना तेज था कि ट्रीट पार्टी को छिटकने से पहले ही धर लेता था। लेकिन आज उसका पाला गुड्डू से पड़ा था जिससे पार पाना किसी के लिए भी टेढ़ी खीर थी। छोटी मस्जिद के आगे तो बाजार है, यहां से कोई भी इतनी तेजी से नहीं निकल सकता है और यहां से जाएगा तो कहां। बाजार क्या था एक गली थी और उसके दोनों तरफ उनिंधे मकान और दुकान।

जरूर छिपने वालों ने किसी मकान या दुकान में शरण ली हो लेकिन विक्रम किसी मकान या दुकान में भला कैसे घुस जाता। फिर किस घर या दुकान में घुसे हैं, गोया पता तो हो। जो घर या दुकान वाले दिख पड़े सभी रहस्यमय मुस्कान का लबादा ओढ़े हुए। किसी से मदद की कोई उम्मीद थी भी नहीं।

चोर पार्टी ने धीरे-धीरे पूरा रकवा छान लिया पर किसी का कहीं पता नहीं। अभी यहीं तो ट्रीट बोला था फिर जमीन खा गई कि आसमान निगल गया। चोर को लग रहा था जैसे कोई हमसाये की तरह उसके साथ है और ट्रीट पार्टी को सारे भेद बताए जा रहा है। बीस मिनट, पच्चीस मिनट गुजर रहा था। चोर पार्टी घुमते-घुमते वापस उसी स्कूल के पास आ गयी जहाँ से शुरू किया था।

विक्रम- “जरूर वह सब मिठाई दुकान में छिप कर बैठा है, देखा न दुकान वाला कैसे मुस्करा रहा था।”

पिंकु- “वहाँ भूलकर भी मत जाना। याद है न उस दिन कैसा झल्लाया था, इस बार गए तो गरम पानी फेंक देगा सब पर।”

भोमा- “तब क्या करोगे, वह सब मजे से हमें भगा रहा है और हम सब झकते जा रहे हैं।”

संजा- “तुम लोग जरा रुको हम दो नंबर से आते हैं फिर जुगत लगाते हैं।”

संजा दो नंबर के लिए स्कूल के पीछे गया और निवृत्त हो ही रहा था कि उसे लगा कोई हल्की-सी हंसी उभरी हो, उसने कान खड़े किए और चिल्लाया- “सब कोई आ जाओ, यहीं छुपा है स्कूल में और दो आदमी स्कूल के आगे-पीछे रहना।”

भौमा- ”देखा हमलोग समूचा टोला छान मारे और निकला कहाँ हमारे पीछे। लेकिन ये सब तो हमारे आगे था। खैर बेटा रुको अब कहाँ जाओगे। बहुत दौड़ाया है हम सब को।”

एक-एक करके छः में से पांच को सबने पकड़ कर बाहर निकाल लिया।

मुन्ना - “सब तो निकल गया लेकिन मैन गुड्डू तो गायब है। गुड्डू कहाँ छिपा है जी?”

ट्रीट पार्टी से टीकू टका-सा जवाब दिया-“गुड्डू कहाँ है ढूँढो, चोर तुम हो की हम। हम अपना भेद क्यों बताएंगे?”

“इतना तो तय है कि गुड्डू भी स्कूल में ही है।” सभी लोगों ने पूरा स्कूल का चप्पा-चप्पा देख लिया, आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सभी जगह, यहाँ तक की स्कूल की दीवार भी। अब तो सिर्फ एक जगह ही बचा था, स्कूल के पीछे कब्रिस्तान। स्कूल से लगती हुई चहारदीवारी इतनी ऊँची की साधारण कोई भी पार कर नहीं सकता है। पर साधारण कद काठी का गुड्डू था भी तो असाधारण। विक्रम मानने को तैयार नहीं था, कोई कितना भी असाधारण रहे, गुड्डू इतनी रात में अकेले कब्रिस्तान में जाने से रहा।

संजा पास से गुजर रहे अपने साथी से टार्च मांग लाया। उसने स्कूल के छत पर से ही पूरे कब्रिस्तान में टार्च की रोशनी बिखेर दी। कहीं कुछ नहीं। अब तो चोर पार्टी के भी रोंगटे खड़े हो गए।

रात के नौ बज जा रहे थे। सब को घर जाने की चिंता सता रही थी। इतना देर से घर पहुँचने पर पिट जाने की नौबत आ रही थी। लेकिन गुड्डू कहाँ था। अब टीकू का धैर्य जवाब दे दिया। उसने कबूल किया कि गुड्डू कब्रिस्तान की तरफ कूदा था। टीकू का कबूलना कि सब अनहोनी की आशंका से भर उठा। चोर पकड़ाए साथी खिलाड़ी भी गुड्डू के नहीं निकलने से सांसत में आ गए। रात गहरा तो रही थी लेकिन गुड्डू को छोड़कर कैसे चला जाए। चला भी जाए तो उसके घर में क्या जवाब दे। ज्यादा देर तक अब ठहरा भी नहीं जा सकता था। घर वाले भी चमड़ी उधेड़ने अब आते हों कि तब आते हों। अंदेशा का बादल मन में घर कर रहा था कि कब्रिस्तान का भूत ने इतनी रात को उसे वहाँ से निकलने ही न दिया हो। वहाँ कोई होता तो नजर नहीं आता, कोई खुसूर-फुसूर नहीं होती।

मुन्ना से रहा नहीं गया तो उसने आखिर कर आवाज लगाई- “गुड्डू कहाँ हो बाहर निकलो, चलो अब घर चलेंगे।” कोई हरकत नहीं देखकर भौमा ने कहा- ”तुम्हारे कहने से गुड्डू नहीं न निकलेगा। जबतक चोर का सरदार हार नहीं मानेगा तबतक तो वह कोई जनम में बाहर नहीं निकलेगा, गुड्डू क्या अदना है।”

सभी की नजरें चोरों के कप्तान संजा की ओर जा उठी और संजा की नजरें विक्रम पर। संजा को डर था कि वह हार तो मान जाए लेकिन कहीं विक्रम उससे न लड़ बैठे। विक्रम ने भी इस घड़ी समझदारी दिखाई और हार मानने पर राजी हो गया।

संजा-“आ जाओ दोस्त, गुड्डू हार मानते हैं, बाहर निकल जाओ। चलो अब घर चलेंगे। घर में सब परेशान हो रहा होगा।”

संजा के हार के कबूलनामे के साथ ही कब्रिस्तान के चिलबिली के पेड़ से धम्म गिरने की आवाज हुई। दो-चार कदमों के धप्प के बाद गुड्डू ने कब्रिस्तान की दीवार फांदते हुए विक्रम के पीछे से हाथों का घेरा बनाकर वह हो-हो कर हंसने लगा। विक्रम ने उसका हाथ झटक दिया।

विजेता गुड्डू ने चिर प्रतिद्वंदी पर कटाक्ष किया “क्या विक्रम मिठाई दुकान में कुछ खाया नहीं, कि खाली देखते रहा।”

“अच्छा तो तुम सब मिठाई दुकान में घुसकर आया, तभी तो वह हँस रहा था। हमसे बेईमानी? मैं भी बताता हूँ।” इतना कहकर विक्रम वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गया। गुड्डू सहम तो गया लेकिन सभी के साथ वह भी घर की ओर चल पड़ा।

गुड्डू ने जैसे ही घर में कदम रखा कि नजरें पिता से मिली, पिता के आवाज में सख्ती थी और हाथ में खजूर की छड़ी। पिता ने सवाल दागा- “तुम रात में कब्रिस्तान में घुसा था?”

“नहीं तो, किसने कहा?”

“किसने कहा? अभी बताते हैं किसने कहा।” सटाक..... सट्...... उसके बाद गुड्डू की चीख पुकार सारे मुहल्ले ने सुनी। उसके पिता के क्रोध से सभी पड़ोसी वाकिफ थे लिहाजा उसे बचाने कोई नहीं आया।

अगले दो दिन गुड्डू स्कूल नहीं आया। तीसरे दिन जब स्कूल आया तो विक्रम के चेहरे पर शत्रु को मजा चखाने का सुकून था। गुड्डू शांत रह जब्त कर लिया। विक्रम दारोगा का बेटा था, उसे कुछ बोलने की देरी थी कि टंठा धरा हुआ था।

बात को पखवाड़ा होने को था, गुड्डू और भौमा हवाखोरी को निकले थे। दिन-दोपहर जेठ का महीना। खटाल में हेम सागर के पेड़ पर पके आम आते-जातों को बरबस अपनी ओर खींच रहा था। पिता से मार खाए गुड्डू को ज्यादा दिन नहीं हुआ था लेकिन बच्चों की मार ज्यादा दिन कहाँ टिकती है।

“एकदम गछपकुवा आम है। एकाध गो इधर गिरता तो मजा आता।”

“आम गिरता नहीं है खाने का मन है तो जाकर तोड़ लो।” गुड्डू ने कहा।

“तोड़ लो, जानते भी हो पहरेदार कौन है? मोती सिंह है। पकड़ में आ गए तो बिना पैर तोड़े नहीं छोड़ता है।”

“सब करता है, मैं जानता हूँ उसको, पक्का भांग खाकर सोया होगा अभी। सांझ से पहले नहीं उठेगा। एक लोईया भांग खाता है वह।”

भौमा ने चार फीट की दिवाल से उचककर देखा सामने ढाको में गमछे की पगड़ी का तकिया बना मोती सिंह सर रखकर सो रहा था। दोनों ने दीवार फांदने का निश्चय किया।

गाछ के पके आम को गाछ पर खाने का मजा ही कुछ और था। शुरू में तो कनखियों से सो रहे मोती सिंह को एकाध बार देखने की ललक भी रही लेकिन मीठे आम का रस जिह्वा से लगते ही लोभ ने दोनों को धर दबोचा। पहले एक फिर दो फिर तीन आम पेड़ पर ही निपटा दिए गए। चौथे आम की गुठली भौमा के हाथों से छिटककर नीचे जमीन पर जा गिरी थी। और जो गिरते गुठली को देखने को दोनों ने नजरें नीची की तो उनके रौंगटे खड़े हो गए। मोती सिंह चार फुटा डंडा लेकर नीचे खड़ा था।

ऊपर निहारते हुए मोती सिंह ने कहा- “आराम से खाओ, दो-चार और खा लो, मेरी लाठी ने भी बहुत दिनों से किसी का गरम खून नहीं पीया है। तुम्हारी पीठ पर पड़कर आज इसकी मुद्दत की मुराद पूरी होगी।”

भौमा पेड़ पर ही चढ़े-चढ़े रोने लगा, वह डर से इतना सहम गया कि कपड़ों में ही उसका पेशाब उतर आया।

मोती सिंह को तरस आया ऐसा बिलकुल भी नहीं लगा। उसने एक हाथ की लाठी, दूसरे हाथ की हथेली पर पटकते हुए कहा- “सब नौटंकी वहीं कर लेगा, उतरते हो सीधी तरह से कि पेड़ पर ही दोनों की आरती उतारूँ?”

अब तो जान नहीं बचेगी ये सोचकर भौमा ने गुड्डू को कातर नजरों से देखा। “गुड्डू शांत और संयत था, उसने भौमा की ओर तरस खाकर कहा- “भौं तुम देख लो मेरा तो मार खाया आदत है, पंद्रह लाठी से कम नहीं मारेगा।”

भौमा की आंखों में दहशत तैर रही थी। डर से उसके होंठों में सुखकर पपड़ी पड़ रही थी। वह कुछ नहीं कह पाया। गुड्डू ने उसकी ओर फिर देखकर कहा- “भौं एक उपाय है जान बच सकती है।”

भौमा- “भैया, गुड्डू भैया जान बचा लो भैया, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूँ।” उसने आज से पहले गुड्डू को कभी भैया नहीं कहा था, लेकिन गुड्डू की बात ने भौमा को उसमें संकट मोचन के दर्शन कराए थे। जान जो न कराए।

गुड्डू- “जो मैं कहूंगा किसी से कहोगे तो नहीं?”

भौमा- “जो कह दूँ तो मेरी जीभ निकाल लेना।”

गुड्डू- “कशम खाओ।”

भौमा- “माँ कशम।”

दोनों के उतरते ही मोती ने दोनों को बालों से धर दबोचा।

गुड्डू- “हमको कुछ कर नहीं सकते हैं, नहीं तो पप्पा को कह देंगे, पप्पा पुलिस में हैं!”

मोती- “पप्पा को कह देंगे? गाछ तुम्हारा पप्पा लगाया है? ............... क्या नाम है पप्पा का?”

गुड्डू- “श्री गोपाल राय”

मोती- “गोपाल राय, सदर थाना का बड़ा बाबू?”

गुड्डू-“हाँ”

मोती- “तेरा नाम क्या है?”

गुड्डू- “विक्रम।”

मोती- “ठीक है जाइये दोबारा नहीं कीजिएगा। दारोगा जी का बेटा होकर चोरी करते हैं, आपके पिताजी से भेंट होने दीजिए, कहते हैं उनको?“

घटना के तीसरे दिन सुनने में आया कि विक्रम को पिताजी के हाथों पुष्ट मार पड़ी है। किसी ने दारोगा जी से बीच बाजार शिकायत की थी कि 'उनका बेटा विक्रम खटाल में आम चोरी कर रहा था। वो तो गनीमत है दारोगा साहब का बेटा था इसलिए बच गया। किसी दिन हाथ पैर तोड़ लेगा तो उसे दोष नहीं दे। दारोगा साहब कहते तो टोकरी भर आम उनके घर पहुँचा देते।' आखिरी बात दारोगा को हजम नहीं हुई और उसी आवेश में उसने अपने बेटे विक्रम को जम कर धो दिया। विक्रम उस दिन अपने पिता के हाथों क्यों पिटाया ये आज तक उसके लिए रहस्य बना हुआ है।

--पुरुषोत्तम

(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सुंदर लिखा है आपने 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

2 दिसम्बर 2023

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

15 सितम्बर 2023
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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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विजय

15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
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समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

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15 सितम्बर 2023
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अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

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15 सितम्बर 2023
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तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

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15 सितम्बर 2023
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एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

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15 सितम्बर 2023
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हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

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15 सितम्बर 2023
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रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

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मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

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मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

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वामिस

7 अक्टूबर 2023
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वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

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17 अक्टूबर 2023
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भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

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3 नवम्बर 2023
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मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

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8 नवम्बर 2023
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अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

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बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
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बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

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ट्रीट का बदला

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भोला

17 दिसम्बर 2023
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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"नेहा"

26 मई 2024
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा

26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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