श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-
"राग ठेकेदारी"
चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से कोई भी काम का टेंडर निकला हो, वहाँ के लोकल ठेकेदार ही हावी रहते थे और बाहरी ठेकेदार को घुसने नहीं देने के लिए विख्यात थे। टेंडर आपस में मिल-बांट कर लेने और मिलकर खा लेने के लिए कमिटी बना ली गई थी। कमिटी के लोग आपस में सैमी-डेमी करके टेंडर डालते और मैनेज कर लेते थे। किसी बाहरी का झंझट नहीं रखते थे और इस तरह आपसी रजामंदी से सब कुछ सही चल रहा था। सबको उसकी बारी और क्षमता के अनुसार काम मिल जाता उसी में न चाहे तो भी हाथ मलाई में रहता। कमिटी रखने का एक फायदा ही था कि कमिटी के डर से बाहर का कोई ठेकेदार टेंडर डालना तो दूर, टेंडर का पेपर तक नहीं खरीदता था। सरकारी कायदा अपने जगह था और कमिटी का नियम अपने जगह पर, कहना न होगा कमिटी का नियम तमाम सरकारी कायदों पर भारी पड़ता था।
लेकिन आज कमिटी की बैठक हो रही थी। और बैठक के कोलाहल से आसपास का वातावरण चरम पर था। खबर थी कि पड़ोसी जिले बाबूगंज से दो ठेकेदार टेंडर कमिटी में सेंध लगाना चाहते हैं। चंपापुर कमिटी के ठेकेदार यह सुनकर फांय-फांय कर रहे थे।
बिना दस्तावेजों वाली संवेदक समिति के अध्यक्ष शंकर शरण बैठक की अध्यक्षता ले रहे थे। समिति को बचाने और धरती पुत्रों के हितों की रक्षा की दोहरी जिम्मेवारी उनकी कंधों पर आ टिकी थी। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के ठेकेदारों में अधिकांशतः धरती पुत्र थे इसलिए कमिटी में में भी उनकी ही बहुलता थी। अल्पसंख्यकों के पास बैठक में नहीं आने का विकल्प नहीं था इसलिए वे भी मन मारकर बैठक में हाजिर थे ताकि बैठक को लोकतांत्रिक जामा पहनाया जा सके। लेकिन बैठक में होता वही था जो धरती पुत्र चाहते थे और यही वहाँ की सर्वमान्य परंपरा रही थी।
अध्यक्ष शंकर शरण – “अब तक हमारी समिति सभी के सहयोग से और बिस्वास से सब काम मिल-जुलकर करते आ रहे हैं और एक भी काम किसी बाहरी को लेने नहीं दिया है। लेकिन अभी सुनने में आया है कि बाबूगंज का ठेकेदार रूप्पन और बिनोद टेंडर डालने के लिए कुलबुला रहा है।”
भवतोष सिंह- “कुलबुलाने से क्या होगा चच्चा, ऊ क्या समझता है उसको यहाँ काम करने देंगे। उसको तो कह दिये हैं यहाँ आओगे तो उसके साथ-साथ उसके रीग के कंम्प्रेशर में भी गोली मारेंगे।”
अध्यक्ष ने इस बात पर उसको झिड़का- “सब बात में आप गोली-बंदूक क्यों करते हैं जी। बोलना-बाजना अपनी जगह है और करना अपनी जगह। समझदार होगा तब स्बयं इधर नहीं आएगा। लेकिन दूसरा का क्या कहें जब अपने में फूट पड़ी हो तो। क्या करें यही तो मुश्किल है।”
बैठक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अहाते में चल रही थी, पुराने पाईपों के जखीरे पर जिले के छंटे हुए ठेकेदार डटे हुए थे। बगल में वर्षों पहले दम तोड़ चुकी एक सरकारी जीप अस्थि-पंजर छोड़ लगभग मिट्टी हो चली थी। सड़े जीप के बोनट पर बैठकर खैनी झाड़ते हुए ठेकेदार साजन सिंह ने कहा- “करना क्या है पाँच काम है पाँच लोगों में बांट दीजिए।”
“हिसाब से जिसकी बारी नहीं पड़ती है वह भी काम चाह रहा है। श्यामजी कह रहा है कि मेंटेनेंस वाले काम में उसे घर से घाटा हुआ इसलिये उसे भी एक काम मिलना चाहिए।”
बमबम लाल ने भी इस बात पर अपनी सहमति प्रकट की- “हाँ, उसको घाटा हुआ तो है मैं भी जानता हूँ। उसको एक काम मिलना ही चाहिए।”
बमबम लाल ने वह बात कह दी जिस पर सिर फुट्टव्वल होना तय था। उसके कहने की देरी थी कि जिसको काम मिलने की बारी थी वह ठेकेदार बिदक गया- “घाटा हुआ कि मुनाफा हम देखने गए हैं। जिसके नसीब में जो था मिला। और मेंटेनेंस में काम क्या होता है जो घाटा हो गया।”
श्याम जी- “नसीब में नहीं, जो मिलना चाहिए उसी की बात हो रही है। कहीं सूप में कहीं चुप में, अब नहीं चलेगा।”
इस पर बात बढ़ी और दोनों पक्षों ने जमकर बवाल काटा। ऑफिस का कंपाउंड जल्द ही अखाड़े में तबदील हो गया। गगनचुंबी गर्जना कान फाड़ने लगी। ऑफिस से नाजिर निकलकर ठेकेदारों के बीच गया तब जाकर ठेकेदारों में मारपीट शुरू हुई। मनोनीत अध्यक्ष ने झगड़ा होने पर अपना व्याख्यान देना बंद किया और नाजिर के साथ मिलकर मार-पीट का मुआयना करने लगा। अल्पसंख्यक मौका देखते ही समिति का निर्णय को होने से पहले, उसे सर-माथे पर रखकर वहाँ से खिसक गए।
‘भागो रे, दौड़ो रे, जान बचाओ, उसको पकड़ो-इसको मारो, किसी-को नहीं छोड़ेंगे, कुछ है लाठी निकालो, लाठी नहीं मिल रही तो पाईपे लावो, घर से बंदूक लावो। अगले एक घंटे तक ये शब्द वातावरण को सुरमयी करते रहे।”
जिस ठेकेदार का शर्ट फटा था वह गिड़गिड़ाते हुए कह रहा था- ‘हम थाना जाएंगे।’ फिर शर्ट फाड़ने वाला ठेकेदार उसको गेट तक खदेड़ा। कुछ देर में माहौल ठंढा गया और फटे हुए शर्ट का और शर्ट फाड़ने वाला ठेकेदार दोनों साथ बैठकर बीयर पी रहा था और बता रहा था कि जो उसके साथ हुआ है दरअसल उन दोनों की वजह से नहीं बल्कि कार्यपालक अधिकारी की वजह से हुआ है। आखिर इतना कम काम निकालने की क्या जरूरत थी कि सारे लोग को एक-एक काम भी नहीं मिल पाये। फिर वे मिलकर देर तक कार्यपालक अधिकारी को एक से एक भद्दी गलियों का श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहे, यह जानकर कि कार्यपालक अधिकारी पिछले पंद्रह दिनों से सरकारी दौरे पर अपने घर गए हैं, उन्हें ऐसा करने में कोई खतरा महसूस नहीं हुआ। हालांकि वे जानते थे कि कार्यपालक अधिकारी रहते तो भी ऐसा करने में कुछ खास अंतर नहीं पड़ने वाला था फिर भी दिखाने के लिए यह जरूरी था कि उनके मुँह पर कुछ नहीं कहकर उनका लिहाज करते आए हैं।
लेकिन बला टली नहीं थी। सूचना में टेंडर पेपर बिकने के लिए दो दिन रखे गए थे पर जब समिति के लोग पेपर खरीदने के लिए कार्यालय पहुँचे तो पेपर बेचने वाला बाबू गायब मिला। पेपर बेचने वाला बाबू दूसरे दिन भी नहीं मिला। किसी ने यह अफवाह उड़ाई कि टेंडर पहले ही मैनेज कर लिया गया है और ऑफिस भी इसमें शामिल है। समिति को यह बात अप्रिय लगी की जो उसका काम था, वह ऑफिस कर ले रहा है। फिर ठेकेदारों की कमिटी ने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर टेंडर निरस्त करने का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया और इस बार ठेकेदार कार्यपालक अधिकारी सहित बड़ा बाबू की माँ-बहन को भी याद किया और नारे लगाए। इससे पहले की जिलाधिकारी को ज्ञापन मिलता, ठेकेदारों को बड़ा बाबू से पेपर मिल गया।
कुल पाँच कामों के लिए पाँच ठेकेदारों ने मिलकर दस निविदाएं डाली और काम अपने नाम कर लिया। बमबम महाराज ने अलबत्ता भवतोष सिंह से यह जानना जरूर चाहा कि जब उसने जल मीनार का काम पहले किया ही नहीं है तो उसे बिना अनुभव प्रमाणपत्र के काम कैसे मिल गया। भवतोष सिंह ने उसे तिरछी नजर से देखा और कहा कि भला वह ठेकेदार कैसे बन गया और यह भी कोई समस्या है। प्रमाणपत्र लगाने का मतलब उसका सत्यापन होना थोड़े ही है।
बाबूगंज का ठेकेदार निविदा डालने के दिन कहीं आस-पास तक नहीं नजर आया। काम भले सरकार का हो जान तो अपनी है, इस बात को वे बखूबी से समझते थे।
निविदा मूल्यांकन के एवज में उसका उचित-अनुचित जो भी हो मूल्य पाकर विकास शाखा ने ठेकेदारों को काम आवंटित कर दिया। जो भी हो जनता का काम जनता के पैसों से ठेकेदारों द्वारा जमीन पर उतरने की फ़िराक़ में लगा रहा। काम चुँकि जनता का था तो लोकल जनप्रतिनिधि ने साइट का औचक निरीक्षण कर लिया। और यह देखकर की सीमेंट, बालू और गिट्टी का अनुपात 1:2:3 की जगह 1:4:6 मिलाया जा रहा है, छः लोहे की जगह तीन प्लास्टिक का पाईप लगाया जा रहा है उसने अपना सिर पीट लेने का उपक्रम किया। और ठेकेदार के सामने ही उसने कार्यपालक अधिकारी को तलब कर लिया।
कार्यपालक अधिकारी ने आते ही अपने हथेलयों को अपने छााती से दो फीट आगे ले जाकर जोड़ा और कहा- “प्रणाम सर।”
जनप्रतिनिधि- “प्रणाम को भेजिए तेल पिने, ऐसे काम कराईयेगा मेरे तहसील में?? मटैरियल का क्वालिटी देखिए लोहे की जगह प्लास्टिक का पाइप, और एस्टीमेट में यही रेशीयो है सीमेंट का और ढलाई के बाद कंक्रीट में भूल से भी पानी की छींट तक जो पड़ी हो!”
कार्यपालक अधिकारी ने आँखें तरेरते हुए ठेकेदार की तरफ देखा। ठेकेदार पीछे हाथ बाँधे शांत खड़ा रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो।
जनप्रतिनिधि- “ऐसे ही दोनों एक-दूसरे को देखते रहिएगा या कुछ बोलिएगा भी। और आपके इंजीनियर कहाँ रहते हैं जी, साईट विजीट नहीं करते हैं क्या? मैं अभी सरकार को लिखता हूँ।”
कार्यपालक अधिकारी- “नहीं सर ऐसी बात नहीं है इंजीनियर को अभी रिपोर्ट बनाने में भिड़ाए हैं। जब रिपोर्ट नहीं बनाते हैं तब साईट विजीट करते हैं सर।”
जनप्रतिनिधि- “हाँ ये भी खूब कहा, आपका विभाग केवल रिर्पोट ही तो बना रहा है। पब्लिक के काम का भगवान मालिक है। बढ़िया तो है आप लोग रिपोर्ट भरिये और ठेकेदार बिल फारम भरेगा। ऐसे चलेगा देश!”
इसपर ठेकेदार ने खीसें निपोरते हुए क्षेत्रीय लहजे में उतरते हुए कहा – “हुजूर हमर मालिक भी आप औउरो भगवान भी आप। माय-बाप आपसे कोय बात छुपा नहींये हैय, कम्पीटीशन में रेट गीरवैल पड़ी गैले सर, कहांसे मैकअप होईते। दू पैसा नैय होते ते बाल -बच्चा की खायते हुजूर। डेरा पर साहेब के साथे अईबै हुजूर, सांझ के भेंट होई जैते। आपनेक समर्थक हैकिये हुजूर।”
डेरा और समर्थन का नाम सुनते ही जनप्रतिनिधि नरम पड़े और कह उठे- “कोई बात नहीं, जहाँ स्कोप है दु का चार सब कोई करता है। आप दू का दस बनाईये लेकिन पब्लिक को पानी पिला दीजिए।”
ठेकेदार- “कईसन बात कहीस है हुजूर, पब्लिक के पूरा पानी पिला दईबै हुजूर। पब्लिक पानी पीये खातिर होइहे हैं। हुजूर।”
यह सुनकर नेताजी आश्वस्त होकर अपनी फॉर्चूनर पर बैठे और उसके बेशकीमती टायर पास के नाली के कीचड़ को सिमेंट, बालू और गिट्टी के मसाले पर पैवस्त करते हुए अपनी राह चले गए।
उनके जाते ही कार्यपालक अधिकारी ने ठेकेदार की ओर मुखातिब होते हुए कहा- ”आप भी ठेकेदार जी आदमी देखकर बात नहीं करते हैं। नेताजी स्वयं घांटे हुए हैं उनके सामने रेट, कम्पीटीशन मत बोला कीजिए नहीं तो लेने का देने पड़ जाएंगे। नेताजी, नेता होने से पहले से ठेकेदारी करते थे और अच्छी तरह जानते हैं कि जिस एस्टीमेट पर आप एक जल मीनार बना रहें हैं उतने में दो जल मीनार बन सकता है।”
ठेकेदार- “तब ते अपने बिरादरी के ने छेईये हुजूर सब जानते छिये। नेताजी के डेरा पर मिठाई के डिब्बा पहुँची जैते हुजूर, सब ठीक भै जैते। चिंता के कौनो बात नहीं हिये।”
कार्यपालक अधिकारी- “ठीक है शाम को चले आईयेगा। और हाँ पेपर वगैरह सब दुरुस्त रखिएगा, इस बार योजना का जाँच बाबू कुछ ज्यादे कानूनची है। बिल पास करने में खीच-खीच करेगा।”
ठेकेदार- “मारिये गोली ससुर के नाती के। पैसा बिभाग के, काम बिभाग के, काम करे औउरू करावेवाला भी बिभाग के मने आप और हम, तब ई जाँच बाबू खीचीर-पीचीर नहीं करी ता की करी।”
गाँव में नया जल मीनार बनकर, रंग-रौगन होकर खड़ा था। जल मीनार के अहाते में बड़ा-सा टेंट लगा था, नेताजी ने अपने हाथों से जल मीनार के उद्घाट्न का फीता काटा था। टेंट में नेताजी का भाषण भी पुरजोर हुआ था। गाँववालों में उस दिन नाश्ते का पैकेट मिलने से खुशी की लहर भी दौड़ी थी। पैकेट में रसगुल्ला, टीप कचौड़ी, सिंघाड़ा, चमचम, और एक केला भी था। अब उस गाँव में उद्घाटन के तीन साल बीत रहे हैं और पब्लिक को अभी भी जल मीनार से पानी मिलने का इंतजार है।
--पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)