shabd-logo

राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024

5 बार देखा गया 5
राग ठेकेदारी.

 

चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से कोई भी काम का टेंडर निकला हो, वहाँ के लोकल ठेकेदार ही हावी रहते थे और बाहरी ठेकेदार को घुसने नहीं देने के लिए विख्यात थे। टेंडर आपस में मिल-बांट कर लेने और मिलकर खा लेने के लिए कमिटी बना ली गई थी। कमिटी के लोग आपस में सैमी-डेमी करके टेंडर डालते और मैनेज कर लेते थे। किसी बाहरी का झंझट नहीं रखते थे और इस तरह आपसी रजामंदी से सब कुछ सही चल रहा था। सबको उसकी बारी और क्षमता के अनुसार काम मिल जाता उसी में न चाहे तो भी हाथ मलाई में रहता। कमिटी रखने का एक फायदा ही था कि कमिटी के डर से बाहर का कोई ठेकेदार टेंडर डालना तो दूर, टेंडर का पेपर तक नहीं खरीदता था। सरकारी कायदा अपने जगह था और कमिटी का नियम अपने जगह पर, कहना न होगा कमिटी का नियम तमाम सरकारी कायदों पर भारी पड़ता था।  

 

लेकिन आज कमिटी की बैठक हो रही थी। और बैठक के कोलाहल से आसपास का वातावरण चरम पर था। खबर थी कि पड़ोसी जिले बाबूगंज से दो ठेकेदार टेंडर कमिटी में सेंध लगाना चाहते हैं। चंपापुर कमिटी के ठेकेदार यह सुनकर फांय-फांय कर रहे थे। 

 

बिना दस्तावेजों वाली संवेदक समिति के अध्यक्ष शंकर शरण बैठक की अध्यक्षता ले रहे थे। समिति को बचाने और भूमि पुत्रों के हितों की रक्षा की दोहरी जिम्मेवारी उनकी कंधों पर आ टिकी थी। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के ठेकेदारों में अधिकांशतः भूमि पुत्र थे इसलिए कमिटी में में भी उनकी ही बहुलता थी। अल्पसंख्यकों के पास बैठक में नहीं आने का विकल्प नहीं था इसलिए वे भी मन मारकर बैठक में हाजिर थे ताकि बैठक को लोकतांत्रिक जामा पहनाया जा सके। लेकिन बैठक होने का मतलब वही था जो भूमि पुत्र चाहते थे उसे लागू करवाना और यही अब तक की सर्वमान्य परंपरा थी।  

 

अध्यक्ष शंकर शरण – “अब तक हमारी समिति सभी के सहयोग से और बिस्वास से सब काम मिल-जुलकर करते आ रहे हैं और एक भी काम किसी बाहरी को लेने नहीं दिया है। लेकिन अभी सुनने में आया है कि बाबूगंज का ठेकेदार रूप्पन और बिनोद टेंडर डालने के लिए कुलबुला रहा है।” 

 

भवतोष सिंह- “कुलबुलाने से क्या होगा चच्चा, ऊ क्या समझता है उसको यहाँ काम करने देंगे। उसको तो कह दिये हैं यहाँ आओगे तो उसके साथ-साथ उसके रीग के कंम्प्रेशर में भी गोली मारेंगे।” 

 

अध्यक्ष ने इस बात पर उसको झिड़का- “सब बात में आप गोली-बंदूक क्यों करते हैं जी। बोलना-बाजना अपनी जगह है और करना अपनी जगह। समझदार होगा तब स्बयं इधर नहीं आएगा। लेकिन दूसरा का क्या कहें जब अपने में फूट पड़ी हो तो। क्या करें यही तो मुश्किल है।”  

 

बैठक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अहाते में चल रही थी, पुराने पाईपों के जखीरे पर जिले के छंटे हुए ठेकेदार डटे हुए थे। बगल में वर्षों पहले दम तोड़ चुकी एक सरकारी जीप अस्थि-पंजर छोड़ लगभग मिट्टी हो चली थी। सड़े जीप के बोनट पर बैठकर खैनी झाड़ते हुए ठेकेदार साजन सिंह ने कहा- “करना क्या है पाँच काम है पाँच लोगों में बांट दीजिए।” 

 

“हिसाब से जिसकी बारी नहीं पड़ती है वह भी काम चाह रहा है। श्यामजी कह रहा है कि मेंटेनेंस वाले काम में उसे घर से घाटा हुआ इसलिये उसे भी एक काम मिलना चाहिए।” 

 

बमबम लाल ने भी इस बात पर अपनी सहमति प्रकट की- “हाँ, उसको घाटा हुआ तो है मैं भी जानता हूँ। उसको एक काम मिलना ही चाहिए।” 

 

बमबम लाल ने वह बात कह दी जिस पर सिर फुट्टव्वल होना तय था। उसके कहने की देरी थी कि जिसको काम मिलने की बारी थी वह ठेकेदार बिदक गया- “घाटा हुआ कि मुनाफा हम देखने गए हैं। जिसके नसीब में जो था मिला। और मेंटेनेंस में काम क्या होता है जो घाटा हो गया।”  

 

श्याम जी- “नसीब में नहीं, जो मिलना चाहिए उसी की बात हो रही है। कहीं सूप में कहीं चुप में, अब नहीं चलेगा।”  

 

इस पर बात बढ़ी और दोनों पक्षों ने जमकर बवाल काटा। ऑफिस का कंपाउंड जल्द ही अखाड़े में तबदील हो गया। गगनचुंबी गर्जना कान फाड़ने लगी। ऑफिस से नाजिर निकलकर ठेकेदारों के बीच गया तब जाकर ठेकेदारों में मारपीट शुरू हुई। मनोनीत अध्यक्ष ने झगड़ा होने पर अपना व्याख्यान देना बंद किया और नाजिर के साथ मिलकर मार-पीट का मुआयना करने लगा। अल्पसंख्यक मौका देखते ही समिति का निर्णय को होने से पहले, उसे सर-माथे पर रखकर वहाँ से खिसक गए। 

 

‘भागो रे, दौड़ो रे, जान बचाओ, उसको पकड़ो-इसको मारो, किसी-को नहीं छोड़ेंगे, कुछ है लाठी निकालो, लाठी नहीं मिल रही तो पाईपे लावो, घर से बंदूक लावो। अगले एक घंटे तक ये शब्द वातावरण को सुरमयी करते रहे।” 

 

जिस ठेकेदार का शर्ट फटा था वह गिड़गिड़ाते हुए कह रहा था- ‘हम थाना जाएंगे।’ फिर शर्ट फाड़ने वाला ठेकेदार उसको गेट तक खदेड़ा। कुछ देर में माहौल ठंढा गया और फटे हुए शर्ट का और शर्ट फाड़ने वाला ठेकेदार दोनों साथ बैठकर बीयर पी रहा था और बता रहा था कि जो उसके साथ हुआ है दरअसल उन दोनों की वजह से नहीं बल्कि कार्यपालक अधिकारी की वजह से हुआ है। आखिर इतना कम काम निकालने की क्या जरूरत थी कि सारे लोग को एक-एक काम भी नहीं मिल पाये। फिर वे मिलकर देर तक कार्यपालक अधिकारी को एक से एक भद्दी गलियों का श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहे, यह जानकर कि कार्यपालक अधिकारी पिछले पंद्रह दिनों से सरकारी दौरे पर अपने घर गए हैं, उन्हें ऐसा करने में कोई खतरा महसूस नहीं हुआ। हालांकि वे जानते थे कि कार्यपालक अधिकारी रहते तो भी ऐसा करने में कुछ खास अंतर नहीं पड़ने वाला था फिर भी दिखाने के लिए यह जरूरी था कि उनके मुँह पर कुछ नहीं कहकर उनका लिहाज करते आए हैं। 

 

लेकिन बला टली नहीं थी। सूचना में टेंडर पेपर बिकने के लिए दो दिन रखे गए थे पर जब समिति के लोग पेपर खरीदने के लिए कार्यालय पहुँचे तो पेपर बेचने वाला बाबू गायब मिला। पेपर बेचने वाला बाबू दूसरे दिन भी नहीं मिला। किसी ने यह अफवाह उड़ाई कि टेंडर पहले ही मैनेज कर लिया गया है और ऑफिस भी इसमें शामिल है। समिति को यह बात अप्रिय लगी की जो उसका काम था, वह ऑफिस कर ले रहा है। फिर ठेकेदारों की कमिटी ने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर टेंडर निरस्त करने का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया और इस बार ठेकेदार कार्यपालक अधिकारी सहित बड़ा बाबू की माँ-बहन को भी याद किया और नारे लगाए। इससे पहले की जिलाधिकारी को ज्ञापन मिलता, ठेकेदारों को बड़ा बाबू से पेपर मिल गया। 

 

कुल पाँच कामों के लिए पाँच ठेकेदारों ने मिलकर दस निविदाएं डाली और काम अपने नाम कर लिया। बमबम महाराज ने अलबत्ता भवतोष सिंह से यह जानना जरूर चाहा कि जब उसने जल मीनार का काम पहले किया ही नहीं है तो उसे बिना अनुभव प्रमाणपत्र के काम कैसे मिल गया। भवतोष सिंह ने उसे तिरछी नजर से देखा और कहा कि भला वह ठेकेदार कैसे बन गया और यह भी कोई समस्या है। प्रमाणपत्र लगाने का मतलब उसका सत्यापन होना थोड़े ही है।  

बाबूगंज का ठेकेदार निविदा डालने के दिन कहीं आस-पास तक नहीं नजर आया। काम भले सरकार का हो जान तो अपनी है, इस बात को वे बखूबी से समझते थे। 

 

निविदा मूल्यांकन के एवज में उसका उचित-अनुचित जो भी हो मूल्य पाकर विकास शाखा ने ठेकेदारों को काम आवंटित कर दिया। जो भी हो जनता का काम जनता के पैसों से ठेकेदारों द्वारा जमीन पर उतरने की फ़िराक़ में लगा रहा। काम चुँकि जनता का था तो लोकल जनप्रतिनिधि ने साइट का औचक निरीक्षण कर लिया। और यह देखकर की सीमेंट, बालू और गिट्टी का अनुपात 1:2:3 की जगह 1:4:6 मिलाया जा रहा है, छः लोहे की जगह तीन प्लास्टिक का पाईप लगाया जा रहा है उसने अपना सिर पीट लेने का उपक्रम किया। और ठेकेदार के सामने ही उसने कार्यपालक अधिकारी को तलब कर लिया।  

कार्यपालक अधिकारी ने आते ही अपने हथेलयों को अपने छााती से दो फीट आगे ले जाकर जोड़ा और कहा- “प्रणाम सर।” 

 

जनप्रतिनिधि- “प्रणाम को भेजिए तेल पिने, ऐसे काम कराईयेगा मेरे तहसील में?? मटैरियल का क्वालिटी देखिए लोहे की जगह प्लास्टिक का पाइप, और एस्टीमेट में यही रेशीयो है सीमेंट का और ढलाई के बाद कंक्रीट में भूल से भी पानी की छींट तक जो पड़ी हो!” 

 

कार्यपालक अधिकारी ने आँखें तरेरते हुए ठेकेदार की तरफ देखा। ठेकेदार पीछे हाथ बाँधे शांत खड़ा रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो। 

 

जनप्रतिनिधि- “ऐसे ही दोनों एक-दूसरे को देखते रहिएगा या कुछ बोलिएगा भी। और आपके इंजीनियर कहाँ रहते हैं जी, साईट विजीट नहीं करते हैं क्या? मैं अभी सरकार को लिखता हूँ।” 

कार्यपालक अधिकारी- “नहीं सर ऐसी बात नहीं है इंजीनियर को अभी रिपोर्ट बनाने में भिड़ाए हैं। जब रिपोर्ट नहीं बनाते हैं तब साईट विजीट करते हैं सर।” 

 

जनप्रतिनिधि- “हाँ ये भी खूब कहा, आपका विभाग केवल रिर्पोट ही तो बना रहा है। पब्लिक के काम का भगवान मालिक है। बढ़िया तो है आप लोग रिपोर्ट भरिये और ठेकेदार बिल फारम भरेगा। ऐसे चलेगा देश!” 

 

इसपर ठेकेदार ने खीसें निपोरते हुए क्षेत्रीय लहजे में उतरते हुए कहा – “हुजूर हमर मालिक भी आप औउरो भगवान भी आप। माय-बाप आपसे कोय बात छुपा नहींये हैय, कम्पीटीशन में रेट गीरवैल पड़ी गैले सर, कहांसे मैकअप होईते। दू पैसा नैय होते ते बाल -बच्चा की खायते हुजूर। डेरा पर साहेब के साथे अईबै हुजूर, सांझ के भेंट होई जैते। आपनेक समर्थक हैकिये हुजूर।” 

 

डेरा और समर्थन का नाम सुनते ही जनप्रतिनिधि नरम पड़े और कह उठे- “कोई बात नहीं, जहाँ स्कोप है दु का चार सब कोई करता है। आप दू का दस बनाईये लेकिन पब्लिक को पानी पिला दीजिए।” 

 

ठेकेदार- “कईसन बात कहीस है हुजूर, पब्लिक के पूरा पानी पिला दईबै हुजूर। पब्लिक पानी पीये खातिर होइहे हैं। हुजूर।” 

 

यह सुनकर नेताजी आश्वस्त होकर अपनी फॉर्चूनर पर बैठे और उसके बेशकीमती टायर पास के नाली के कीचड़ को सिमेंट, बालू और गिट्टी के मसाले पर पैवस्त करते हुए अपनी राह चले गए। 

 

उनके जाते ही कार्यपालक अधिकारी ने ठेकेदार की ओर मुखातिब होते हुए कहा- ”आप भी ठेकेदार जी आदमी देखकर बात नहीं करते हैं। नेताजी स्वयं घांटे हुए हैं उनके सामने रेट, कम्पीटीशन मत बोला कीजिए नहीं तो लेने का देने पड़ जाएंगे। नेताजी, नेता होने से पहले से ठेकेदारी करते थे और अच्छी तरह जानते हैं कि जिस एस्टीमेट पर आप एक जल मीनार बना रहें हैं उतने में दो जल मीनार बन सकता है।” 

 

ठेकेदार- “तब ते अपने बिरादरी के ने छेईये हुजूर सब जानते छिये। नेताजी के डेरा पर मिठाई के डिब्बा पहुँची जैते हुजूर, सब ठीक भै जैते। चिंता के कौनो बात नहीं हिये।” 

 

कार्यपालक अधिकारी- “ठीक है शाम को चले आईयेगा। और हाँ पेपर वगैरह सब दुरुस्त रखिएगा, इस बार योजना का जाँच बाबू कुछ ज्यादे कानूनची है। बिल पास करने में खीच-खीच करेगा।” 

 

ठेकेदार- “मारिये गोली ससुर के नाती के। पैसा बिभाग के, काम बिभाग के, काम करे औउरू करावेवाला भी बिभाग के मने आप और हम, तब ई जाँच बाबू खीचीर-पीचीर नहीं करी ता की करी।”  

 

गाँव में नया जल मीनार बनकर, रंग-रौगन होकर खड़ा था। जल मीनार के अहाते में बड़ा-सा टेंट लगा था, नेताजी ने अपने हाथों से जल मीनार का उद्घाट्न किया था। टेंट में नेताजी का भाषण भी पुरजोर हुआ था। गाँववालों में उस दिन नाश्ते का पैकेट मिलने से खुशी की लहर भी दौड़ी थी। पैकेट में रसगुल्ला, टीप कचौड़ी, सिंघाड़ा, चमचम, और एक केला भी था। अब उस गाँव में उद्घाटन के तीन साल बीत रहे हैं और पब्लिक को अभी भी जल मीनार से पानी मिलने का इंतजार है। 

 

--पुरुषोत्तम 

(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)
36
रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
5.0
मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
1

प्रेम

15 सितम्बर 2023
4
2
4

प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

2

विजय

15 सितम्बर 2023
1
0
0

"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

3

समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
0
0
0

समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

4

अरवी के पत्ते

15 सितम्बर 2023
0
0
0

अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

5

तरगें

15 सितम्बर 2023
0
0
0

तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

6

एसएससी

15 सितम्बर 2023
1
1
2

एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

7

हम कब जागेंगे

15 सितम्बर 2023
1
1
1

हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

8

भिखारी

15 सितम्बर 2023
0
0
0

भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

9

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण)

15 सितम्बर 2023
0
0
0

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

10

रिक्तताएं

15 सितम्बर 2023
1
1
1

रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

11

इनिंग्स

15 सितम्बर 2023
0
0
0

इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

12

अभिमान

15 सितम्बर 2023
0
0
0

"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

13

मर्माहत

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

14

मैंने देखा है...

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

15

अव्यक्त

16 सितम्बर 2023
0
0
0

अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

16

कूड़ा भोज

27 सितम्बर 2023
0
0
0

कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

17

अहम

27 सितम्बर 2023
0
0
0

अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

18

वामिस

7 अक्टूबर 2023
0
0
0

वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

19

इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

20

भूत

17 अक्टूबर 2023
1
0
1

भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

21

मेला

3 नवम्बर 2023
1
0
0

मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

22

अमीना

8 नवम्बर 2023
1
0
1

अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

23

बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
0
0
0

बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

24

ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
1
1
1

ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

25

भोला

17 दिसम्बर 2023
0
0
0

भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

26

सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
1
1
2

सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

27

जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
0
0
0

जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

28

बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
0
0
0

बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

29

ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
0
0
0

ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

30

शक की सुई

8 फरवरी 2024
0
0
0

शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

31

प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
0
0
0

प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

32

प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
1
1
1

प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

33

मोटर

19 मार्च 2024
1
1
1

मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

34

राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
1
0
0

राग ठेकेदारी. चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से कोई भी काम का टेंडर निकला

35

प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
1
1
1

प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

36

पहली ड्यूटी

5 मई 2024
0
0
0

*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए