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एसएससी

15 सितम्बर 2023

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एसएससी.

यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा कि मैं शुरू से ही वेकेंसियों के प्रति बहुत जागरूक था, पार्ट वन के बाद से ही। जब स्नातक नहीं हुआ था तब मैट्रिक स्तरीय एलडीसी की परीक्षा में चार बार बैठ चुका था। एलडीसी कहने को तो मैट्रिक स्तरीय था पर जहाँ तक मैं समझता हूँ इसमें स्नातक से नीचे शायद ही कोई क्वालिफाई करता होगा। कारण था कि वेकेंसी ज्यादा रहती नहीं थी और स्नातक बेरोजगार ही लाखों की संख्या में थे। बहरहाल मैंने लगातार चार बार एलडीसी की प्रीलिम्स और मैन्स निकालने में सफल तो रहा लेकिन अंतिम टाइपिंग टेस्ट में छंट जाता था। दस किलो के आस-पास वजनी टाइपिंग मशीन देवघर से इलाहाबाद ले जाने में मेरे पतले हाथों की नस-नाड़ियाँ इस कदर खिंच जाती थी कि सेंटर पर मुझसे टाइप होता नहीं था।

जब स्नातक स्तरीय वेकेंसी आई तो मुहल्ले के एक मित्र के मित्र बिट्टू ने पहले ही मुझसे कह दिया कि ऐसा करो एसएससी का फार्म आ ही गया है तुम खर्चा(मिठाई) कर दो। मैंने कहा फार्म भरने के पहले? वह बोला कि तुम्हारा रिजल्ट हो जाएगा, कौन रोकेगा। उसका मुझपर विश्वास देखकर मैं चकित था।

मैं फार्म खरीद लाया और परीक्षा शुल्क के लिए आईपीओ भी। उस समय किसी स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में कोई भी काम ऑनलाइन नहीं होता था सिवाए रिजल्ट प्रकाशन के। फार्म तो मैंने भर दिया लेकिन तभी पता चला कि एसबीआई पीओ की भी वेकेंसी आई हुई है वह भी 700-800 पद के लिए। मैंने उसका फार्म भी लेकर भर दिया। एसबीआई पीओ की परीक्षा उस समय बहुत टफ मानी जाती थी। सालों तैयारी करते हुए जिसका स्टैन्डर्ड आ जाए उसमें से एकाध ही क्वालीफाई कर पाता था। लेकिन तैयारी क्या और स्टैन्डर्ड क्या। सब कोई सब फार्म भरता था जिसका जो हो जाए। एक दिक्कत थी कि मैं साधारण परिवार से था और कुछ अपना चलाने और कुछ घरका हाथ बंटाने के लिए आठ-आठ घंटे ट्यूशन पढ़ाता था। भागम-भाग से अपनी तैयारी कुछ उस तरह से हो नहीं पाती थी फिर भी जो पढ़ता ठोस और मन लगाकर।

जब परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड आया तो दोनों परीक्षाओं की डेट आश्चर्यजनक रूप से एक ही थी। पहले तो फार्म साथ-साथ भराया गया अब परीक्षाएं भी एक ही डेट पर। मैं पशोपेश में था किसे दूँ, किसे नहीं। थोड़ा ध्यान दिया तो पाया कि एसबीआई की परीक्षा फर्स्ट सिटींग में थी सेंटर था राजा राममोहन राय सेमीनरी हायर सेकेंडरी स्कुल और एसएससी की परीक्षा सेकेंड सिटिंग में, साइंस कॉलेज में। एक खजांची रोड में दूसरा अशोक राजपथ पर। दोनों आस-पास थे डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर। अब उम्मीद जगी की मैं तो दोनों परीक्षाएं दे सकता हूँ।

परीक्षा के एक दिन पहले मैंने जसीडीह में सुपर पकड़ा और देर शाम तक पटना पहुँच गया। और कंकड़बाग चला गया अपने दोस्त मुन्ना के पास। रात में वहीं ठहरा और सबेरे सात-साढ़े सात बजे खजांची रोड के लिए निकल गया। वहाँ रिर्पोटिंग टाइम थी नौ बजे। परीक्षा का समय था दस से एक बजे, तीन घंटा। साइंस काॅलेज में एसएससी की परीक्षा थी दोपहर में दो से चार बजे तक।

एसबीआई पीओ की परीक्षा का मैथ तो ठीक था पर नान-भर्बल रीजनिंग माथे के ऊपर से गुजर रहा था। परीक्षा दी और तसल्ली हो गया इसमें नहीं होगा। लेकिन सर भारी हो चुका था। मैंने बैग टांगी और बुझे मन से साइंस काॅलेज के लिए निकल गया। अशोक राजपथ पर आकर मैनें एक ग्लास मैंगों सैक पिया लेकिन कुछ खाने का मन नहीं हुआ। साइंस काॅलेज में आया तो उसी बेमन से एसएससी का एडमीट कार्ड निकाला और मैन गेट के पास नोटिस बोर्ड में अपना सिटींग पोजीशन देखा। यह सामने वाले एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में था। समय होते ही अपने रूम में जाकर बैठ गया।

इनविजीलेटर ने आंसर सीट दी और मैं रोल नंबर वगैरह भरकर क्वेश्चन पैपर के लिए बैठ गया। जब क्वेश्चन पैपर के लिए घंटी बजी तो उस समय क्या देखता हूँ कि एक लड़का बदहवासी से हॉल में घुसा और इनविजीलेटर से कुछ बातें करने लगा। उसे देखकर लगा कि कितना लापरवाह लड़का है, इतनी देर से कोई आता है। इसके बाद वह लड़का एक-एक बेंच पर रोल नंबर देखते हुए मेरे ठीक सामने आकर रुक गया। मैं अगर कुछ भूल नहीं कर रहा हूँ तो वह बातचीत कुछ इस प्रकार थीः-

लड़का- “यह सीट मेरा है।।”

मैं- “पागल है क्या जी?? मेरा सीट है देखो मेरा रोल नंबर।” मैंने टेबल पर चिपकी पर्ची उसे दिखाते हुए कहा।

लड़का- “रोल नंबर क्यों देख रहे हैं टिकट नंबर देखिए न। सिटींग तो टिकट नंबर पर होता है न!”

एसएससी की परीक्षा के एडमीट कार्ड पर दो नंबर होते थे एक था रोल नंबर जो अंत तक स्थायी बना रहता था और दूसरा टिकट नंबर जिसपर सिटींग पोजीशन निर्धारित होती थी।

अब मेरा माथा ठनका, सही तो। एक क्षण के लिए मैनें अपना रोल नंबर देखा तो वह टेबल के टिकट नंबर से मेल खा रहा था और मेरा टिकट नंबर अलग था, मतलब यह मेरा सीट था ही नहीं। फिर मेरा सीट कहाँ है? एक क्षण के लिए मुझे दिन में तारे दिख गए और मेरे सारे सपने मानो हवा हो गए। मन-ही-मन बिट्टू से कह रहा था तुम मिठाई खिलाने की बात कर रहे थे, मेरा इग्जाम तक नहीं हो पाया।

मैं- “फिर मेरा सीट कहाँ है??”

लड़का – “आप जाकर मैन गेट पर देखिए ना।”

मैन गेट मतलब बाहर............ तबतक एडमिनीस्ट्रेटीव ब्लॉक बंद कर दिया गया था जैसा कि इस तरह के इग्जाम में होता है। मैं कमरे से निकलकर बाहर की ओर भागा और बंद दरवाजे के दोनों तरफ कोई नहीं था। मैं एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे और दूसरे दरवाजे से फिर पहले दरवाजे की तरफ आया तो एक गार्ड नजर आया। मैंने उससे प्रार्थना की कि मैं गलती से इस ब्लॉक में चला आया हूँ। उसने थोड़ी निराशा से मेरी ओर देखा फिर दरवाजा खोल दिया। मैं भागा मैन गेट की ओर.... वहाँ नोटिस बोर्ड को दो बार बारीकी से देखा और अपना टिकट नंबर मिलाया। मेरा सेंटर था फिजीक्स ब्लॉक जो मैन गेट से लगभग तीन-चार सौ मीटर दूरी पर था। ये दूरी मैंने दौड़कर पूरी की। फिजीक्स ब्लॉक मेरे सामने था, मैं अपने कमरे में गया। सभी निगाहें मेरी तरफ थीं, मैं उस समय जो उस लड़के के लिए सोच रहा था वही ब्याज सहित लौटने की बारी थी। मैं दो घंटे के इग्जाम में पूरे दस मिनट लेट था।

जब परीक्षा देकर बड़ी संख्या में अभ्यर्थी प्लेट फार्म पर जमा थे तो सब अपने स्कोरिंग के बारे में बातें कर रहे थे। उनमें से अधिक-से-अधिक कोई 135 या 140 होने की कह रहा था, मेरा आंकड़े 165 बयां कर रहे थे। जब इसी परीक्षा का मैन्स लिखा तो मैंने दो घंटे का मैथ्स का पैपर एक घंटे और पांच मिनट में ही पूरा कर लिया। मैंने पहली ही प्रयास में एसएससी क्रैक कर लिया था और मेरा AIR था 53।

मैं आज जब उस घड़ी को याद करता हूँ तो सोचता हूँ, मैं गलत जगह पर बैठा था सही है, लेकिन वो लड़का उतनी देर तक कहाँ था। और क्या उससे भी वही भूल हुई थी जैसी की मुझसे। बात चाहे जो भी रही हो दोनों की गलतियों का टकराने का परिणाम सुखद रहा था।

--पुरुषोत्तम

(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सजीव लिखा है आपने 👌🙏

16 सितम्बर 2023

पुरुषोत्तम दास

पुरुषोत्तम दास

25 अक्टूबर 2023

Thank you.

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

15 सितम्बर 2023
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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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15 सितम्बर 2023
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समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

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तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

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एसएससी

15 सितम्बर 2023
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15 सितम्बर 2023
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हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

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15 सितम्बर 2023
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भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

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गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

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रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

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इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

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"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

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मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

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मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

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अव्यक्त

16 सितम्बर 2023
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अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

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27 सितम्बर 2023
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कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

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अहम

27 सितम्बर 2023
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अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

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वामिस

7 अक्टूबर 2023
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वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

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17 अक्टूबर 2023
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भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

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3 नवम्बर 2023
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मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

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8 नवम्बर 2023
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अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

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बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
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बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

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ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
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ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

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भोला

17 दिसम्बर 2023
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

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जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
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बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

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ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर

19 मार्च 2024
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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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राग ठेकेदारी. चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से कोई भी काम का टेंडर निकला

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प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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