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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023

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सन एक लाख दो हजार चौबीस. 


सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ बस चुकी है। लोगों ने विकास के क्रम का कुछ यूँ विस्तार किया है कि सभी ग्रहों को अपने जीने के अनुकूल बना लिया है। लोग-बाग अंर्तग्रहों की यात्रा कर सकते हैं। साधारण लोग एक ग्रह से दूसरे ग्रह जाने-आने के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के इस्तेमाल करते हैं; वहीं समृद्ध लोग इंटर प्लेनेट प्राइवेट कैप्सूल का। ये तरक्की सिर्फ मानवों ने नहीं की है। पशु-पक्षी भी सभ्य और एकजुट हो चुके हैं। गाय, घोड़े और बाकी सब पशु-पक्षी मोबाइल सहित दूसरे संचार के साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। धरती पर राईट टू लाइफ (जीवन जीने का अधिकार) लागू हो चुका है। मतलब अब कोई किसी को अकारण नहीं मार सकता है। सभी जीवों की अपनी आहार श्रृंखला तय कर दी गई है और जीवों के अपने-अपने प्रतिनिधि समूह हैं जो आपस में बैठक कर इन चीजों को मॉनीटर करता है। 


इकतीस दिसंबर सन एक लाख दो हजार तेईस की आखिरी रात है। अगले दिन नया साल का पहला दिन है यानी एक जनवरी एक लाख दो हजार चौबीस। पूरी गैलेक्सी चकमक-चकमक कर रही है। तारों से सतरंगी प्रकाश की छटाएँ निकाली जा रही है। लोग अपने आर्टिफीशियल स्वरूप को भेजकर एक-दूसरे को नववर्ष के संदेश दे रहे हैं। चारों तरफ खुशियाँ-ही-खुशियाँ है। लेकिन बकरी का एक सफेद मेमना तड़के से रो रहा है। कोई कुछ पूछे तो भी नहीं बता पा रहा है, सिर्फ रोते ही जा रहा है। 


पड़ोस के घोड़े ने बगल में खड़ी गाय से पूछा तो गाय ने कहा कि वह तो चुप कराते-कराते थक गयी लेकिन यह चुप होता ही नहीं और न ही कुछ बताता है। 


घोड़ा- “अरे इसका पिता कहाँ गया, उसे तो कोई बुला लाओ वही चुप कराएगा।” 


गाय- “नहीं उसका पिता भी कहीं नजर नहीं आ रहा है।” 


घोड़ा- “कल ही तो मैंने उसे पीले कुत्ते के साथ देखा था, वह तो अच्छा भला चर रहा था। कहीं कुत्ते की ही तो शरारत नहीं है। दोनों साथ ही रहते थे, कहीं उसने तो पशु कानून नहीं तोड़ा।” 


गाय- “कैसी बात करते हो वो दोनों तो अच्छे मित्र हैं। लो वो इधर आ ही रहा है।” 


कुत्ता - “अरे तुम दोनों भी आ गये चलो अच्छा हो गया। पौ फटने के समय ही मैंने मन्नू भतीजे की रोने की आवाजें सुनी। मैं दौड़कर आया तो यह इतना ही बता पाया कि पापा रात में पीछे गए और जोर की आवाज हुई। सिरोही बकरी तभी से गायब है। मैं पीछे दूर तक जाकर देखा पर मेरा यार सिरोही कहीं नजर नहीं आया। हाँ, पीछे जमीन में एक दरार जरूर पड़ी है, लगता है मानवों की आतिशबाजी गिरने से वह दरार हुई है। मुझे तो डर है कहीं सिरोही उसी दरार में तो नहीं चला गया? एक तो मन्नू की माँ बेचारी भी नहीं है। अगर ऐसा हो गया तो बेचारे के लिए गजब हो जाएगा।" 


गाय- “चलो चलकर देखते हैं।” 


घोड़ा- “ये छेद तो किसी आतिशबाजी या पिंड के गिरने से हुई तो मालूम नहीं होती है। आतिशबाजी, उल्का या कोई पिंड गिरने से होती तो गोल होती। ये तो काफी कुछ नीचे से धरती फटने जैसी लग रही है।” 


गाय- “अगर धरती फटी और उसमें सिरोही गिरी है, तो सैटेलाईट इमेज में जरूर दिख पड़ेगी।“ 


कुत्ता - “सैटेलाईट इमेज के लिए मानव विभाग को संदेश भेजना होगा, और उसे प्राप्त होने में एक सप्ताह तक लग जाएगा। सैटेलाईट विभाग का मैनेजमेंट मानवों का है। और तब तक तो गजब हो जाएगा। और एक बात है कल चकमक आतिशबाजी हुई है, चकमक में सैटेलाईट इमेंजींग डार्क हो जाती है। मेरी मानो तो कोई और उपाय करो। मैं जहाँ तक सूंघकर बता सकता हूँ कि सिरोही अंतिम बार यहीं थी।” 


घोड़ा- “फिर क्या करना चाहिए? क्या हम अब भी इतने असहाय हैं कि हाथ पर हाथ धरे उस निरीह मेमने को रोता हुआ देखता रहें। यही विपत्ति मानवों पर आयी होती तो वो आकाश-पाताल एक कर देते।” 


गाय- “संयम से काम लो। तुम बहुत जल्दी बिफर पड़ते हो। जब सिरोही अंतिम समय यहीं था तो जरूर वह इस खड्ड में ही गिरा होगा।” 


कुत्ता - “लेकिन मैं नीचे नहीं जा सकता हूँ, नहीं तो मेरी दम घूंट जाएगी।” 


घोड़ा- “तुम नहीं जा सकते हो तो कोई तो जा सकता है।” 


गाय- “तुम नहीं जा सकते हो तो मेरा एक जानी दुश्मन है कोबरा, वह तो वहाँ तक जा सकता है। लेकिन!” 


घोड़ा- “लेकिन क्या?” 


गाय- “लेकिन वह बिना मेरा दूध पीये नहीं जाएगा। वह दूध का लालची है। पिछले बार रात में उसने मेरे थन पर मुँह लगाया था और मेरी शिकायत पर उसे तीन दिनों के लिए पिंजरे में कैद रहना पड़ा। लेकिन कोई नहीं मैं सिरोही के मेमने के लिए अपना दूध उसे पीने दे दूंगा।” 


जैसा गाय ने बताया था वैसा ही हुआ। मतवाला कोबरा गाय का दूध पीने की शर्त पर खड्ड में जाने को तैयार हुआ। दूध पीकर वह सरसराकर खड्ड में उतरा और तीन-चार मीनट के बाद वापस आया। कोबरा फन में बकरी के कुछ बालों को समेट लाया था। उसके आते ही बाकी तीनों जानवर ने एक साथ पूछा- “क्या हुआ? सिरोही का पता चला?” 


“नहीं खड्ड में कोई नहीं है। लेकिन बकरी के कुछ बाल जरूर मिले हैं जिसे मैं लेता आया हूँ। ऐसा लगता है कि कोई बकरी खड्ड में जान-बूझकर गिरायी गयी और उसे वहीं से किसी ने खिच लिया है और सुरंग के निशान मिटा दिए हैं।” 


“मैं न कहता था कि दाल में जरूर कुछ काला है। लेकिन उसे सुरंग बनाकर खींच कौन सकता है?” घोड़े ने व्यग्रता से कहा। 


“कौन कर सकता है ऐसा? क्या तुम्हें किसी पर शक है?” गाय ने कुत्ते से पूछा। 


“हाँ शक क्यों नहीं है? पिछले कई दिनों से सिरोही के घर के पीछे का मनुष्य जोंक्टी उसे बड़ी शैतान नजरों से देख रहा था। वह मंगल पर सुरंग बनाने का इंजीनियर है। और ईयर इंड वैकेशन सेलेब्रेट करने यहाँ आया हुआ था।” कुत्ते ने शक की सुई की दिशा तय करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। 


कोबरा वहीं था, वह भी सहसा कह उठा- “हाँ, वह है ही शैतान, मैंने उसे कुछ भी नहीं किया था फिर भी उसने परसों ही मुझ पर कैल्शियम ऑक्सोक्लोराईड(ब्लिंचिंग) डालने की कोशिश की थी? लेकिन मैं भाग्यशाली था कि उससे बच कर निकलने में कामयाब रहा। मैं अभी उसे देखकर आता हूँ कि वह कहाँ है और क्या कर रहा है?” 


कोबरा एक बार फिर सरसराकर जोंक्टी के घर की ओर गया और क्षण भर में उसी तेजी से लौट आया- “नहीं जोंक्टी अपने घर में नहीं है उसका घर बंद पड़ा है। और उसके घर से माँस और शराब की गंध आ रही थी।” 


कुत्ते ने कहा- “मैं इन मनुष्यों की नस-नस से वाकिफ हूँ वे शराब का उपयोग कुछ हैरतअंगेज करने का जश्न मनाने के लिए करते हैं। कहीं ऐसा न हो कि अपना सिरोही जोंक्टी की इस अमानवीय लिप्सा का शिकार हो गया हो। मुझे तो डर लग रहा है। 


गाय ने कहा- “नहीं हम उस नीच को ऐसा करने नहीं देंगे। उसे उसकी किये की सजा दिलाकर छोड़ेंगे।” चारों जंतु तेजी से उसके घर की ओर भागे। 


चारों जंतु भागते हुए वहाँ पहुंचे तो देखा कि जोंक्टी अपने हाइड्रोजन कार से निकल भागने की फिराक में है। इससे पहले कि चारों उस तक पहुँच पाते जोंक्टी की हाइड्रोजन कार हवा में फर्राटा भरते हुए गायब हो गई। 


गाय- “इसका मतलब है वह हम लोगों को यहाँ आते देख रहा था। लाखों साल हो गए लेकिन मनुष्यों की धूर्तता में कोई कमी नहीं आई है। वह जरूर सोच रहा होगा कि एक बार यहाँ से निकल जाए फिर तो वह-ही-वह है।” 


कुत्ता - “हाँ, पर अब तो वह हमारी पकड़ में भी न आएगा। जरूर वह मंगल पर निकलने की कवायद में है, एक बार वह मंगल पर निकल जाए तो फिर हम चाहकर भी उसका कुछ नहीं कर पाएंगे। सात दिन के बाद उसके रक्त में सिरोही के मांस की डीएनए भी डिटेक्ट नहीं हो पाएगी।” 


गाय- “उसे मंगल पर निकलने के लिए श्री हरि कोटा कैप्सूल सेंटर तक जाना होगा। उसे वहाँ पहुंचने से पहले हमें अपना काम करना होगा।” फिर घोड़े की ओर देखते हुए- “ऐसा करो तुम मेमने की तरफ से ह्यूमैन एंड एनीमल क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करवा दो। मैं जोंक्टी के रास्ते में अड़चन डालने के लिए चीलों से बात करता हूँ।” 


कुत्ता - “लेकिन चील हमारी बात क्यों सुनने लगा?” 


गाय- “क्यों नहीं सुनेगा और अगर नहीं सुनेगा तब मैं मिनिस्ट्री ऑफ लाइवस्टोक से कहकर मृत गायों की सप्लाई चीलों को करने से रोक लगवा दूंगा। पशु-पक्षी और मनुष्य सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। बिना एक दूसरे के कोई नहीं चल सकता है।” 


इधर जोंक्टी श्री हरि कोटा पहुंचने के लिए तीव्र गति से अपनी हाइड्रोजन कार हवा में दौड़ा रहा था कि तभी चीलों का विशाल हुजूम उसकी कार के आगे मंडराने लगा। अब तक तो उसका रास्ता साफ था पर अचानक आई बला से वह भौंचक्का रह गया। 


श्री हरिकोटा अब कुछ ही दूर रह गया था। उसकी बैचेनी बढ़ने लगी। कोई और दिन होता तो वह पक्षी विभाग से शिकायत कर इन चील समूहों को दंडित करवा देता। लेकिन आज तो वह खुद दंड से बचने के लिए भाग रहा था। उसने कोई उपाय न देख जमीनी रास्ते से ही निकल भागने के लिए अपनी कार हाइवे पर उतार ली। यहाँ चीलों का संकट नहीं था। 


वह कुछ ही दूर चला था कि अचानक से हाइवे पर हिरणों, बंदरों और जिराफों का झुंड से उसका सामना होने लगा। हाइवे पर अचानक से इतने जानवरों का आ जाना अनहोनी घटना थी। जिस किसी जानवर समूह को सिरोही के मेमने के साथ हुए इस निर्मम अत्याचार का पता चला वह उसके साथ खड़ा होने के लिए उद्वेलित हो उठा। लेकिन पशु-पक्षी कब तक रास्ता यूं ही अवरूद्ध करते। स्पेशल टास्क फोर्स ने हिरणों, बंदरों और जिराफों के नेताओं को सिग्नल भेजे और उन्हें रास्ते से हटना पड़ा। 


जोंक्टी ने अपनी कार पार्किंग के दरवाजे पर छोड़कर ही कैप्सूल पोर्ट की ओर भागा। लेकिन सुरक्षा चेक के पास खड़े ऑपरेशन विंग ने उसे पकड़ कर डिटेन कर लिया। उसने मंगल पर उसकी तत्काल जरूरत को हवाला देते हुए निकलने की अर्जी लगाई। लेकिन सुरक्षा बलों ने उसका ब्लड सैंपल कलेक्ट किया और रिपोर्ट आने तक कहीं निकलने पर रोक लगा दी। लेकिन अपनी करनी के डर से जोंक्टी का चेहरा पहले ही पानी-पानी हो रहा था। 


ब्लड सैंपल की जांच में जोंक्टी के शरीर में सिरोही के डीएनए होने की पुष्टि हो गई थी। वह कड़ी सजा के डर से थर-थर काँप रहा था। उसने अपनी सजा कम करने के लिए बड़े वकीलों की फौज खड़ी कर दी। मेमने की ओर से उसका केस भालू ने अपने हाथ में लिया था। ब्लड सैंपल में पुष्टि होने के बाद जोंक्टी को लंबी सजा होना तय लग रहा था। लिहाजा जोंक्टी के वकीलों ने वर्चुअल कोर्ट में बकरी को मनुष्यों की आहार श्रृंखला में होने की दलीलें दी और एक नई बहस की शुरूआत कर दी। 


जोंक्टी के वकील कीड़ा कुमार ने अपने मुवक्किल के पक्ष में तर्क दिया- “मॉय लार्ड, जोंक्टी से भूल हुई है, उसके चलते मेमने ने अपना पिता खो दिया। लेकिन ये हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पूर्वजों के समय में भी मनुष्य बकरी का मांस, उसे काट कर खाते थे। और दूसरे ग्रह मंगल पर रहकर काम करते-करते जोंक्टी को आहार श्रृंखला का ध्यान नहीं रह पाना मानवीय भूल मात्र है। इसलिए जोंक्टी को कम-से-कम सजा देने की हमारी प्रार्थना स्वीकार की जाए।” 


मेमने के वकील भालू ने धैर्य से जवाब रखा- “हमारे काबिल दोस्त यह भूल जाते हैं कि उस समय भी जब बकरी को काट खाया जाता था तो सिर्फ इसलिए कि यह निरीह थे और इनके पक्ष में कठोर कानून नहीं था। और आज उसी कानून को दरकिनार कर फिर से वही क्रूर व्यवस्था कायम करने की कवायद की जा रही है। उस समय लोग शेर को क्यों नहीं खा लेते थे। मनुष्य बड़ी स्वार्थी और भीरु कौम रही है। एक तो शेर खतरनाक दूसरे उसपर इसका मांस स्वादिष्ट नहीं, तो ये इन मानवों से हजम नहीं हो पाता था। बकरी जैसों को मारते थे तो सिर्फ स्वाद के लिए। और पूर्वजों के खाने की बात भी बेईमानी है। सच तो यह है कि मानव की मूल आहार श्रृंखला में मांस भक्षण कभी रहा ही नहीं है। मांस खाने के लिए कुदरत ने इन्हें प्राकृतिक मांसाहारियों की तरह न पंजे दिए हैं, न नाखून, न दांत और न ही आंतें। अगर बकरी इनकी आहार श्रृंखला थी तो बाकी मांसाहारियोंं की तरह यह उन्हें कच्चा ही क्यों नहीं खा जाते थे। इन्हें बकरी को काटने, खाल उतारने और फिर पकाने के क्रम से क्यों गुजरना पड़ता था।” 


वकील किड़ा कुमार ने तर्क दिया- “अगर यह जो कह रहे हैं वह सच है तो फिर हमारे काबिल दोस्त भालू पत्ती और मछलियाँ दोनों एक साथ कैसे खा लेता है, ये खुद ही इस बात की गवाह है कि कुछ जीवों के साथ मनुष्य भी सर्वाहारी हो सकता है।” 


वकील भालू- “तो महोदय कभी-कभी आप भी मेरी तरह जिंदा मछलियों को प्यार से निगल लिया कीजिए।” कोर्ट रूम की दीर्घा में हल्की मुस्कान दौड़ गई। सुनवाई के बाद आर्टिफिशीयल इन्टलींजेंस जस्टिस ने जिरह के संवेदनशील पहलुओं की जांच तक फैसला सुरक्षित कर लिया। सारी कार्रवाई वर्चुअल होने के बाद फैसले की घड़ी में एआई जज के सामने सबकी भौतिक उपस्थिति जरूरी थी। किसी तरह के पक्षपात की बात की संभावना नहीं रहने देने के लिए न्याय का विधान किसी एक जीव के हाथ में न देकर तकनीक के हाथों में दे दिया था। 


एआई ने डिफेंस के तर्क को खंगालने के लिए लाखों सालों के रिसर्च और डाटाबेस को खंगाल डाला। और आज फैसले की घड़ी थी। “यह बात सही है कि आदिम जमाने में लोग कंद मूल के साथ-साथ जानवरों को भी मारकर पकाकर खा जाते थे। लेकिन क्रमिक विकास के क्रम में मनुष्य शाकाहारी थे, इसीलिए मनुष्य शारीरिक संरचना से शाकाहारी है। डार्विन ने जो विकासवादी सिद्धांत दिया वह आज भी कायम है। मनुष्यों के पूर्वज चिंपैंजी थी, जो एक शाकाहारी जंतु है। मनुष्य अपने जीवन काल की अंतिम अवस्था या कमजोर रहने पर मांस का सेवन नहीं कर सकते हैं। उस समय वह अपने संरचना के अनुरूप शाकाहार पर आ जाता है पर मांसहारी किसी भी अवस्था में मांस भक्षण ही कर सकता है।” 


“अतः इस आशय को बल देना कि बकरी या कोई अन्य जंतु मानव की आहार श्रृंखला में आता है, व्यभिचार को बढ़ावा देना है। चूंकि चेतना के तल पर मनुष्य अन्य जीवों से काफी आगे है, अतः पूरे दुनिया के संरक्षण के जिम्मेदारी उसकी बनती है न कि अपनी तुच्छता से ग्रसित होकर किसी के प्रति हिंसा करने और उसे जायज ठहराने की। किसी एक जीव जो विकास की अवस्था में बाकियों से बहुत आगे निकल गया है, कि लिप्सा के लिए दूसरे की बलि नहीं दी जा सकती है। जोंक्टी को अपने किये की सजा को भुगतना होगा। केवल शौक के लिए किसी जीव की हत्या मानव हत्या के सदृश है।” जोंक्टी को आजीवन कारावास की सजा दी गई और गाय, घोड़े और कुत्ते को मेमने को न्याय दिलाने में मदद करने के लिए सम्मानित किया गया। 


--पुरुषोत्तम 


(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।) 


  

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने सर 👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏

21 दिसम्बर 2023

पुरुषोत्तम दास

पुरुषोत्तम दास

21 दिसम्बर 2023

धन्यवाद ... 🙏🙏 मेरी पाठकों की संख्या बहुत सिमित क्यों है।

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

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जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
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बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

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ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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मोटर

19 मार्च 2024
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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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"नेहा"

26 मई 2024
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा

26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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