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मर्माहत

16 सितम्बर 2023

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मर्माहत.


 


सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानों से लगा लिया था दूसरी तरफ एक माँ का हताशा और करुणा का स्वर था. सुनकर  सूची कि नींद कि नींद जाती रही।... अतिषी मौसी का का चीत्कार उसे भीतर से झकझोर दिया था... ‘‘सूची देखो न बऊआ को सांप काट लिया है किसीको भेजो न उसे कहीं ले जाएगा‘‘ 


 


‘‘तुम कहाँ हो बऊआ कहाँ है‘‘ 


 


 ‘‘मैं तो उड़ीसा में हूँ बऊआ पाकुड़ में है... सरोज के पास ही है भेजो न किसी को जल्दी‘‘ 


 


सरोज अतिषी मौसी का भाई था और सूची के घर से छः-सात किलोमीटर दूर शहर के छोर पर रहता था। 


 


सूची ने अपने पिता को जगाया और पिता ने सरोज को फोन लगा दिया था ‘‘क्या हुआ सरोज कहाँ है अभी?‘‘ 


 


‘‘बऊआ के साथ सोया था उसको सांप काट लिया है‘‘ फोन कट चूका था।  


 


सूची के पिताजी अपने बेटे के साथ मोटर साइकिल से सरोज के घर के लिए निकल गए। वहाँ सरोज या उसका भांजा नहीं था। आस-पड़ोस ने पिताजी को रात में घटी दुखद घटना के बारे में बताया। अतिषी अपने पति और तीन बच्चों के साथ के साथ मयूरभंज जिले में रहती थी। उसके पति खदान में काम करते थे। बच्चों की महीने भर की गरमी की छुट्टी हो गई थी। अतिषी दस दिनों के लिए बच्चों के साथ अपने मायके आ गई। और जो लौटने को हुई तो बच्चों ने छुट्टियाँ खत्म होने तक नहीं जाने और मामा घर में ही रुकने की जीद ठान ली। चूंकि अतिषी को पति के काम से जाना जरूरी हो गया तो वह बच्चों को वहीं छोड़कर मयूरभंज चली गई।  


 


उस दिन रोज की तरह बच्चे और उसका मामा सरोज खा पीकर सो गए। सरोज दिहाड़ी मजदूर था और यहाँ अपने लायक दो रूम का सस्ता-सुविस्ता डेरा खोज लिया था। शहर के किनारे का यह इलाका जंगली झुरमुटों-झाड़ियों से भरा था। दोनों रूम में बेड रहते हुए भी बच्चे अलग रूम में सोना नहीं चाहते थे। सभी एक ही कमरे में सो गए। दो पलंग पर सो गए और एक बच्चा मामा के साथ नीचे चटाई पर बेड डालकर सो गया था। आखिर बच्चे थे, लेकिन उस रोज यही गलती उनपर गाज बनकर गिरने वाली थी। साढ़े ग्यारह बज रहा होगा तो अचानक मामा के साथ जमीन पर सोया बऊआ चीखा...मामा....मामा....सांप काट लिया। सरोज हड़बड़ाकर उठा और देखा करैत था।  


 


करैत पूर्वी भारत में घरेलू जगहों जैसे कबाड़, खंडहर, खपड़ा घर की चाली आदि पर जगह जमा लेता है। अन्य दूसरे सांपों की तरह यह मनुष्यों पर कभी हमला नहीं करता है वरना डरता है। यह सांप हमला तभी करता है जब इसको छेड़ा जाए या सांप को कोई असुरक्षा महसूस हो, जैसे किसी का पैर पड़ जाने पर या सोते हुए दब जाने पर। यह जीव गर्मी के मौसम में ज्यादा सक्रिय होता है और इसका दंश बेहद जहरीला होता है। इसके काटे का समय पर (दो-से चार घंट में) इलाज नहीं मिलने पर परिणाम घातक हो सकता है।  


 


सरोज ने कोने से लाठी उठाई और चटाई के नीचे छुप रहे सांप पर कई लाठियां बरसाई, सांप वहीं ढेर हो गया। लेकिन संकट जस-का-तस था। उसने पलटकर पुछा- “बाबू, तुमको कुछ लग तो नहीं रहा है।” “नहीं सिर्फ लहर रहा है।” “कब से पंद्रह मिनट से।” “पहले क्यों नहीं बताया” बच्चा ज्यादा कुछ नहीं बता सका। 


 


 दिन भर के थके हारे सरोज को यह सुनकर हजारों वाट का करेंट सा लगा। वह कपड़े जैसे-तैसे पहने घर से बाहर निकला और अगल-बगल के दरवाजों पर कांपते हाथों से दस्तक देना शुरू किया। उस जगह पर दस-बारह घर रहे होंगे, सभी पारंपरिक और रोज कमाने खाने वाले लोग थे। कुछ ने दरवाजा नहीं खोला और कुछ बाहर आए। घटना के बारे में जानकर सभी व्यथित तो हुए लेकिन इस परिस्थिति में क्या हो इसका उन्हें ज्ञान न था। एक ने कहा जख्म के आगे रस्सी टाइट करके बांध दो और जख्म को चीरकर जहर निकाल दो। दूसरे ने कहा जल्दी हाॅस्पिटल ले जाओ। सरोज भागा किसी के घर मोटर साइकिल मिल जाए। पड़ोस का लखन सबेरे ही अपनी मोटर साइकिल से रिश्तेदार के यहाँ चला गया था। अनवर का मोपेड खराब था। और दस-बारह घर के मोहल्ले में किसी और के पास कोई गाड़ी नहीं था। हाॅस्पिटल जाने के लिए उसे करीब दो किलोमीटर चलकर मेन रोड पर जाना पड़ता और वहां से हाॅस्पिटल पांच किलोमीटर था। रोड तक वह चला भी जाए तो इस समय बीच रात को रोड से कोई गाड़ी-घोड़ा मिलेगा यह वह सोंच ही रहा था कि  इतने में सफेद मूँछ-दाढ़ी वाले बगल गीर दादू निकले और सलाह दिए कि थोड़ी दूर पर पोखर के आगे दूबे बाबा का मंदिर है वहीं पुजारी  भी रहता है। उन्हीं के पास ले जाए वह दूबे बाबा के मंदिर में ले जाकर नीर पढ़कर देगा। बच्चा है कुछ नहीं होगा बाबा की कृपा से सब जहर-माहुर उतर जाता है। वह दर्जनों लोगों को  नीर पीकर ठीक होते देखते आया है। बाकी लोगों ने भी कहना शुरू किया कि हाँ वही ठीक रहेगा। रात को हाॅस्पिटल में डाक्टर होगा कि नहीं होगा भी तब सुनेगा कि नहीं। मरता क्या न करता वह बच्चे को गोद में लिया और उसके साथ का एक पड़ोसी को लेकर पुजारी के घर के लिए निकल गया। अब तक घटना को घंटा भर से ज्यादा बीत चुका था। 


 


दोनों लपकते हुए पुजारी के घर पहुंचे और दरवाजा पीटना शुरू किया पहले तो बूढ़ी निकली सवालों की झड़ी लगा दी,  कौन है? कहाँ का है? क्या हुआ? क्या था? आदि-आदि। सब तसदीक करने पर वह बूढ़े पुजारी को उठाकर लाई। पुजारी वृद्ध था लेकिन या तो नशे में था या लड़खड़ाता था। लेकिन पुजारी लड़खड़ाते हुए कह गया कि हर बार यह काम करता जरूरी नहीं है। लेकिन वह उसके पास आया है और अगर कहेगा तो मंदिर ले जाएगा। और बाकी सब भगवान के हाथ में है। सरोज इतना ही कह पाया- “ठीक है चलिए।” 


घटना को घटे दो घंटे हो चला था। 


 


 पुजारी के घर के पीछे चार-पाँच खेत पार कर दूबे बाबा का मंदिर था। रात में झींगुरों की आवाजें आ रही थी। दूबे बाबा के मंदिर के बाहर चबूतरा बना हुआ था। पुजारी ने बच्चे को कमीज खोलकर चबूतरे पर लिटाने को कहा और कहा कि मंदिर के कुएँ से पानी निकालकर बच्चे पर उढ़ेलता रहे। बच्चा गरहोश हो रहा था। सरोज ने बच्चे को दो तीन बार पुकारा- “बाबू .....बाबू .....बाबू .......। बच्चे ने कोई आवाज नहीं की। सरोज जितनी तेजी से हो सकता था कुएँ के पास गया और बाल्टी से पानी खिच-खिचकर लिटाये गए बाबू पर डालता रहा। पुजारी मंदिर से नीर लेकर निकला और कुछ बूँदें बच्चे के शरीर पर छिड़क दिया और कुछ बूँदें आचमनी से बच्चे के मुख में भी डाल दिया। बच्चे में कुछ हलचल हुई वह इतना ही कह पाया मामू पानी...इसके बाद उसके मुंह से झाग की एक धार निकल गई। अब तो सरोज का धैर्य भी जवाब दे रहा था। घटना के बाद तीसरा घंटा निकल रहा था। 


 


 तभी कुछ फर्लांग पर गांव के सड़क पर एक रोशनी सी आती हुई दिखाई दिया। सरोज उसकी ओर भागा....वह ऑटो थी और उसपर सरोज का दोस्त मिर्धा भी सवार था। मिर्धा घटना की जानकारी पाकर ऑटो लेकर मंदिर की ओर ही आ रहा था। मिर्धा और सरोज दोनों बच्चे की ओर दौड़े और उसे उठाकर ऑटो पर लिटाया और ऑटो हाॅस्पिटल की ओर चल पड़ी। गाँव के उबड़-खाबड़ रास्ते को पार करते हुए आटो मैन रोड पर आई। उबड़-खाबड़ में दो बार रुकने पर भी ऑटो लगभग तीस से चालीस मिनट में हाॅस्पिटल घुस गई।  


 


 कर्तव्यपरायण डाॅक्टर ओपीडी में आँख बंद किए हुए अपनी कुर्सी पर बैठा था। सभी भागे आए। सरोज ने सामने की बेड पर आधा नंगे और आधा भीगे बाबू को लिटा दिया। डाॅक्टर के द्वारा क्या हुआ पूछने पर सरोज ने जैसे ही सारी बात और घटना का समय बताया, कि डाॅक्टर एक पल के लिए खिड़की की ओर देखा और बुरी तरह बिफर पड़ा - “ हे ईश्वर कब बुद्धि देगा इन सब जाहिल को।” फिर सरोज की ओर मुड़कर चीख उठा - “कैसा बज्र है जी तुम....जरा भी अक्ल नहीं है तुमको...तुम लोग जरा-सा भी नहीं सोचते हो। ईश्वर हमें ढांढस देता है, धीरज देता है, भरोसा देता है....वह दवाई और उपचार नहीं दे सकता है।” सरोज काठ रह गया।  


 


 डाॅक्टर तेजी से उठा बच्चे की नब्ज टटोली, जख्म देखा और दौड़ गया एंटी वेनम प्रीजरवेशन रूम की ओर। पाँच मिनट के अंदर एंटी वेनम इंजेक्ट कर दिया गया। पर बच्चा अपने जीवन की जंग हार गया था। 


 


 वार्ड के बाहर दो नर्स आपस में बातें कर रही थी- “गाँव-देहात में प्रायः सब मूर्ख ही होता है....झाड़-फुँक में समय पार कर लेता है तब हॉस्पिटल लेकर आता है। मेरे मुहल्ले में एक दूधवाला को ऐसे ही सांप डंसा तो वह पुजारी के पास जाके बोला कि पुजारी जी वह भगवान का बहुत सेवा किया है....उसको कुछ नहीं होगा...केवल उसको दुबे बाबा का नीर दे दे। वह नहीं बचा। उसकी पत्नी का हादसे के बाद मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वह विक्षिप्त होकर अब सारे शहर में भटकती फिरती है।” 


 


बच्चे का क्या हुआ यह छोड़ ही दें, परिणाम हृदयविदारक होना ही था। बहरहाल ये एक कहानी है और आपको शिक्षित करने के लिए लिखी गई है। भारत में सांपों की 400 के आस-पास प्रजातियाँ है और उसमें से सिर्फ चार जहरीली होती है। अगर किसी को बिना जहर के सांप का दंश हुआ है जो कि प्रायः है तो आप ऐसे आदमी को कहीं ले जाए उसे कोई नुकसान नहीं होगा। सर्पदंश के बाद खुद अनुमान करना कि सांप जहरीला था अथवा नहीं, भी जोखिम कर सकता है। इलाज केवल यही है कि सर्पदंश के बाद आदमी को निष्क्रिय कर देना चाहिए यानी उसे लिटा देना चाहिए और जितना जल्दी हो सके मरीज को जिला अस्पताल पहुँचा देना चाहिए। सांप के जहर का एकमात्र इलाज एंटी वेनम इंजेक्शन होता है जो आमतौर पर जिला अस्पताल में सरकार द्वारा उपलब्ध रहता है। 


 


-पुरुषोत्तम 


(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है) 


  

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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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