हम कब जागेंगे.
हम न उस काल में हो सके
न वो इस काल को जी सके
हम तुम हैं अभी साथ में
यही तो सच है।
तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ
यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा
या फिर हम कब जागेंगे...
इतिहास हो जाएंगे तब...
अनवरत बहती हवाएं
कलकल करती धाराएँ
जीवन को तृप्त करती
पेड़ पौधे फूल और मीठे फ़ल
सभी और खिलती हरियाली
शीतल मन और सरल हृदय
या फिर मलाल रह जाएगा
या फिर हम कब जागेंगे...
इतिहास हो जाएंगे तब...
मित्र परिजन खुशी आएंगे
चुटकुले और गप्पें
कहकहे लगाते, तालियाँ बजाते
गाने गाते, मजाक उड़ाते
पर साथ में हाथ बटाते
या फिर टाँगे खींचते गिरते गिराते
या फिर हम कब जागेंगे...
इतिहास हो जाएंगे तब...
पड़ोसियों की चुहल,
मस्ती थोड़ी मसखरी
थोड़ी बड़ाई थोड़ी चुगली
कभी मेला संग कभी आंख मिचोली
कभी चीनी कभी रसमलाई
या फिर लड़ाई गाली
या फिर हम कब जागेंगे...
इतिहास हो जाएंगे तब...
-पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)