इनिंग्स.
इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीसीए(पटियाला क्रिकेट अकादमी) के मैदान पर दर्शकों और टीम स्टाॅफ का दिल जीत लिया था। खिलाड़ियों का मन छोटा न हो यह समझकर कोच अवध लाला ने पटियाला के मशहूर पैराडाइज रेस्तरां में लड़कियों के लिए पार्टी रखी थी और मैच खत्म होते ही रेस्तरां के लिए स्लाॅट बुक कर लिया था। अगर टूर्नामेंट सफल रहता तो भी कोच ने उसी रेस्तरां में सरप्राईज पार्टी देने की सोची थी। रेस्तरां पहुंचकर अवध लाला रिसेप्सन पर एक जरूरी काॅल के लिए रुक गए और टीम को लाउंज में जाने का इशारा किया।
काॅल खत्म कर जब अवध लाला लाउंज में पहुँचे तो देखा उनकी टेबुल पर सफेद जर्सी में बारह-पंद्रह की संख्या में शोहदों ने कब्जा किया हुआ है और टेबुल के बीचोबीच बड़ी-सी चमचमाती सुनहरी ट्राफी खड़ी है। शोहदे अलग रंग में थे, उनके शोर और ठहाकों से पूरा लाउंज गुंज रहा था। यह कपूरथला किंग्स की टीम थी जिसने उसी रोज भटिंडा इलेवन को सात विकेट से रौंदकर शेरे पंजाब ट्राफी अपने नाम की थी और टीम वीनींग सेलेब्रेशन के लिए अभी पैराडाइज के लाउंज में थी। वेटर ने कई बार जर्सीधारी खिलाड़ियों को पहले की बुकिंग का हवाला दिया और टेबुल खाली कर देने का आग्रह किया लेकिन शोहदों पर कोई असर नहीं हुआ। उलटे उन्होंने टेबुल खाली करने कहने वाले वेटर को ही डांटकर भगा दिया। लड़कियाँ चुपचाप किनारे खड़ी थी।
अवध लाला ने अपने कप्तान आशा सचदेव ने पूछा- “आशा क्या बात है, लड़कियाँ अब तक खड़ी क्यों हैं??”
“सर कपूरथला किंग्स की टीम शेरे पंजाब जीतकर सेलेब्रेशन के लिए आई है और हमारी टेबुल पर जम गई है। वेटर ने कहा भी पर उठने को तैयार नहीं है।” आशा ने जवाब दिया। इतने में वेटर ने मैनेजर को बुला लिया था।
मैनेजर कपूरथला किंग्स से- “देखिए, यह टेबुल पहले से बुक है, कृपया आप यह टेबुल खाली कर दें।”
एक शोहदा - “खाली कर दें...... क्यों खाली कर दें............ हम लोग पहले से बैठे हैं और बुक है तो क्या उन्हें कहीं दूसरी टेबुल दे दो।”
मैनेजर अड़ा- “हम ऐसा नहीं कर सकते। बुकिंग कमिटमेंट होती है हमारे कस्टमर्स के साथ। हम उसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। और वैसे भी यह हमारा प्राइम टाइम है। आप चाहें तो प्रतीक्षा कर सकते हैं।”
दूसरे शोहदे इस बार ऊँची आवाज में - “क्या प्राइम टाइम व्राइम टाइम जी......हम खिलाड़ी हैं.... और देखते नहीं आप शेरे पंजाब जीत कर और सीधे मिनिस्टर के हाथों ट्राफी लेकर आए हैं।”
मैनेजर ने विनम्रता छोड़ी और तल्ख होते हुए कहा- “सर, आप बात समझ नहीं रहे। इस टेबुल की बुकिंग की जा चुकी है और जिसके लिए बुकिंग हो रखी है वो सब भी वूमन प्लेयर हैं और बहुत धैर्य के साथ प्रतीक्षा कर रही हैं।”
“अच्छा वूमन प्लेयर, तभी तरफदारी हो रही है....... कौन देखता है वूमन प्लेयर्स को हाँ...... खेल की रौनक हमसे है और लोग हमारे मैच देखने उमड़ते हैं वूमन प्लेयर्स को नहीं।”
कोच अवध लाला अब तक शांत थे लेकिन उस शोहदे की बात ने अवध लाला के धैर्य को आपे से बाहर कर दिया।
“क्या बोला.... क्या बोला रे तुम..... कौन देखता है वूमन प्लेयर्स का मैच....... चैंपियन समझता है अपने आपको....... बहुत दम है तुझमें, हरा के दिखा सकता है वूमन को........ चल हरा के दिखा ये मेरी लड़कियाँ है इवनिंग काॅलेज की टीम मैं इनका कोच हूँ........... तुम अगर हरा दो तो मैं तुम्हें पचास हजार रुपये देता हूँ........... और अगर लड़कियाँ तुमको हरा देती है तो तुम क्या करोगे बताओ............. बताओ अभी के अभी??” कोच का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
जवाब मिला तो लड़कों की खुमारी टूटी और लगे बंगले झांकने। मामला खटाई में पड़ते देख कपूरथला किंग्स का कप्तान बीच बचाव में आगे आया- “साॅरी सर, लड़कों से मीस्स हुई है आपलोग बैठीए हम कहीं ओर चले जाते हैं।”
“साॅरी को भेजो तेल लेने..... लड़कियाँ इतनी देर से खड़ी थी और तुम सब शेर बन रहे थे मुकाबले की बात आते ही भीगी बिल्ली होने लगे.......... शेरे पंजाब लिए हो न जी, तुम्हारी ट्राफी का रैपर भी नहीं खुला है ठीक से अभी....... ट्राफी के साथ पचास हजार रुपये भी लेकर जाओ चलो हराओ लड़कियों को, अगले दो दिन तक भी हमारी बोर्डिंग है..... चलो मैं देखूँ कि लड़कियों के सामने तुम्हारी बल्ले और गेंद चलते हैं कि केवल जबान ही चलती है।”
आशा सचदेव- “जाने देते हैं न सर।” कोच ने अपने कप्तान को हाथ दिखाया, कप्तान चुप हो गई।
कपूरथला किंग्स का कप्तानः “सर लड़कियों के साथ कैसे खेल सकते हैं हम??”
अवध लाला- “लड़कियों को बेचारी बता सकते हो पर खेल नहीं सकते तुम हाँ। तुम पहले ये बताओ कि अगर लड़कियाँ तुमसे जीत गई तो तुम क्या हारोगे। चलो तुम सब नहीं बता सकते हो तो मैं बता देता हूँ अगर तुम लड़कियों से हार गए तो वे एक रुपया भी नहीं लेंगी तुमसे.......... तुम्हारी यह ट्राफी लड़कियों की, मंजूर है।”
कपूरथला की टीम को यहाँ से पीछे जाने पर रही-सही प्रतिष्ठा जाने का डर हो गया। भीतर ही भीतर एक गुमान भी था, इसमें खोने को क्या है कुछ नहीं। कप्तान ने कहा- “ठीक है सर आप इनसिस्ट करते हैं तो परसों फ्रेंडशीप मैच खेल लेते हैं आपकी टीम से।”
“फ्रेंडशीप नहीं बच्चू काबिलीयत से, नहीं तो अपनी ट्राफी से हाथ धो बैठोगे।”
कप्तान आशा सचदेव कोच से परिचित थी फिर भी रात्रि भोजन के बाद अपना संशय निकालने से खुद को नहीं रोक पायीं- “सर, हमने लड़कों से कभी नहीं खेली हैं और खेल भी लें तो वह सीनियर टीम है, लड़कियाँ बिखर जाएंगी।”
कोच मिनट भर मौन रहे, फिर कहा- “देखो लड़कियों जिंदगी में हर लड़ाई सिर्फ जीतने के लिए नहीं लड़ी जाती।” कोच की बात कप्तान के जेहन में आने लगी थी।
दूसरी सुबह लड़कियाँ पूरी शिद्दत से सारा दिन प्रैक्टिस करती रही। कोच लाला अवध सारा दिन गायब रहे।
आज का दिन खास होनेवाला था.....अपने तरह के अनूठे मैच का दिन। कप्तान आशा सचदेव अपने वर्क आउट के बाद कोच लाला अवध के पास गई। लाला अपने पैर सेंटर टेबुल पर टिका चाय का मग दोनों हाथों से पकड़े हुए थे।
आशा- “गुड मार्निंग सर। सर आप कल सारा दिन नहीं थे।”
कोच- “ये बताओ कल की प्रैक्टिस कैसी रही।”
आशा- “अच्छी रही सर। लड़कियों ने खूब पसीना बहाया सर।”
कोच- “वेरी गूड। कल मैं पीसीए के डायरेक्टर के साथ फिल्म देखने चला गया था। वहीं उनसे ग्राउंड के बारे में भी बात कर ली। पहले उसे यह सब मजाक लगा लेकिन जब उसे मामला समझ में आया तो वह ग्राउंड के लिए राजी हो गया और इसके लिए कोई फीस भी चार्ज नहीं की। और उसने लोगों से यह मैच देखने की अपील भी की। तुम्हें पता है न वह मेरा बचपन का दोस्त है, हमलोग साथ में खेलते थे। बाॅय द वे लड़कियों से कहो जल्दी तैयार हो जाए, हम घंटे भर में मैदान में रहेंगे। और कुछ कहना है।”
आशा ने सकपकाते हुए कहा- “सर और तो ठीक है पर सपना राठौर सेमीज में इनजर्ड हो गई थी और रविना सहाय का एग्जाम था, दोनों लौट गई हैं और हम 10 लड़कियां ही बची हैं।”
कोच- “ओ सीट..... ये तो हमने सोचा ही नहीं, एक मिनट तेरी एक फ्रेंड भी आई है न। सोमा परिहार। एकाध बार मैंने उसे खेलते देखा है तुमलोगों के साथ......... लंबे छक्के लगाती है वो।”
आशा- “सर वह प्रैक्टिस नहीं करती, घुमने आई है और कभी-कभी हमसब यूँ ही खिला देते हैं उसे, वह तो सीडीएस की तैयारी करती है।”
कोच- “कम ऑन, ये बात तुम्हें और हमें पता है कपूरथला किंग्स को नहीं। अगर जरूरत पड़ी तो उसे दसवें नंबर पर भेजेंगे।
पटियाला का पीसीए स्टेडियम फुल हाउस था। जब लोगों को इस खास मैच के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे हाथों हाथ लिया और दोनों टीमों को चीयर करने बड़ी संख्या में पहुँचे।
दोनों मैदानी अंपायरों के सामने कपूरथला किंग्स के कप्तान ने टाॅस के लिए सिक्का हवा में उछाला, इवनिंग हाउस की कप्तान ने हेड आवाज लगाई और टाॅस जीत गई। इवनिंग हाउस की टीम ने पहले बल्लेबाजी चुना। टाॅस के तुरंत बाद दोनों कप्तानों ने अपनी प्लेइंग इलेवन की लिस्ट अंपायरों को थमाई, टीमें इस प्रकार थीः
कपूरथला किंग्सः विधु विनोद(कप्तान), सुनिल सिंह ढिल्लो, करणदीप कमल, रूपलाल राजपुत, मृदुल तिवारी, समीर सोनी, टुन्ना बहादुर खान, मोहम्मद मोजाहिद, नितेश राणा, परीमल चाँद, महेन्द्र राजभर।
इवनिंग हाऊसः आशा सचदेव(कप्तान), ज्योति किरण, तेजस्विनी पांडेय, वैशाली ठाकुर, निमिषा वैद्य, रजनी झालावर, हरलीन देओल, अवंति गौतम, गुड़िया खन्ना, उदिता सोनकर, सोमा परीहार।
मैदानी अंपायरः राजेश रौशन और जहुर आलम।
कपूरथला किंग्स के मैदान में उतरते ही कप्तान ने अपने प्लेयर्स को कमांड किया- “ब्वाॅयज, मैच इज मैच .............. मैदान में कोई नरमी नहीं चाहिए।”
इवनिंग हाऊस के लिए रजनी झालावर और निमिषा वैद्य ओपेन कर रही थी। रजनी ने एंपायर जहुर आलम के सामने गार्ड लिया और सामने गेंदबाज मोहम्मद मोजाहिद। विरोधी टीम को बड़ा खौफ था इस नाम से कारण मोजाहिद कि रूह कंपा देने वाली तेजी कईयों को टांके लगवा दिए थे। मोजाहिद ने लंबा रन अप लिया.....राईट आर्म राउंड द विकेट.........पहली गेंद..........शाॅट ऑफ़ लेंथ......रजनी बैकफुट पर गई और क्लाॅसी कवर ड्राइव........ गेंद सीमा रेखा के पार चार रन के लिए। पहली गेंद पर बाउंड्री का स्वागत लड़कियों ने तालियाँ बजाकर किया। दूसरी गेंद............साॅलिड फाॅरवर्ड डिफेंस। तीसरी गेंद रजनी ने स्कवाॅयर कट किया चार रनों के लिए............खुबसूरत शाॅट............ इसबार ताली दर्शकों ने भी बजाई। चौथी और पांचवी गेंद पर कोई रन नहीं, कोई नुकसान नहीं। छठी गेंद सिंगल और रजनी ने स्ट्राइक रिटेन रखी।
अगला ओवर के लिए कप्तान ने मृदुल तिवारी को गेंद थमाया, पहली गेंद पटककर और तेज होती हुई, रजनी ने कट करने का प्रयास किया लेकिन गेंद बल्ले के बजाय स्टंप्स से कट हुई। स्कोर नौ रन एक के नुकसान पर। वन डाउन उदिता सोनकर, कप्तान की भरोसेमंद उदियमान बल्लेबाज। तिवारी की तेज गेंद.........परफैक्ट यार्कर......... उदिता का बल्ला हवा में ही रह गया और गिल्लीयाँ बिखर गई। उसके बाद तो विकेटों की झड़ी लग गई। छठे ओवर में इवनिंग हाऊस ने तेईस रन पर अपनी कप्तान सहित छः विकेट गंवा दिए। हरफनमौला तेजस्विनी पांडेय ने आते ही आक्रामक रूख अपनाया। रूपलाल राजपुत की बाहर जाती तेज गेंद को जोरदार बल्ला लगाया, गेंद हवाई सफर तय करते गई थर्ड मैन बाउंड्री के बाहर छः रनों के लिए। दर्शकों में उत्साह लौट आया और तेजस्विनी का दूना हो गया। तेजस्विनी ने फिर बल्ला घुमाया लेकिन गेंद ऊँची चली गई और विकेटकीपर के लिए आसान कैच। अब स्कोर था उनतीस रन सात विकेटों के नुकसान पर। कप्तान विधु विनोद ने आठवें ओवर के लिए बाएँ हाथ के लेग स्पिनर टुन्ना बहादुर को लगाया। अवंति गौतम ने एक रन बनाए और काॅट ऑन बाॅल हो गई।
सारी निगाहें अब मैदान की आखिरी मान्यता प्राप्त जोड़ी पर टिक गई थी हरलीन देओल और गुड़िया खन्ना। हरलीन का महिला क्रिकेट में खासा नाम था..... युनिवर्सिटी की सबसे दमदार और हरफनमौला प्लेयर.... शरीर से भी जिमनास्ट। हरलीन ने पहली ही गेंद पर स्टेप आउट किया और गेंद को एक बाउंस में लांग ऑन सीमा रेखा के पार पहुँचा दिया। दूसरी गेंद पर दो रन और तीसरी पर सिंगल।
अगले ओवर के लिए कप्तान विधु विनोद ने पार्ट टाइम गेंदबाज महेंद्र राजभर को आक्रमण पर लगाया। स्ट्राइक पर थी हरफनमौला हरलीन........ महेंद्र की पहली गेंद...... ऑफ़ स्टंप के बाहर.......... शार्प टर्न........... हरलीन को पता भी नहीं चला बाॅल स्पिन होकर किधर गई लेकिन उसका लेग स्टंप ले गई। इस विकेट के जाने से लड़कियों की आंते जैसे मुंह को आ गई। छत्तीस पर नौ। आखिरी बल्लेबाज सोमा परीहार पैवेलियन से निकली तो कप्तान ने कहा- “सोमी रोक रोक के।” सोमा ने सवालिया नजरों से उसे देखा जैसे कह रही हो- “रोक के, पर कैसे??”
महेन्द्र राजभर की दूसरी गेंद कम अनुभवी सोमा परीहार को। ऑफ स्पिन......सोमा ने बल्ला अड़ाना चाहा........ उसे कुछ समझ नहीं आया। गेंद उसके घुटने के ऊपर लगी। अनाड़ी बल्लेबाज पर महेन्द्र राजभर की हँसी छुट गई। सोमा ने महसूस किया उसे वो नहीं करनी चाहिए जो उसे आती नहीं। तीसरी गेंद...... वही हुआ जीसका डर था..... सोमा ने अगला पैर आगे बढ़ाया और कसरती भुजाएं खोल दी.....कप्तान आशा ने आँखें मूंद ली और दोनों हाथों से चेहरे को ढक लिया। लड़कियों के चिल्लाने से उसकी कान झनझना उठी। बाॅल छः रन के लिए सीधे स्टैंड में गीरी थी। अगली गेंद इस बार छक्का मीड विकेट पर। बैक-टू-बैक हमले ने महेन्द्र को दवाब में ला दिया, उसने गेंद आगे करनी चाही लेकिन बल्लेबाज को फुलटाॅस पर मिली और कड़क प्रहार। तीसरा छक्का..............मैदान में सनसनी फैलाता हुआ। तालियों और शोर से दर्शकों ने महिला खिलाड़ी का अभिनंदन किया। अगली गेंद राजभर ने पिछे रखना चाहा तो बल्लेबाज को शार्ट पिच मिला परिणाम स्कावायर लेग के बाहर चार रन। समीर सोनी की अगली ओवर की सभी छः गेंदे गुड़िया ने डिफेंस की।
कप्तान विधु विनोद के ओवर में भी सोमा ने दो छक्के लगाए और साबित किया की पिछली मार तुक्का नहीं थी। सोमा जब अंतिम विकेट के रूप में सीमा रेखा पर पकड़ी गई तब टीम का स्कोर था 79 रन। देखने में स्कोर बड़ा तो नहीं पर सम्मानजनक था और कौन जाने अगली इनिंग में क्या हो।
इनिंग्स ब्रेक के बाद इवनींग काॅलेज ने ग्राउंड पर टीम हड्ल बनाया, सभी लड़कियाँ एक-दूसरे की बाजुएं पकड़े सर्किल में खड़े हो गई। कप्तान आशा सचदेव ने टीम को एड्रेस किया- “हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं और हम हार-जीत के लिए नहीं खेलेंगी।” फील्ड सजा दी गई, वैशाली ठाकुर विकेट के पीछे और पहले ओवर के लिए जीमनास्ट हरलीन वार्म अप कर रही थी। सामने परिमल चाँद और नाॅन-स्ट्राइक पर समीर सोनी। हरलीन की पहली गेंद राइट आर्म राउंड द विकेट आउट स्विंग होकर बाहर निकलते हुए, चाँद ने जाने दिया। लड़कियों ने तालियाँ बजाकर गेंदबाज को बैक किया। अगली गेंद लेग स्टंप्स पर पिच होती हुई, चाँद आगे निकला और हमला किया और गेंद गेंदबाज के सर के ऊपर से गगनचुंबी छक्के के लिए निकल गई। दूसरी गेंद इसबार लांग ऑन बाउंड्री केेे बाहर फिर से विशाल छक्का। हरलीन सन्न। कप्तान को भी सहानुभूति हो गई उससे, आकर उसे पैट किया। चैथा गेंद बीट। पांचवी पर फिर से चार रन। पहले ओवर की समाप्ति पर 17 रन बिना किसी नुकसान के।
दूसरे ओवर की पहली गेंद गुड़िया खन्ना रीलिज करती हुई.............. चांद क्रीज से बाहर निकलकर गेंद को फिर से उठाना चाहा, बल्ला पहले घुमा, मिस हुई और उसकी ऑफ स्टंप जाती रही। पहली सफलता इवनिंग हाऊस के नाम। वन डाउन सुनिल सिंह ढिल्लो ने आते ही दो कवर ड्राइव पर आठ रन बटोरे.......... आखिरी गेंद पर सुनिल ने फ्लैट शाॅट खेला, बाॅलर के बगल से। यह छक्के के लिए जा ही रही थी, की सीमा रेखा के अंदर मजबुत हाथों ने इसे थाम लिया .............. दौड़ते हुए अविस्मरणीय कैच लिया था हरलीन ने। इस कैच ने मैच का रूख ही बदल कर रख दिया और खिलाड़ियों का बाॅडी लैंग्वेज इनटैक्ट। अगले पांच ओवर इवनिंग हाऊस ने सधी और सटीक लाइन पर गेंदबाजी की। खासकर ज्योति किरण ने अपने हाई आर्म एक्शन से बल्लेबाजों को कोई रूम नहीं दिया और दो ओवर के स्पैल में सात रन देकर एक विकेट निकाले। लेकिन टोटल पहुँच गया पचास रन चार विकेट के नुकसान पर।
कप्तान ने सारे खिलाड़ियों से बात की और हरलीन को वापस आक्रमण पर बुला लिया। आशा ने नोटिस किया कि विकेट के पीछे वैशाली ठाकुर बिलकुल स्टंप्स से लग के खड़ी हो गई जो आमतौर पर स्पिन गेंदबाजी के समय दिखता है। कप्तान ने हैरानी से उसे देखा तो वैशाली ने दोनों हाथों से संकेत किया कि सब ठीक है। हरलीन की पहली गेंद बल्लेबाज के पैड से टकरायी और थर्ड मैन पर चार रन। कप्तान ने फिर वैशाली की ओर देखा तो भी वह अडिग खड़ी रही। अगली गेंद बल्लेबाज ने आगे बढ़कर ऑन-द-राइज खेलना चाहा, बल्ले का संपर्क हुआ नहीं, वैशाली ने गेंद कलेक्ट किया और गील्लियाँ बिखेर दी। यह सब बिजली की गति से हुआ। अंपायर जहुर आलम ने भी बल्लेबाज को क्रीज में नहीं पाया और ऊँगली खड़ी कर दी। पाचवाँ बल्लेबाज लौट चुका था। हरलीन की गेंद नए बल्लेबाज को गुड लेंथ, आउट स्विंग और क्लीन बोल्ड..........आऊट। खिलाड़ियों ने अपनी हथेलियाँ आसमान में टकराई और दर्शकों ने अद्भुत रोमांच का मजा लिया।
अगले चार ओवरों में 16 रन बने लेकिन हरलीन ने अपनी सटीक आउट स्विंग से दो और बल्लेबाजों को वापस भेजकर अपना कोटा पूरा किया। पर कपूरथला किंग्स जीत से मात्र दस रन दूर रह गई थी और इवनिंग हाऊस को चाहिए थी दो विकेट। दर्शक दिर्घा में बातें होने लगी कि परिणाम जो हो लड़कियों ने तगड़ा पलटवार किया है।
क्रिज पर थे महेन्द्र राजभर और मृदुल तिवारी, उन्होंने नस-नाड़ियों को ठंढा किया और एक-एक रन जोड़ना शुरू किया। कोई जोखिम नहीं। स्कोर जा पहुँचा 76 रन, जीत अब कपूरथला किंग्स की मुट्ठी में था। गेंद आशा सचदेव ने खुद अपने हाथों में लिया, फ्लाइटेड............ राजभर क्रिज से बाहर निकला और अपने स्ट्रोक को चेक किया। वीकेट के पीछे वैशाली को लगा बल्लेबाज छक्के के साथ मैच खत्म करना चाहता है, वह भागते हुए गेंदबाज के पास गई कुछ बातें की और स्टंप्स से लगकर वापस खड़ी हो गई। गेंद ऑफ स्टंप्स के बाहर पीच हुई, बल्लेबाज आगे बढ़ा लेकिन गेंद अंदर आने की बजाए बाहर निकली, वाइड बाॅल.......... बल्लेबाज को गेंद मिली नहीं और विकेट के पीछे मुश्तैद वैशाली ने बाकि का काम पूरा किया।
महेन्द्र राजभर स्टंप वैशाली ठाकुर बाॅल आशा सचदेव।
क्या करिश्मा हो सकता है........ लड़कियों का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। लेकिन जीत के लिए सिर्फ तीन रन ही बचे थे। स्ट्राइक पर रूपलाल राजपुत......... गेंद कप्तान आशा सचदेव के पास.......... लेकिन नए बल्लेबाज के लिए फिल्ड सजायी गुड़िया खन्ना ने और सारे प्लेयर्स को 20 गज के घेरे में बुला लिया, सीमा रेखा पर एक भी क्षेत्ररक्षक नहीं। गुड़िया ने सबको ताकिद की बाॅल कहीं भी जाए थ्रो सिर्फ नान-स्ट्राइकर इंड पर करनी है। आशा के हाथ से गेंद निकली..........रूपलाल राजपुत ने खुबसूरत ग्लांस किया.............. तिवारी नान-स्ट्राइक से रन के लिए भागा............. फाइन लेग पर सोमा गेंद पर कुदी, गेंद चिपकी............. अंडर आर्म तेज थ्रो नाॅन-स्ट्राइक इंड पर...............आशा सचदेव ने गेंद कलेक्ट किया और स्टंप्स पर दे मारी................ रूपलाल राजपुत बीच रास्ते में ही पकड़ा गया था। एपांयर राजेश रौशन ने बिलकुल देरी नहीं की उँगली उठाने में।
इवनिंग हाऊस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। और हो भी क्यों न लड़कियों ने इतिहास जो रच दिया था। पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था। हरलीन ने स्टंप्स के ऊपर से भोल्ट लगाकर दोनों बाजुओं को हवा में फैलाकर दर्शकों का इस्तकबाल किया। शानदार इनिंग के लिए टीम ने अपनी हीरो 'सोमी' को कंधे पर उठाकर मैदान का चक्कर लगाया।
बस इवनिंग हॉउस को लेकर दिल्ली लौटने के लिए हाईवे पर थी तो कप्तान आशा ने कोच लाला से आखिर पूछ ही लिया -“सर, आपको हमारी परफाॅर्मेंश पर डाउट नहीं था?”
कोच ने बस इतना कहा- “देखो लड़कियों जीत तुम्हारी तभी हो गई थी जब तुम उनके खिलाफ मैदान में उतर गई।”
-पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)
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