प्रसाद (लघुकथा).
यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों पर अब मैं इस्कॉन में उपस्थित रहकर कीर्तन और श्रीमद भागवत कथा का हिस्सा जरूर बनता हूँ। अभी देवघर के डाबर ग्राम में इस्कॉन की शाखा शुरू हो प्रारंभिक चरण में है और श्री निवास गोपाल प्रभुजी अभी यहाँ के प्रभारी हैं। इस्कॉन देवघर की ओर से शनिवार को शाम में प्रायः अनुरागियों को खीचड़ी प्रसाद वितरण किया जाता है। देवघर-जसीडीह सड़क मार्ग से गुजरनेवाले श्रद्धालुगण रूककर यहाँ प्रसाद ग्रहण करते हैं। मधुपुर से लौटने के क्रम में मैं भी शनिवार का प्रसाद जरूर पाता हूँ। इसी तरह प्रसाद लेने के क्रम में अपने पूर्व परिचित उत्तम जी से यहीं भेंट हुई थी, और उनसे मुझे इस्कॉन के कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी हुई और मैं यहाँ से जुड़ गया। उत्तम प्रभु जी प्रारंभ से इस्कॉन से जुड़े हैं और सेवा दे रहे हैं।
उस शनिवार का दिन सामान्य की तरह ही था, मेहर गार्डन के नजदीक इस्कॉन आश्रम के प्रवेश द्वार पर स्वयंसेवी प्रभुजी बड़े से भगोने से खिचड़ी प्रसाद बाँट रहे थे और आते-जाते राहगीर रुककर प्रसाद ले रहे थे। लेकिन उस दिन मुझे जल्दी सवार था और मेरा रुककर प्रसाद लेने का मन नहीं हो पाया। मैं मन की, वहाँ रुककर प्रसाद लेने की अनिच्छा को दबा नहीं पाया और सोचा जल्दी घर पहुँच कर फ्रेश हो जाऊँ। मन-ही-मन कृष्ण जी को प्रणाम किया और क्षमायाचना करते हुए चलता बना। कुछ दूर चलने पर डढ़वा नदी के पहले की ढलान पर मेरी बाइक जा रही थी और मेरे समानांतर से थोड़ी आगे एक बाइक पर सवार दो युवक जा रहे थे। शाम ढल रही थी और गाड़ियों की हेडलाइटें जल चुकी थी। तभी अचानक सामने से एक तेज आती बाइक ने मेरे आगे चल रही उस बाइक को इस तरह टक्कर मारी कि वह बाइक और उसपर सवार दोनों युवक मेरे सामने गिर पड़े। मेरे सामने गिरे एक बाइक सवार युवक को पीछे से आती मेरी बाइक टक्कर मारती हुई आगे निकल गई। उस युवक को बाइक से गिरकर उतना चोट नहीं आया होगा जितना कि, पीछे से आती मेरी बाइक से उसको लगा था। चोट उसके पैरो में ज्यादा लगी थी।
मैं अपनी बाइक रोककर फौरन उस चोटिल युवक की ओर भागा। उसके पैरो में जबरदस्त चोट लगी थी और वह दर्द से कराह रहा था। जैसा कि आमतौर पर होता है एक्सीडेंट के जगह पर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई और गहमागहमी भी बढ़ती गई। लोग-बाग टक्कर मारने वाले के बारे मैं पूछ-ताछ करने लगे तो उस युवक ने संयत से बताया कि जिसने टक्कर मारी वह भागने में कामयाब रहा। एक पल के लिए मैं सकते में था कि चोटिल युवक को देखकर भीड़ मुझपर न आक्रोशित हो जाए। लेकिन घायल युवक ने समझदारी दिखायी और सभी को वास्तविक बात बताई। फिर सभी ने मिलकर उस घायल युवक को इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया। इस क्रम में मुझे घंटे भर से ज्यादा वक्त लगा था। मैं महसूस कर रहा था कि अगर मैं हर शनिवार की तरह आज भी इस्कॉन का प्रसाद पाकर चलता तो शायद इस घटनाक्रम के हिस्सा नहीं बनता और संभव था कि उस युवक को भी उतनी चोट नहीं आती।
--पुरुषोत्तम
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)