shabd-logo

विजय

15 सितम्बर 2023

5 बार देखा गया 5


"विजय".


 


मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला कहकर संबोधित करते। लोबिन का घर  निचे तरफ पड़ता था और पूरे कस्बे का पानी उसके घर के सामने से बहता। यूं तो उसके घर के सामने से सरकारी नाला बहता था। पर जो चीज सरकारी हो और दुरुस्त रह जाए फिर सरकारी कैसी। नाले पर स्लैब ही नहीं था। लोबिन की गाय पूरे दिन हलकू पांड़े के खेत में खड़ी फसल पर अपना हाथ साफ करते रही। दोपहर को हलकू पांड़े खेत का मुआयना करने आया तो अपनी खड़ी फसल का हाल देखकर आपे से बाहर हो उठा। सामने पड़ी डांग(लकड़ी का फट्टा) उठा गाय को रगेदा। गाय को पहली बार अपनी जान पर संकट का एहसास हुआ, वह पूंछ उठाकर घर की ओर भागी। हलकू पीछे दौड़ा, गाय अपने पालनहार लोबिन के द्वार पर तो पहुंच गई पर घर का दरवाजा बंद था। पीछे आता संकट गाय के और नजदीक आ चला था। गाय आधी मुड़े छलांग तो लगाई लेकिन नाले के पार न जा सकी और पूरी गाय नाले में समा गई। हलकू पांड़े को पहली बार अपनी नादानी का एहसास हुआ और इसके पहले की बात बढ़ती हलकू पांड़े वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी। गाय नाले में टस-से-मस नहीं हो पा रही थी। लोबिन, लोबिन की पत्नी और पान टोले वाले धीरे-धीरे एकत्र हुए। गाय को नाले से कैसे निकाला जाए, किसी को कोई युक्ति नहीं सूझ रहा था। सूखो का जो ठेला चालक थे दोपहर को घर लौटे तो सब उसकी तरफ आशा भरी निगाह से देखने लगे। उसे ऐसे मुश्किल काम का मर्म था उसने दो बड़े बाँस अपनी फूस के ऊपर से निकाले और गाय के पेट के नीचे से इसे नाले की दीवारों से टिका दिया गया। और लोगों के सहयोग से बांस के सरल उत्तोलक के सहारे गाय को बाहर निकाल लिया गया। गाय निकलते ही राहत का ली। 


 


अब सूखो का बोल पड़े- “ऐसा कब तक चलेगा ई महीना में चौथा बार जान-माल नाला में गिर चूका है। सबको कहते कहते थक गए कि सब लोग मिलकर मुनिसपलटी को दरखास दे लेकिन किसी के कान पर जूँ रेके तब न।“ 


 


साहेब मंडल जवाब दिया- “दरखास से क्या होगा बिना ओजन के मुनिसपलटी में दरखास उड़ीयाता रहता है।“ 


 


रमुआ कोयरी भी बोल उठा- “ओजन रहता त हमीलोग दस बोरा सीमीट लाके अपने ढकना न ढक लेते।“ 


 


गोरखना पीछे क्यों रहता वह तो राजमिस़्त्री था- “खाली सीमीट से हो जाएगा दू बंडल छड़ भी चाहिए। मजूरी के देगा। हम तो बोले कि आन टोला में दर्जन भर सरकारी स्लैब पड़ा है, सब मिलके ले आते हैं और श्रमदान से नाला ढक जाएगा।“ 


 


ढाका साव ने चेताया- “इँह..... आन टोला का स्लैब मुखिया जी के स्लैब है छूने भी ने देगा।“ 


 


सूखो का- “मुखिया जी क्या घर में बैठाए हैं, है त सरकारी चीज ही न।“ 


 


ढाका साव - “मुखिया जी कुछ न भी बोले लेकिन आन टोला तो चिन्हार का है न...चिन्हार सब रंगबाज है के नहीं जानता है। झमेला छोड़ के कुछ नहीं है।“ 


 


सिमरिया माई बगल खड़ी थी- “चिन्हार है त का हुआ जी अपना घर में है।“ कहकर अपनी बात से लोकतंत्र के दर्शन करवा दिये। 


 


गोरखना ने शक्ति पाकर ऊर्जा से कहा- “मुखिया जी से रोज भेंट होता है उनका काम तो हमीं करते हैं मुखिया जी से हम बात कर लेंगे।“ 


 


सूखो का - “तो ठीक है अपना टोला के घर-घर जाकर खबर कर देते हैं कि इस इतवार को सब घर से एक आदमी श्रमदान देगा, आन टोला से स्लैब लाना है। और जो श्रमदान नहीं देगा वो पैसे दे देगा आखिर कुछ पैसा भी तो खरचा होगा ही।“ 


 


“लेकिन एगो चिन्हार मेरा दोस्त है वह कह रहा था कि जो स्लैब वहां रखा है वह आन टोला के नाले को ढकने के लिए रखा है।“ रामपरवेश का लड़का बता रहा था जो, हाईस्कूल में पढ़ता था। 


 


सूखो का - “आन टोले का स्लैब है तो ढकता काहे नहीं है अपने नाले को चार बच्छर से क्यों फेंकाया है जी।“ आपत्ति दाखिल होने के साथ ही ख़ारिज भी हो गई थी। 


 


इतवार के दिन तय समय पर परचून दोकान के सामने लोग इकट्ठा हुए। दो ठेले, तीन ठो सब्बल, चार गो बांस और एक पुरानी टायर का इंतजाम हुआ। सूखो का ने आदमी की गिनती शुरू की: "एक...दो...तीन....बारह....तेरह आदमी? एतना बड़ा मोहल्ला और तेरह गो आदमी....सब कहाँ भाग गए जी। 


 


लूटन ने कहना शुरू किया- “सोमनथवा बोला काम पर जाएंगे....बदीया कह रहा था देघर जाऐगा....लरेना...." 


 


सूखो का - “ऐसे नहीं होगा सबको घर से उठाके लाना होगा।“ 


 


ठक्... ठक्.....सोमनाथ का दरवाजा बंद था। उसका परिवार दरवाजा खोला। 


 


ढाका - “कहाँ गया सोमनथवा जी....पता नहीं है ओकरा आज स्लैब लाने का दिन है।“ 


 


परिवार- “देघर गया है“ 


 


ढाका - “देघर गया है....लेकिन गाड़ी तो घरेम है कैसे गया।“ 


 


तब तक दो लड़का सोमनाथ के घर में घुस के देखने गया। और चिल्लाया- “हव् चच्चा मुनवा चौंकी के नीचे घुसा है।“ 


 


ढाका - “निकल रे छोंड़ नहीं ते बताते है तोरा, अभी स्लैब लग जाएगा त सबसे पहले तोर बाप ही गाड़ी लगाएगा...निकलता है कि दू थाप दें तुमको।“ 


 


कोय चारा न देख मुनवा देह-हांथ झाड़ते हुए बाहर निकला। इसी तरह डांट-डपट, दुलार-चुचकार से सब बाहर निकला। अब कुल छब्बीस लोगों का कारवां स्लैब लाने चल पड़ा। जहाँ सरकारी स्लैब पड़ा हुआ था वहाँ झाड़ी-झंगड़ हो गया था। लोग-बाग घर का कूड़ा-कचरा भी उधर डाल देते थे। 


 


बदीया - “हव्व बहुत गंदा है।“ 


 


नेपाली - “गंदा है त परिवार को काहे न ले आया साफ करवा के हाथ लगाता।“ 


 


बदीया - “गड़बड़ा गए हैं का जी कोंची अंट-संट बोलते हैं।“ 


 


गोरखना - “काम करो न जी कितना फेंगाठी पढ़ता है तुम सब।“ 


 


गोरखना का इशारा समझकर सब स्लैब में भीड़ गए। एक बात थी पान टोला के लोग साधारण थे पर काम करने में बीहड़ थे। यही बात उसको आन टोले से बीस करती थी। ठेला स्लैब किनारे लाकर उठा दिया जाता और स्लैब को ठेले पर पलट दिया जाता था। फिर ठेला खड़ा कर के पान टोला के लिए निकल जाता। पान टोले में भी भोलेन्टियर का एक ग्रुप था जो वहाँ ठेला खाली कर उसको वापस चलता कर देता था। काम जल्दी निपटाने की जुगत थी ताकि किसी तरह का बखेड़ा न खड़ा हो जाए। तभी शुगन चिचयाया। 


 


“अरे बिच्छु....बिच्छु...स्लैब के नीचे बिच्छु है।“ 


 


“किसी को काटा तो नहीं“ 


 


शुगना को काट लिया। एक पल के लिए लगा कि रंग में भंग हो गया। लेकिन शुगन हिम्मती था, उसने खुद आगे बढ़कर कहा कि उसको काई दिक्कत नहीं है। लेकिन बड़े मौके की नजाकत को बेहतर समझते थे। 


 


“अरे दिक्कत कैसे नहीं है जी। बिच्छू काटा है तो इलाज तो कराना होगा न। गगन तुम्हारा मोटर साइकिल है न सदर ले के जाओ इसको और दवाई करवाओ और दिक्कत होगा तब खबर करना जी हम लोग सब पहुंचेंगे, घबराना नहीं“ चीखो का गार्जीयन की भूमिका में थे। गगन अपने दोस्त शुगन को लेकर हॉस्पिटल रवाना हो गया। 


 


एक के बाद एक स्लैब उठते जाते देख आन टोला के लोगों की बैचेनी बढ़नी शुरू हुई। दूसरे टोले के लोगों का हुजूम अलग कौतुहल बढ़ा रहा था। पास के चापाकल पर पानी लेती हुई एक महिला दूसरे से बोली - “पान टोला वाला सब स्लैब ले जाएगा का जी...फिर हमलोग क्या लगाएंगे। एकर बप्पा भी बाहरे गया हुआ है।“ “बाहरे गया है त क्या हुआ तुम बढ़के बोलो, ऐसे कैसे ले जावेगा“ दूसरी महिला ने ताव दिया। 


 


“सब स्लैब ले जाइएगा का जी फिर हमनी का लगाएंगे....एतना दिन से जोग-जोग के रक्खे हैं। अब नहीं ले जाने देंगे।“ 


 


महिला की इस बात ने कार्यकर्ताओं को ठंढा कर दिया। सब सहम गए और रुक भी गए। 


 


“मुखिया जी बोले हैं जी पहिलका वाला उठा लेने मुनिसपलटी में फिर स्लैब जम रहा है अभरी खेप में नयका स्लैब आएगा जी“ बुजुर्ग साहेब मंडल ने ऐसे कहा कि महिला को मुगालता न रहा। लेकिन वह भिनभिनाती हुई चली गई। 


 


साहेब मंडल ने ठंढाती चुल्हे में हवा भरी-“जल्दी हाथ-पैर मारो न जी, देखता न है सब के नजर इधरे है।“ 


 


तभी “कि हो साहेब आन टोला के स्लैब पान टोला ले जावोगे जी पहिले हमरा खर्चा दो फिर उठाना स्लैब।“ साहेब का हमउम्र था। 


 


“खरचा जाके मुखिया जी से लो। और तुमरा मर्जी कहो तो जो स्लैब उठाएं हैं वापस उतार देते हैं फिर ओतना मेहनत कर देंगे।“ हमउम्र समझ लिया साहेब से दमड़ी भी न निकाल सकेगा। 


 


“एतना गोस्साते काहे हो बुढ़ारी पे, मेहरारू लथाड़ी है कि....चलअ खैनी खियावो।“ कहकर हमउम्र हंसने लगा। 


 


तीसरा ट्रीप लोड होने के बाद साहेब दादा ने सबको इशारा किया। सब उसके समीप आ गए। दादा ने कहना शुरू किया-“देखो हम सबको और स्लैब उठाने नहीं मिलेगा, झूठमूठ का बखेड़ा हो जाएगा। और अब सब चुपचाप रहेगा, कोय कुछ नहीं बोलेगा।“ बुजुर्ग ने हवा भांपते हुए कहा। “सब्बल, गेंता सब लदा दो।“ काफिला चला। तबतक जन्म से विकलांग मिंटू हांफते हुए आया और हांफते हुए ही कहा - “सलौना चिन्हार, चार-पाँच गो के साथ चौक पर खड़ा है, सनक रहा है!! साहेब ने सबको चुपचाप आगे बढ़ने का इशारा किया। 


 


सलौना पान टोले वाले को आन टोले से स्लैब ले जाते देखकर लहर उठा- “पान टोला के केतना औकात आ गया है जी आन टोला से स्लैब पान टोला ले जाएगा...कैसे ले जाएगा देखते हैं....“ 


 


काफिला से कोई हरकत नहीं...सब मौन....जैसे कोई कुछ सुन ही नहीं रहा हो। गुरुमंत्र काम कर रहा था। सलौना का लहर जुलूस के मौन के आगे दम तोड़ दिया। 


 


सांझ तक पान टोले के खुले नाले ढक चुके थे, अब जान-माल के लिए खतरे की कोई बात नहीं थी। रास्ता अलग चौड़ा हो गया था। विजय के उपलक्ष्य में नई जमीन पर पक रही खिचड़ी की सुगंध भोज के उत्साह को डबल कर रही थी। 


 


-पुरुषोत्तम 


 


(यह मेरी स्वरचित व मौलिक रचना है।) 


  

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत कहानी लिखी है आपने 👍👍 कृपया होम पेज पर मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां के सभी भागों पर अपना लाइक देकर आभारी करें 😊🙏

1 सितम्बर 2024

40
रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
5.0
मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
1

प्रेम

15 सितम्बर 2023
4
2
4

प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

2

विजय

15 सितम्बर 2023
2
1
1

"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

3

समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
1
1
2

समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

4

अरवी के पत्ते

15 सितम्बर 2023
0
0
0

अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

5

तरगें

15 सितम्बर 2023
0
0
0

तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

6

एसएससी

15 सितम्बर 2023
1
1
2

एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

7

हम कब जागेंगे

15 सितम्बर 2023
1
1
1

हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

8

भिखारी

15 सितम्बर 2023
0
0
0

भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

9

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण)

15 सितम्बर 2023
0
0
0

गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

10

रिक्तताएं

15 सितम्बर 2023
1
1
1

रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

11

इनिंग्स

15 सितम्बर 2023
0
0
0

इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

12

अभिमान

15 सितम्बर 2023
0
0
0

"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

13

मर्माहत

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

14

मैंने देखा है...

16 सितम्बर 2023
0
0
0

मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

15

अव्यक्त

16 सितम्बर 2023
0
0
0

अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

16

कूड़ा भोज

27 सितम्बर 2023
0
0
0

कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

17

अहम

27 सितम्बर 2023
0
0
0

अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

18

वामिस

7 अक्टूबर 2023
0
0
0

वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

19

इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

20

भूत

17 अक्टूबर 2023
1
0
1

भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

21

मेला

3 नवम्बर 2023
1
0
0

मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

22

अमीना

8 नवम्बर 2023
1
0
1

अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

23

बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
0
0
0

बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

24

ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
1
1
1

ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

25

भोला

17 दिसम्बर 2023
0
0
0

भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

26

सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
1
1
2

सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

27

जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
0
0
0

जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

28

बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
0
0
0

बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

29

ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
0
0
0

ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

30

शक की सुई

8 फरवरी 2024
0
0
0

शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

31

प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
0
0
0

प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

32

प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
1
1
1

प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

33

मोटर

19 मार्च 2024
1
1
1

मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

34

राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
1
0
0

श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

35

प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
1
1
1

प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

36

पहली ड्यूटी

5 मई 2024
0
0
0

*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

37

"नेहा"

26 मई 2024
0
0
0

”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

38

गंगा

26 जुलाई 2024
0
0
0

गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

39

पेड़

18 अगस्त 2024
0
0
0

पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

40

एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
0
0
0

एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए