लोहड़ी एवं
मकर संक्रांति की शुभकामनायें
डॉ शोभा
भारद्वाज
सिंधू
बार्डर पर लोहड़ी की अग्नि प्रज्वल्लित कर उसमें कृषि कानून की प्रतियाँ जलाते हुए
चित्र खिचवाने की होड़ लग गयी . जबकि लोहड़ी हर्ष उल्लास का उत्सव है यह पंजाब
हरियाणा हिमाचल और जम्मू दिल्ली में धूमधाम से मनाया जाता है . खेतिहर
समाज में बेटों का बहुत महत्व रहा है पुत्र जन्म के अवसर, पुत्र के विवाह , बेटे की नौकरी लगने के अवसर पर
लोहड़ी की अग्नि घर में जला कर अपने जानकारों को न्योता दिया जाता है आजकल समय बदल
रहा है एक दो ही बच्चे हैं बेटी की भी लोहड़ी लोग मनाते हैं कहते हैं हमारी नजर में
बेटा बेटी समान हैं गांवों में अभी इतनी दरियादिली नहीं है कुछ लोग जिनकी मांगी
मन्नत पूरी हो जाती है गोबर के उपलों की माला बना कर जलती अग्नि को भेंट करते हैं .
लडकियाँ
गीत गाती हैं “पा नी माईये पा काले कुत्ते नू वी पा
काला कुत्ता देवे बधाईयाँ
तेरे
जीवन मझ्झी गाइयां , मझ्झी गाइयां दित्ता दूध
तेरे
जीवन सत्तो पुत्तर, सत्तो पुत्रां दी कमाई सानू बौता बौता
पाईं
ऐ माँ
काले कुत्ते को भी खाने को दो , काला कुत्ता तुम्हारी शुभ मनायेगा तुम्हारे पशु धन की ख़ैर मनायेगा तुम्हारी
गाय भैंसे जियें खूब दूध दें दूध पी कर इस घर के सातों बेटे हृष्ट पुष्ट होंगे . अनुनय
की जाती है हें तुम्हारे सातों हष्ट पुष्ट बेटों की कमाई घर में आयें तुम हमें
अधिक से अधिक दो . आज कल सात बेटे सुन कर पसीना आ जाता हैं पंजाब के लोग चाहते हैं उनका बेटा
विदेश जाये एनआरआई हो कर परिवार और परिचितों को वीजा दिलवायें खूब कमाये विदेश में
उनका पिंड (गाँव )बस जाये शहरी चाहते हैं उनके बच्चे बेस्ट
डिग्री लेकर मल्टीनेशन कम्पनी में मोटा पैकेज लें या एवन वीजा लेकर यूएस जायें . माता पिता, मायके में अपनी विवाहित बहन और बेटी को
मायके बुला कर सम्मान देते हैं .
मान्यता
है लोहड़ी का पर्व सूर्य एवं अग्नि देव को समर्पित है लोहड़ी के पावन अवसर पर नवीन
फसलों एवं तिल रेवड़ियां मूंगफली भुनी मक्का गुड़ गजक पूरा परिवार अग्नि के चारो तरफ
चक्कर लगा कर अग्नि को समर्पित करते हैं अग्नि देव एवं सूर्य का श्रद्धा पूर्वक
आभार प्रगट किया जाता है मानते हैं फसल का कुछ अंश देवताओं तक पहुंचता है ताकि
उनकी कृपा दृष्टि से खेत में फसल लहलहाए खलिहान
अन्न से भंडार में रखी मटकियों में गुड़ शक्कर भरा रहे .
लोहड़ी
असली समाजवाद – पहले लोहड़ी की कड़कड़ाती सर्द शाम को एक ख़ास चौराहे पर लकड़ियाँ और उपले
इकठ्ठे किये जाते थे जिन्हें पहले लडके लडकियाँ जन्हें अमीर और गरीब सबकी बेटियाँ
बेटे कुछ दिन पहले से ही गुट बना कर लगभग हर घर के दरवाजे पर शुभ गान गाती हुई
अनुनय करती हैं मांग कर लाते
थे इस ईधन
से आग जलाई जाती है आज कल उपले उपलब्ध नहीं है अत :लकड़ियाँ ही जलाई जाती हैं लोग
अपने घरों में भी लोहड़ी की अग्नि जला कर पूजा करते हैं अब चंदे से सामूहिक लोहड़ी में रंगारंग
कार्यक्रम का आयोजन होता है बाजार वाद कृषि प्रधान देश भारत में यह त्यौहार फसल का
त्यौहार हैं खेतों में गेहूं ,सरसों ,मटर ,चने की फसल लहलहाती है गन्ना रसीला हो
जाता है भट्ठियों में ताजा पकते गुड़ की सुगंध चारों फैलती है सर्दी भी जोरों पर
होती है .
लोहड़ी
के दिन शाम के समय गन्ने के रस में खीर
बनती है जिसे अगले दिन मक्रर संक्रान्ति के दिन खाया जाता है गन्ने के रस की खीर
स्वादिष्ट एवं पोष्टिक होती है इसे मेवों से सजाते है एक कहावत भी जुड़ी है
पोष माह
की शाम खीर पकाई गयी अगले दिन माघ माह में खायी गयी स्पष्ट है लोहड़ी पर्व पोष माह
की रात को मनाया जाता है रात भर अलाव के पास बैठ कर लोग गीत गाते हैं ढोलक एवं ढोल
की थाप पर नृत्य करते हैं अगले दिन मकर संक्रान्ति को नदियों में स्नान का अपना
महत्व है मन्दिरों में खिचड़ी का दान करते हैं खाने में खिचड़ी ही पकाई जाती है|
प्रचलित
लोक कथा के अनुसार लोहड़ी के अवसर पर गाया जाने वाला लोकप्रिय गीत
“सुन्दरिये नी मुन्दरिये हो ,तेरा
कौन बचारा हो ,दुल्ला भट्ठी वाला ,
दुल्ले
ने धी बयाई , सेर शक्कर पाई”
एक सेर
शक्कर विवाह के अवसर पर नव विवाहिताओं की झोली में डालता वह डालता था . दिल्ली में
मुगल बादशाह अकबर का विशाल साम्राज्य था उनके राज्य के पंजाब प्रांत ,आज के बाघा बार्डर से 200 किलोमीटर दूर पाकिस्तान स्थित पिंडी भट्टियाँ गावँ का निवासी दुल्ला भट्टी
नाम का नायक राजपूत था इसे पंजाब का राबिन हुड माना जाता था यहाँ चौराहे पर उठा कर लायी गयी कन्यायें बिकती थीं जिन्हें अमीर लोग गुलाम की तरह खरीद लेते थे वह इन कन्याओं को मुक्त ही नहीं कराता था
उनका सम्मान बचा कर उनकी सुयोग्य वर से शादी करवाता था दुल्ला ने दो अनाथ कन्याओं
सुन्दरी और मुंदरी को अपनी बहन मान कर उनकी शादी करवाई इन लड़कियों को जंगल में आग
जला कर फेरे करवाए गये उन्हीं की याद में लड़के गीत गाते यह गीत प्रश्न और उत्तर
शैली में गाते हैं दुल्ला भट्टी पंजाबियों का नायक है |
लोहड़ी की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है
कहते हैं बाल कृष्ण का वध करने के लिए कंस ने लोहिता नाम की राक्षसी को नन्द गावं
भेजा अगले दिन मकर संक्रान्ति थी सभी उसके आयोजन में व्यस्त थे श्री कृष्ण ने लोहिता
का वध कर दिया नन्द गाँव के लोगों ने उसी शाम अग्नि जला कर उत्सव मनाया था |
बेटी और
बहन की शादी की पहली लोहड़ी पर उनके सुसराल लोहड़ी
पर्व पर रेवड़ी, गजक, मिठाई
और अन्य सामान के साथ सुसराल वालों को अपनी हैसियत के अनुसार उपहार देने का चलन है
पुत्र के विवाह के बाद पहली लोहड़ी के अवसर पर वर पक्ष का परिवार बहू के मायके
वालों को सम्मान सहित बुलाते हैं उनका आदर करते हैं अब उन्हें उपहार देने का भी
चलन है . समूहिक रूप से आग के चारो तरफ लोग खड़े
हो कर कर अग्नि प्रज्वल्लित करते हैं परिवार
अपने घर से थाली में में तिल गुड भुनी मक्का रेवड़ी लाकर
अग्नि पर चढ़ाते , गावों में अग्नि को गन्ने भी अर्पित
करते हैं जैसे ही ढोल बजता है हर उपस्थित का अंग अंग थिरकता है मर्द और औरतें
सामूहिक भंगड़ा नृत्य करतें हैं गिद्दा औरतों का नृत्य है जिसमें तरह तरह से बोलियाँ
डाली जाती हैं .
कहावत
है “तिल चटका पाला खिसका” अर्थात आज से धीरे –धीरे सर्दी खत्म होने लगती है हर्ष उल्लास से लोहड़ी की रात गहरी होती जाती है कोई घर जाना नहीं चाहता
लकड़ियों का अलाव सूर्योदय तक जलता और सुलगता रहता है |