बंदेमातरम्,
बन्देमातरम
डॉ शोभा भारद्वाज
अमीर
खुसरो ने लिखा था –
“हस्त मेरा
मौलिद व मावा व वतन”
(हिन्द मेरी
जन्म भूमि है|) हिन्द कैसा
है ?
‘किश्वरे
हिन्द अस्त’ बहिश्ते बर
जमीन (भारत देश धरती पर स्वर्ग हैं )
वायसराय लार्ड कर्जन
द्वारा बंगाल विभाजन अंग्रेजों की नीति फूट डालो राज करो नीति का हिस्सा था .
मुस्लिम बहुल प्रांत के निर्माण के उद्देश्य से 19 जुलाई 1905 को बंग भंग की घोषणा
की गयी लेकिन सात अगस्त 1905 बंगाल के
विभाजन के विरोध में जुटी भीड़ में एक नारा उठा वन्देमातरम सैंकड़ों की भीड़ ने नारे
को दोहराया आकाश में नारे की गूंज ने जन समूह के रोम-रोम को रोमांचित कर दिया अब बन्देमातरम
ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध जन आक्रोश का सूचक नारा था एवं बंकिम चन्द्र द्वारा रचित
गीत को दिसम्बर 1905 में
कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्रदान किया .बन्देमातरम
मातरम का जयघोष करते आजादी के मतवालों का जलूस निकलता अंग्रेजी साम्राज्य की
लाठियाँ उन पर बरसती उन्हें लहूँ लुहान कर देती .पूरे
देश में विरोध के बाद 1911 में देश की जनता के दबाब में बंगाल के पूर्वी एवं
पश्चिमी हिस्से एक हो गये .वन्देमातरम आजादी प्राप्ति के
आन्दोलन का नारा बन गया .काफी समय बाद मुस्लिम समाज के वर्ग
द्वारा नारे और गीत का विरोध होने लगा इसमें साम्प्रदायिकता और मूर्ति पूजा देखी
जाने लगी अत: बन्देमातरम राष्ट्रीय गीत है लेकिन जिसकी इच्छा हो गाये या न गाये
लेकिन गीत के सम्मान में खड़े हो जायें .
इन विरोधों का जबाब संगीतकार रहमान नें नई दिल्ली के विजय चौक
पर भारत की आजादी की स्वर्ण जयंती की पूर्व संध्या में दर्शकों की भारी भीड़ के
सामने गीत गा कर दिया ऐसा लगा उनके दिल की आवाज कंठ से निकलती हुयी जन-जन की आत्मा
में उतर रही है माँ तुझे सलाम ,वन्देमातरम
गीत और
वन्दे मातरम का अभिवादन राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम की सदियों तक याद दिलाता
रहेगा |
ऐ आबरुदे
गंगा वह दिन है याद तुझको ,
उतरा तेरे
किनारे जब कारवां हमारा
भारत सोने
की चिड़िया माना जाता था यहाँ के खेतों में लहलहाती फसलें जल से भरी नदियाँ प्रकृति
के हर मौसम यहाँ मिलते थे अत : हमलावर यहाँ की समृद्धि से आकर्षित हो कर हमले करते
रहते थे कुछ लूटपाट कर वापिस अपने वतन लौट जाते थे अधिकतर यहीं के हो कर रह गये . दूर दराज से कारवां भूख प्यास से त्रस्त नदियों के किनारे ठहर
कर शीतल जल पीकर प्यास बुझाते होंगे, थके तन
बेहाल हो कर गुनगुनी रेत पर पेट के बल लेटते ही उन्हें अपनी माँ की गुनगुनी गोद अपने
मादरे वतन की याद में गले से भर्रायी आवाज निकली होगी माँ तुम्हें सलाम यही है वन्दे
मातरम.
आज अधिकतर
समाज यहीं का है हाँ कुछ के पूर्वज बाहर से
आये होंगे भारत माता एक भावनात्मक आस्था हैं जिसका शीश हिमालय है कन्या
कुमारी तक के विशाल भूभाग के चरण पखारता हिन्द महासागर ,दोनों तरफ अरब की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी . अंग्रेजी राज में सभी को ऐसा लगता था जैसे जंजीरों में जकड़ी
भारत की धरती माँ है यहाँ उन्होंने जन्म लिया है . लेकिन
कुछ विचारक
अपने देश को धरती का टुकड़ा मानते हैं और दूसरी विचारधारा वाले दुनिया पर राज करना
चाहते हैं अपनी विचार धारा को ताकत के बल पर या प्रेम दिखा कर फैलाना चाहते हैं
लेकिन ‘धरती अपनी गति से धुरी पर घूमती रहती है नश्वर पुतले वह नहीं सोचते धरती जब
हिलती है उसके गर्भ में हजारो राजवंश और सभ्यतायें समा जाती हैं . जब ज्वाला मुखी फटते हैं अंदर से धधक कर बहता गर्म लावा कितना
विध्वंसकारी होता है लेकिन ठंडा होने पर धरती का एक हिस्सा बन जाता है .भारत माता
का असली स्वरूप हैं 130 करोड़ हाथ भारत माता की जय में उठते हैं उनमे यदि ‘कुछ हाथ नही उठे
क्या फर्क पड़ता है’ ?
देश में
असहिष्णुता का शोर उठा साहित्यकारों ने पुरूस्कार लौटायें , अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रश्न उठाया ? यही नहीं देश को टुकड़े-टुकड़े करने के नारे भी लगे उन सबका जबाब
एक ही है वन्दे मातरम . ऐसा जयघोष
जिसको लगाते-लगाते क्रान्ति कारी फांसी के तख्ते पर हंसते-हंसते झूल गये यहीं करो
या मरो के नारे के साथ भारत माता की जय के नाम पर विशाल जन समूह ने जेल भर दिए .देश वासियों ने भारत भूमि
को जीवन का पालन करने वाली माता के रूप में देखा गुलामी में माता को जंजीरों में
जकड़ा समझ कर उसकी मुक्ति की कोशिश में जाने गयीं त्याग
और बलिदान का सिलसिला शुरू हुआ हर मात्रभूमि के लिए बलिदान के इच्छुक स्तंत्रता
संग्राम के सिपाहियों में भारत माता का काल्पनिक स्वरूप उत्साह का संचार करता था चीन ने
हमारे देश पर हमला किया वन्दे मातरम का जय घोष उठा पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाईयां लड़ी
आतंकवाद के खिलाफ लड़ते शहीदों की अर्थी के पीछे भी भारत माँ पर शहादत देने वालों
के लिए वन्देमातरम का जय घोष गूँजता है .
समझ नहीं
आता वन्देमातरम से किसी का धर्म परिवर्तन कैसे हो जाता और न यह देश भक्ति की असल
पहचान है हाँ दिल से भारतीय होना चाहिये . विवाद केवल राजनैतिक है उसे धार्मिक
बनाने की कोशिश की जाती रही है यह विषय राजनैतिक गलियों से गुजर कर धार्मिक गलियों
में जा चुका है कुछ प्रभावशाली मदरसों ने फतवे जारी किये जिनमें कहा इस्लामिक
मान्यतायें मुस्लिम समाज को भारत माता की
जय का नारा लगाने की इजाजत नहीं देती फतवे की व्याख्या करते हुए कहा तर्क के आधार
पर इन्सान ही दूसरे इन्सान को जन्म दे सकता है भारत की जमीन को माता कहना तर्क के
आधार पर सही नहीं है .
जमीन को माँ माने या न माने यह उस व्यक्ति की निजी धार्मिक
मान्यता है लेकिन किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता,लेकिन
इस्लाम में कहीं नहीं लिखा धरती को माँ कहना कुफ्र है दुनिया के देश अपनी धरती को
मदर लैंड कहते हैं जर्मनी में फादर लैंड फ़ारसी में भी मादरे वतन कहते हैं माँ और धरती माँ दोनों से प्यार किया जाता है धरती के ऊपर भरण
पोषण का इंतजाम है नीचे विलासता का सामान खोदते जाओ देखो धरती के गर्भ में क्या
नहीं है ?बहुत कुछ है धर्म निरपेक्ष देश है इसलिए धर्म की दुहाई देना भी
राजनीतिक गोटियाँ चलने की नापाक हरकत है जिनसे उनका वतन छूटता है उनके दिल से पूछो
वह प्रवासी कहलाते हैं दूसरे दर्जे के नागरिक कभी भी नफरत के शिकार हो कर निकाले
जा सकते हैं लौटने पर अपना वतन स्वागत करता है सोने जैसा
सीरिया ईराक बर्बाद हो गया जीवन बचाने के लिए यहाँ के बाशिंदे योरप के दरवाजे
खटखटा रहे थे कितनों ने अपनों को खोया कोई गिन सकता है लाखों लोग अपनी मादरे वतन
छोड़ कर शरणार्थी बनने के लिए विवश हो गये उनके सिर पर खुला आसमान है और दूसरो के
देश की धरती .