डॉ० राम मनोहर लोहिया अवध विवविद्यालय के इतिहास, स्ॉस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अन्तगर्त संचालित श्री राम शोध पीठ में शोध छात्रों के लिए प्रो० किरण कुमार थपलियाल पूर्व विभागाध्यक्ष प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विवविद्यालय, लखनऊ एवं प्रो० अमर सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विवविद्यालय, लखनऊ का व्याख्यान अभिलेखों एवं सिक्कों का महत्व एवं शोध शीर्षक परिकल्पना एवं शोध निष्कर्ष पर आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की शुरूआत में विभागाध्यक्ष प्रो० अजय प्रताप सिंह ने विषय का प्रवर्तन करते हुए शोध छात्रों को बताया कि आज उनके शोध के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। लखनऊ विवविद्यालय से आए हुए प्रो० किरण कुमार थपलियाल विव प्रसिद्ब इतिहासकारों की श्रेणी में आतें हैं, इनके अराीवचनोंे एवं सारगर्भित शोध परक व्याख्यान से आप बहुत ही लाभान्वित होगें। तत्पचात् प्रो० अजय प्रताप सिंह ने विभाग में पूर्व में हुए सभी कार्यक्रमों एवं व्याख्यानों को पावर प्वाइंट प्रेजेन्टेान के माध्यम से प्रर्दाित किया। साथ ही अयोध्या एवं फैजाबाद के विभिन्न पर्यटन स्थलों को भी प्रेजेन्टेान के माध्यम से सभी को अवगत कराया। उन्होनें विभाग की भावी योजनाओं के बारे में भी सभी को अवगत कराया, उन्होनें यह भी आवासन दिया कि ऐसे कार्यक्रम एवं शैक्षिक गतिविधियॉ विभाग में अनवरत चलती रहेंगी। उन्होनें यह भी बताया कि नवम्बर माह में विभागीय ािक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं द्बारा विवविद्यालय परिसर में स्वच्छता अभियान चालाया जायेगा।
मुख्य वक्ता लखनऊ विवविद्यालय से आये प्रो० किरण कुमार थपलियाल ने सर्वप्रथम निष्पक्ष इतिहास लिखने की वकालत की। उन्होनें कहा कि इतिहासकार को हमेाा यह प्रयास करना चाहिए कि वह सदैव निष्पक्ष हो। इतिहास का लेखन सदैव साहित्यक एवं पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर होना चाहिए। शोध का आधार स्रोत ही हैं। स्रोत का प्रबल होना आवयक है तभी हमारा निष्कर्ष निष्पक्ष एवं मापदण्ड के अनुरूप होगा। सिक्कों के सम्बन्ध में प्रो० थपलियाल ने कहा कि गूर्जर एंव प्रतिहार शासकों के सिक्कों मे हमेाा वाराह का ही चित्र मिलता है। एक राजा जो सिक्का चलाता है आने वाले सभी राजा उसका अनुसरण करतें हैं। समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में कुछ सिक्के ऐसे भी चालाये जिसमें वह स्वयं वीणा लिए हुए अंकित थे इससे संगीत के प्रति उनकी रूचि स्पष्ट होती है। प्रो० थपलियाल ने कहा कि इतिहास लेखन एवं शोध में अतिायोक्ति से हमेाा इतिहासकार एवं शोधकर्ता को बचना चाहिए। समय-समय पर नये साक्ष्यों के आधार पर इतिहास का भी सांोधन होते रहना चाहिए जिससे इतिहास में नये स्रोतों के प्रवेा के साथ-साथ निरन्तरता बनी रहती है। इतिहास सदैव बदलता रहता है और इतिहास के विद्यार्थी और शोधकर्ता होने के नाते नवीन स्रोतों के आधार पर सदैव इतिहास मे नवीनता लानी चाहिए। शोध कार्य करते समय तब तक किसी निष्कर्ष पर नही पहुॅचना चाहिए जब तक कि विषय से सम्बन्धित गहन अध्ययन न कर लिया जाए। उन्होनें कहा कि विदेाी यात्रियों ने सदैव हमारे समाज को अपने ढंग से देखा जाहे वह ह्यवेनसॉग रहा या फाहयान, मेगस्थनीज हो या अलबरूनी, जिसने भी लिखा भारतीय सभ्यता एवं समाज अपने ही ढंग देखा एवं लिखा। अंत मे उन्होनें कहा कि शोध में निष्कर्ष निकालनें में जल्दबाजी से बचना चाहिए अन्यथा निष्कर्ष सही मापदंड पर खरा नही उतरेगा। प्राचीनकाल के इतिहास के बारे में तमाम धारणाएं प्रतिपादित हैं लेकिन आपको प्रबल साक्ष्यों एवॅ अनुकूल स्रोतों के आधार पर ही अपना निष्कर्ष निकालना चाहिए। शोध कार्य करते समय सभी विद्बानों एवं इतिहासकारों के मत को जानना एवं उनका विलेषण करना आवयक होता है। अगर आप मुख्य पृष्ठ पर उनका विवरण नही दे पा रहे हैं तो फुटनोट में ही सही लेकिन उनके मत को र्दााना आवयक होता है, इससे आपका शोध गुणवत्ता परक होगा।
लखनऊ विवविद्यालय के ही प्रो० अमर सिंह ने अपने व्याख्यान का शुभांरभ करते हुए सर्वप्रथम विभाग की साफ-सफाई, स्वच्छता एवं शैक्षिक माहौल की तारिफ करते हुए कहा कि विभाग में प्रवेा करते ही पठन-पाठन एवं ािक्षा का जो माहौल दिखायी पडता है जिसके लिए मै विभागाध्यक्ष प्रो० अजय प्रताप सिंह को धन्यवाद देता हॅू कि उन्होनंे ने इतिहास विभाग में ऐसा उत्तम शैक्षिक वातावरण तैयार किया है। तत्पचात प्रो० अमर सिंह ने शोध प्रविधि के बारे में शोध छात्रों को विस्तार से बताया। उन्होनें कहा कि किसी भी शोध में वैज्ञानिकता का होना आवयक है। स्रोतों के आधार पर अतीत एवं इतिहास पर शोध करना सम्भव हो पाता है। शोध प्रारम्भ करते समय शोध शीर्षक एवं शोध निदेाक के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए विभाग के प्राध्यापक डॉ० राजेा सिंह ने शोध छात्रों का मार्गर्दान किया और कहा कि जब भी उनको शोध कार्य में कही कोई कठिनाइ आती है तो मै सदैव उसको दूर करने के लिए तत्पर रहूॅगा।
धन्यवाद ज्ञापन में प्रो० आलोक मणि त्रिपाठी ने प्रो० किरण कुमार थपलियाल एवं प्रो० अमर सिंह के द्बारा शोधपरक ओजस्वी व्याख्यान के लिए धन्यवाद दिया और व्याख्यान में पधारे हुए सभी आगुन्तकों, ािक्षकों, कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं एवं मीडियाकर्मियों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया।
विभाग की छात्रा प्रीति पाण्डेय, सरोज मिश्रा, ािप्रा सिंह, सबिनाज, ािवानी एवं जया पाण्डेय आदि छात्राओं ने सरस्वती वन्दना् एवं कुलगीत प्रस्तुत किया। विभाग के अन्य छात्र मनीष सिंह, ज्योत्सना, ािवानी आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम में प्रो० एस० के० गर्ग विभागाध्यक्ष सूक्ष्म जीव विज्ञान एवं विभागीय सहयोगी डॉ० नन्द किाोर तिवारी, डॉ० एम० पी० सिंह, डॉ० संजय चौघरी, डॉ० संग्राम सिंह, डॉ० प्रेमनाथ पाण्डेय, डॉ० सुधीर श्रीवास्तव, डॉ० आलोक मिश्रा, डॉ० महेन्द्र पाल सिंह, डॉ० देाराज उपाध्याय, ब्रहमानन्द गुप्ता, कैलाा चन्द्र पाण्डेय, आदित्य सिंह, जमील अहमद, श्रवण कुमार, हरीराम, गौरी शंकर एवं विभाग के वरिष्ठ अधीक्षक सै० हम्माद अकबर आदि उपस्थित थे।