क्या आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी व विभागों के बदलाव के पीछे उनकी खराब इमेज, बुरी परफॉरमेंस और अलोकप्रियता जिम्मेदार है/ ऐसा है तो विवादों में घिरे गायत्री प्रजापति जैसे लोग अब भी मंत्रिमंडल में कैसे बने हुए हैं/ सवाल यह भी है कि क्या मिशन 2017 को लेकर कमान अब पूरी तरह से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथ में होगी/ क्या अखिलेश अब अपनी पसंद का नया मंत्रिमंडल बनाने में एक बार फिर वैसा साहस दिखा सकेंगे, जैसा उन्होंने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बाहुबली डीपी यादव की पार्टी में एंट्री को अपने वीटो से रोककर किया था। इन सारे सवालों का जवाब शनिवार को राजभवन में सपा सरकार के बदले हुए मंत्रिमंडल के चेहरे को देखने से मिलेगा।
अगले चौबीस घंटे यूपी सरकार और समाजवादी पार्टी के लिए वाकई चुनौती भरे हैं। इस दौरान किए गए फैसलों से यह तय होगा कि पार्टी किस सोच के साथ चुनावों की तैयारी कर रही है। फिलवक्त सरकार के कई मंत्री आरोपों में घिरे हैं। उनसे न तो जनता खुश है और न ही पार्टी कार्यकर्ता व पदाधिकारी। हालांकि यह भी सही है कि पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री अखिलेश ने सरकार की इमेज बदलने की कोशिश की है। मेट्रो ट्रेन, इंटरनैशनल स्टेडियम, गोमती फ्रंट डिवेलपमेंट, लड़कियों की सुरक्षा, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे और टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की अच्छी कोशिशें चल रही हैं। लेकिन कानून-व्यवस्था का फ्रंट चिंता का विषय है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत यूपी के कई जिलों में हुए साम्प्रदायिक दंगे व टकराव से छवि काफी खराब हुई। खुद सरकार में शामिल कैबिनेट मंत्री आजम खां तक इस बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ को चिट्ठी लिख चुके हैं। बदहाल बिजली, शहरों में बढ़ते अतिक्रमण, बेहाल ट्रैफिक मैनेजमेंट और अवैध निर्माणों को लेकर भी लोगों में काफी नाराजगी है। यह माना जाता रहा है कि अखिलेश तो यूपी को ठीक करना• सपा को विधानसभा चुनाव सीएम अखिलेश की उपलब्धियों पर ही लड़ना है। पार्टी के लिए भी जरूरी है कि वह सीएम को मजबूत करे।अब मुख्यमंत्री और पार्टी नेतृत्व के लिए यह मौका है कि वह इमेज को बदल दें। इसके लिए जरूरी होगा कि मुख्यमंत्री भ्रष्ट, निष्क्रिय और विवादित विधायक-मंत्रियों पर सख्त हों। लिहाजा डीपी यादव को बाहर रखने जैसा साहस दिखाने की जरूरत है। साफ है कि समाजवादी पार्टी को अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपलब्धियों के आधार पर ही लड़ना है। जाहिर है ऐसे में पार्टी के लिए भी जरूरी है कि वह मुख्यमंत्री को मजबूत करे। यह मजबूती उन्हें अपनी पसंद की टीम से ही मिलेगी। मंत्रिमंडल को लेकर गुरुवार को जो भी फैसले हुए, उसके लिए निश्चित तौर पर पार्टी संगठन और मुख्यमंत्री को कार्यकर्ताओं और अपने सूत्रों से मिल रहे फीडबैक ही जिम्मेदार होंगे। अब देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी नेतृत्व और मुख्यमंत्री वाकई वोटबैंक के जातीय संतुलन को बनाए रखते हुए कौन से ऊर्जावान, युवा और अच्छी छवि के विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह देते हैं। या फिर सियासी व पारिवारिक मजबूरियां मंत्रिमंडल के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी पर पहले की तरह भारी पड़ती हैं।