पहले तो देश के कुछ लेखकों ने अपने पुरस्कार वापस उसी तरह किये थे जैसे कोई व्यक्ति माल हज़म करने के बाद खाली बर्तन वापस करके अपना "बड़प्पन" दिखाने की नाकाम कोशिश करे. जब कुछ और लोगों ने यह देखा कि इस नौटंकी से इन भूले बिसरे लोगों का रातों रात नाम हो गया है और मीडिया मे सब जगह इन्ही के गुणगान गाये जा रहे हैं तो उन लोगों ने सोचा कि क्यों ना वे लोग भी अपने इस्तेमाल किये हुये पुरस्कारों को वापस करके कुछ नाम कमा लें क्योंकि अगर यही पुरस्कार अगर किसी कबाड़ी को बेचे जाएं तो शायद वह इन्हे लेने से ही इंकार कर दे. लिहाज़ा जिन जिन लोगों को लोग पूरी तरह भूल चुके थे, उन लोगों ने मीडिया की सुर्खियाँ बटोरने के लिये अपने पूरी तरह इस्तेमाल किये हुए "पुरस्कारों" को लौटना शुरु कर दिया. जब यह जानने और समझने क़ी कोशिश की गयी कि आखिर यह लोग अपने इन इस्तेमाल किये हुये तथाकथित पुरस्कारों को किसके इशारे पर लौटा रहे हैं तो निम्नलिखित तथ्य प्रकाश मे आये जो सभी पाठकों की सूचना के लिये यहाँ दिये जा रहे हैं :
1. देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेमन की हत्या करके भारत सरकार ने जो अक्षम्य पाप किया है, उससे यह सभी तथाकथित लेखक, वैज्ञानिक, फ़िल्मकार और इतिहासकर बुरी तरह आहत हुये हैं. याकूब को बचाने के लिये इन लोगों ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया-यहाँ तक कि रात को दो बजे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की नींद तक हराम कर दी. महामहिम राष्ट्रपति ने भी इन लोगों को बहुत निराश किया और इनका प्यारा याकूब मेमन इनकी इच्छा के खिलाफ वेवजह ही "महाप्रस्थान" कर गया, जिसके लिये यह सभी लोग "मोदी" और "भाजपा" को माफ नही कर पा रहे हैं-इनके पास विरोध का वास्तव मे कोई और तरीका नही बचा है और लोग इनकी मजबूरी को समझे बिना इनका मज़ाक बनाये चले जा रहे हैं.
2.जब से केन्द्र मे मोदी सरकार आई है, पाकिस्तान की तरफ से आने वाले इनके मित्रों को या तो सीमा के अंदर घुसने ही नही दिया जाता है, या पकड लिया जाता है या फिर मार गिराया जाता है-लिहाज़ा इनके यह "अभिन्न" मित्र देश के अंदर घुसपैठ करने के बाद जो जगह-जगह बम धमाके करके मुफ्त मे ही इन्हे दिवाली का आनन्द देते थे, इनका वह सारा दीवाली का जश्न अब बंद हो चुका है-इनके लिये दरअसल "माहौल" बिल्कुल ही प्रतिकूल हो चला है या सीधी सीधी भाषा मे कहें तो "माहौल" खराब हो चुका है, जिसकी पूरी जिम्मेदारी "मोदी" सरकार पर आती है और ये बेचारे अगर "इस्तेमाल किये गये पुरस्कारों" को ना लौटाएं तो आखिर क्या करें ?
3. मोदी सरकार ने ना सिर्फ याकूब मेमन को मार गिराया, बल्कि इनके कई शुभचिंतकों को सीमा पार करते हुये रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया है. छोटा राजन की हालिया गिरफ़्तारी से भी इन लोगों के पेट मे जो दर्द हुआ है, उसका इलाज़ देश मे मौजूद कोई भी डॉक्टर नही कर सका-लिहाज़ा किसी ने इन्हे सलाह दे डाली कि अपने पुराने इस्तेमाल किये हुये "पुरस्कार" वापस करके देख लो-शायद पेट का दर्द सही हो जाये.
4. पिछले 60 सालों से देश मे जब "रामराज्य" चल रहा था और जब इन्हे वेवजह ही इनकी "विशिष्ट सेवाओं" के लिये पुरस्कार पकड़ा दिये गये थे-तब इन लोगों ने "अन्धे-गूंगे-बहरे" होने की कसम खा रखी थी, आज जब वह 60 सालों से चला आ रहा "रामराज्य" खत्म हो चुका है, तो इन लोगों ने अपने "अन्धे-गूंगे-बहरे" होने की वह कसम तोड डाली है- अब कहीं जाकर इन्हे यह मालूम पड़ा है कि देश का माहौल "मोदी" सरकार खराब कर रही है और उस माहौल को ठीक करने के लिये इन बेकार पड़े "पुरस्कार के खाली डब्बे" की बलि चढाकर ही यह लोग शूरमा भोपाली बनना चाहते है तो लोगों के पेट मे क्यों दर्द हो रहा है ?
5. कुछ स्व-घोषित इतिहासकारों ने पिछले 60 सालों की "व्यवस्था" मे जिस तरह से "मनगढ़ंत" तरीके से इतिहास को प्रस्तुत किया था और जिस बेशर्मी के साथ बाबर और औरंगज़ेब जैसे लोगों का महिमामंडन किया था-उन्हे भी लगने लगा कि उनकी यह कारगुजारियाँ अब ज्यादा दिन नही चल सकेंगी, लिहाज़ा उन्हे पुरस्कार तो मिले ही नही थे, जिन्हे वह वापस् कर पाते, लिहाज़ा ये लोग खाली पीली ही अपना विरोध दर्ज़ कराने के लिये अपने आकाओं की सेवा मे हाज़िर हो गये.