अभी तक माना जाता था कि कम पढ़े-लिखे, शराबी, जुआरी या अय्याश किस्म के गरीब पति ही अपनी पत्नी की कमाई को हड़प लेते हैं और यदि वह नहीं देती है तो मार ठोकर उससे छीन लेते हैं। लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन साफ करने वाली बाइयों के साथ तो यह हमेशा होता है कि उनके शराबी पति की नजर सदैव पत्नी की आमदनी पर लगी होती है। जिससे वे अपनी शराब की लत की पूर्ति करते हैं, लेकिन अब पत्नी की कमाई पर पढ़े-लिखे, ऊँचे ओहदे पर और अच्छा कमाने वाले पतियों की भी नजर हो गई है और वे उसे बहला-फुसलाकर या जबर्दस्ती उसे प्राप्त करते ही रहते हैं।
माना कि पत्नी भी परिवार के लिए कमा रही है। वह अपनी कमाई को मायके वालों पर तो लुटा नहीं रही कि पति को आपत्ति हो। यदि वह अपनी आमदनी का कुछ भाग अपने मायके वालों को देती भी है तो इसमें पति को आपत्ति नहीं होना चाहिए क्योंकि जब पति अपनी आमदनी का कुछ भाग अपने पेरेन्ट्स को भेज सकता है तो पत्नी ऐसा क्यों नहीं कर सकती, वह भी अपनी कमाई से पत्नी अपने मायके वालों की मदद करे या नहीं या कितनी मदद करे, यह फैसला उसी पर छोड़ देना चाहिए। इस बात को लेकर पति-पत्नी के बीच किटकिट होना ठीक नहीं।
यदि पत्नी कमाती है तो उसका अलग से बैंक खाता खुलवाने में क्या हर्ज है? उसकी बचत उसमें रखी जा सकती है। इससे पत्नी का आत्मविश्वास बढ़ता है। पत्नी की यह बचत वक्त जरूरत पड़ने पर परिवार के ही तो काम आती है। जो पति पत्नी की आमदनी को अपने खाते में डालते हैं, वे पत्नी की नजर में गिर जाते हैं क्योंकि इससे उनका स्वार्थीपना झलकता है।
जो पत्नी कमाती है उसे खर्च करने की आजादी तो होनी ही चाहिए अन्यथा उसका सारा परिश्रम व्यर्थ है। कोई भी पत्नी अपनी कमाई से गुलछर्रे नहीं उड़ाती और न ही फिजुलखर्ची करती है लेकिन पति की नजर में वह गुलछर्रे उड़ाना या फिजूलखर्ची ही होता है। पति चाहे जिस ढंग से खर्च करे, वह जायज और पत्नी करे तो नाजायज। कैसी विकृति मानसिकता है पुरुषों की?
अब से कुछ दशक पहले तक महिलाएं भले ही कमाती थीं लेकिन उनकी कमाई को खर्च नहीं किया जाता था, अपितु बचत के रूप में रखा जाता था। जो वक्त जरूरत पड़ने पर परीक्षा को संकट से उबारती थी लेकिन आज स्थिति उलटी है। लड़के उसी लड़की से शादी करना पसंद करते हैं जो कामकाजी हो, जिसकी आमदनी अच्छी हो। यानी वह लड़की की शक्ल सूरत पर नहीं, उसकी आमदनी पर ध्यान देते हैं यदि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी उनके बस में हो जाए तो पति के तो बल्ले-बल्ले।
ऐसे पति भी कम नहीं हैं जो स्वयं कुछ नहीं करते या करना नहीं चाहते क्योंकि उनकी पत्नी कमाऊ है और वे उसकी कमाई पर ऐश करना चाहते हैं। जब पत्नी पचास हजार रुपए माह कमाए तो पति क्योंकर काम करे। विडम्बना तो यह है कि बेरोजगार, निकम्मा या बेकमाऊ पति अपने पति होने का हक जताकर पत्नी की आमदनी को छीन लेता है। ऐसा करना वह अपनी मर्दानगी समझता है। पता नहीं यह कैसी मर्दानगी है?
पत्नी अपने घर परिवार के लिए ही कमाती है और उसी पर खर्च करना भी चाहती है पर उसकी कमाई पर पति का हक जताना ठीक नहीं। इससे पति को पुरुष होने के अहम् की संतुष्टि भले ही होती हो लेकिन इससे पत्नी के स्वाभिमान और सम्मान को ठेस अवश्य पहुंचती है। पत्नी अपनी आमदनी पति को स्वेच्छा से दे, वह बात अलग है, इससे पति पत्नी के बीच माधुर्य बढ़ता है लेकिन उसे जबर्दस्ती छीनना दांपत्य के रिश्तों में कड़वाहट ही घोलती है।