पच्चीस रुपये महीना में आल इंडिया रेडियो में 'फतेहदीन' नाम के एक प्रोग्राम में काम करने वाले ओमप्रकाश बक्षी एक रईस घर से ताल्लुक रखते थे। गौरतलब है कि 'फतेहदीन' अपने जमाने का एक बहुत ही सुपर हिट रेडियो प्रोग्राम था।
एक बहुत ही अच्छे खासे रईस खानदान में १९ दिसंबर १९१९ को लाहौर में जन्मे ओमप्रकाश का बचपन बहुत ही मस्तमौला तरीके से गुजरा। पैसो की कोई कमी नहीं और शौक बहुत होने की वजह से अपना दिल कला से लगा लिया। तीन भाई और एक बहन में से एक ओमप्रकाश रामलीला में भी काम करते, शौकिया नाटक लिखते और उनका मंचन करने लगे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी रूचि रही, बारह बरस तक अपने गुरु भाईलाल से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली।
आल इंडिया रेडियो में ही फिल्म अनारकली के लेखक 'सैयद इम्तियाज अली' से मुलाक़ात हुई। आल इंडिया रेडियो में बरसों काम करने के बाद भी दूसरे लोगो की पगार बढ़ती गई और उन्हें चालीस रुपये मासिक ही मिलता था। अभिनय के लिए जूनून इस कदर था कि एक दिन इस्तीफा दे दिया। आजादी के पहले ही लाहौर फिल्म इंडस्ट्री से निर्माता दलसुख पंचौली ने फिल्मों में काम करने का न्योता दिया। पहली फिल्म 'दासी' में अभिनय किया। उसके बाद 'धमकी' फिल्म आई। सबकुछ ठीक चल रहा था कि १९४७ में लाहौर में भड़के दंगों की वजह से जान बचा कर हिन्दुस्तान आ गए।
बम्बई पहुँच कर बहुत ही संघर्ष करना पड़ा। फाकामस्ती के दौर में भी मस्त मौला ओमप्रकाश साहब ने अपना हौसला कभी नहीं खोया। अपनी जवानी के दिनों से ही प्राण साहब से अच्छी दोस्ती रही, और दोनों के बीच जबरदस्त केमिस्ट्री ढेरो फिल्मों में दिखाई देती रही। एक स्थापित कलाकार बन जाने के बाद भी छोटी से छोटी भूमिका करने के तैयार हो जाते थे।उनके प्रभावित होकर दूसरे कलाकार भी ऐसा करने लगे। इस तरह फिल्मों में मेहमान कलाकार के रूप में काम करने की शुरुआत का श्रेय ओमप्रकाश को ही जाता है।
संगीतकार सी. रामचंद्र से ओमप्रकाश की अच्छी दोस्ती थी। इन दोनों ने मिलकर ‘दुनिया गोल है’, ‘झंकार’, ‘लकीरे’ आदि फ़िल्मों का निर्माण किया। उसके बाद ओमप्रकाश ने खुद की फ़िल्म कंपनी बनाई और ‘भैयाजी’, ‘गेट वे ऑफ इंडिया’, ‘चाचा ज़िदांबाद’, ‘संजोग’ आदि फ़िल्मों का निर्माण इस कम्पनी के अंतर्गत किया। राजकपूर और नूतन अभिनीत 'कन्हैया' फिल्म का निर्देशन किया। निर्देशक के रूप में उनकी एक और फिल्म 'गेटवे ऑफ़ इंडिया' भी आई। किन्तु अभिनय ही पहली मुहब्बत रहा।
बहुत ही सरल स्वभाव के ओमप्रकाश हँसते हँसाते रहते थे। मगर उन्होंने कभी किसी की हँसी नहीं उड़ाई। सभी फ़िल्मी कलाकार उनकी बहुत इज़्ज़त किया करते थे। एक बार मद्रास में किसी फ़िल्म की शूटिंग के बाद पार्टी के दौरान अभिनेता संजय खान ने शराब के नशे में धुत होकर उन पर कुछ तंज कसे, कुछ अनाप शनाप बोलते चले गए। ओमप्रकाश चुप रहे। धर्मेन्द्र से देखा नहीं गया। उन्होंने संजय खान को समझाने की कोशिश की मगर संजय खान कुछ ज्यादा ही नशे में थे। हीमैन धर्मेन्द्र जी ने वहीँ सब के सामने संजय खान को एक जोरदार धप्पड़ रसीद कर दिया। बाद में फिरोज खान से धर्मेन्द्र ने माफ़ी मांगी तो फिरोज खान ने कहा - "कोई बात नहीं, ऐसी गलती की ऐसी ही सजा मिलना चाहिए। मैं वहाँ नहीं था, मेरा काम तुमने कर दिया, अच्छा किया।
उन्होंने दिलीप कुमार,राज कपूर, देवानंद, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, जीतेन्द्र सहित मिथुन चक्रवर्ती और अनिल कपूर के साथ भी अपनी बेहतरीन परफॉरमेंस दी। अमिताभ बच्चन की 'जंजीर' फिल्म में बूढ़े पुलिस इनफॉर्मर डीसिल्वा, 'नमक हलाल' के दद्दू दशरथसिंग़ और 'शराबी' के मुंशी फूलचंद को भी कोई भूल सकता है भला?
ओमप्रकाश ने अमीरी और गरीबी दोनों देखी थी, इसलिए पैसा कभी उनके लिए बहुत बड़ी चीज नहीं रहा। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले छोटे स्टाफ और स्पॉट ब्याय आदि के दुःख में भी अपनी तरफ से हर संभव मदद किया करते थे। उनके बच्चों की स्कूल फीस और लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया करते थे। उनके स्वयं के कोई बच्चे नहीं थे। अपने छोटे भाई के बच्चों को ही अपने बच्चों की तरह पढ़ाया लिखा कर काबिल बनाया।
ओमप्रकाश ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था- 'सभी साथी एक एक करके चले गए। आगा, मुकरी, गोप, मोहनचोटी, कन्हैयालाल, मदनपुरी, केश्टो मुकर्जी आदि चले गए। बड़ा भाई बख्शीजंग बहादुर, छोटा भाई पाछी, बहनोई लालाजी, पत्नी प्रभा सभी तो चले गए....
२१ फरवरी १९९८ को मुंबई में महान कलाकार ओमप्रकाश जी का निधन हुआ।
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उनसे जुड़े कुछ तथ्य
• ‘मैंने कई फ़ाकापरस्ती के दिन भी देखे हैं, ऐसी भी हालत आई जब मैं तीन दिन तक भूखा रहा। मुझे याद है इसी हालात में दादर खुदादाद पर खडा था। भूख के मारे मुझे चक्कर से आने लगे ऐसा लगा कि अभी मैं गिर ही पडूंगा। क़रीब की एक होटल में दाखिल हुआ। बढिया खाना खाकर और लस्सी पीकर बाहर जाने लगा तो मुझे पकड लिया गया। मैनेजर को अपनी मजबूरी बता दी और 16 रुपयों का बिल फिर कभी देने का वादा किया। मैनेजर को तरस आ गया वह मान गया। एक दिन 'जयंत देसाई' ने मुझे काम पर रख लिया और 5,000 रुपये दिए। मैंने इतनी बडी रकम पहली बार देखी थीं। सबसे पहले होटल वाले का बिल चुकाया था और 100 पैकेट सिगरेट के ख़रीद लिए।’
• कई रंगारंग व्यक्ति उनके जीवन में आए। इनमें चार्ली चैपलिन, पर्ल एस.बक, सामरसेट मॉम, फ्रेंक काप्रा, जवाहरलाल नेहरू जी भी शामिल हैं।
• ओमप्रकाश के समय में
हिंदी फ़िल्मों के बडे सितारे मोतीलाल, अशोककुमार, और
पृथ्वीराज हुआ करते थे। अपने समय में लोग उन्हें ‘डायनेमो’ कहा करते थे।
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प्रमुख फिल्में
हावड़ा ब्रिज (१९५८), दस लाख (१९६६), प्यार किये जा (१९६६), पड़ोसन (१९६८),चुपके चुपके (१९७५), नमक हलाल (१९८२), गोलमाल (१९७९), चमेली की शादी (१९८६), शराबी(१९८४) और लावारिस (१९८१)