यह सवाल इसलिए है क्योंकि टि्वटर, फेसबुक, सोशल मीडिया पर हिंदू का बोलना ट्रेंड बनाने लगा है। हिंदू हल्ला करने लगा है। वह अमेरिका, ब्रिटेन सब जगह नरेंद्र मोदी को हीरो बना रहा है। वह सेकुलर लोगों का चेहरा काला करने लगा है। यह विचित्र और डरावना है। डरावना दूसरों के लिए नहीं बल्कि असंख्य हिंदुओं के लिए भी है। ध्यान रहे मुसलमान या ईसाई न डरता है और न डर सकता है। ठीक विपरीत डर के जिंस हिंदू के हैं और वजह उसका गुलाम इतिहास है। हां, तथ्य है, ज्ञात इतिहास की भारत हकीकत है कि हिंदू गुलाम अधिक रहा है। ईसा बाद के दो हजार साल में हिंदू जैसे जीया है वह तलवार की मार है। तलवार लगातार चली या लटकी रही है। मुसलमान, अंग्रेज सबका वह दास रहा। गुलाम रहा। अब गुलाम की नियति के दो ही रूप हैं। वह डरा रहेगा और मौन रहेगा। दुनिया की तमाम सभ्यताओं में हिंदू में डर स्थाई भाव है। वह डर-डर कर जीया है।
ऐसे में भला वह आज कैसे निर्भय हो रहा है? वह क्योंकर बोल रहा है?
1947 में निर्मित भारत राष्ट्र-राज्य की बुनावट का सत्व-तत्व डर और मौन है। राष्ट्र-राज्य डर पर गढ़ा हुआ है। तभी भारत हिंदू बहुल है पर हिंदू नहीं है! लोग धर्म आस्था में रचे-बसे हैं लेकिन भारत नहीं रचा-बसा है। इसलिए कि जब सदियों-सहस्त्राब्दियों से दिल्ली का तख्त अहिंदू रहा है, हिंदू गुलाम रहा है तो वह भला राजा कैसे हो सकता है? सभ्यताओं के वैश्विक परिपेक्ष्य को ले या अपने इतिहास के क्रम को, हिंदू सिर उठा कर चले, राजा बने, अपने धर्म, अपनी संस्कृति का हुंकारा मारे इसकी न हम सोच सकते हैं और न शायद दुनिया चाहेगी।
तभी 1947 की आधी रात नेहरू ने भारत की नियति सेकलुर गढ़ी। एक ऐसा आवरण बनाया जिसमें हिंदू नहीं है और है भी। वैसे ही जैसे नेहरू दिल्ली में नेहरू थे लेकिन फूलपुर में पंडित! हिंदू हैं भी और नहीं भी। संदेह नहीं कि राष्ट्र-राज्य की आधुनिक अवधारणा का यह मान्य मुखौटा है। योरोपीय देश, अमेरिका याकि लोकतंत्र की पश्चिमी अवधारणा से यह निकला हुआ है। पर इन देशों का मुखौटा कूट-कूट कर इसाईयत, धर्म-संस्कृति-सभ्यता के सत्व-तत्व के लेप से बना हुआ है। ये सेकुलर हैं, आधुनिक, लिबरल हैं लेकिन पोप के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं। ये अपने धर्म-कर्म की श्रेष्ठता के लिए, जीवन जीने के अपने अंदाज के लिए क्रूसेड भी कर डालते हैं।
जबकि नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया, आधी रात के अंधेरे में न हिंदू मशाल है और न देश, कौम का सांस्कृतिक गौरव है! इसलिए कि एक तो इतिहास की ऐसी विरासत नहीं रही है। फिर गुलाम जींस, मनोवृति का यह डर गहरे पैठा हुआ है कि बड़ी मुश्किल से दिल्ली का तख्त अपना बना है और यह तभी बना रह सकता है जब मुसलमान का भरोसा बना रहे। उसकी तलवार म्यान में रखी रहे। वह हिंदू से खतरा महसूस न करे।
यही भारत के सेकुलर चिंतन का मूल तत्व है। यह तत्व दिनों लड़खड़ाया हुआ है। एक तो हिंदू की बात करने वाला संघ परिवार सत्ता में है। उसके खांटी प्रचारक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। खाटी स्वंयसेवक अमित शाह हिंदू विचारधारा को अखिल भारतीय बना देने का संकल्प लिए हुए हैं। तीसरे हिंदू नौजवान मुखरता के साथ यह बात करने लगे हैं कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं। ये हिंदू भारत के सेकुलर आवरण के भीतर चाहने लगे हैं कि उसकी आस्था, उसके धर्म का वैसे ही सम्मान हो जैसे बाकी देश व सभ्यताएं अपने धर्म-कर्म की पोषक, संरक्षक होती है। हिंदू आज गोमांस पर पाबंदी चाहता है। पाकिस्तान से खून का बदला खून में चाहता है तो मुसलमान से आंख से आंख मिला कर व्यवहार भी चाहता है।
सोचें, यह सब उन हिंदुओं के लिए कितनी कंपकंपा देने वाली बात है जिनका जिंस, परिवेश, इतिहास सब गुलामी में ढला,बसा है। उस नाते सेकुलर जमात की नींद उड़ा होना स्वाभाविक है। इन्हें डर है कि नेहरू की बनाई सेकुलर बगिया उजड़ी तो भारत बरबाद हो जाएगा। ये सेकुलर इंसानियत के तकाजे से चिंता में नहीं हैं। इसलिए कि इंसानियत का तकाजा तो यह भी है कि यदि 15 प्रतिशत मुसलमान मान-सम्मान से रहे, उनकी आस्था के आचार-विचार, शरियत की पालना हो तो 80 फीसद हिंदुओं के धर्म की आस्था के भी कानून बने। इंसानियत की तराजू पर दोनों पलड़े बराबर हुआ करते हैं। यह नहीं होता कि अल्पसंख्यक का पलड़ा भारी रहे और बहुसंख्यक का हल्का। कश्मीर के मुसलमानों को सिर आंखों बैठाया जाए और वहां के पंडितों को बसाने की सोची तक न जाए।
सो सरोकार इंसानियत वाला नहीं है बल्कि इस डर का है कि मुसलमान नाराज न हो। उन्हें मना कर, पटा कर चलेंगे तभी भारत राष्ट्र-राज्य बना रह सकेगा। राष्ट्र को खतरा इसलिए है क्योंकि इस्लाम के बंदों ने तलवार ले कर बार-बार हमें जीता है। हम पर राज किया है। इस्लाम की ताकत के आगे हिंदू जीरो है। एक तरफ पाकिस्तान, दूसरी तरफ बांग्लादेश, तीसरी और देश के भीतर करोड़ों- करोड़ मुस्लमान और दुनिया में इस्लामी राज का डंका बजाए बगदादी व बिन लादेन जैसे चरमपंथियों के किस्म-किस्म के सेनानी।
इतना बड़ा खतरा और इसमें कोई साध्वी, कोई महंत, कोई मुख्यमंत्री यह तड़का मारे कि मुसलमान को भारत में रहना है तो गोमांस खाना बंद करना होगा।
उफ! ऐसा कहना? क्या कंपकंपी नहीं छूटा देता? तभी अमित शाह को भी बयानबहादुरों को बुला कर कहना पड़ा ऐसा मत बोलो।
पर बोलना रुकने वाला नहीं है। क्यों? इस पर इसी सप्ताह आगे बात करेंगे।