मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। अखिलेश मंत्रिमंडल में 5 कैबिनेट, 8 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 8 राज्यमंत्रियों सहित कुल 21 नए चेहरे शामिल किए गए। इस मंत्रिमंडल विस्तार में आखिर किसकी छाप है? सपा सुप्रीमों की, अखिलेश यादव या फिर चुनाव के मद्देनजर क्षेत्रीय-जातीय समीकरणों की?
8 मंत्रियों की हुई थी छुट्टी
सीएम अखिलेश यादव ने गुरुवार को ही सख्त कदम उठाते हुए अपने 8 मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था और 9 मंत्रियों से उनके विभाग छीन लिए थे। इसके बाद से ही कैबिनेट में विस्तार तय था। हालांकि इससे पहले से ही अटकलें लगाईं जा रहीं थी कि पंचायत चुनाव और बिहार चुनाव की तश्वीर सामने आने के तुरंत बाद मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव किया जाएगा। लेकिन इससे पहले ही अखिलेश यादव ने अपने नए मंत्रिमंडल का विस्तार कर सभी को चौंका दिया।
मुलायम का असर-
साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अखिलेश यादव ने कैबिनेट में फेरबदल किया है या सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह की फटकार के बाद ये फैसला लेने की उनकी मजबूरी। ज्ञात हो कि नेताजी कई बार अखिलेश यादव की कार्यशैली पर उंगली उठा चुके हैं। एक सार्वजनिक समारोह में तो उन्होंने सरेआम उनको डांट दिया। इसके साथ ही मुलायम सिंह ने अखिलेश सहित समाजवादी पार्टी के मंत्रियों को भी अपने कार्यशैली में सुधार कर जनता के बीच जाने की सख्त हिदायत दे डाली। मुलायम ने सपा के मंत्रियों को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर इसी तरह से आप लोग मनमौजी करते रहे तो इसका अंजाम चुनाव में भुगतना पड़ेगा। इतना ही नहीं नेता जी ने सभी मंत्रियों को आगाह किया कि अगर वह जनता के बीच नहीं जाते है तो इस बार उन्हें हार का मुंह देखने से कोई नहीं रोक सकता। राजनीतिक जानकार तो यही अनुमान लगा रहे हैं कि ये अखिलेश का फैसला नहीं बल्कि उनकी मजबूरी है।