बिहार के राजनीतिक गलियारे में बह रही बयार भाजपाके प्रतिकूल दिखाई दे रही है। यह बात विभिन्न रिपोर्टों के जरिये सार्वजनिक हो चुकी है। राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि भाजपा ने बिहार को बिहार नहीं समझने की ऐतिहासिक भूल की ओर है।मसलन उत्तर बिहार के लिहाज से मुजफ्फरपुर सबसे महत्वपूर्ण शहर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह पूरे उत्तर बिहार का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है। संभवत: यही वजह रही कि केंद्र सरकार ने जब स्मार्ट सिटी में शामिल किए गए शहरों की सूची जारी की तब उसमें मुजफ्फरपुर का नाम भी शामिल था। जाहिर तौर पर यह बेवजह नहीं था।असल में भाजपा मुजफ्फरपुर को स्मार्ट सिटी के रूप में उद्घोषित कर पूरे उत्तर बिहार पर प्रभाव छोड़ना चाहती थी। लेकिन मुजफ्फरपुर की जनता विकास का मतलब समझती है और यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार में मुजफ्फरपुर की धरती से चुनावी शंखनाद किए जाने के बावजूद आम जनता में नीतीश कुमार की विकासपरक छवि बरकरार रही और हालत यह हुई कि प्रधानमंत्री को मुजफ्फरपुर दोबारा आना पड़ा। मसलन, जिले के गायघाट विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने वीणा देवी तो राजद नेमहेश्वर प्रसाद यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं समाजवादी पार्टी ने देवेंद्र प्रसाद यादव को मैदान में उतारकर यादव मतदाताओं में सेंधमारी का प्रयास किया है।पिछली बार भी यहां लड़ाई वीणा देवी और महेश्वर प्रसाद यादव के बीच ही रही थी। लेकिन तब भाजपा जदयू के साथ थी और इस बार जदयू राजद के साथ। पिछली बार दोनों उम्मीदवारों के बीच 15 हजार 987 मतों का अंतर था और जीत भाजपा उम्मीदवार वीणा देवी को मिली थी। राजनीतिक अंकगणित के लिहाज से यहां लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा की है, लेकिन जीत उसी को मिलेगी जिसे अति पिछड़ा वर्ग चाहेगा। वजह यह है कि यहां के राजनीतिक अंकगणित में इन तबके को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वहीं औराई विधानसभा क्षेत्र में भी जाति विकास पर भारी पड़ रही है। यह कोई नई बात नहीं है।
पिछली बार यानी वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भी जाति ही फैक्टर थी और इस बार भी है। पिछली बार औराई से भाजपा के टिकट पर रामसूरत राय 38 हजार 422 मत लाकर विजयी हुए थे जबकि राजद के सुरेंद्र कुमार 26 हजार 665 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भी लड़ाई वहीं है। अंतर केवल इतना है कि पिछली बार भाजपा को नीतीश कुमार का साथ मिला था और इस बार वे राजद के साथ हैं। लड़ाई अब भी पुरानी ही है।
भाजपा ने रामसूरत राय तो राजद ने सुरेंद्र कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं मीनापुर का बाजार बहुत लोकप्रिय है। गांव का यह बाजार एक समय पूरे बिहार में लोकप्रिय हुआ करता था और कहना अतिश्योक्ति नहीं कि उत्तर बिहार के समुन्नत कुटीर उद्योग का प्रतीक था। अब यह बात अतीत की हो गई है। वैसे चुनावी माहौल में राजनीति का बाजार यहां हमेशा प्रभावित करता आया है। यही हालात इस बार भी हैं। पिछली बार यह सीट जदयू के दिनेश प्रसाद ने भाजपा की मदद से जीती थी, इस बार यह सीट राजद के खाते में है।राजद ने राजेश कुमार उर्फ मुन्ना यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि भाजपा ने अजय कुमार पर दांव लगाया है। पिछली बार की बात करें तो जदयू के दिनेश कुमार ने राजद के राजेश कुमार उर्फ मुन्ना यादव को करीब सात हजार मतों के अंतर से हराया था। खास बात यह है कि यादव बहुल इस इलाके में नीतीश कुमार की अच्छी पकड़ है और इसकी वजह भी जातिगत ही है। हालांकि यह कुशवाहा मतदाताओं पर अधिक निर्भर करेगा कि वह उपेंद्र कुशवाहा को अपना नेता मानते हैं या फिर अब भी उन्हें नीतीश कुमार पर विश्वास है। जबकि भाजपा के लिहाज से सवर्ण मतदाता और कुशवाहा मतदाता अधिक महत्वपूर्ण हैं। जबकि कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि रमई राम बोचहां की पहचान बन चुके हैं।
इस बार भी बोचहां की रणभूमि में उनकी राह आसान नजर आ रही है। वजह यह है कि भाजपा गठबंधन यहां एक साथ दो उम्मीदवारों के द्वंद्व में फंसा है। पहले यहां से भाजपा गठबंधन ने बेबी पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन बाद में रामविलास पासवान ने अपने नाराज दामाद अनिल कुमार साधु को उम्मीदवान बनवा दिया। हालत यह है कि बेबी पासवान ने भी मैदान नहीं छोड़ा है वे निर्दलीय होने के बावजूद स्वयं को भाजपा गठबंधन का प्रत्याशी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं। वहीं वे श्री साधु पर बाहरी होने का आरोप भी लगा रही हैं। लिहाजा रमई राम के लिहाज से न सही भाजपा खेमे के लिए बोचहां की लड़ाई जरूर दिलचस्प हो गई है। रही बात जनता की तो वह सब जानती है। सकरा सुरक्षित क्षेत्र वैसे तो दलितों के लिए आरक्षित है, लेकिन पूरी लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा की है।पिछली बार जदयू के सुरेश चंचल ने करीब तेहर हजार मतों के अंतर से राजद के लालू बाबा राम को हराया था। वहीं कांग्रेस के उमेश कुमार रवि ने 6242 मत हासिल किए थे। इस बार गठबंधनों की अदलाबदली से राजनीतिक समीकरण भी बदले हैं, लेकिन खास बात यह है कि लड़ाई की धार वही है। इस बार भाजपा ने अर्जुन राम को तो राजद ने लालबाबू राम पर विश्वास जताया है। वहीं मुजफ्फरपुर जिले के इन दो विधानसभा क्षेत्रों में खासियत यह है कि चेहरे भले ही अलग-अलग हों, लेकिन लड़ाई एक है।
मसलन कुढ़नी में जदयू मनोज कुमार सिंह को मैदान में उतार कर पिछड़ों के साथ अगड़ों का वोट लेने का प्रयास किया है, तो भाजपा ने केदार गुप्ता को उम्मीदवार बनाकर वैश्य वर्गके साथ सवर्णों पर निशाना साधा है। जबकि मुजफ्फरपुर शहर में लड़ाई का आधार सीधे-सीधे अगड़ा बनाम पिछड़ा है। वजह यह है कि भाजपा ने भुमिहार जाति के सुरेश शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है तो जदयू ने अति पिछड़ा वर्ग के बिजेंद्र चौधरी को पर दांव आजमाया है। सनद रहे कि श्री चौधरी पहले भी मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और इलाके में इनकी अच्छी पकड़ है।
पिछली बार भाजपा के सुरेश शर्मा को नीतीश कुमार के कारण पिछड़ा वर्ग का वोट खासकर कुशवाहा समाज का वोट मिला था जिसके कारण उन्हें जीत मिली थी। जबकि राजद-लोजपा की ओर मो. जमाल मैदान में थे। लड़ाई तब हिन्दू बनाम मुस्लिम हो गया था। लेकिन इस बार तो लड़ाई की परिपाटी ही बदल चुकी है।