मैं नहीं मानूंगा कभी इस बात को , ये तो कभी नहीं हो सकता । मैं तो कभी मान ही नहीं सकता हूं कि तुम और शादी नहीं करना चाह रहे थे । तू तो अब चुप ही रह ... मुं
प्रशांत के दोस्त उसका इस तरह गुस्से में मुस्कुराने की वजह जानते थे , इसलिए उसके एक दोस्त ने उसके दिमाग में इस समय जो बात चल रही थी उसे जानकर प्रशांत से कहा — ऐसा होता
प्रशांत की मां उसके चेहरे पर आते - जाते भाव को देखकर कुछ - कुछ समझ जाती है , कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है । तो वह उससे कहती हैं ; देख तू कोई भी प्लान बना ले या कुछ भी करने की कोशिश कर ले , ल
प्रशांत अपने ऑफिस में बैठे हुए बोर हो रहा था । आज ऑफिस में उतना काम नहीं था । वह कुर्सी पर बैठे हुए इधर-उधर ऑफिस में देख रहा था और अपने मन को बहला रहा था । आज उसका मन बिल्कु
मानवी मिस्टर सिकरवार से बोलती है — अरे .... अरे ..... अंकल यह फर्श एकदम साफ है और वही मेरा सैंडल इसके आगे कितना गंदा लग रहा है और इसमें कितनी मिट्टी भी लगी हुई है । मै
फाइनली आज मानवी का सपना पूरा होने वाला था । वह काफी खुश थी शहर जाने के लिए । थोडी देर बाद मानवी को लेकर मिस्टर सिकरवार बाहर आ गए और गाड़ी के तरफ चल
अगले दिन मिस्टर सिकरवार दोपहर में पाठक जी के घर आ गये मानवी को अपने साथ ले जाने के लिए । मानवी मिस्टर सिकरवार को देखकर बहुत खुश हो गई । उसे शहर जाने कि इतनी जल्दी थी
( अगर मानवी बड़े घर की बेटी होती और शहर से होती , तो पता है उसके फ्रेंड्स क्या कहते आज उसे ऐसे लुक में देखकर - किलर लुक )😀😀
श्वेता जी (मानवी से कहती हैं ) - यह तेरे घर की पूजा है , ना कि किसी और के घर की , जो तुम इतनी मटर गश्तीयाँ करते फिर रही हो ।😡 वह फिर मानवी से कहती हैं ,अब खड़े-खड़े मुंह क्य
मानवी ( मिस्टर सिकरवार से कहती है )-मैं कभी किसी दूसरे आदमी को बाबूजी बोलती हूं ,तो वह थोड़ा जलते हैं . . . थोड़े जलकुकडे हैं मेरे बाबू जी ... ये कह कर
मानवी के बाबू जी गांव के सरपंच हैं तो वह अक्सर गांव में ही रहते हैं घर पर हो शाम को ही आते हैं ।वो अब अक्सर लोग उसे कहते हैं कि जरा हमें कोई अच्छा सा लड़क
यह कहानी एक गांव की लड़की की है ,जो बहुत ही चंचल स्वभाव की है उसके पैर घर में बिल्कुल भी नहीं टिकते हैं । शहर क्या होता है यह मानवी नहीं जाती है
उम्र के किसी मोड़ पर, इश्क़ मैंने किया था कभी.प्यार में किसी के सुनहरा, दौर मैने जीया था कभी.ये मेरी कहानी, जरा है पुरानी, जो तुम सुन रहो, तुम्हे है बतानी, बात है उस वक्त
निष्कर्ष सीधा अपने कमरे में चला गया उसने किसी से कोई बात नहीं की, कुछ देर बाद काश्वी भी अपने कमरे में आ गई रात भर वो निष्कर्ष के मैसेज या फोन का इंतजार करती रही। रात गुजर गई और सुबह के 9 बजे तक भ
“पापा तो जैसे अपने कैमरे को भूल ही गये थे, उनके लिये अपने परिवार के लिये पैसा कमाना ज्यादा जरूरी था पर मां को लग रहा था कि ऐसे वो अपने सपनों के साथ समझौता कर रहे हैं, जिस कैमरे की वजह से वो दोनों मिल
निष्कर्ष को ऐसे देखकर काश्वी परेशान हो गई और उसने पूछ ही लिया “क्या हुआ? बात क्या है अचानक सीरीयस क्यों हो गये?” “कुछ नहीं बस यूं ही” निष्कर्ष ने जवाब दिया “नहीं.. कुछ तो है आप और आपके पापा के बी
इन दिनों गुमसुम सी है कुछ चहचहाटें , बेरंग सी लगती है ये धूप जिनमें कभी इंद्रधनुष के सातों रंग नृत्यरत हो उठते थे । दिन का दोलन जो दरियाई फितरत रखता था पहाड़ सा सध गया हो जैसे । कुछ आवाज़ें जिनमें जीवन
करीब दो घंटे तक सबकी तस्वीरों पर खूब चर्चा हुई गलतियों और खूबियों को बताने के बाद उत्कर्ष वहां से चले गये, निष्कर्ष अब भी चुप रहा उसने काश्वी से कोई बात नहीं की, दोनों वहां से कोरिडोर की तरफ निकले, क
अपना पहला एसाइनमेंट देखने के लिये सभी एक्साइटेड हैं लेकिन वापस आने के बाद से काश्वी काफी बेचैन है, वो काफी देर से हॉल के बाहर कोरिडोर के एक छोर से दूसरे छोर तक चक्कर लगा रही है, निष्कर्ष काफी देर त
तुम... तुम बस साथ दो मेरा... मुझे येह कहना हैं... थाम लो हाथ मेरा... मुझे तुम्हारे साथ रहना हैं... दूर करके तुम्हारे गम... मुझे खुशी तुम्हे देनी हैं... साथ दो मेरा हर मोडपर... यही बात दिल से बतानी ह