फेसबुक, ट्विटर में एक पोस्ट वायरल हो रही है. स्क्रीन शॉट देखिए –
इन सारी पोस्ट में जो लिखा है उसमें ढेर सारी हिज्ज़े की गलतियां हैं. उनको सुधारने के बाद जो संदेश बनता है वो ये है –
यह बालक एक शहीद सैनिक का पुत्र है, जिनकी मौत आतंकवादी से लड़ते हुई. इसकी मां अपने पति की मौत का सदमा बर्दाश्त नही कर पाई और वह भी चल बसी. यह अनाथ बालक मिलट्री बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है. इस नन्हे बालक का आत्मविश्वास देखिए. इसके गाने के बोल सुनिए और हो सके तो अपने अश्रु रोकने की कोशिश करें.
इसे मिलने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इसके स्कूल गए.
और इस लेख के साथ एक वीडियो भी शेयर किया गया है. ढेरों लिंक में से एक लिंक देखिए और गीत को सुनिए फिर आगे बात
तो इस सबके बाद आपको पूरी बात तो समझ में आ ही गई होगी. लेकिन फिर भी सुबिता के लिए पड़ताल का रिज़ल्ट एक पैराग्राफ में बता देते हैं –
ये वीडियो पाकिस्तान का है. और ये कम से कम ढाई साल पुराना है. हमें जो यू ट्यूब वीडियो मिला है वो 17 दिसंबर, 2015 को अपलोड हुआ है. ऐसे ही एक और वीडियो के डिस्क्रिप्शन में बच्चा आर्मी पब्लिक स्कूल, पेशावर का बताया गया है. इसके तीन चार वर्ज़न, जिनमें से हर कोई वीडियो लाखों बार देखा गया है, दिसंबर 2015 में ही अपलोड हुए हैं.
और अगर ये वीडियो पाकिस्तान का है तो, नरेंद्र मोदी का इस वीडियो से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध होने का मलतब ही नहीं बनता.
तो जाते-जाते ‘अमन की आशा‘ का ये गीत सुनिए. जो इस पोस्ट के हिसाब से तो रेलेवेंट नहीं है, लेकिन फिर भी हमेशा रेलेवेंट है. कोइंसिडेंटली इसे भी गुलज़ार ने लिखा है. गाया है राहत फतेह अली खान ने और साथ में कोइंसिडेंटली शंकर महादेवन ने.
दिखाई देते हैं दूर तक अब भी साए कोई,
मगर बुलाने से वक्त लौटे न आए कोई.
चलो न फिर से बिछाएं दरियां, बजाएं ढोलक,
लगा के मेहंदी सुरीले टप्पे सुनाए कोई.
पतंग उड़ाएं, छतों पे चढ़ के मुहल्ले वाले,
फलक तो सांझा है, उसमें पेंचें लड़ाए कोई.
उठो कबड्डी-कबड्डी खेलेंगे सरहदों पर,
जो आए अबके तो लौटकर फिर न जाए कोई.
नज़र में रहते हो, जब तुम नज़र नहीं आते,
ये सुर मिलाते हैं, जब तुम इधर नहीं आते.