और ऐसी ड्रेस पहनाने के पीछे सरकार का मकसद क्या है, जानकर आप वो फोन न पटक दें जिसपर ये पढ़ रही हैं.
हिंदुस्तान से लगभग 4,000 किलोमीटर दूर एक देश है लेबनन. वहां एक शहर है ब्रोउम्माना. वहां समाता साद नाम की एक औरत रहती है. हाल-फ़िलहाल में यातायात पुलिस में भर्ती हुई है. रोज़ सुबह की तरह तैयार होने के लिए उठी. अलमारी से अपनी यूनिफार्म निकाली. काले रंग की शॉर्ट्स यानि निक्कर और लाल टोपी. जी हां, आजकल ब्रोउम्माना शहर में यातायात पुलिस की यूनिफार्म बदल गई है. उन्हें अब शॉर्ट्स पहननी हैं. पर सिर्फ़ औरतों को. मर्द अभी भी पूरी पेंट पहन रहे हैं. कमाल की बात ये है कि दुनिया में और कहीं भी पुलिस में भरती हुई औरतें को यूनिफार्म के नाम पर नेक्कर नहीं पहननी पड़ती. ऐसा सिर्फ़ यहां हो रहा है.
पर क्यों?
इसका महिला सशक्तिकरण से कोई लेना-देना नहीं है. शॉर्ट्स पहनने की मांग इन औरतों ने नहीं की. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ब्रोउम्माना शहर के मेयर ऐसा चाहते हैं. पर क्यों, ये उन्ही के शब्दों में पढ़िए:
“ये सब एक प्लान के मुताबिक है. टूरिस्टों को लुभाने की कोशिश है. हम अपने देश की छवि सुधारना चाहते हैं. 99% लोग जो यहां घूमने आते हैं, वो शॉर्ट्स पहनते हैं. उनको अच्छा लगे, इसलिए हम चाहते है ये औरतें उनके जैसे कपड़े पहने.”
जहां कुछ लोग इस बदलाव से ख़ुश है, कुछ लोग मेयर साब को गालियां दे रहे हैं. बात ये है कि लोगों को लुभाने के लिए सिर्फ़ औरतों के कपड़े ही क्यों बदले गए हैं? आदमियों के क्यों नहीं? वो अपनी टांगें खुली रखकर लोगों को क्यों नहीं लुभा सकते? भई, इसका जवाब आपको और हमे दोनों को पता है.
दुनिया मर्दों को एक ‘चीज़’ के रूप में नहीं देखती. जिसका शरीर लोगों को आकर्षित करने के लिए ही बना है. उसके अंगों को हमेशा वासना की निगाह से नहीं देखा जाता है. ऐसा सिर्फ़ औरतों के साथ होता है. इसलिए टांगें उन्हें खुली रखने के लिए बोला गया है. इस सोच से ट्विटर पर भी काफ़ी लोग इत्तेफ़ाक रखते है.
जब वहां के स्थानीय लोगों से पुछा गया कि वो क्या सोचते हैं तो उन्होंने बड़ा चौंकाने वाला जवाब दिया. वो कहते हैं कि जब उन औरतों को ही कोई दिक्कत नहीं है तो बाकी लोगों को क्या परेशानी है? पर हां, सबको सड़क हादसों का बड़ा डर है. उन्हें लगता है कि औरतों को ऐसे कपड़ों में देखकर लोगो का ध्यान भटक जाएगा.
अगर औरतों को एक सजावट के समान की तरह ही देखना है तो उन्हें पुलिस में भरती ही क्यों किया गया है? ये तो ज़ाहिर है कि मेयर साब को उनके काम से कोई मतलब नहीं है. क्योंकि पुलिस का काम सुंदर दिखना या आकर्षित दिखना नहीं होता. उनका काम व्यवस्था बनाए रखना होता है. और उसके लिए शॉर्ट्स पहनने की कोई ज़रुरत नहीं है.
आपको क्या लगता है?
ये औरतें मॉडल नहीं, असल महिला पुलिस हैं, यही इनकी यूनिफ़ॉर्म है