shabd-logo

वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022

158 बार देखा गया 158
*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं*

*महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !*

*अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा*

*विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!*


*अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्वर्ग से शिवजी के मस्तक पर गिरी ; उनके सर से हिमालय पर्वत पर ; हिमालय से पृथ्वी पर ; और पृथ्वी से समुद्र में गिरी | इससे मालूम होता है, कि विवेक-हीनो का पद पद पर सैकड़ो प्रकार से पतन होता है |


*अपना भाव:--*


ईश्वर ने मनुष्य को विवेक रूपी सुंदर शस्त्र दिया है | *कोई भी कार्य करने से पहले मनुष्य को अपने विवेक के विचार अवश्य कर लेना चाहिए |* क्षणिक आवेश में बिना विचारे जो भी काम करता है उसको बाद में पछताना ही पड़ता है और पग-पग पर उसका पतन होता है | 


*इसीलिए कहा गया है :-*


*बिनाविचारे जो करइ सो पाछे पछताय !*

*काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय !!*


जो विचारपूर्वक काम नहीं करते , जो अक्ल से काम नहीं लेते , उनको तरह तरह से नीचे देखना पड़ता है | *राजा भर्तृहरि जी* ने यहाँ गङ्गा का दृष्टान्त दिया है ! *आखिर यह दृष्टांत क्यों दिया ?*

*इस पर विचार करना आवश्यक है*


देव , दानव , मानव *कोई भी हो अपने कर्मों के फल से वह बच नहीं सकता* ब्रह्मा जी की सभा में देव नदी गंगा ने *महाराज महाभिष* को देख कर के जिस प्रकार मर्यादा का उल्लंघन किया ,  ना तो उन्होंने ब्रह्मा जी की सभा की मर्यादा की लाज रखी और ना ही अपने स्त्रीत्व की | जिसके फलस्वरूप उनको धरती पर आने का श्राप मिला | अगर वहीं पर गंगा जी ने विवेक से काम किया होता तो शायद उनको धरती पर आने का श्राप न मिलता है और पग-पग पर उनका पतन ना होता |


*शिक्षा:-* जो विवेकहीन हैं , जो अहंकारी हैं , वे सदा नीचे देखते और बार बार नीचे गिरते हैं ; *अतः मनुष्य को भूलकर भी घमण्ड न करना चाहिए* और खूब विचार कर काम करना चाहिए | गङ्गा को बड़ा घमण्ड हुआ, तब उसका गर्व ख़त्म करने के लिए ब्रह्मा ने उसे अपने कमण्डल में भर लिया | गङ्गा का मस्तक नीचे हो गया | फिर भी, उसने घमण्ड न छोड़ा , तब शिवजी ने उसे अपनी जटाओं में रोक लिया |  फिर महाराज भगीरथ ने घोर तप किया, तो शिवजी ने उसे छोड़ा | शिवजी के सिर से वह हिमालय पर गिरी और वहां से बहती बहती समंदर में जा गिरी |  जो गर्व करते हैं, जगदीश उनके दुश्मन हो जाते हैं |  *जगदीश (भगवान) उन्ही को मिलते हैं, जो गर्व से दूर भागते हैं और विवेकभ्रष्ट नहीं होते |*


शेख सादी ने कहा है -


*×××××××××××××××××××××××××××*


*आशा नाम नदी  मनोरथजला तृष्णातरंगाकुला*

*रागग्राहवती वितर्कविहगा धैर्यद्रुमध्वंसिनी !*

*मोहावर्त्तसुदुस्तराऽतिगहना प्रोत्तुड्गचिन्तातटी*

*तस्याः पारगता विशुद्धमनसोनन्दन्ति योगीश्वराः !! ४५ !!*


*अर्थात्:-* आशा एक नदी है , उसमें इच्छा रुपी जल है ; तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं , प्रीति उसके मगर हैं , तर्क-वितर्क या दलीलें उसके पक्षी हैं , मोह उसके भंवर हैं ; चिंता ही उसके किनारे हैं ; वह आशा नदी धैर्यरूपी वृक्ष को गिरानेवाली है ; इस कारण उसके पार होना बड़ा कठिन है | *जो शुद्धचित्त योगीश्वर उसके पार चले जाते हैं; वे बड़ा आनन्द उपभोग करते हैं |*


*अपना भाव:--*


*इस संसार में किसी से भी कभी भी कोई आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि आशान्वित मनुष्य की जब आशा टूटती है तो उसे अपार कष्ट होता है |*


*इसीलिए बार बार कहा जाता है:-*


*आशा एक रामजी से दूजी आशा छोड़ दे !*


यदि आनन्द चाहो; तो आशा, इच्छा, प्रीति, तर्क-वितर्क, मोह और चिन्ता प्रभृति को एकदम छोड़कर शुद्धचित्त हो जाओ और अपने आत्मा या ब्रह्म के ध्यान में तन्मय हो जाओ |


*किसी ने बड़ा सुंदर भाव दिया है :--*


*नदीरूप यह आश, मनोरथ पुअर रह्यो जल !*

*तृष्णा तरल तरंग, राग है यह ग्राह महाबल !*

*नाना तर्क विहंग, संग धीरज तरु तोरत !*

*भ्रमर भयानक मोह, सबद को गहि गहि बोरत !!*

*नित बहत रहत चित-भूमि में, चिन्तातट अति विकट !*

*कढ़ि गए पार योगी पुरुष, उन पायौ सुख तेहि निकट !!*


*××××××××××××××××××××××××××××××××××*


*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" सप्तविंशोभाग: !!*  
36
रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
0.0
इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
1

वैराग्य शतकम् - भाग - एक

21 जनवरी 2022
1
1
2

*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️* इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता

2

वैराग्य शतकम् - भाग - दो

21 जनवरी 2022
1
1
0

*न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः !* *महद्भिः पुण्यौघैश्चिरपरिगृहीताश्च विषया महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम् !! ३ !!* *अर्थात् :-* मुझे संसा

3

वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

21 जनवरी 2022
0
0
0

*उत्खातं निधिशंकया क्षितितलं ,* *ध्माता गिरेर्धातवो !* *निस्तीर्णः सरितां पतिर्नृपतयो ,* *यत्नेन संतोषिताः !!* *मन्त्राराधनतत्परेण मनसा ,* *नीताः श्मशाने निशाः !* *प्राप्तः काणवराटको

4

वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
1
0
0

*खलोल्लापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरै: ,* *निगृह्यान्तर्वास्यं हसितमपिशून्येन मनसा !* *कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि ,* *त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्त्तयसि माम् !! ६ !!* *अर्थात् :-

5

वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
0
0
0

*दीना दीनमुखैः सदैव शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा !* *क्रोशद्भिः क्षुधितैर्नरैर्न विधुरा दृश्या न चेद्गेहिनी !!* *याच्ञाभङ्गभयेन गद्गदगलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं !* *को देहीति वदेत् स्वदग्धजठरस्यार्थे

6

वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
0
0
0

*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

7

वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
0
0
0

*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

8

वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

22 जनवरी 2022
0
0
0

*न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्* *संसारविच्छित्तये !* *स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्* *र्धर्मोऽपि नोपार्जितः !!* *नारीपीनपयोधरोरुयुगलं ,* *स्वप्नेऽपि नालिङ्गितं !* *मातुः केवलमेव यौवनवनश् ,

9

वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
0
0
0

वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !* *गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!* *अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर

10

वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022
0
0
0

अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

11

वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

12

वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

13

वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
0
0
0

आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

14

वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

15

वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

16

वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

22 जनवरी 2022
0
0
0

न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

17

वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

18

वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

19

वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

20

वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

21

वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

22

वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

23

वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

24

वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
1
1
0

*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

25

वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

26

वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

27

वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

28

वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

29

वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

30

वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
0
0
0

विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

31

वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
0
0
0

*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

32

वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
0
0
0

*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

33

वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

34

वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

35

वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

36

वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
0
0
0

*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए