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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022

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*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !*


*समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!*


*शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !*


*अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!*



*अर्थात् :-* बुढ़ापे के मारे भोगने की इच्छा नहीं रही ; मान भी घट गया , हमारी बराबर वाले चल बसे , जो घनिष्ट मित्र रह गए हैं वे भी निकम्मे या हम जैसे हो गए हैं | अब हम बिना लकड़ी के उठ भी नहीं सकते और आँखों में अँधेरी छा गयी है | इतना सब होने पर भी हमारी काया कैसी निर्लज्ज है , *जो अपने मरने की बात सुनकर चौंक उठती है ?*


*अपना भाव:-*



जगत की विचित्र गति है , इस जीवन में जरा भी सुख नहीं है ! मनुष्य के मित्र और नातेदार मर जाते हैं , आप स्वयं बेकार , निकम्मा हो जाता है , आँख कान प्रभृति इन्द्रियां बेकाम हो जाती हैं , आँखों से सूझता नहीं और कानो से सुनाई नहीं देता , घर-बाहर के लोग अनादर करते हैं , बुढ़ापे के मारे चला फिरा नहीं जाता , खाने को भी कठिनाई से मिलता है , तो भी मनुष्य मरना नहीं चाहता , बल्कि मरने की बात सुनकर चौंक उठता है | *इसे मोह न कहें तो क्या कहें ?*



*इसी विषय पर दो दृष्टान्त प्रस्तुत है :--*



*१- लकड़हारा और मृत्यु*


*---------------------------*



एक वृद्ध अतीव निर्धन था , बेटे पोते सभी मर गए थे , एक मात्र बुढ़िया रह गयी थी | बूढ़े के हाथ पैरों ने जवाब दे दिया था , आँखों से दीखता न था फिर भी अपने और बूढी के पेट के लिए वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और बेचकर जीवन यापन करता था | एक दिन उसने जीवन से अत्यन्त दुखी होकर मृत्यु को पुकारा | उसके पुकारते ही मृत्यु मनुष्य के रूप में उसके प्रत्यक्ष आ खड़ी हुई | *बूढ़े ने पुछा - "तुम कौन हो ?"*


*उसने कहा - "मैं मृत्यु हूँ*


तुम्हें लेने आयी हूँ | मृत्यु का नाम सुनते ही लकड़हारा चौंक उठा और कहने लगा - "मैंने आपको ये भार उठवाने को बुलवाया था | मृत्यु उसका भार उठवा कर चली गयी |



*देखिये/ विचार कीजिए* बूढा लकड़हारा हर तरह दुखी था उसे जीवन में जरा भी सुख नहीं था फिर भी वह मरना न चाहता था अपितु मृत्यु को देखते ही चौंक पड़ा था । *यही गति संसार की है |*



*२- एक दुखित बूढ़ा सेठ*


*--------------------------*



एक वैश्य ने जीवन भर मर-पचकर खूब धन जमा किया, बुढ़ापे में पुत्रों ने सारे धन पर अधिकार कर बूढ़े को पौली में एक टूटी सी खाट और फटी सी गुदड़ी पर डाल दिया और कुत्ता मारने के लिए हाथ में लकड़ी दे दी | सुबह शाम घर का कोई आदमी बचा-खुचा , बासी-कूसी उसे खाने को दे जाता | सेठ बड़े दुःख से अपना जीवन जीता था | पुत्र-वधुएं दिन भर कहा करती थी - *"यह मर नहीं जाते, सबको मौत आती है पर इनको नहीं आती , दिन भर पौली में थूक-थूक कर मैला करते हैं ।"* एक दिन एक पोता उन्हें पीट रहा था | इतने में नारद जी आ निकले उन्होंने सारा हाल देखकर कहा - "सेठजी ! आप बड़े दुखी हैं | स्वर्ग में कुछ आदमियों की आवश्यकता है अगर तुम चलो तो हम ले चलें | सुनते ही सेठ ने कहा - "जा रे वैरागीड़ा ! मेरे बेटे पोते मुझे मारते हैं चाहे गाली देते हैं तुझे क्या ? तू क्या हमारा पञ्च है ? मैं इन्हीं में सुखी हूँ | मुझे स्वर्ग की आवश्यकता नहीं | सेठ की बातें सुनकर नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ । कहने लगे - *"ओह ! संसार सचमुच ही मोह-पाश में फंसा है ! मोह की मदिरा के मारे इसे होश नहीं* मनुष्य ने कब्र में पैर लटका रखे हैं; फिर भी विषयों में ही उसका मन लगा है | " किसी ने ठीक ही कहा है :



*गतं तत्तारुण्यं तरुणिहृदयानन्दजनकं*


*विशीर्णा दन्तालिर्निजगतिरहो यैष्टिशरणां !*


*जड़ी भूता दृष्टिः श्रवणरहितं कर्णयुगलं*


*मनोमे निर्लज्जं तदपि विषयेभ्यः स्पृहयति !!*



*अर्थात् :-* तरुणियों के ह्रदय में आनन्द पैदा करने वाली जवानी चली गयी है , दन्तपंक्ति गिर गयी है , लकड़ी का सहारा लेकर चलता हूँ , नेत्र ज्योति मारी गयी है , दोनों कानों से सुनाई नहीं देता , *तो भी मेरा निर्लज्ज मन विषयों को ही चाहता है |*



*इसीलिए कहा गया है :--*



*रात दिन मारा गरियावा दुरियावा जात ,*


*फिर फिर मान मानि ताहि में धंसाई है !*


*कोई कहै साधु की शरण ज्ञान भक्ति सिखौ ,*


*ताहि कटु बैन कहि जोर से रिसाई है !!*


*नीम कीट मल कीट ताहि सुख मानि रह्यो ,*


*ताहि छोड़ि अमृत न काहि को सुहाई है !*


*वैसे यह मूढ़ मन जग सुख मानि रह्यो ,*


*साधु गुरु भक्ति मांह् अब तरवाई है !!*



*आदिगुर शंकराचार्य जी ने चर्पटपञ्जरिका स्तोत्र में लिखा है :-*



*अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम् !*


*वृध्दो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् !!*



*अर्थात् :-* अंग गल गये हैं सिर हिलने लगा है , दाँत गिर गये हैं वृद्धावस्था में लकड़ी का ही सहारा है फिर भी यह शरीर छोड़ने की इच्छा नहीं होती है |



*यही माया का छूटना ही वैराग्य है*



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" षष्ठ भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

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वैराग्य शतकम् - भाग - सात

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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

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वैराग्य शतकम् - भाग - दस

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

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वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

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*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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