*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,*
*शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !*
*वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,*
*हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!*
*अर्थात् :-* वह मनुष्य जो भीख मांगकर दिन में एक समय ही नीरस अलौना अन्न खाता है , धरती पर सो रहता है , जिसका शरीर ही उसका कुटुम्बी है जो सौ थेगलियों(चीथड़ों) की गुदड़ी ओढ़ता है , आश्चर्य है कि , ऐसे मनुष्य को विषय नहीं छोड़ते |
*अपना भाव:--*
जो दिन भर में एक अलौना - फीका अन्न खाते हैं और वह भी मांग-मांग कर ! जिनके पास सोने के लिए पलंग और गद्दे-तकिये नहीं हैं बेचारे पेड़ों के नीचे या खुले मैदान में घास-पात पर सो रहते हैं ! जिनके नाते-रिश्तेदार कोई नहीं ! उनका अपना शरीर ही उनका नातेदार है ! जिनके पास पहनने को कपडे नहीं , बेचारे ऐसी गुदड़ी ओढ़ते हैं ! जिसमें सैकड़ों चीथड़े लटकते हैं ! *ऐसे लोगों का भी विषय पीछा नहीं छोड़ते* तब धनियों का पीछा तो वे कैसे छोड़ने लगे | जहाँ उन्हें सब तरह के ऐशो-आराम मिलते हैं ?
*इसीलिए कहा है :-*
*विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशना-*
*स्तेऽपि स्त्रीमुखपड़्कजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहंगताः?*
*शाल्यन्नं सघृतं पयोदधियुतं ये भुञ्जते मानवा-*
*स्तेषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद्विन्ध्यस्तरेत्सागरे !!*
*अर्थात् :-* विश्वामित्र और पराशर प्रभृति ऋषि भी - जो हवा, जल और पत्ते खाते थे - स्त्री का कमल मुख देखकर काम से पीड़ित होकर मोहित हो गए , फिर शालिचांवल, दही और घी मिला भोजन जो खाते हैं उनकी इन्द्रियां यदि उनके वश में हो जाएँ तो विंध्याचल पर्वत भी समुद्र में तैरने लगे | *मतलब यह है कि* पत्तों और जल पर गुज़र करने वाले ऋषि भी जब कामपीडि़त स्त्रियों पर मोहित हो गए तब घी दूध खानेवालों की क्या बात है ? कामदेव को वश में करना बड़ा कठिन है । पराशर ने दिन की रात कर दी और नदी को रेत में परिणत कर दिया, पर वे भी काम को वश में न कर सके | इतना ही नहीं; बड़े बड़े देवता भी काम को वश में न कर सके | *स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक को काम ने जीत लिया |*
*"आत्मपुराण" में लिखा है :-*
*कामेन विजितो ब्रह्मा, कामेन विजितो हरिः !*
*कामेन विजितः शम्भुः, शक्रः कामेन निर्जितः !!*
*अर्थात् :-* कामदेव ने ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इन्द्र को जीत लिया |
*कामी पुरुषों के लिए* स्त्री भक्ति-मुक्ति और सुख-शान्ति की नाशक है | जिनके स्त्री है और वे उसे भोग मामकर अनवरत् उसी का मुखमण्डल निहारा करते हैं वे परमेश्वर की भक्ति नहीं कर सकते , क्योंकि उन्हें जञ्जालों से फुर्सत ही नहीं मिल सकती | यों तो सभी विषय विष के समान घातक हैं, पर स्त्री सबसे ऊपर है | जहाँ स्त्री है, वहां सभी विषय हैं | विषय दुःख और ताप के कारण हैं अतः बुद्धिमान व्यक्ति को विषयों से बचना चाहिए | मोक्ष चाहने वालों को तो स्त्री के भोग्या स्वरूप का दर्शन भी न करने चाहिए |
*शिक्षा:-* विषय विष हैं | इनका त्याग ही सुख की जड़ है | जो विषयी हैं उन्हें कहीं सुख नहीं | अतः काम को जीतो | *जिसने काम को जीत लिया, उसने सबको जीत लिया |*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" एकादश भाग: !!*