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वैराग्य शतकम् - भाग - दो

21 जनवरी 2022

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*न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः !*


*महद्भिः पुण्यौघैश्चिरपरिगृहीताश्च विषया महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम् !! ३ !!*



*अर्थात् :-* मुझे संसारी कामों में जरा सुख नहीं दीखता | मेरी राय में तो पुण्यफल भी भयदायक ही हैं | इसके सिवा, बहुत से अच्छे अच्छे पुण्यकर्म करने से जो विषय-सुख के सामान प्राप्त किये और चिरकाल तक भोगे गए हैं, वे भी विषय सुख चाहनेवालो का, अन्त समय में दुखों के ही कारण होते हैं |



*अपना भाव :-*



इस जीवन में सुख का लेश भी नहीं है | जिनके पास अक्षय लक्ष्मी , धन-दौलत , गाडी-घोड़े , मोटर , नौकर-चाकर , रथ-पालकी प्रभृति सभी सुख के सामान उपस्थित हैं , राजा भी जिनकी बात को टाल नहीं सकता , जिनके इशारों से ही लोगों का भला बुरा हो सकता है , ऐसे सर्वसुख संपन्न लोग भी , भले ही ऊपर से सुखी दीखते हों , पर वास्तव में सुखी हैं नहीं | भीतर ही भीतर उन्हें घुन खाये जाता है ; किसी न किसी दुःख से वे जर्जरित हुए जाते हैं |



*इस भाव पर एक कहानी प्रस्तुत हैं:-*



एक *महात्मा* अपने शिष्य के साथ किसी नगर में गए , वहां उन्होंने देखा कि, एक *साहूकार* इन्द्रभवन जैसे मकान में बैठा है, सैकड़ों सेवक आज्ञापालन को तैयार खड़े हैं | जोड़ी-गाडी द्वार पर खड़ी है , हाथी झूम रहे है , सामने सोने-चंडी और हीरे-पन्नो के ढेर लग रहे हैं | *महात्मा* को देखकर *सेठ* ने अपने एक कर्मचारी को उनको भोजन कराने की आज्ञा दी | जब गुरु-चेले भोजन करने बैठे तब चेला बोलै - "गुरु जी ! आप कहते थे, संसार में कोई भी सुखी नहीं है | देखिये यह *सेठ* कैसा सुखी है , इसे किस बात का अभाव है ? लक्ष्मी इसकी दासी हो रही है | *गुरु ने कहा -*"थोड़ा धैर्य रखो" हम पता लगाकर कुछ कह सकेंगे | *महात्मा* ने जब भोजन कर लिया तब *सेठ* से कहा - *सेठ जी* ! परमात्मा ने आपको सभी सुख दिए हैं ! *सेठ* ने रोककर कहा - महाराज ! मेरे समान इस जगत में कोई *दुखी* नहीं है | मुझे परमात्मा ने धनैश्वर्य सब कुछ दिया है पर *पुत्र एक भी नहीं* ! *पुत्र* बिना ये *सुख* बिना नमक के पदार्थ की तरह बेस्वाद हैं | मेरा दिल रात दिन जला करता है ! कभी मुझे *सुख की नींद* नहीं आती | मैं इसी सोच में जला जाता हूँ कि *पुत्र* बिना इस संपत्ति को कौन भोगेगा ? *सेठ* की बातें सुनकर चेले ने कहा - हाँ गुरूजी, आपकी बात राई-रत्ती सच है | *संसार में कोई सुखी नहीं* | कोई किसी बात से *दुखी* है तो कोई किसी *दुःख से* |



*कुल मिलाकर संसारी सुख अनित्य है !*



*कैसे ??*



सांसारिक सुख-भोग असार, अनित्य और नाशवान हैं | ये सदा स्थिर रहनेवाले नहीं है आज जो *लक्ष्मी का लाल* है वह कल *दर दर का भिखारी* देखा जाता है | जो आज युवा होने पर अकड़ता हुआ चलता है वही कल बुढ़ापे के मारे लकड़ी टेक टेक कर चलता है | जिसे पहले सब लोग सुंदर कहते थे और प्रेम से अपने पास बिठाते थे अब उसके पास खड़ा होना भी नहीं चाहते | *कहने का अर्थ यह है क:-* यौवन , जीवन , मन-धन , शरीर-छाया और प्रभुता , यह सब अनित्य और चञ्चल हैं; *अतः दुःख के कारण हैं* | काया में मरण , लाभ में हानि , जीत में हार , सुन्दरता में असुन्दरता , भोग में रोग , संयोग में वियोग और सुख में दुःख - *ये सब दुःख के कारण हैं* | अगर बिना मृत्यु का जीवन , बिना अप्रसन्नता की प्रसन्नता , बिना बुढ़ापे की जवानी , बिना दुःख का सुख , बिना वियोग का संयोग और सदा-सर्वदा रहने वाला धन होता , *तो मनुष्य को इस जीवन में अवश्य सुख होता*



*यदि ध्यान से देखा जाय तो:-*



विषय भोगों में सुख नहीं है ये असार हैं | केले के पत्ते या प्याज के छिलको की तरह सारहीन हैं , फिर भी मोहवश मनुष्य विषयों में फंसा रहता है | पर एक न एक दिन मनुष्य को इन विषय-भोगों से अलग होना ही पड़ता है , अलग होने के समय विषय भोगी को बड़ा दुःख होता है इससे विषय परिणाम में दुःखदायी ही हैं |


इसके अतिरिक्त तरह तरह के पुण्य सञ्चय करने , यज्ञ-याग आदि करने अथवा दान करने से मनुष्य को स्वर्ग मिलता है | वहां वह अमृत पीता और अप्सराओं को भोगता है , कल्पवृक्ष से मनवांछित पदार्थ पाता है , पर पुण्य कर्मो के नाश हो जाने या उनके फल भोग चुकने पर वह स्वर्ग से नीचे गिरा दिया जाता है | उसे फिर इसी मृत्युलोक में आना होता है | उस समय वह स्वर्ग सुखों की याद कर करके मन ही मन रोता और दुखी होता है | इसी से मुझे पुण्यफल भी भयावह मालूम होते हैं | परिणाम में वे भी दुखो के ही कारण होते हैं | *तात्पर्य यह है कि :-* संसार मिथ्या और सारहीन है इसके सुखभोग अनित्य , चञ्चल और सदा न रहने वाले हैं ! इसी से ये सब दुःख के कारण हैं | *मृत्युलोक और स्वर्गलोक में कहीं भी प्राणी को सुख नहीं है |*



*शिक्षा:--* अगर मनुष्य दुखों से दूर रहना चाहे , सदा सुख भोगना चाहे तो उसे अनित्य और नाशमान पदार्थों से अलग रहना चाहिए | उनमें मोह न रखना चाहिए | बुद्धिमान को लोक-परलोक की असारता और संयोग-वियोग का विचार करके अनित्य पदार्थो से प्रेम न करना चाहिए उसे सदा नित्य अविनाशी परमात्मा से प्रेम करना चाहिए |




*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" द्वितीय भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - एक

21 जनवरी 2022
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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️* इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता

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वैराग्य शतकम् - भाग - दो

21 जनवरी 2022
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*न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः !* *महद्भिः पुण्यौघैश्चिरपरिगृहीताश्च विषया महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम् !! ३ !!* *अर्थात् :-* मुझे संसा

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वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

21 जनवरी 2022
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*उत्खातं निधिशंकया क्षितितलं ,* *ध्माता गिरेर्धातवो !* *निस्तीर्णः सरितां पतिर्नृपतयो ,* *यत्नेन संतोषिताः !!* *मन्त्राराधनतत्परेण मनसा ,* *नीताः श्मशाने निशाः !* *प्राप्तः काणवराटको

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वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
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*खलोल्लापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरै: ,* *निगृह्यान्तर्वास्यं हसितमपिशून्येन मनसा !* *कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि ,* *त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्त्तयसि माम् !! ६ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
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*दीना दीनमुखैः सदैव शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा !* *क्रोशद्भिः क्षुधितैर्नरैर्न विधुरा दृश्या न चेद्गेहिनी !!* *याच्ञाभङ्गभयेन गद्गदगलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं !* *को देहीति वदेत् स्वदग्धजठरस्यार्थे

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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
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*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
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*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

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*न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्* *संसारविच्छित्तये !* *स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्* *र्धर्मोऽपि नोपार्जितः !!* *नारीपीनपयोधरोरुयुगलं ,* *स्वप्नेऽपि नालिङ्गितं !* *मातुः केवलमेव यौवनवनश् ,

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वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
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वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !* *गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!* *अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर

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वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022
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अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

22 जनवरी 2022
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*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

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वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

22 जनवरी 2022
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*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
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आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

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वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

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*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

22 जनवरी 2022
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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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