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वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022

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*खलोल्लापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरै: ,*


*निगृह्यान्तर्वास्यं हसितमपिशून्येन मनसा !*


*कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि ,*


*त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्त्तयसि माम् !! ६ !!*



*अर्थात् :-* मैंने दुष्टों की सेवा करते हुए उनके व्यंग और ठट्ठेबाज़ी सहन की भीतर से, दुःख से आये हुए आंसू रोके और उद्विग्न चित्त से उनके सामने हँसता रहा ! उन हंसने वालों के सामने चित्त को स्थिर करके हाथ भी जोड़े | *हे झूठी आशा* ! क्या अभी और भी नाच नचाएगी ?



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जीवितम् ,*


*व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभिः कालो न विज्ञायते !*


*दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते ,*


*पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत् !! ७ !!*



*अर्थात् :- सूर्य के उदय और अस्त के साथ मनुष्यों की ज़ीवन नित्य घटता जाता है | समय निरन्तर भागा जाता है परंतु व्यवसाय या दैनिक कारियों में व्यस्त रहने के कारण वह भागता हुआ नहीं दीखता | लोगों को पैदा होते , बूढ़े होते , विपत्ति ग्रसित होते और मरते देखकर भी उनमें भय नहीं होता | इससे मालूम होता है कि मोहमाया , प्रमादरूपी मदिरा के नशे में संसार मतवाला हो रहा है |



*किसी ने खूब कहा है :-*



*सुबह होती है शाम होती है !*


*यों ही उम्र तमाम होती है !!*



*अपना भाव :-*



विचार करके देखने से बड़ा विस्मय होता है कि दिन और रात कैसे तेजी से चले जाते हैं | जिनको कोई काम नहीं है अथवा दुखिया है उन्हें तो ये बड़े भारी प्रतीत होते हैं , काटे नहीं कटते, एक एक क्षण एक एक वर्ष की भाँति बीतता है | पर जो व्यवसाय या नौकरी में लगे हुए हैं, उनका समय हवा से भी अधिक तेजी से उड़ा चला जा रहा है | अर्थात् व्यवसाय या धंधे में लगे रहने के कारण उन्हें मालूम नहीं होता | वे अपने कामों में भूले रहते हैं और मृत्युकाल तेजी से नजदीक आता जाता है |



*शंकराचार्य जी ने 'मोहमुद्गर' में कहा है :-*



*दिन यामिन्यौ सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः !*


*कालः क्रीडति गच्छत्यायु तदपि न मुञ्चत्याशावायुः !!*



*अर्थात् :-* दिन-रात , सवेरे-सांझ , शीत और वसंत आते और जाते हैं , काल क्रीड़ा करता है , जीवनकाल चला जाता है , तो भी संसार आशा को नहीं छोड़ता !



*लिखा भी है कि :--*



*जीर्यन्ति जीर्यत: केशा , दन्ता जीर्यन्ति जीर्यत: !*


*धनाशा जीविताशा च , जीर्यतो$पि न जीर्यत: !!*



*अर्थात् :-* समय पर मनुष्य के केश , दाँत एवं शरीर भी जीर्ण - शीर्ण हो जाते हैं परंतु धन एवं जीवन की आशा कभी भी जीर्ण नहीं होती !



*शिक्षा:-* मनुष्यों ! मिथ्या आशा के फेर में दुर्लभ मनुष्य देह को यों ही नष्ट न करो | देखो ! सर पर काल नाच रहा है एक सांस का भी भरोसा न करो | जो सांस बाहर निकल गया है, वह वापस आवे या न आवे इसलिए आत्ममुग्धता और बेहोशी छोड़कर, अपनी काया को क्षणभंगुर समझकर, दूसरो की भलाई करो और अपने सिरजनहार में मन लगाओ; क्योंकि नाता उसी का सच्चा है; और सब नाते झूठे हैं |



*सत्य ही कहा है -*



*माया सगी न मन सगा, सगा न यह संसार !*


*इस जग में या जीव को, सगा सो सिरजनहार !!*



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" चतुर्थ भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - एक

21 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - दो

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वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

21 जनवरी 2022
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*उत्खातं निधिशंकया क्षितितलं ,* *ध्माता गिरेर्धातवो !* *निस्तीर्णः सरितां पतिर्नृपतयो ,* *यत्नेन संतोषिताः !!* *मन्त्राराधनतत्परेण मनसा ,* *नीताः श्मशाने निशाः !* *प्राप्तः काणवराटको

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वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
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*खलोल्लापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरै: ,* *निगृह्यान्तर्वास्यं हसितमपिशून्येन मनसा !* *कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि ,* *त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्त्तयसि माम् !! ६ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
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*दीना दीनमुखैः सदैव शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा !* *क्रोशद्भिः क्षुधितैर्नरैर्न विधुरा दृश्या न चेद्गेहिनी !!* *याच्ञाभङ्गभयेन गद्गदगलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं !* *को देहीति वदेत् स्वदग्धजठरस्यार्थे

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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
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*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
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*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

22 जनवरी 2022
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*न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्* *संसारविच्छित्तये !* *स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्* *र्धर्मोऽपि नोपार्जितः !!* *नारीपीनपयोधरोरुयुगलं ,* *स्वप्नेऽपि नालिङ्गितं !* *मातुः केवलमेव यौवनवनश् ,

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वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
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वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !* *गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!* *अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर

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वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022
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अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

22 जनवरी 2022
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*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

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वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

22 जनवरी 2022
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*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
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आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

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वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

22 जनवरी 2022
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*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

22 जनवरी 2022
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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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