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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

22 जनवरी 2022

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*न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्*


*संसारविच्छित्तये !*


*स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्*


*र्धर्मोऽपि नोपार्जितः !!*


*नारीपीनपयोधरोरुयुगलं ,*


*स्वप्नेऽपि नालिङ्गितं !*


*मातुः केवलमेव यौवनवनश् ,*


*छेदे कुठारा वयम् !! ११ !!*



*अर्थात् :-* हमने संसार बन्धन के काटने के लिए यथाविधि ईश्वर के चरणों का ध्यान नहीं किया ! हमने स्वर्ग के दरवाजे खुलवाने वाले धर्म का सञ्चय भी नहीं किया और हमने स्वप्न में भी कठोर कुचों का आलिङ्गन नहीं किया ! हम तो अपनी माँ के यौवन रुपी वन के काटने के लिए कुल्हाड़े ही हुए !



*अपना भाव :-*



हमने लोक-परलोक साधन के लिए , जन्म मरण का फंदा काटने के लिए अथवा परमपद की प्राप्ति के लिए शास्त्रों में लिखी विधि से परमात्मा के कमल चरणों का ध्यान नहीं किया , उसकी पूजा उपासना नहीं की , सारी उम्र पेट की चिंता में बिता दी ! हमने पूर्वजन्म या वर्तमान जन्म के पापों के समूल नाश करने के लिए प्रायश्चित्त नहीं किये , न जीवों को अभय किया , न दानपुण्य किया , *फिर हमारे लिए स्वर्ग का द्वार कैसे खुल सकता है ?* क्योंकि धर्म का सञ्चय करने से ही स्वर्ग का द्वार खुलता है ! न हमने परमात्मा के पद-पंकजों का ध्यान किया , न धर्म सञ्चय किया और न स्त्री के पीनपयोधरों का स्वप्न में भी आलिङ्गन किया ! *अर्थात् न हमने संसार के मिथ्या विषय-सुख ही भोगे और न हमने मोक्ष या स्वर्ग प्राप्ति के उपाय ही किये !* हमारी वही स्थिति हुई कि:--



*दुविधा में दोनों गए , माया मिली न राम*



अथवा इधर के रहे न उधर के रहे | हमने यों ही संसार में जन्म लेकर अपनी माता की युवावस्था और नाश की ! अगर हम जैसे निकम्मे न पैदा होते तो बेचारी की युवावस्था तो न नष्ट होती ।



*××××××××××××××××××××××××××××××××*



*भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्तास्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः !*


*कालो न यातो वयमेव यातास्तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः !! १२ !!*



*अर्थात् :-* विषयों को हमने नहीं भोगा किन्तु विषयों ने हमारा ही भुगतान कर दिया | हमने तप को नहीं तपा किन्तु तप ने हमें ही तपा डाला | काल का खात्मा न हुआ, किन्तु हमारा ही खात्मा हो चला | तृष्णा का बुढ़ापा न आया, किन्तु हमारा ही बुढ़ापा आ गया |



*अपना भाव:--*



हमने बहुत कुछ भोग भोगे पर भोगों का अन्त न आया हाँ हमारा अन्त अवश्य आ गया | काल या समय का अन्त न आया किन्तु हमारा अन्त आ गया | हमारी आयु पूरी हो चली | हमें जो धर्म-कार्य करने थे वह हम न कर सके | हमने तप तो नहीं तपा किन्तु संसारी तापों ने हमारे को ही तपा डाला ! संसार के जालों में फंसकर हम ही शोक-तापों से तप गए | हमारा अन्त आ पहुंचा, हम निर्बल और वृद्ध हो गए पर तृष्णा बूढी और कमज़ोर न हुई अर्थात् हमें संसार से विरक्ति न हुई |



*×××××××××××××××××××××××××××××××*



*क्षान्तम् न क्षमया ग्रहोचितसुखं ,*


*त्यक्तं न सन्तोषतः !*


*सोढा दुःसहशीतवाततपन ,*


*क्लेशा न तप्तम् तपः !!*


*ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमित ,*


*प्राणैर्न शम्भोः पदम् !*


*तत्तत्कर्म कृतम्य यदेव मुनिभिस् -,*


*तैस्तैः फलैर्वचितम् !! १३ !!*



*अर्थात् :-* क्षमा तो हमने की परन्तु धर्म की दृष्टि से नहीं की | हमने घर के सुख चैन तो छोड़े पर सन्तोष से नहीं छोड़े | हमने सर्दी-गर्मी और हवा के न सह सकने योग्य दुःख तो सहे किन्तु ये सब दुःख हमने तप की गरज से नहीं वरन् दरिद्रता के कारन सहे | हम दिन रात ध्यान में लगे तो रहे पर धन के ध्यान में लगे रहे | हमने प्राणायाम क्रिया द्वारा शम्भू के चरणों का ध्यान नहीं किया | हमने काम तो सब मुनियों के से किये, परन्तु उनकी तरह फल हमें नहीं मिले |



*अपना भाव:--*



हमनें क्षमा तो की परन्तु दया-धर्मवश नहीं की, हमारी क्षमा असमर्थता के कारण हुई; हममे सामर्थ्य नहीं थी इसलिए शांत हो गए | हमने अच्छा खाना पीना ऐश-आराम छोड़े, मजबूरी से छोड़े; अपनी भीतरी इच्छा से नहीं छोड़े | हमने उन्हें रोग प्रभृति के कारण त्यागा, पर सन्तोष से नहीं त्यागा | हमने गर्म-सर्द हवा के झोंके सही हमने सर्दी-गर्मी सही जरूर, पर तप की गरज से नहीं, किन्तु घर में पैसा न होने के कारण से सहे | हम सोते जागते आठ पहर, चौंसठ घडी ध्यान तो करते रहे, पर पैसे या स्त्री-पुत्रों का अथवा संसार के और झगड़ों का ही ध्यान रहा | हमने भोलानाथ के कमल चरणों का ध्यान नहीं किया | *सारांश यह है कि* हमने मुनियों की तरह विषय-सुख त्यागे , उनकी तरह सर्दी-गर्मी के दुस्सह कष्ट भी उठाये , उनकी तरह हम ध्यान मग्न भी रहे पर वे जिस तरह सामर्थ्य होते भी शांत होते हैं , सन्तोष के साथ विषय-सुखों से मुंह मोड़ लेते हैं , शिव का ही ध्यान करते हैं , उस तरह हमने नहीं किया | *इसी से हम उन फलों से वञ्चित रहे, जिनको वे लोग प्राप्त करते हैं |*



*वैराग्य की दो अवस्थायें होती हैं*



*१- दरिद्रावस्था में वैराग्य*


*----------------------------*



जैसे :- आपके घर में कंगाली और अभाव का साम्राज्य है | आप स्त्री और बच्चों का पालन नहीं कर सकते | इसलिए स्त्री आपको असम्मान की दृष्टि से देखती है | *यह सब देखकर आपके हृदयं में वैराग्य पैदा हुआ है | यह निम्न स्तर का वैराग्य है |*



*२- सुखैश्वर्य में वैराग्य*


*----------------------*



जैसे :- आपका अन्तः करण शुद्ध हो गया है | अतः आप धनैश्वर्य और पुत्रकलत्रादि को त्यागकर वन को जा रहे हैं | आप कहते हैं "अब मुझे विषय सुख अच्छे नहीं लगते , मैं वन जाकर जगदीश का भजन करूँगा ।" *यही वैराग्य उत्तम वैराग्य है और ऐसे नररत्न प्रशंसा के पात्र हैं |*



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" अष्टम् भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - एक

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वैराग्य शतकम् - भाग - दो

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वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

21 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
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*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
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*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

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वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
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वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !* *गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!* *अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर

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वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022
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अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

22 जनवरी 2022
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*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

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वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

22 जनवरी 2022
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*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
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आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

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वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

22 जनवरी 2022
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*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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