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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022

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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं*


*शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !*


*सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा*


*मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि मम सुतरामेष राजन्गतोऽस्मि !! ३० !!*




*अर्थात् :-* यदि तुम धन के स्वामी हो तो हम वाणी के स्वामी हैं | यदि तुम युद्ध करने में वीर हो तो हम अपने प्रतिपक्षियों से शास्त्रार्थ करके उनका मद-ज्वर तोड़ने में कुशल हैं | यदि तुम्हारी सेवा धन-कामी या धनान्ध करते हैं, तो हमारी सेवा अज्ञान-अंधकार का नाश चाहनेवाले, शास्त्र सुनने के लिए करते हैं | यदि तुम्हें हमारी ज़रा भी चिन्ता नहीं है, तो हमें भी तुम्हारी बिलकुल चिन्ता नहीं है | लो, हम भी चलते हैं |



*अपना भाव :-*



ऊँचे पद पर बैठे हुए एक क्रूर , ऐश्वर्यशाली , धनान्ध , कामान्ध , मूर्ख की अपेक्षा निर्धनता में जीवन यापन करने वाला विद्वान अधिक सुखी होता है | ऐसे ऐश्वर्यशाली पुरुषों का सम्मान वहीं तक होता है जहाँ तक लोग उसके नाम व रूप को जानते हैं परंतु एक विद्वान अपनी विद्वता से सर्वत्र पूज्यनीय होता है :-- *स्वदेशे पूज्यते राजा , विद्वान सर्वत्र पूज्यते"* इसलिए कभी भी धनमद में उन्मत्त होकर किसी विद्वान की अवहेलना तथा अनादर नहीं करना चाहिए |



*××××××××××××××××××××××××××××××*



*यदा किञ्चिज्झोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं*


*तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः !*


*यदा किंचित्किञ्चिद्बुधजनसकाशादवगतं*


*तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः !! ३१ !!*




*अर्थात् :-* जब मैं थोड़ा जानता था, तब हाथी के समान मद से अन्धा हो रहा था , मैं समझता था कि मैं सर्वज्ञ हूँ | जब मुझे बुद्धिमानो की संगत से कुछ मालूम हुआ; तब मैंने समझा, कि मैं तो कुछ भी नहीं जानता | मेरा झूठा मद, ज्वर की तरह उतर गया |



*अपना भाव:--*



ऊँट यह समझता है कि मुझसे ऊँचा कोई है ही नहीं परंतु जब वह पर्वत की संगत में आता है तब स्वयं को छोटा मानने लगता है उसका मिथ्याभिमान चूर चीर हो जाता है | आज अनेक लोग अपनी विद्वता की डींग स्वयं हाँकते धूमते हैं उनको ऐसा लगता है कि हमने वेद पुराणादि का अध्ययन कर लिया तो मेरे समान कोई दूसरा है ही नहीं परंतु ऐसे लोग जब किसी निद्वतसमाज में पहुँचते हैं और वहाँ विद्वानों के भाष्य देखते हैं तो उनको नतमस्तक होना ही पड़ता है और तब उनको लगता है कि संसार में मुझसे भी अधिक विद्वान अवश्य हैं | इसीलिए कभी भी अपनी विद्वता , बल एवं धन के मद में ंतल़वाला नहीं होना चाहिए | परंतु ऐसा वही करते हैं जो *अल्पज्ञानी* होते हैं |



*किसी ने ठीक ही कहा है:-*



*"अल्प विद्यो महागर्वी "*



*×××××××××××××××××××××××××××××*




*अतिक्रान्तः कालो लटभललनाभोगसुभगो*


*भ्रमन्तः श्रान्ताः स्मः सुचिरमिह संसारसरणौ !!*


*इदानीं स्वः सिन्धोस्तटभुवि समाक्रन्दनगिरः*


*सुतारैः फुत्कारैः शिवशिवशिवेति प्रतनुमः !! ३२ !!*



*अर्थात् :-* आभूषणों से लदी हुई स्त्रियों के भोगने-योग्य जवानी चली गयी , और हम चिरकाल तक विषयों के पीछे दौड़ते-दौड़ते थक भी गए | अब हम पवित्र जाह्नवी तट पर, (ललचाने वाली स्त्रियों) की निन्दा करते हुए शिव-शिव जपेंगे |



*अपना भाव :-*



प्रत्योक मनुष्य जो जीवन भर परमात्मा से दूर ही रहा हो उसको अपने अन्तकाल में विचार अवश्य करना चाहिए कि :- अब तो बुढ़ापे का समय है , इस आयु में हम सुन्दरियों का साथ कर भी नहीं सकते | इसके अतिरिक्त हम सावधान भी हो गए हैं | हमने मूर्खता छोड़ दी है , हम बहुत दिनों तक विषयों में लीन रहे हमने बहुत कुछ विषय भोग भोगे अब हम थक गए , उनसे हमारा जी ऊब गया | उनसे हमें कुछ भी सुख नहीं मिला | इसलिए हम गंगा जी के किनारे बैठ कर, संसार बन्धन की मूल और माया की जड़ सुंदरियों की ममता छोड़, शिव से प्रीती करेंगे और दिन-रात उन्ही का पवित्र एवं कल्याणकारी नाम जपेंगे, | जिससे हमारा अंतकाल तो सुधर जाए |



*रमणकाल यौवन गयो, थक्यो भ्रमत संसार !*


*देहुँ गंगतट शेष वय, शिव-शिव जपत विस्तार !"*



*××××××××××××××××××××××××××××××*




*माने म्लायिनि खण्डिते च वसुनि व्यर्थे प्रयातेऽर्थिनि*


*क्षीणे बन्धुजने गते परिजने नष्टे शनैर्यौवने !*


*युक्तं केवलमेतदेव सुधियां यज्जह्नुकन्यापयः-*


*पूतग्रावगिरीन्द्रकन्दरतटीकुञ्जे निवासः क्वचित् !! ३३ !!*



*अर्थात् :-* जब लोगों में कोई स्वाभिमान / मर्यादा न रहे , धन नाश हो जाये ; याचक लौट लौट कर जाने लगें , भाई-बन्धु, स्त्री-पुत्र और नाते-रिश्तेदार मर जाएं , तब बुद्धिमान को चाहिए कि किसी ऐसे पर्वत की गुहा के कोने में जा बसे, जिसके पत्थर गंगा जी के जल से पवित्र हो रहे हों |



*अपना भाव :-*



सत्य यही है कि जब लोगों में अपना मान न रहे , लोग ईर्ष्या की दृष्टि से देखने लगें , अपनी धन-दौलत जाती रहे , जो याचक पहले कुछ पाते थे, वे निर्धनता के कारण विमुख होकर लौट जाते हैं | भाई-बन्धु और स्त्री-पुत्र प्रभृति नातेदार दूसरी दुनिया को चले गए हों | जब संसार में अपना कुछ न बचे तब तो बुद्धिमान को चाहिए कि संसार को त्याग दें ! इसमें मोह न रखें और किसी ऐसे पहाड़ की गुफा में जा रहे जिसके पत्थरों को पवित्र गंगाजल पखार पखारकर पवित्र करता हो | ऐसी हालत में संसार में रहना - वृथा समय खोना है | कम से कम उस समय तो बुद्धिमान एकान्त में बैठकर, सब तरह की आशा तृष्णा छोड़कर, भगवान् के चरणकमलों के मन लगावे | *परंतु माया के वशीभूत होकर मनुष्य इसी में मरा करता है |*




*गयो मान यौवन सुधन, भिक्षुक जात निराश !*


*अब तो मौको उचित यह, श्रीगंगा तट बास !!*



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" सप्तदश भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - एक

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वैराग्य शतकम् - भाग - दो

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वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

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वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
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*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
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*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

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वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

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वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
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वैराग्य शतकम् - भाग - दस

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अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

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*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

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वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

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*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
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आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

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वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

22 जनवरी 2022
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*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

22 जनवरी 2022
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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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