*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते*
*समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !*
*इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-*
*ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!*
*अर्थात् :-* जिनसे हमने जन्म लिया था उन्हें इस दुनिया से गए बहुत दिन हो गए जिनके साथ हम बड़े हुए थे, वे भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए | अब हमारी दशा भी रेतीले नदी-किनारे के वृक्षों की सी हो रही है, जो दिन दिन जड़ छोड़ते हुए गिराऊ होते चले जाते हैं |
*अपना भाव :--*
*यह संसार प्रतिपल नाशवान ही है यहाँ कोई सदा के लिए नहीं रह पाता ! जिनसे हम पैदा हुए थे (हमारे माता - पिता) उन्हें इस दुनिया से गए ज़माना गुज़र गया और जिन लोगों के साथ हम जन्मे थे अथवा जो लोग हमारे समवयस्क थे, वे भी चल बसे; जिन लोगों के साथ हम पले, जिनके साथ हम खेले-कूदे, जिनके साथ हमने कारोबार किया, वे सब भी काल के गाल में समा गए | अब हमारा नम्बर भी आया ही समझिये - अब हम भी चलने ही वाले हैं | दिन-दिन हमारा शरीर क्षीण हुआ जाता है | हमारी दशा अब नदी तट के बालू में लगे हुए वृक्षों की सी है, जिनके गिरने की सम्भावना हर घडी रहती है | हमारी ऐसी हालत है, फिर भी आश्चर्य है, कि हमारा माय-मोह नहीं छूटता ! अब भी हमारा मन नहीं समझता और वह संसारी जञ्जालों से अलग नहीं होना चाहता !
*कबीरदास जीभी यही कहते हैं :--*
*बारी बारी आपनी, चले पियारे मिंत !*
*तेरी बारी जीवरा, नियरे आवे निंत !!*
*माली आवत देखिकै, कलियाँ करि पुकार !*
*फूली फूली चुनि लईं, कल्ह हमारी बार !!*
*साथी हमरे चलि गए, हम भी चालनहार !*
*कागद में बाकी रही, तातें लागी बार !!*
*अर्थात् :-* बारी बारी से सभी प्यारे और मित्र चल बसे। अरे जीव ! अब तेरा नम्बर भी नित्य निकट आता जाता है | माली को आते देख कर, कलियों ने कहा - फूली फूली तो आज चुन ली गयी, कल हमारी भी बारी है | हमारे साथी चले गए अब हम भी चलने वाले हैं | कागज़ में, यानी खाते में कुछ साँस बाकी रह गयी हैं, इससे देर हो रही है; यानी अपनी शेष साँसों को पूरा करने के लिए हम ठहरे हुए हैं |
*संसार का यही हाल है, नित्य ही हम यह तमाशा देखते हैं; पर फिर भी हमें होश नहीं होता |*
*इसी भाव पर कहना है:--*
*जो जन्में हम संग, उतौ सब स्वर्ग सिधारे !*
*जो खेले हम संग, काल तिनहुँ कहँ मारे !!*
*हमहूँ जरजर देह, निकट ही दीसत मरिबो !*
*जैसे सरिता-तीर-वृक्ष को, तुच्छ उखरिबो !!*
*अजहुँ नहिं छाँड़त मोह मन, उमग उमग उरझो रहत !*
*ऐसे अचेत के संग सों, न्याय जगत को दुख सहत !!*
यही माया की प्रबलता है कि अन्त समय तक वह हमको भटकाये रखती है और हम इसी माया के भुलावे में भटका करते हैं और पल पल अपनी मृत्यु के समीप जा रहे हैं ! जो चेत गया वही संवर गया |
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" द्वाबिंश भाग: !!*