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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022

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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा*


*विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !*


*इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते*


*कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!*



*अर्थात्:-* जब से यह सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक अनेकों महाबली हुए ! कोई तो ऐसे बड़े दिलवाले लोग हुए जिन्होंने इस प्राचीनकाल में इस जगत की रचना की | कुछ ऐसे हुए जिन्होंने इस जगत को अपनी भुजाओं पर धारण किया | कुछ ऐसे हुए जिन्होंने समग्र पृथ्वी जीती और फिर तुच्छ समझकर दूसरों को दान कर दी , और कुछ ऐसे भी हैं जो चौदह भुवन का पालन करते हैं | *जो लोग थोड़े से गावों के मालिक होकर अभिमान के ज्वर से मतवाले हो जाते हैं, उनके सम्बन्ध में हम क्या कहें ?*



*अपना भाव:--*



*इस संसार में भाँति भाँति के लोग हैं कुछ सज्जन हैं तो कुछ दुर्जन भी हैं | इनकी पहचान करने में कभी कभी लोग भ्रमित हो जाते हैं | शास्त्रों में इन पुरुषों के लक्षण बताये गये हैं ! यथा :- सज्जन लोग धनैश्वर्य और प्रभुता पाकर कभी अहंकार नहीं करते तो ओछे या नीच ही थोड़ी सी विषय सम्पत्ति पाकर अभिमान किया करते हैं |



इसी से सम्बन्धित सुन्दर श्लोक *नीति रत्न* में लिखा है:-*



*दिव्यं चूतरसं पीत्वा गर्वं नो याति कोकिलः !*


*पीत्वा कर्दमपानीयं भेको मकमकायते !!*


*अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः !*


*अङ्गष्ठोदकमात्रेण सफरी फर्फरायते !!*



*अर्थात् :-* उत्तम रसाल के रस को पीकर कोकिल गर्व नहीं करती , किन्तु कीचड मिला पानी पीकर ही मेंढक टरटराया करता है | अगाध जल में रहने वाली रोहित मछली गर्व नहीं करती किन्तु अंगूठे जितने जल में सफरी मछली ख़ुशी से नाचती फिरती है | बस ! छोटे और बड़े , पूरे और ओछे लोगों में यही अन्तर होता है | जो जितना छोटा है, वह उतना ही घमण्डी और उछलकर चलनेवाला है और जो जितना ही बड़ा और पूरा है वह उतना ही गम्भीर और निरभिमानी है | नदी नाले थोड़े से जल से इतरा उठते हैं किन्तु सागर जिसमें अनंत जल भरा है गम्भीर रहता है |



*अपना भाव :-*



अभिमान या अहंकार महा अनर्थों का मूल है , यह नाश की निशानी है | अहंकारी से परमात्मा दूर रहता है | जिससे परमात्मा दूर रहता है, उसके दुःखों का अंत कहाँ है ? अतः यही कहना चाहूँगा कि स्वयं को पतित कर देने वाले अभिमान को त्यागो | जो आज टुकड़ो का मुहताज है, वह कल राजगद्दी का स्वामी दिखाई देता है और आज जिसके सर पर राजमुकुट है, सम्भव है कि कल वह गली-गली मारा-मारा फिरे | क्योंकि परमात्मा की गति निराली है कर्मानुसार एक क्षण परिवर्तन दिखने लगता है :-



*इसीलिए कहा गया है :--*



*रंकं करोति राजानं राजानं रंकमेव च !*


*धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं तथा !!*



संसार की यही गति है इसलिए अभिमान वृथा है | परमात्मा ने एक से बढ़कर एक बना दिया है |



*यह परमात्मा की नियति है कि:--*



*एक-एक से एक-एक को, बढ़कर बना दिया !*


*दारा किसी को, किसी को सिकन्दर बना दिया !!*



*अपना भाव;-*



इस संसार में आकर आपको किस बात का गर्व है ? यह राज्य और धन दौलत क्या सदा आपके कुल में रहेंगे या आपके साथ जायेंगे ? जो रावण लंकेश्वर था , जिसने यक्ष , किन्नर , गन्धर्व और देवताओं तक को अपने अधीन कर लिया था , आज वह कहाँ है ? उसका धन वैभव क्या उसके साथ गया ? जिन भगवान राम ने समुद्र पर पुल बांधकर वानर सेना से रावण का नाश किया ! उन भगवान को भी जाना पड़ा | जिस बलि ने रावण जैसे त्रिलोक विजयी को अपनी काँख में दबा रखा था आज वह बलि कहाँ है ? जिस सहस्त्रबाहु ने रावण को बन्दी बनाया था , वह सहस्त्रबाहु ही आज कहाँ है ? चारों दिशाओं को अपने भुजबल से जीतनेवाले भीम और अर्जुन कहाँ हैं ? *इस पृथ्वी पर अनेक, एक से एक बली राजा और शूरवीर हो गए, पर यह पृथ्वी किसी के साथ न गयी* | क्या आपका धन-दौलत, जमींदारी या राजलक्ष्मी अटल और स्थिर है ? क्या यह आपके साथ जाएगी ? कदापि नहीं | *आप जिस तरह खाली हाथ आये थे, उसी तरह खाली हाथ जायेंगे |*




इसीलिए *कबीरदास जी* लिखते हैं:-



*धरती करते एक पग, करते समन्दर फाल !*


*हाथों परवत तोलते, ते भी खाये काल !!*


*हाथों परवत फाड़ते, समुन्दर घूँट भराय !*


*ते मुनिवर धरती गले, कहा कोई गर्व कराय !!*



*इसलिए कुछ विद्वता , बल , ऐश्वर्य पाकर मद में फूलने से अच्छा है कि इस सत्यता पर विचार किया जाय*



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" चतुर्दश भाग: !!*

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रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
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इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
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वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

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*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

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वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

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न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

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*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

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वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
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*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
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*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

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वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
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*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

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वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

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वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
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*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

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वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
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*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

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वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
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*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

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वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
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*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

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वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
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*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
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*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

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वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
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*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

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वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
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*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
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*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
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*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
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*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
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*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
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*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

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वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
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*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

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