shabd-logo

वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022

60 बार देखा गया 60


article-image

अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,*


*वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !*


*व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,*


*स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*



*अर्थात् :-* विषयों को हम चाहें कितने दिन तक क्यों न भोगें परंतु सारे विषय भोग एक दिन निश्चय ही हम से अलग हो जायेंगे | तब मनुष्य उन्हें स्वयं अपनी इच्छा से ही क्यों न छोड़ दे ? इस वियोग में क्या अन्तर है ? अगर मनुष्य न छोड़ेगा तो, वे छोड़ देंगे | जब वे स्वयं मनुष्य को छोड़ेंगे, तब मनुष्य को बड़ा दुःख और मनःक्लेश होगा | अगर मनुष्य उन्हें स्वयं छोड़ देगा, तो उसे अनन्त सुख और शान्ति प्राप्त होगी |



*अपना भाव :--*



जो लोग विषयों को पहले ही त्याग देते हैं उन्हें उनके न होने पर दुःख नहीं होता , किन्तु जो उन्हें नहीं छोड़ते उन्हें उनके न होने पर महाकष्ट होता है | जो बुद्धिमान पहले से ही धन दौलत स्त्री-पुरुष आदि से मोह हटा लेते हैं , उन्हें मरते समय कष्ट नहीं होता और जो उनमें अपना मन लगाए रहते हैं , वे मरते समय रोते हैं , पर ज़बान बंद हो जाने से अपने मन की बात भी बता नहीं सकते | इसलिए जो सुख से मरना चाहें उन्हें पहले से ही विषयों से मुख मोड़ लेना चाहिए | इसी तरह जो आज नाना प्रकार के सुख भोग रहा है यदि कल उसे वे सुख न मिलें, तो वह बड़ा दुखी होता है; किन्तु जो विषयों को भोगते तो हैं, किन्तु उनमें आसक्ति नहीं रखते, उन्हें विषय सुखों के न मिलने या उनसे बिछुड़ने पर ज़रा भी कष्ट नहीं होता |



*×××××××××××××××××××××××××××××*



*विवेकव्याकोशे विदधति शमे शाम्यति तृषा-,*


*परिष्वङ्गे तुङ्गे प्रसरतितरां सा परिणतिः !*


*जराजीर्णैश्वर्यग्रसनगहनाक्षेपकृपणस्तृषापात्रं ,*


*यस्यां भवति मरुतामप्यधिपतिः !! १७ !!*



*अर्थात्:-* जब ज्ञान का उदय होता है तब शान्ति की प्राप्ति होती है | शान्ति की प्राप्ति से तृष्णा शान्त होती जाती है , किन्तु वही तृष्णा विषयों के संसर्ग से बेहद बढ़ जाती है | मतलब यह है कि विषयों से तृष्णा कभी शान्त नहीं हो सकती | सुन्दरी के कठोर कूचों पर हाथ लगाने से काम-मद बढ़ता है घटता नहीं | जराजीर्ण ऐश्वर्य को देवराज इन्द्र भी नहीं त्याग सकते |



*अपना भाव:--*



ज्ञान से ही *तृष्णा* का नाश और शान्ति की प्राप्ति होती है | विषयों के भोगने से *तृष्णा* घटती नहीं उलटी बढ़ती है | जो *तृष्णा* को त्यागते हैं *तृष्णा* से घृणा करते हैं , उसे पास नहीं आने देते उनसे *तृष्णा* भी दूर भागती है | देखिये यद्यपि स्वर्ग के राज को भोगते लाखों-करोडो वर्ष बीत गए तो भी *इन्द्र* स्वर्ग-राज्य को छोड़ नहीं सकता | जब *इन्द्र* की भी *तृष्णा* लाखों-करोड़ों वर्ष राज्य भोगने से शान्त नहीं होती तब मनुष्य बेचारे किस खेत की मूली हैं ? *तृष्णा* पुरानी होने से बढ़ती है, घटती नहीं | हम ज्यों ज्यों विषय भोगते हैं त्यों त्यों वे पुराने होते हैं और हमारी *तृष्णा* बढ़ती है | पुराने होने पर उन्हें छोड़ने में हमें बड़ा कष्ट होता है |



*शिक्षा:-* *तृष्णा* को शीघ्र छोड़ो । पुरानी होने से वह पापीयसी और भी बलवती हो जाएगी फिर उसे त्यागना आपकी शक्ति से बाहर हो जायेगा | उसके नाश के लिए '*ज्ञान'* का पैदा होना जरुरी है; क्योंकि उसका सच्चा मार *ज्ञान* ही है |



*इसीलिए किसी ने कहा है ;---*



*तृष्णा-मूल नसाय होय जब ज्ञान उदय मन !*


*भये विषय में लौ बढे दिन-पर-दिन चौगुन !!*


*जैसे मुग्धा-नार कठिन कुच हाथ लगावत !*


*बढ़त काममद अधिक अधिक तब में सरसावत !!*


*जराजीर्ण ऐश्वर्य को त्यागत लागत दुःख अति !*


*तोहि तजिबे को असमर्थ यह वासव जो है वायुपति !!*



*××××××××××××××××××××××××××××××*



*कृशः काणः खञ्जः श्रवणरहितः पुच्छविकलो ,*


*ब्रणी पूयल्किन्नः कृमिकुलशतैरावृततनुः !*


*क्षुधाक्षामो जीर्णः पिठरजककपालार्पितगलः ,*


*शुनीमन्वेति श्वा हतमपि च हन्त्येव मदनः !! १८ !!*



*अर्थात् :-* दुबला काना और लंगड़ा श्वान (कुत्ता) जिसके कान और पूँछ नहीं हैं, जिसके जख्मों में राध बह रही है, जिसके शरीर मेंकीड़े बिलबिला रहे हैं, जो भूखा और बूढा है, जिसके गले में हांडी का घेरा पड़ा है वह भी कामपीडित होकर कुतिया के पीछे पीछे दौड़ता है | अर्थात्:- *कामदेव मरे हुए को भी मारता है |*



*अपना भाव :-*



जिस कुत्ते की ऐसी बुरी हालत है , वह कुत्ता भी मैथुन करने के लिए कुतिया के पीछे पीछे दौड़ता है | तब मोटे-ताजे मावा-मलाई और मिष्टान्न खाने वाले अपनी कामवासना को कैसे रोक सकते हैं ? इसी से बचने के लिए , ज्ञानी लोग अपनी देह को एकदम गला देते हैं , तरह तरह के व्रत और उपवास करते हैं , धूनी तपते हैं और शीत लहर सहते हैं | कामदेव बड़ा बलवान है जो उसके वश में नहीं आते वे सबसे बलवान और सच्चे योद्धा हैं |



*××××××××××××××××××××××××××××××××××*



*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" दशम भाग: !!*

36
रचनाएँ
वैराग्य शतकम्
0.0
इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता है | इन्हीं ग्रन्थों में एक है *राजा भर्तृहरि* (भरथरी) द्वारा लिखा गया *वैराग्य शतकम्* | इसको यदि ध्यान पूर्वक पढ़ लिया जाय तो *वैराग्य* का वास्तविक अर्थ स्वयं पता चल सकता है | आज के युग में इस शतक में कही गयी बातें कुछ लोगों को बेमानी ही लगेंगी परंतु सत्य यही है | *राजाभर्तृहरि* द्वारा १०० श्लोकों में रचित *वैराग्य शतकम्* के भावार्थ के साथ ही अपना भाव भी मिश्रित करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *सुधी पाठकों* से आशा है कि अच्छी बातें चुनकर जो अच्छी न लगें उन्हें हमारी मूर्खता समझकर हमें अपना बनाये रखेंगे |
1

वैराग्य शतकम् - भाग - एक

21 जनवरी 2022
1
1
2

*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️* इस कलिकाल में अनेक लोग *वैराग्य* के विषय में जानना चाहते हैं | *वैराग्य* क्या है ? इसके विषय में जानने के लिए हमें अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करने की आवश्यकता

2

वैराग्य शतकम् - भाग - दो

21 जनवरी 2022
1
1
0

*न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः !* *महद्भिः पुण्यौघैश्चिरपरिगृहीताश्च विषया महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम् !! ३ !!* *अर्थात् :-* मुझे संसा

3

वैराग्य शतकम् - भाग - तीन

21 जनवरी 2022
0
0
0

*उत्खातं निधिशंकया क्षितितलं ,* *ध्माता गिरेर्धातवो !* *निस्तीर्णः सरितां पतिर्नृपतयो ,* *यत्नेन संतोषिताः !!* *मन्त्राराधनतत्परेण मनसा ,* *नीताः श्मशाने निशाः !* *प्राप्तः काणवराटको

4

वैराग्य शतकम् - भाग - चार

22 जनवरी 2022
1
0
0

*खलोल्लापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरै: ,* *निगृह्यान्तर्वास्यं हसितमपिशून्येन मनसा !* *कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि ,* *त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्त्तयसि माम् !! ६ !!* *अर्थात् :-

5

वैराग्य शतकम् - भाग - पाँच

22 जनवरी 2022
0
0
0

*दीना दीनमुखैः सदैव शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा !* *क्रोशद्भिः क्षुधितैर्नरैर्न विधुरा दृश्या न चेद्गेहिनी !!* *याच्ञाभङ्गभयेन गद्गदगलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं !* *को देहीति वदेत् स्वदग्धजठरस्यार्थे

6

वैराग्य शतकम् - भाग - छ:

22 जनवरी 2022
0
0
0

*निवृता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः !* *समानाः स्‍वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः !!* *शनैर्यष्टयोत्थानम घनतिमिररुद्धे च नयने !* *अहो धृष्टः कायस्तदपि मरणापायचकितः !! ९ !!* *अर्थात् :-*

7

वैराग्य शतकम् - भाग - सात

22 जनवरी 2022
0
0
0

*हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं ,* *धात्रामरुत्कल्पितं !* *व्यालानां पशवः तृणांकुरभुजः ,* *सृष्टाः स्थलीशायिनः !!* *संसारार्णवलंघनक्षमधियां ,* *वृत्तिः कृता सा नृणां !* *यामन्वेषयतां प्रयां

8

वैराग्य शतकम् - भाग - आठ

22 जनवरी 2022
0
0
0

*न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्* *संसारविच्छित्तये !* *स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्* *र्धर्मोऽपि नोपार्जितः !!* *नारीपीनपयोधरोरुयुगलं ,* *स्वप्नेऽपि नालिङ्गितं !* *मातुः केवलमेव यौवनवनश् ,

9

वैराग्य शतकम् - भाग - नौ

22 जनवरी 2022
0
0
0

वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !* *गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!* *अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर

10

वैराग्य शतकम् - भाग - दस

22 जनवरी 2022
0
0
0

अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषया ,* *वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् !* *व्रजन्तः स्वातन्त्र्यादतुलपरितापाय मनसः ,* *स्वयं त्यक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति !! १६ !!*

11

वैराग्य शतकम् - भाग - ग्यारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भिक्षासनं तदपि नीरसमेकवारं ,* *शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रं !* *वस्त्रं च जीर्णशतखण्डसलीनकन्था ,* *हा हा तथाऽपि विषया न परित्यजन्ति !! १९ !!* *अर्थात् :-* वह मनुष्य जो

12

वैराग्य शतकम् - भाग - बारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*स्तनौ मांसग्रन्थि कनकलशावित्युपमितौ ,* *मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम !* *स्रबन्मूत्रक्लिन्नम् करिवरकरस्पर्द्धि जघन-,* *महो निन्द्यम रूपं कविजन विशेषैर्गुरु कृतं !! २० !

13

वैराग्य शतकम् - भाग - तेरह

22 जनवरी 2022
0
0
0

आजानन्माहात्म्यं पततु शलभो दीपदहने ,* *स मीनोऽप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नातु पिशितम् !* *विजानन्तोऽप्येतान्वयमिह विपज्जालजटिलान् ,* *न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा !! २१ !!* *

14

वैराग्य शतकम् - भाग - चौदह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*विपुलहृदयैर्धन्यैः कैश्चिज्जगज्जनितं पुरा* *विधृतमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा !* *इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते* *कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वरः !! २३ ।।!!

15

वैराग्य शतकम् - भाग - पन्द्रह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*त्वं राजा वयमप्युपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः* *ख्यातस्त्वं विभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति नः !* *इत्थं मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं यद्यस्मासु* *पराङ्मुखोऽसिवयमप्येकान्त

16

वैराग्य शतकम् - भाग - सोलह

22 जनवरी 2022
0
0
0

न नटा न विटा न गायना न परद्रोहनिबद्धबुद्धयः !* *नृपसद्मनि नाम के वयं स्तनभारानमिता न योषितः !! २७ !!* *अर्थात् :-* न तो हम नट या बाज़ीगर हैं, न हम नचैये-गवैये हैं, न हमको चुगलखोरी आती

17

वैराग्य शतकम् - भाग - सत्रह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*अर्थानामीशिषे त्वं वयमपि च गिरामीश्महे यावदित्थं* *शूरस्त्वं वादिदर्पज्वरशमनविधावक्षयं पाटवं नः !* *सेवन्ते त्वां धनान्धा मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा* *मय्यप्यास्था न ते चेत्त्वयि म

18

वैराग्य शतकम् - भाग - अठारह

22 जनवरी 2022
0
0
0

*परेषां चेतांसि प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा* *प्रसादं किं नेतुं विशसि हृदयक्लेशकलितम् !* *प्रसन्ने त्वय्यन्तः स्वयमुदितचिन्तामणि गुणे* *विमुक्तः संकल्पः किमभिलषितं पुष्यति न ते !! ३४ !!*

19

वैराग्य शतकम् - भाग - उन्नीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं* *मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया: भयम् !* *शास्त्रे वादिभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं* *सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैर

20

वैराग्य शतकम् - भाग - बीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां* *कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्;!* *यदाढ्यानामग्रे द्रविणमदनिःसंज्ञमनसां* *कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि !! ३६ !!* *अर्थात्:-* कमल-

21

वैराग्य शतकम् - भाग - इक्कीस

22 जनवरी 2022
0
0
0

*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च* *तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !* *उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः* *सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय त

22

वैराग्य शतकम् - भाग - बाईस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलुते* *समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः !* *इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना-* *ग्दतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः !! ३८ !!* *अर्थात् :-

23

वैराग्य शतकम् - भाग - तेईस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*यत्रानेके क्वचिदपि गृहे तत्र तिष्ठत्यथैको* *यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः !* *इत्थं चेमौ रजनिदिवसौ दोलयन्द्वाविवाक्षौ* *कालः काल्या सह बहुकलः क्रीडति प्राणिशारैः !! ३९ !!* *अ

24

वैराग्य शतकम् - भाग - चौबीस

23 जनवरी 2022
1
1
0

*तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवसामः सुरनदीं* *गुणोदारान्दारानुत परिचयामः सविनयम् !* *पिबामः शास्त्रौघानुतविविधकाव्यामृतरसा* *न्न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने !! ४० !!* *अर्थात् :-* हम

25

वैराग्य शतकम् - भाग - पच्चीस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*गंगातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य*  *ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य !* *किं तैर्भाव्यम् मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशंकाः* *सम्प्राप्स्यन्ते जरठहरिणाः श्रृगकण्डूविनोदम् !!

26

वैराग्य शतकम् - भाग - छब्बीस

23 जनवरी 2022
0
0
0

*स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाधवलिततले क्वापि पुलिने* *सुखासीनाः शान्तध्वनिषु द्युसरितः !!* *भवाभोगोद्विग्नाः शिवशिवशिवेत्यार्तवचसः* *कदा स्यामानन्दोद्गमबहुलबाष्पाकुलदृशः !! ४२  !!*

27

वैराग्य शतकम् - भाग - सत्ताईस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*शिरः शार्व स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरं**महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् !**अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा**विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः !! ४४ !!**अर्थात्:-* देखिये, गङ्गा जी स्

28

वैराग्य शतकम् - भाग - अट्ठाईस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*आसंसारं त्रिभुवनमिदं चिन्वतां तात तादृङ्**नैवास्माकं नयनपदवीं श्रोत्रवर्त्मागतो वा !**योऽयं धत्ते विषयकरिणीगाढगूढाभिमान**क्षीवस्यान्तः करणकरिण: संयमालानलीलाम् !! ४६ !!**अर्थात्:-* ओ भाई ! मैं सारे सं

29

वैराग्य शतकम् - भाग - उन्तीस

24 जनवरी 2022
0
0
0

*ये वर्धन्ते धनपतिपुरः प्रार्थनादुःखभोज**ये चालपत्वं दधति विषयक्षेपपर्यस्तबुद्धेः !**तेषामन्तः स्फुरितहसितं वासराणां स्मारेयं**ध्यानच्छेदे शिखरिकुहरग्रावशय्या निषण्णः !! ४७ !!**अर्थात् :-* वे दिन जो ध

30

वैराग्य शतकम् - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
0
0
0

विद्या नाधिगता कलंकरहिता वित्तं च नोपार्जितम ,* *शुश्रूषापि समाहितेन मनसा पित्रोर्न सम्पादिता !* *आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्नेऽपि नालिंगिताः ,* *कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया ककैरिव प्रेरितः !! ४८ !!*

31

वैराग्य शतकम् - भाग - ३१ (इकतीस)

27 मई 2022
0
0
0

*वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणापूर्णहृदयाः ,* *स्मरन्तः संसारे विगुणपरिणाम विधिगतिः !* *वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणै- ,* *स्त्रियामां नेष्यामो हरचरणचित्तैकशरणाः !! ४९ !!* *अर्थात्:-* सर्व

32

वैराग्य शतकम् - भाग - ३२ (बत्तीस)

27 मई 2022
0
0
0

*वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं च लक्ष्म्या*  *सम इह परितोषो निर्विशेषावशेषः !* *स तु भवति दरिद्री यस्य तृष्णा विशाला* *मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान्को दरिद्रः ? !! ५० !!* *अर्थात्:-* हम वृक्षों क

33

वैराग्य शतकम् - भाग - ३३ (तैंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं* *सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकव्रतफलम् !* *मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विमृशन्* *न जाने कस्यैष परिणतिरुदारस्य तपसः !! ५१ !!* *अर्थात्:-* स्वधीनतापूर्वक

34

वैराग्य शतकम् - भाग - ३४ (चौंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*दुराराध्यः स्वामी तुरगचलचित्ताः क्षितिभुजो* *वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः !* *जरा देहं मृत्युर्हरति सकलं जीवितमिदं* *सखे नान्यच्छ्रेयो जगति विदुषोऽन्यत्र तपसः !! ५३ !!* *अर्थात्:

35

वैराग्य शतकम् - भाग - ३५ (पैंतीस)

28 मई 2022
0
0
0

*भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला*  *आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटलीलीनाम्बुवद्भङ्गुरम् !* *लोला यौवनलालसा तनुभृतामित्याकलय्य द्रुतं* *योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विधध्वं बुधाः !! ५४ !!*

36

वैराग्य शतकम् - भाग - ३६ (छत्तीस)

28 मई 2022
0
0
0

*पुण्ये ग्रामे वने वा महति सितपटच्छन्नपालिं कपाली-* *मादाय न्यायगर्भद्विजहुतहुतभुग्धूमधूम्रोपकण्ठं !* *द्वारंद्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो* *मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए