- एक बार कह दिया न नहीं, तो बस नहीं! नहीं जाएगा तू कहीं पढ़ने। चल ये दमघोटू टीशर्ट और जींस उतार और बैलों को लेकर चल खेत में। मैं रोटी खाकर आ रहा हूं।
दसवीं में पढ़ने वाला बेटा अंबालाल रूआंसा होकर मुंह लटकाए बैल खोलने लगा।
अंबा के बापू को गरम रोटी देती मां भी बेटे के पक्ष में कुछ बोल न सकी, टुकुर- टुकुर उसे जाते देखती रही। शौहर के गुस्से से वाक़िफ थी। बिगड़े मौसम, बंजर जमीन, ढीठ सूदखोर, सबका क्रोध घर में बीवी - बच्चे पर ही उतारता था।
अंबा का बापू रोटी खाकर हाथ धो, जाने के लिए पलटा ही था कि पड़ोसी भंवर लाल आ गया।
उसकी राम- राम का जवाब देकर एक बीड़ी उसे क्या पकड़ाई कि खटिया खींच कर बैठ ही गया। बोला- भाई तेरा छोरा तो बड़ा समझदार हो गया।
- क्या हुआ, कहकर अंबा के बापू ने तो कश का धुआं मुंह में ही रोक लिया, पर उसकी जनानी की बांछें खिल गईं। ध्यान से कान लगा कर सुनने लगी उसकी बात।
वो बताने लगा - कल श्रवण बंटाई का गेहूं लाया था , ट्रेक्टर ट्रॉली से परात भर - भर कर दो सौ पचास परात गेहूं उतारे उसने।
- अच्छा, फ़िर ! आवाज़ उसकी औरत की आई। अंबा का बापू तो बीड़ी फूंकता रहा।
भंवर लाल ने कहना शुरू किया - फ़िर जब अपना हिस्सा ले जाने के लिए दोबारा से ट्रॉली में माल भरने लगा, तो तेरा छोरा बोल पड़ा- "बाबू तेरी ट्रॉली में ढाई सौ परात माल आता है, तो पूरा ख़ाली क्यों करता है, एक सौ पच्चीस ही गिन कर गिराया कर न, अब दोबारा भरेगा।"
श्रवण भी चकित हो कर उसे देखता रह गया था।
आख़िरी कश फ़ेंक कर भंवर लाल तो जाने के लिए उठ गया पर अंबा का बापू बुझे से सुर में पत्नी से बोला- मैं जाकर उसे खेत से वापिस भेजता हूं, तू उसे वो डिब्बे में रखे आठ सौ रुपए दे देना। कहना, जाकर फ़ीस भर देगा परीक्षा की।
पत्नी की आंखों में न जाने कहां की चमक आ गई।
- प्रबोध कुमार गोविल ग्डें
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