कुछ बच्चे मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे। एक सज्जन वहां पहुंचे और ज़रा संकोच के साथ खलल डाला।
बोले - बेटा, केवल आज आज एक दिन के लिए तुम अपना खेल बंद कर सकते हो?
- क्यों? ये पूछा तो दो तीन लड़कों ने ही, पर प्रश्नवाचक चिन्ह सबके चेहरे पर टंग गया।
वो बोले - मैं चाहता हूं कि आज तुम लोग अपना खेल बंद करके मेरे साथ कुछ काम करो। हम मिलकर यहां रावण का एक पुतला बनायेंगे और दशहरे के दिन उसका वध करके त्यौहार मनायेंगे।
कुछ लड़कों ने खुश होकर, और कुछ ने खीज कर बैट बॉल को एक दीवार के सहारे टिका दिया और उन सज्जन के पीछे पीछे चले आए।
बच्चे आपस में बातें करने लगे - बाज़ार में बना बनाया रावण मिलता तो है... किसी बच्चे से ये बात सुन कर वो सज्जन मुस्कराए और बोले - हां मिलता है, पर मैं चाहता हूं कि तुम लोग खुद रावण बनाओ ताकि तुम्हें पता चल सके कि रावण में ऐसा क्या है जो इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक हर साल जला कर नष्ट किया जाता है।
- क्रैकर्स, पटाखे! एक बच्चे ने कहा तो सब हंस पड़े।
- नहीं। वो संजीदगी से बोले - तुम इसमें अपनी गली का सारा कचरा भर देना और फ़िर उसे जला देना।
बच्चे निराश हो गए लेकिन उन सज्जन के कहने पर बेमन से आसपास के घास फूस और कचरा जमा करने लगे।
वो बोले - हमारे सब त्यौहार हमारी संस्कृति में अब तक इसीलिए जीवंत हैं क्योंकि ये दैनिक जीवन के लिए कुछ न कुछ उपयोगिता सिद्ध करते हैं। बाज़ार में बन रहे रावण इनके बनाने वालों को रोज़गार ज़रूर देते हैं किन्तु इनसे अगर शहर को गंदगी मिलती है तो उसे भी रोकना तो होगा न!
बच्चे दिन भर काम में लगे रहे। लेकिन रात होते ही बच्चों ने उन पुराने विचारों वाले सनकी, परंपरावादी सज्जन का फ़ेसबुक पर खूब मज़ाक उड़ाया।