दो बच्चे एक पेड़ के नीचे पड़े मिट्टी के ढेर में खेल रहे थे। कभी वे कोई घर जैसी इमारत बना लेते तो कभी उसे तोड़कर मिट्टी की गाड़ी बना लेते। जल्दी ही दोनों ऊब गए। पर शाम का धुंधलका अभी हुआ नहीं था,इसलिए इतनी जल्दी वे घर लौटने को भी तैयार नहीं थे दोनों।
तभी उधर से एक बूढ़ा फ़कीर आ निकला। वह बेहद अशक्त और कृशकाय था। उससे ठीक से चला भी न जाता था। बच्चे बहुत ध्यान से उसे देखने लगे। बच्चों को प्यार से देखता हुआ वो उस ओर ही आने लगा।
बच्चे पहले तो कौतूहल से देखते रहे किन्तु कुछ नज़दीक आने पर उन्होंने देखा कि फ़कीर की शक्ल खासी डरावनी है। बच्चे कुछ भयभीत हुए,पर इतने जर्जर बूढ़े से खौफ खाने की कोई वजह नहीं थी।
बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उनके पास ही आ बैठा। उसका दम भी कुछ फूलता सा लगता था। सांस तेज़ी से चल रही थी।
उसे अपनी तुलना में बिल्कुल निरीह पाकर बच्चों का हौसला बढ़ा।एक बच्चा बोला- बाबा, आप बहुत थके से लगते हो,हम आपके लिए कुछ खाने पीने का सामान लाएं?
बाबा ने उत्तर दिया- बेटा मुझे ज़िन्दगी में जो भी खाना पीना था वो मैं खा चुका,अब तो तुम मुझ पर एक उपकार कर दो,जिस मिट्टी के ढेर में तुम खेल रहे हो, उसी में मेरी एक मूरत बना दो।
- क्यों बाबा, उससे क्या होगा? बच्चों ने उत्सुकता से पूछा।
- बेटा जब मैं दुनिया में नहीं रहूंगा तो इधर से गुजरता हुआ कोई टीवी वाला मेरी तस्वीर खींच लेगा,और जब वो फोटो टीवी पर दिखा देगा तो मेरे सभी जानने वालों को कम से कम ये तो पता चलेगा कि मैं अब इस दुनिया में नहीं रहा।
- ठीक है बाबा, कह कर एक बच्चा किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह मिट्टी से बाबा का बुत बनाने में जुट गया।
दूसरा बच्चा भी उसकी नकल करता हुआ मूरत बनाने लगा।
बाबा ने आश्चर्य मिश्रित खुशी से कहा - ओह,तुम भी बना रहे हो, तो मेरे दो दो बुत!
- नहीं बाबा, मैं तो एक खूबसूरत लड़की की मूर्ति बना रहा हूं। दूसरा बच्चा बोला।
- क्यों? बाबा हैरान था।
- इसे आपकी मूर्ति के पास रख देंगे। बच्चा बोला।
- मगर किसलिए? बाबा बोला।
- अरे,तभी तो कोई कैमरे वाला आपकी तरफ़ देखेगा, नहीं तो कौन ध्यान देगा ! बच्चे ने लापरवाही से कहा।