एक बूढ़ा सड़क के किनारे बैठा ज़ोर ज़ोर से रो रहा था।
आते जाते लोग कौतूहल से उधर देखते थे। कुछ लोग इतने उम्रदराज इंसान को इस तरह रोते देख पिघल भी जाते थे,और रुक कर पूछते - बाबा क्या हुआ?
लोगों की संवेदना देख बूढ़ा बोला - ज़िन्दगी केवल एक बार मिलती है, मुझे भी मिली,पर मैं इस ज़िन्दगी में कुछ भी नहीं कर पाया।
कह कर वह फ़िर दहाड़ें मारने लगा।
लोग हैरान रह गए। एक युवक ने धीरे से उससे पूछा - पर तुम ज़िन्दगी में ऐसा क्या करना चाहते थे जो तुमने नहीं किया?
बूढ़ा आंखें पौंछते हुए बोला - न मैंने कभी ढंग का खाया, न ढंग का पहना, न कहीं घूमा फिरा... कहते कहते उसकी हिचकियां फ़िर बंध गईं।
लोग चले गए।
कुछ देर बाद वहां एक आदमी आया और एक ढकी हुई थाली रखते हुए बोला - लो बाबा, इसमें थोड़ा सा गरम खाना है, खालो।
वह आदमी पलटा ही था कि एक युवक वहां आया और एक पोटली बूढ़े के सामने रखते हुए बोला - देखो, इसमें एक नया कुर्ता पायजामा है,तुम इसे पहन लेना।
बूढ़ा हैरत से अपनी फटी पुरानी लंगोटी को देख ही रहा था कि एक नवयुवक ने साइकिल से उतरते हुए अपनी साइकिल वहां खड़ी की, और बोला - लो बाबा,तुम्हें जहां कहीं भी घूमना फिरना हो, ये साइकिल ले जाना।
बूढ़ा गदगद हो कर देख ही रहा था कि तभी एक वैन तेज़ी से आकर वहां रुकी जिसमें से एक वर्दीधारी गार्ड उतरा।
भीड़ देख कर वह बोला - हटो हटो,एक आदमी भाग कर इस तरफ आ गया है, हम उसे ढूंढने अाए हैं। किसी ने देखा है उसे?
वह पूछते पूछते रुक गया और अचानक बूढ़े को पहचान कर उसे लगभग घसीटते हुए गाड़ी में बैठाने लगा।
लोग हैरानी से देखने लगे।
एक युवक ने आगे बढ़ कर बूढ़े की पूरी राम कहानी गार्ड को सुना डाली और वे तीनों लोग गर्व से सामने आकर खड़े हो गए जिन्होंने बूढ़े की मदद की थी और उसे सामान दिया था।
गार्ड ने कुछ रुक कर सिर खुजाया और सहसा बूढ़े को हाथ पकड़ कर उतारता हुआ उन तीनों से बोला - चलो,आप तीनों इस गाड़ी में बैठो।
कुछ हिचकिचाते हुए तीनों गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर के साथ गार्ड भी बैठ गया और बूढ़े को वहीं छोड़ कर गाड़ी घूम कर चल पड़ी।
उड़ती धूल के बीच से भी बाहर खड़े लोगों की भीड़ ने गाड़ी पर लिखा नाम पढ़ लिया। वो शहर के नामी पागलखाने की गाड़ी थी, जो शहर में घूम घूम कर पागलों को पकड़ कर भर्ती करती थी।