जब दुनिया अच्छी तरह बन गई तो सब काम सलीके से शुरू हो गए।घर घर रोटी बनने लगी।
जहां घर नहीं थे, वहां भी रोटी बनती। पेड़ के नीचे, सड़क के किनारे,दो ईंट पत्थर जोड़ कर उनके बीच अंगारे दहकाये जाते,और रोटी बनती।
चूल्हे मिट्टी के हों, लोहे के हों या पत्थर के, रोटी बनती।
धुआं हो, लपटें हों,या आंच हो,रोटी बनती।
लकड़ी, कोयला, गैस,तेल,या कुछ भी जलता और उस पर रोटी बनती।
औरतें रोटी बनातीं। लड़कियां रोटी बनातीं, वृद्धाएं रोटी बनातीं।
भूखे बच्चे या उतावले बूढ़े थाली लेकर सामने बैठ जाते और रोटी बनती।
झोंपड़ी हो,घर हो,कोठी हो,बंगला हो,या महल हो,रोटी बनती।
छोटा घर हो तो परिजनों के लिए रोटी बनती, बड़ा घर हो तो परिजनों, नौकर चाकरों, कुत्ते बिल्लियों, भिखारियों के लिए रोटी बनती।
साधारण घर हो तो औरतें चूल्हा फूंकते हुए आंखें लाल करके रोटी बनातीं, ऊंचा घर हो तो होठ लाल रंग के रोटी बनातीं।
बेटी ,बहन,भाभी,बहू, मां, चाची, ताई रोटी बनातीं, दादी या नानी रोटी बनातीं।
स्त्री अपने घर रोटी बनाती, फ़िर पराए घर जाकर रोटी बनाती।
पहले बच्ची टेढ़ी मेढी रोटी बनाती, फ़िर जब रोटी गोल बनने लग जाती तो बच्ची महिला बन जाती।
तब वह पहले पिता के लिए, फ़िर भाई के लिए, फ़िर ससुर के लिए, फ़िर पति के लिए रोटी बनाती।
मां रोटी बनाना सिखाती, सास रोटी न फूलने पर जली कटी सुनाती,पर रोटी बनती।
अगर पति पत्नी दोनों काम करते तो मर्द घर आकर बीड़ी पीता, या टी वी पर मैच देखता,और औरत रोटी बनाती।
आग,औरत,और रोटी का संबंध कभी न टूटता,रोटी हर हाल में बनती।
घर वाले बीमार हों तो रूखी रोटी बनती, स्वस्थ हों तो घी वाली रोटी बनती।
फ़िर इन्कलाब आया।
औरत ने कहा,केवल मैं ही क्यों, आदमी भी तो रोटी बनाए !
आसमान फट पड़ा। तारे ज़मीन पर आ गए। रसोइयों को स्टार मिलने लगे- एक स्टार,दो स्टार, फाइव स्टार...!
बिरयानी, चाउमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा आदि आदि बनने लगे। रोटी से लड़ने को कमर कसी गई।
दवा से भूख को रोकने के जतन होने लगे।
मशीन से रोटी बनने लगी, रोटी बनाने वाले रोबोट ढूंढे जाने लगे।
रोटी को महीनों तक खराब न होने देने वाली मशीन बनने लगी।
और इस तरह अंगारों और सितारों में जंग होने लगी।