सुबह का समय था।दो मुर्गे घूमने जा रहे थे।दोनों अच्छे मित्र थे।अक्सर ही चहल कदमी के लिए साथ साथ निकल लिया करते थे।
चलते चलते अचानक न जाने क्या हुआ कि एक मुर्गे ने अपना पर फैला कर अपने कान पर रख लिया। ऐसा लगता था मानो वह कुछ सुनना नहीं चाहता हो।
उसके मित्र ने इशारे से पूछा - क्या हुआ, कान क्यों बंद कर लिए?
वह बोला- अजीब अजीब बेसुरी आवाज़ें आ रही हैं।
जहां एक मित्र ने कान बंद कर लिए थे, वहीं दूसरा कानों पर ज़ोर डाल कर ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा कि बात क्या है !
उसने सुना,बहुत सारे लोगों की भीड़ की आवाज़ें आ रही थीं। सब एक दूसरे को भला बुरा कह रहे थे।एक दूसरे की निन्दा कर रहे थे।एक दूसरे के लिए कड़वा बोल रहे थे।
वह बुद्धिमान था,सब समझ गया। वह अपने मित्र से बोला- घबराओ मत,ये तो लोगों की आवाज़ें हैं,जो चुनाव में अपना राजा चुन रहे हैं।
पहले मुर्गे ने आश्चर्य से कहा- अरे, यदि ये राजा चुन रहे हैं तब तो इन्हें और भी आदर के साथ सबसे बात करनी चाहिए।ये तो सभी एक दूसरे को कोस रहे हैं,एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं।कल जब इन्हीं में से एक राजा बनेगा तो क्या लोगों को ये सोच कर शर्म नहीं आयेगी कि इन्होंने उसके बारे में क्या क्या अनर्गल कहा था? खुद उस राजा को कैसा लगेगा कि को लोग अब उसे सम्मान से माला पहना रहे हैं, उन्होंने कल तक उसके बारे में क्या क्या अंट शंट कहा था!
वह बोला - कुछ नहीं होगा। तुम्हें पता है कमल के पत्ते इतने चिकने होते हैं कि उनपर पानी की बूंद पल भर नहीं ठहरती।हाथ में कितनी ही कालिख लग जाए,साबुन सब धो ही देता है।हाथी दिन भर धूल मिट्टी में घूमे,पर तालाब में नहाते ही साफ हो जाता है। झाड़ू कितनी भी गंदगी में जाए, झाड़ते ही फ़िर साफ़ हो जाती है।
भगवान की मूर्ति जब बनती है तो पहले छैनी हथौड़ा चोट मार मार कर पत्थर का दम निकाल देते हैं,बाद में फ़िर सब उसी के सामने सिर झुका कर अगरबत्ती भी जला कर पूजा करते हैं।
मुर्गे को सब समझ में आ गया।उसने कान खोल लिए और आवाज़ों का आनंद लेने लगा।