जैसे ही सुबह हुई बाग की हरी दूब पर से ओस की बूंदें वापस आसमान की ओर लौटने लगीं। सूरज की किरणें उन्हें तपाने जो लगी थीं।
एक क्यारी में फूल खिल गए। एक फूल ने दूसरे की ओर देखा और बोला - आज तेरे चेहरे पर चमक नहीं है!
दूसरे फूल को यह बात अपने अपमान जैसी लगी। वह कुछ लापरवाही और रूखेपन से बोला - यहां आइना नहीं है न, इसी से तू जो चाहे बोल ले। आइना होता तो तुझे भी तेरी असलियत पता चलती।
दोनों की नोंकझोंक सुन कर एक कली बोली - एक नई और ख़ूबसूरत सुबह का स्वागत करने के लिए क्या तुम्हारे पास कोई और तरीका नहीं है?
तभी एक भंवरा गुनगुनाता हुआ उधर से निकला, लेकिन वह किसी भी फूल पर बैठा नहीं, मंडराता हुआ गुज़र गया।
थोड़ी ही देर में बंगले की मालकिन भी अपने छोटे बच्चे के साथ घूमती घूमती उधर आ निकली। वह चिल्ला कर अपने नौकर से बोली - फूलों को अच्छी तरह धो कर टेबल पर सजाना, आजकल माली कीटनाशक बहुत डालने लगा है।
उसके चले जाने के बाद कली फूलों से फ़िर बोल पड़ी - चुप क्यों हो गए... बोलो, बोलो... बात तो तुम मुद्दे की कर रहे थे।